Wednesday, 13 March 2019

फरवरी का लड़का मार्च की लड़की ....


फरवरी :-तुम्हें कैसा लगता है मार्च ,जब तुम ये काँटेदार कम्बल ओढ़ती हो ? क्या तुम्हें भी ये महसूस होता है की ,हम इन काँटेदार सूईयों की सेज हैं ।
मार्च :-सूईयों की सेज ?
फरवरी :-हाँ ,मार्च सूईयों की सेज ।
हमारे ऊपर पड़ा ये कम्बल असंख्य सूईयों के तार से हीं तो बुना है ।उस निर्जीव -सजीव जीव ने अपने रोए दिए है हमारे रोओं को गरम करने के लिए पर ,देखो तो उसकी वेदना जो ये चुभन बनती जा रहीं है ।

मार्च :-तुम भी ना ।
फरवरी :- हाँ मैं भी ना ।
तुम इतने कम शब्दों में कैसे काम चला लेती हो ।कम से कम यहीं कहा होता ,फेब तुम्हारी बातें मुझे उलझी रील सी लग रहीं है ।

मार्च :-उलझी रील ?
फरवरी :-हाँ वहीं रील जो सूईयों को पिरोई जातीं है ।पिरोते वक़्त कभी -कभी ऐसी उलझ जाती है कि ,उसे  काटना पड़ता है ।

मार्च :-हम्म ,पर तुम्हारी बातें तो उस रील सी नही मेरे फेव ।
फरवरी :-तो फिर कैसी हैं मेरी मार्च ?

मार्च :-मार्च की धूप सी “गुनगुनी”

फरवरी :-अच्छा ! फिर तो जनवरी के दिनो में मेरी बातें बर्फ़ बन जाती होंगी और फिर, हमें महसूस होती होगी इस काँटेदार कम्बल की ज़रूरत ।फिर वहीं चुभन और वहीं बातें ।

मार्च :-मैं इस बार इस कम्बल पर खोल चढ़ा दूँगी ।सुना है खोल लगने के बाद इसकी गरमी बढ़ जाती है ।
फरवरी :-खोल । अगर फिर भी चुभन कम ना हुई तो ?
मार्च :-मैं हूँ ना ,मैं बन जाऊँगी तुम्हारी खोल .......

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