Monday, 29 April 2019

पिक्चर रॉक मिशिगन!!!!!

आज की यात्रा “पिक्चर रॉक” मिशिगन की। अमेरिका -कनाडा बोर्डर के नज़दीक, अपर पेनिनसुला में स्थित ये सुंदर पहाड़ आपको कल्पनाओं की दुनियाँ में ले जाएँगे। ख़ूबसूरती ऐसी की लेक सूपेरीयर भी इसके आगे फीका लगा मुझे। वैसे ये पहाड़ इसी लेक के किनारे हीं स्थित है। लेक सूपेरीयर विश्व का सबसे लंबा फ़्रेश वाटर लेक है, साथ ही ये अपनी गहराई के लिए भी प्रसिद्ध है।

पिक्चर रॉक को देखने के लिए आपको या तो बोट या फिर कायाक का सहारा लेना होगा। कायाकिंग आप तभी करें जब आप किसी ग्रूप के साथ हों या फिर आपके साथ एक्सपर्ट हों, ऐसा यहाँ लिखा गया है। वैसे तो यहाँ आप पुरे साल जा सकतें हैं, पर ठंड में झील के जम जाने से बोट टूर वैगरा बंद हो जाती है।

यहाँ जाने के लिए बोट, आप “पिक्चर रॉक लेक सोर “ के पास से लें सकतें है। दो-तीन हीं क्रूज चलतीं हैं और वो भी सिर्फ़ तीन राउंड। सुबह11बजे ,2बजे और शाम के 5 बजे आख़री क्रूज। पुरा टूर ढाई से तीन घंटे का होता है। अगर आपके साथ बच्चें हैं तो कुछ खाने-पीने का समान साथ रख लें। साथ ही एक पतला जैकेट या स्वेटर, कारण बीच-बीच में ठंडी हवाएँ चलनी लगतीं है। बोट पर आपको सिर्फ़ पानी और कोक ही मिलेगा वो भी ख़रीदना होगा।

हमने सुबह 11बजे का क्रूज लिया था। क्रूज के लिए भी आपको थोड़ा पहले जाना होगा नही तो टिकेट बिक जाती हैं। ओनलाइन टिकेट बुकिंग का साधन नही है। हमने तो फ़ोन करके टिकेट बूक किया था। टिकेट की क़ीमत पर पर्सन 38डोलर और दो साल तक के बच्चे का एक डोलर।

इस रॉक की ख़ासियत ये है कि, ये आपको एक पेंटिंग सी दिखती है। कई सारे मिनरलस जैसे लोहा ,कौपर, मैग्निज, लिमोनाइट की वजह से इनका रंग लाल, नारंगी, भूरा, काला और सफ़ेद का मिश्रण है।आपको गाइड बताते जाता है कि, ये इस आकृति का पहाड़ है ये उस आकृति का पर मैं तो जाने क्या -क्या कल्पना कर रहीं थी। मुझे तो जाने क्या-क्या दिख रहा था।

इसकी दूसरी तरफ़ एक 1868ई का बना लाईट हाउस है जो हरिकेन में टूट गया था पर फिर से इसकी मरम्मत हुई।साथ ही लेक के किनारे को ही कहीं -कही बीच का रूप दे दिया गया है। ट्रेल और ट्रैकिंग भी कई लोग कर रहें थे।

इस ट्रिप पर भी हमने एक जोड़े को शादी करते देखा। पहाड़ की चोटी पर शादी करते जोड़े को देख गाइड ने मज़ाक़ में कहा भी कि, यहाँ कई लोग शादी के लिए आतें है ताकी उनकी शादी इस पहाड़ सी मज़बूत और सुंदर बनी रहे पर पहाड़ भी तो नेचुरल कौज से टूटते हीं रहते हैं।

Wednesday, 24 April 2019

इंटरव्यू!!!

आजकल इंटरव्यू बहुत चल रहें है। कोई आम खाते-खाते खेतों में पहुँच जाता है तो कोई चाय के साथ धान की बात करता है। वैसे आम मुझे बहुत पसंद है पर धान वाली बात ज़्यादा दिल तक पहुँची। कारण बस ये है कि, धान की बात करने वाला मानो मेरे आस-पास की बात कर रहा हो। उसकी कई बातें मेरी जुड़ी यादें हों जैसे। बस एक हीं चीज़ खटकी इस इंटरव्यू की वो ये कि, जो इंटरव्यू ले रहें थे, बीच में ऐसे हीं उठ खड़े होते है। हो सकता हो ये इंटरव्यू को सहज बनाने का तरीक़ा हो पर मुझे कुछ ख़ास पसंद नही आया।

इंटरव्यू देने वाला मेरे गाँव-जावर के पास का हीं है। अपने गाँव के बारे में जो भी बातें वो बता रहा था, वो भले पुरानी हो पर अब भी बहुत कुछ ज़्यादा नही बदला। बगहा अनुमंडल के बेलवा गाँव का एक लड़का जो अपनी मेहनत से देश-दुनियाँ में नाम कमा रहा है। उसने सच हीं कहा कि उसके गाँव की धरती सोना है। धान छिड़क देने पर भी उग आतीं है। मैं ख़ुद इसकी गवाह हूँ,  गौनाहा थाना के सहोदर माता के मंदिर जाते समय। फ़रवरी तक जहाँ हर जगह धान की कटाई कब की हो चुकी होती है, यहाँ धान के नहें पौधे लहलहा रहें थे।

उसने कहा कि उसके घर के पास से हिमालय दिखता है। मेरे भी घरवाले कहते हैं कि मेरे घर की छत से भी बारिश के बाद हिमालय दिखता है। एक दो बार मैंने भी देखने की कोशिश की पर मुझे नही दिखा। शायद ना मौसम की मर्ज़ी थी ना हिमालय की।

इंटरव्यू की एक और बात जो मुझे ख़ुद से जुड़ी हुई लगी वो ये कि,  पिछले साल हीं मैंने योगिनंदा जी और लहरी महराज के बारे में पढ़ा । मैं चकित थी कि, ऐसा हो सकता है क्या, जैसा की योगी की आत्मकथा में लिखा है। फिर और ढूँढना शुरू किया, कुछ और पढ़ा पर ज़्यादा कुछ मिला नही किताब से इतर। अंत में यहीं मालूम हुआ की,

-एक  क्रिया योगी अपनी जीवन उर्जा को मानसिक रूप से नियंत्रित कर सकता है। आधे मिनट का क्रिया योग एक वर्ष के प्राकृतिक आध्यात्मिक विकास के एक वर्ष के बराबर होता है।

-क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है।

-क्रिया साधना को ऐसा माना जा सकता है कि जैसे यह “आत्मा में रहने की पद्धति” की साधना है”।

-लाहिरी महाशय ने योगानन्द को कहा कि, “यह क्रिया योग जिसे मैं इस उन्नीसवीं सदी में तुम्हारे जरिए इस दुनिया को दे रहा हूं, यह उसी विज्ञान का पुनः प्रवर्तन है जो भगवान कृष्ण ने सदियों पहले अर्जुन को दिया; और बाद में यह पतंजलि और ईसा मसीह, सेंट जॉन, सेंट पॉल और अन्य शिष्यों को ज्ञात हुआ।” 

पीएस:- इंटरव्यू में वो सब दिखा जो एक इंसान की यात्रा हो सकती है। कोई अपनी जड़ें इतनी आसानी से नही भुलता। उम्र का एक ऐसा दौर आता है जब इंसान जीवन-मृत्यु की खोज में ,अध्यात्म की खोज में लग जाता है।
ख़ैर पुरी इंटरव्यू मैंने मनोज वाजपई की हाथों को देख कर निकाल दी:)  





Tuesday, 23 April 2019

द रीडर!!!!

“द रीडर” मेरी प्रिय फ़िल्मों में से एक। एक ऐसी फ़िल्म जिसे देख कर मैं कई दिनो तक यहीं सोचतीं रही कि, क्या ऐसा भी हो सकता है? क्या किसी को अपनी निरक्षरता की इतनी ग्लानि  की मौत चुनना ज़्यादा उचित लगा उसे। किताबों के दिन इस फ़िल्म से अच्छा और क्या हो सकता है। चलिए मिलते हैं “हाना”  से।

पैंतीस -छत्तीस साल की हाना एक ट्राम कोंडक्टर है। एक दिन अपने काम से लौटते समय उसे, एक चौदह-पन्द्रह साल का लड़का माइकल उल्टी करते हुए मिलता है। उसे अपने घर लाकर उसकी सफ़ाई करती है और उसके घर को विदा करती है। कुछ दिनो बाद जब माइकल ठीक हो जाता है तो, वो हाना को धन्यवाद कहने उसके घर आता है। उम्र के इस पड़ाव पर अकेली हाना  उसे अपनी ओर आकर्षित करती है। दोंनो के बीच सम्बंध बन जाता है और फिर ये सिलसिला रोज का बन जाता है। इसमें सेक्स के अलावा अच्छी  बात ये होती है कि, माइकल रोज हाना को कुछ पढ़ कर सुनता है। कई बार तो हाना कहती है कि ,पहले कुछ पढ़ कर सुनाओ फिर प्यार। इसी बीच हाना का प्रमोशन होता है क्लर्क के रूप मे और उसी शाम वो किसी को बिना कुछ बताए कहीं चली जाती है।

कुछ सालों बाद ,वकालत की पढ़ाई कर रहा माइकल, कोर्स के तहत एक स्पेशल केस के ट्रायल में जाता है। जहाँ उसे हाना मुजरिमों के बीच दिखती है। जुर्म है कि, द्वितीय विश्व युध के समय वो नाज़ी कैम्प की गार्ड थी और उसने अपने साथियों के साथ मिलकर तीन सौ ज़िंदा महिलाओं को मौत के हवाले कर दिया। केस की मुख्य गवाह जो अब एक लेखक है, उसका कहना है कि हाना कैसे रोज किसी ना किसी को उसके लिए पढ़ने को बुलाती थी और किसे मरने के लिए भेजना है उसका चुनाव करती थी।

हाना का कहना है कि उस वक़्त वो अपनी ड्यूटी निभा रही थी पर उसने उन तीन सौ महिलाओं को आग के हवाले वाले काग़ज़ पर साइन नही किया। इस जाँच के लिए जज की तरफ़ से उसकी हैंडराइटिंग की माँग हुई। हाना ने हैंडराइटिंग दिए बिना अपना जुर्म क़बूल कर लिया। कोर्ट में मौजूद माइकल को अब समझ आया कि हाना “लिख-पढ़” नही सकती। अनपढ़ की शर्मिंदगी के आगे उसने उम्र क़ैद चुना।

हाना को उम्र क़ैद की सज़ा हो जाती है। माइकल उसके लिए किताबों का पाठ, रिकोड कर जेल में भेजता रहता है। उसके भेजे टेप और जेल की लाईब्रेरी की मदद से हाना पढ़ना-लिखना सीख जाती है। उसके अच्छे व्यवहार के करण उसे समय से पहले रिहा करने का आदेश मिलता है पर, रिहा होने के दिन हीं वो फाँसी लगा कर मर जाती है। अब वो मरती क्यों है इसके लिए आप फ़िल्म देखे। इसके कई ओपेन छोर है आप फ़िल्म देख कर ख़ुद अनुमान लगाए।

अब इस फ़िल्म में गीता सार ढूँढे तो ऐसा हुआ होगा कि , माइकल ने गीता पढ़ कर सुनाई होगी हाना को तभी नाज़ी कैम्प में लोगों की जान लेते समय उसे भय नही हुआ होगा,
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमरसी
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयो न्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते || ३१ ||

भावार्थ:-क्षत्रिय होने के नाते अपने विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है | अतः तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यकता नही
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्र्चैनं मन्यते हतम् |
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते || १९ ||

जो इस जीवात्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुआ समझता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न तो मरता है और न मारा जाता है |


Monday, 22 April 2019

लेखक !!!!



चीनी का क्यूब उठाते हुए उसकी नज़र सामने से आती हुई लड़की पर गई।
थोड़ा चौका वो ,ये?
यहाँ?
लड़की अपनी आँखें  तेज़ी से चारों तरफ़ फेरती है, पर उसकी नज़र जहाँ चमकती है वो टेबल उस लड़के से थोड़ी दूर है। लगभग दौड़ती सी वो उस टेबल की तरफ़ आती है।
अजीब हैं, इतने कम जगह में दौड़ -भाग कि क्या ज़रूरत? किसी का मेन्यू गिरते -गिरते बचा इसकी इस हरकत से। वेटर से माफ़ी भी ऐसी माँगी जैसे “हाँ तो क्या हुआ।”

इधर से नज़र हटा वो उत्सुकता से उस टेबल की तरफ़ देखता है, जहाँ उसकी आँखें चमकी थीं। वहाँ से एक दूसरी लड़की उठ कर, अजीब लड़की तक पहुँच चुकी होती है। दोंनो का मिलाप देख आस-पास के लोग हैरान कि, लड़कियाँ भी ऐसे मिलतीं हैं?

अजीब सी लड़की अपने पीठ का बैग हटा कर एक ख़ाली चेयर पर रखती है,  जो ठीक लड़के के सामने है। इस क्रम में उसकी नज़र एक बार लड़के की तरफ़ जाती तो है पर टिकती नही।

लड़का शांत भाव से चाय में चीनी घोल रहा है। पर  चाय जैसा हीं भूरा कुछ उसके दिमाग़ में घुमने लगता है। चम्मच हटा, कप को होंठों से लगता है। एक घूँट भरता है और फिर ओह! के साथ उस गरम घूँट को अपने अंदर भेजने की कोशिश करता है। गरम चाय उसके गले से होकर आँखो तक पहुँचती है। गले में हल्की घुटन और आँखों में नमकीन बूँदों जैसा कुछ तैर जाता है। इस बीच फिर से उसकी नज़र अजीब सी लड़की की तरफ़ जाती है। वो मेन्यू देखने में व्यस्त है। ऐसे में चाय की चीनी अधिक हो कर अब कड़वेपन सा जीभ पर पसर रहीं है।

कप को टेबल पर रख, अपने हाथों को देखते हुए वो सोचता है, क्या सच में इसने मुझे नही पहचाना?  या फिर ठीक से देखा नही मुझे?
देखी तो थी एक बार पर आँखो में कोई आत्मीयता ना थी। मुझ तक आ कर लौट गई वें मासूम बेरहम आँखें।
पर ऐसा कैसे हो सकता है?
मैं तो “आभासी दुनिया का प्रिय लेखक हूँ।” प्रेम लिख-लिख कर प्रेम पाया है मैंने। शायद इसे हीं प्रेम में बहना ना आता होगा।

लेखक की मानसिक उलझनों ने टेलीपैथी का काम किया और अजीब सी लड़की ने नूडल्स औडर कर दिया। दोंनो लड़कियाँ अपनी दुनियाँ में खोईं हुईं थीं।
इधर कोने में बैठे लेखक ने चाय की बिल को देखा ,पलटा। जेब में खोंसी क़लम को थोड़ी ज़ोर से खींचा और क़लम की  नीली स्याही छोटी सी सफ़ेदी पर पसरने लगीं...

चाय तुम सच में एक नशा हो
तुम्हारी निकोटीन मेरे दिमाग़ को बोझिल कर रहीं है
और उसकी निकोटीन मेरे मन में को।
नूडल्स के झूठे सोलीड स्टिक या मेरी भावनायें
दोंनो को उसकी मासूम निर्मम उँगलियाँ बेध रहीं हैं।
मैं दूर कोने में बैठा उस सुख और दुःख दोनो को जी रहा हूँ
जिसकी उसको ख़बर है या है भी नही?
जैसे -जैसे नूडल्स उसके मुँह तक लिपटी हुई जा रहीं है
वैसे-वैसे मेरी अभिमानी भावनायें खुलतीं हुई घुल रहीं है।
कुछ मेरे अंदर कुछ उस अजीब सी लड़की के अंदर।



Thursday, 18 April 2019

मेरी किताब का एक सच होता पन्ना!!!

कई बार आप कुछ सोचतें हैं और अगर वो हो जाता है तो इसके पीछे आपकी पुरी शक्ति लगी होती है। आपकी मानसिक और शारीरिक दोनो हीं शक्तियाँ इसके पीछे दिलों जान से लगी होती है पर मेरे साथ तो कुछ अलग हीं मामला हुआ। 
पर मैं इसे चमत्कार बिलकुल नही मानती। ये मेरा एक तरह से विश्वास हो सकता है, आज के समय कि राजनीति का, इससे जुड़े कार्यों का।

हुआ यूँ कि मेरी किताब “मनलहरी” का परिवेश मैंने अपने गाँव रहा।किताब की अधिकांश राहें मेरे गाँव -घर को जातीं हैं। मेरे गाँव के आगे बहती “मसान” और पीछे हमसब की दुनियाँ। ऐसे में इस पहाड़ी नदी पर पुल बड़े प्रार्थनाओं बाद बना और, “संयोग देखें उस पुल की हालत क़रीब वहीं हुई जो मेरा नायक सोच रहा था”

पढ़े किताब का एक पन्ना,



मेरे दिमाग़ में फिर से चींटियाँ रेंगने लगी। कुछ जलन सी हुई, शायद वो फिर से ख़ून पी रही हैं। अपना माथा झटक कर मैंने कहा, “जानता तो हूँ देखा भी है।”
कान्हा, आँखें निकाल कर पूछता है ,”देखा है, कहाँ ?”
मैंने कहा -छोड़ ना। तू क्या बता रहा था पूजा का, लक्षिमिनिया का ?
कान्हा मेरी तरफ़ देखकर आँख मारता है। मुझे धक्का देते हुए कहता है ,”लगता है आज भाई के दिमाग़ में “मछरी-भात चढ़ गया है।”
मैं धीमे से कहता हूँ ,ना भाई। हम सब सुन रहें हैं ,” ध्यान बस मसान में है।”
मसान में ?
हाँ।
तो यही बता दे, क्या सोच रहे हो मसान के बारे में? इसमें ऐसा क्या है सोचने वाली बात?
मसान की तरफ़ देखते हुए मैंने कहा,”यही कि, मान लो ये पूल अभी टूट जाए तो? क्या हम डूब जाएँगे या पार लग जाएँगे ?”


Wednesday, 17 April 2019

नश्वील!!!

आज आपसबको लेकर चलती हूँ “अथेना” के मंदिर। अथेना के मंदिर? जी हाँ, यूनानी देवी अथेना के मंदिर।
पार्थेनन मंदिर चलने से पहले इस देवी की कथा बताते चलूँ।
यूनान का राजा ज़्यूस था। बड़ा हीं शक्तिशाली। अपनी शक्ती से उसने एक बहुत ही बुद्धिमान सुंदर कन्या मेटिस को ज़बरन अपनी पत्नी बना लिया। कुछ समय बाद जब मेटिस गर्भवती हुई तो ज्यूस को डर सताने लगा। डर था कि उसके ख़ानदान मे बेटे हीं अपने पिता को गद्दी से उठा फेंकते हैं। कहीं उसे पुत्र हुआ हुआ तो? ऐसे में वो अपनी गर्भवती पत्नी को पानी का बूँद बना कर पी जाता है। कुछ महीनों बाद जब उसके सिर में दर्द होने लगता है तो, वो अपने सिर के एक हिस्से को फाड़ डालता है। ऐसे में उसमें से एक कन्या अस्त्र-शस्त्र के साथ निकलती है। यहीं वो कन्या है जो यूनान की कुलदेवी बनी। कहते हैं यें आजीवन अविवाहित रही इसलिए इनके मंदिर का नाम “पार्थेनन” दिया गया। यूनान में पार्थेनन का मतलब कुँवारी कन्या का कक्ष होता है। 

अमेरिका में एकलौती इस तरह की मंदिर नश्वील में है। इसलिए इस शहर को “अथेंस औफ द साउथ” कहते है। वैसे तो “नश्वील” को “म्यूज़िक सिटी” भी कहते हैं। यहाँ ही सबसे पहले “गरंड ओले ओपर हाउस” यानी रेडीयो शो शुरू हुआ था। इसके अलावा “कंट्री म्यूज़िक हौल औफ फ़ेम” संगीत का एक बड़ा सा म्यूसियम है। कई छोटे-छोटे म्यूज़िक हौल है, साथ ही डाउनटाउन में रंगीन दीवारों के साथ एक पुल भी है जो युद्द में शहीद सैनिकों की याद में बनाया गया है।

खाने-पीने के भारतीय दुकाने पास नही। आपको डाउनटाउन से बाहर आना होगा इसके लिए। साथ हीं आपको थोड़ा ध्यान रखना होगा, यहाँ चरसी लोग ज़्यादा दिखे मुझे। रोड के किनारे कोई भी एक म्यूज़िक इंस्ट्रमेंट लिए, हेल्प का बोर्ड लगाए। तो कुछ एक दूसरे के पीछे दौड़-भाग करते हुए। 

शतेश गाड़ी चला-चला कर वे थक गए थे। हम एक कोफ़ी शोप पर पहुँचे। वहाँ चेक किया तो रेडीयो हौल में आज कोई प्रोग्राम नही था। म्यूज़िक म्यूज़ियम जाने का प्लान हुआ पर लोगों के कोम्मेंट देखे कि बच्चों के साथ जाना ठीक नही। ऐसे में शतेश बोले मैं और सत्यार्थ यहीं कोफ़ी शोप में रुकते है। तुम जाओ कम से कम बाहर से हीं देख आओ।मैं चल पड़ी। आधे घंटे में सब निपटा कर वापस पुत्र और पिया के पास। 
पर एक अफ़सोस रह गया कि कोई शो नही देख पाई यहाँ तक आ कर भी।

Tuesday, 9 April 2019

मोबाइल होम और पीपल का पेड़ !!!!

इस बार का इतवार बचपन के इतवार जैसा था। बदली छाई हुई थी, मौसम ठीक वैसा हीं जिसका हम बसंतपुर में इंतज़ार करतें। ना धूप की चुभन ना ठंड से ठिठुरते पाँव।  ख़ूब खेलते और भगवान को कहते “ एक मुट्ठी सरसों झम-झम बरसो”

 ख़ैर अब तो घुमना हीं मेरा खेल है तो निकल पड़े एक अलग यात्रा की ओर। अलग यात्रा से मेरा मतलब आज मैं आपको घर घुमाऊँगी। घर घुमाओगी ?
भला इसमें क्या घूमने को हो सकता है?
जी बिलकुल हो सकता है अगर मेरी नज़रों से देखें तो।

तो आज मैं आप सबको “मोबाइल होम पार्क “ ले कर चलती हूँ। पार्क से कन्फ़्यूज़ ना होईएगा। ये कोई पार्क नही बस नाम दिया जाता है ऐसा। साथ हीं ये घूमने की भी जगह नही पर मुझे बड़ी जिज्ञासा थी कि, कैसे यहाँ लोग रहते होंगे? कैसे  घर होंगे? वैसे फ़िल्मों और डॉक्युमेंट्री में तो ऐसे घर बड़े देखे पर सच में नही देखा था।

मोबाइल होम या ट्रेलर होम एक ऐसे घर को कहते है जिसे आप एक जगह से दूसरी जगह ले कर जा सकतें है। हालाँकि एक बार एक जगह रख देने पर इनका मूव करना थोड़ा मुश्किल और महँगा है। अमेरिका में ऐसे घरों की संख्या कुछ 38,000 तक है। कुछ घर वेकेशन  होम टाइप होते है तो वहीं ज़्यादातर कम आय के लोगों इसे लेते हैं। कम पैसे में अपना घर पाना का उनका सपना पूरा हो जाता है।
 कॉम्पनी में बने ये घर जब ले हीं लिए तो ज़ाहिर है इन्हें कहीं तो रखना होगा। अब इसके लिए आपके पास या तो ज़मीन हो या फिर आप किसी “मोबाइल पार्क” में घर के हिसाब से ज़मीन बूक करें। आप यहाँ ज़मीन ख़रीद भी सकतें है या फिर महीने के हिसाब से ज़मीन का किराया देते रहे। ज़मीन के साथ मालिक आपको बिजली ,पानी ,गैस, सिवर सब मुफ़्त देता है। कुछ महीने का किराया 550-800 डोलर तक होता है छोटे घरों का ।

इन घरों को लेने में जहाँ कम पैसे में आप ख़ुद के घर के मालिक हो जातें है वहीं कुछ दिक़्क़तें भी है इनमे। जैसे की इनका दाम समय के साथ घटता जाता है। स्थाई घर जैसा दाम बढ़ता नही। दूसरा इन घरों को लेने के लिए लोन बड़ी मुश्किल से मिलता है। साथ ही बहुत ज़्यादा प्राकृतिक आपदा ये घर सह नही पातीं। फिर भी कुल मिला कर देखें तो एक अपने घर की बात हीं कुछ और होती है। हर बार बदलने की चिंता नही होती। कितनी यादें जुड़ जाती है इनसे। भले सस्ती, थोड़ी कमज़ोर सही पर है तो अपना। साथ ही इन मोबाइल पार्क में चुकीं कम आय वाले लोग रहते है, तो क्राइम भी थोड़ी होती है। डरिए मत, जान से मारने वाली तक तो नही सुनी मैंने, पर ड्रग्स और चाइल्ड मलेस्ट आदि की ख़बरें मिल जातीं है।

यहाँ से आने के बाद शाम की चाय पर भरत शर्मा द्वारा गया “देवी पचरा” गीत और रात को मैंने एक मराठी फ़िल्म “पीपल” लगा दी।
फ़िल्म की कहानी दिनभर के मन के भाव का सार था। हमदोनो अपने घर को बहुत याद कर रहे थे और इस कहानी ने तड़के का काम किया। कहानी थी एक बूढ़े व्यक्ति की जिसकी पत्नी का देहांत हो चुका है। उसके बेटे अमेरिका में सेटल है और वो बस स्काइप या फ़ोन के ज़रिए उनसे जुड़ा है। बच्चें उसे हर बार बुलाते है पर वो नही जाता पर एक बार बच्चों के बच्चें की जिद्द से जाने को तैयार हो जाता है। पर तय दिन वो अपने गाँव वापस लौट आता है।
ये वहीं गाँव है जिसे बरसो पहले वो छोड़ गया था और शहर में बस गया। उसे लगता है कि, कभी उसने घर छोड़ा फिर उसके बच्चों ने अब जाने उसके पोता -पोती क्या करेंगे?
ऐसे में वो अपने घर के आगे एक “पीपल “ का पेड़ लगाता है और कहता है कि “कहीं तो हमारी जड़े हो।”

Sunday, 7 April 2019

गुडी पाड़वा और बुधवार पेठ !!!!!

हिन्दू नववर्ष का आगमन हो चुका है। चैत के इस महीने में एक ओर जहाँ माता का आगमन होता है, वहीं इस दिन महाराष्ट्र में “गुडी पाड़वा” मनाया जाता है। चलिए पहले गुडी पाड़वा की कहानी सुनती हूँ-
किसी ज़माने में एक कुम्हार के बेटे ने अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए मिट्टी के सैनिक बनायें। उन सैनिकों में प्राण फूँकें और उनकी मदद से अपने शत्रुओं पर विजय पाई। तभी से ये विजय पताका हर नव वर्ष पर हर महाराष्ट्रियन घर की शान रही। 
इस बात से एक और बात याद आई। पुणे के “बुधवार पेठ” के “दगडूशेठ गणपति” का मंदिर। आज के दिन यहाँ ख़ूब भीड़ होती है। अब बात इस गणपति मंदिर की तो इनकी भी कहानी तो बनती है। तो हुआ यूँ ,
पुणे में एक हलवाई रहता था। उसके एकलौते पुत्र की मृत्यु प्लेग से हो गई। ऐसे में वो और उसकी पत्नी लक्ष्मी शोक में डूबे रहने लगें। इसके निदान के लिए, उनके गुरु ने उन्हें गणपति मंदिर बनवाने की सलाह दी। हलवाई ने गुरु की बात मान इस मंदिर का निर्माण कराया और इस “दगडूशेठ हलवाई “के नाम पर यह मंदिर “दगडूशेठ गणपति” मंदिर हुआ। आज के समय में यह भारत के धनी मंदिरों में से एक है। साथ हीं यहाँ पाँच नारियल और दूभ चढ़ाने की भी प्रथा रही है। बाक़ी आपकी श्रद्धा, लोग यहाँ सोने -चाँदी भी चढ़ाते हैं।

ये मंदिर शहर के एक ऐसे इलाक़े में है जहाँ आपको आध्यतम से लेकर बाज़ार तक सब मिलेगा। पोस्ट को पूरी करने से पहले बुधवार पेठ से जुड़ी आपनी कुछ यादें बताती चलूँ। 
मैं यहाँ पहली बार , अपने हॉस्टल की कुछ दोस्तों के साथ गणपति फ़ेस्टिवल के समय गई थी। मंदिर को जाने वाले रास्ता मेरे लिए नया तो था हीं, थोड़ा अचरज भरा भी था। जिस गली से हमारी ऑटो जा रही थी, वहाँ के घर की सारी महिलाएँ घर के बाहर सजी हुई तो कुछ अजीब सी बैठी हुई थीं। मुझसे रहा नही गया तो मैंने अपनी एक दोस्त से पूछा कि ऐसा कैसे? इतनी सारी महिलाएँ रोड के किनारे, दरवाज़े की चौखट पर तो कहीं ठेले पर बैठी हुईं। मेरी दोस्त फुसफुसाई बाद में बताती हूँ ,कारण मेरे सवाल से ऑटो वाला पीछे मुड़ कर मुझे देखने लगा था। जैसे वो गली अंतिम छोर पर आई ऑटोवाले ने देखा की मुझे अब तक जवाब नही मिला था और मैं बाहर हीं देखी जा रही थी, तो बोला “रेड लाइट एरिया” है मैडम। मेरे कान गरम हो गए ये सुन कर। मैं झेंप गई थी, पर इसमें मेरी क्या ग़लती थी मैंने पहली बार ऐसी कोई जगह देखी थी। 

इसके तुरंत बाद दूसरी हैरानी, जब ऑटोवाले ने कहा -उतरिए। मैंने कहा आ गया मंदिर? 
उसे लग गया कि कोई नया रंगरूट है, बोला मंदिर के आगे पार्किंग नही। यहाँ से सामने देखो मंदिर है। हमारे ग्रूप में अधिकतर लड़कियाँ महाराष्ट्र की थीं। वो यहाँ पहले भी आ चुकीं थीं, बोली ,”अरे चल ना तुझे ले कर चलते हैं।”इस तरह जिस्म के बाज़ार के बीच गणपति बैठें है। 

ऐसा नही है कि यहाँ सिर्फ़ रेड लाइट एरिया हीं है। ताज्जुब की बात है कि यहीं पास में “सावित्री बाई फुले” ने पहली महिला विद्यालय की स्थापना की थी। साथ हीं यहाँ किताबों का, एलेक्ट्रोनिक्स का बहुत बड़ा बाज़ार है। सस्ती दामों में सब मिल जाता है अगर मोल-भाव करने आया तो। मोल-भाव की बात हो और महिलायें ना हो कैसे हो सकता है। यहाँ पास में हीं “तुलसी बाग़ “ है कुछ-कुछ  दिल्ली के “सरोजनी” जैसा पर सरोजनी जितना बड़ा नही। लक्ष्मी रोड पर शादी -ब्याह के साथ -साथ कई ब्राण्डेड कपड़े की दुकान भी मिल जायेंगी। भीड़-भाड़ वाली बुधवार पेठ को पैदल नापने से अच्छा दूसरा कोई विकल्प नही।

चलिए जाते -जाते दगडूशेठ गणपति के दर्शन करते जाइए। सड़क से सटे इस मंदिर के अंदर विराजमान गणपति की , साढ़े सात फूट की प्रतिमा की सजावट इतनी अच्छी होती है कि राहचलते लोग भी रुक कर एक बार प्रणाम कर आगे बढ़ते है। 

Thursday, 4 April 2019

मार्टिन लूथर किंग !!!!

आज मार्टिन लूथर किंग जूनियर की पुण्यतिथि है। ऐसे में मैं आपसबको अटलांटा लेकर चलती हूँ, जहाँ इनका जन्म हुआ था। जन्म और मृत्य के बीच इन्होंने जो 39साल साल में जिया वो किसी प्रेरणा से कम नही। इनके योगदान के लिए इन्हें सबसे कम उम्र में विश्व शांति का नोबल पुरस्कार मिला।

गांधी जी के विचारों से प्रभावित लूथर किंग ने रंग भेद मिटाने के लिए गांधी जी का हीं मार्ग अपनाया था। चर्च के पादरी मार्टिन ने निर्णय लिया कि, “ मैंने प्रेम को हीं अपनाने का निर्णय लिया है। घृणा करना तो बेहद कष्टदायक काम है।”
इन्होंने ने अमेरिका में फैले गोरे -काले के भेद को मिटाने के लिए एक आंदोलन चलाया जो कि 381दिन चला।

हुआ यूँ था कि, अट्लैंटा के मार्टिन को अल्बामा के एक चर्च में उपदेश देने के लिए बुलाया गया। वहाँ एक अश्वेत महिला ने बस में अपना सीट किसी गोरे को देने से मना किया, जिसके कारण उसे गिरफ़्तार होना पड़ा। कुछ -कुछ गांधी जी के अफ़्रीका ट्रेन यात्रा जैसा। इसके बाद मार्टिन लूथर ने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और कामयाब रहें।

संयोग देखिए की गांधी के मार्ग पर चलने वाले मार्टिन की हत्या भी कुछ गांधी जैसी हीं रही। इन्हें उस वक़्त होटेल में गोली मार दी गई , जब ये मेम्फ़िस में सफ़ाई कर्मचारियों के स्वस्थ और उनकी सुविधाओं के बारे में विरोध करने गए थे।

अब बात करतीं हूँ अट्लैंटा की। क्रिसमस की छुट्टी पर हमलोग यहाँ गए थे। पर क्रिसमस की वजह से इनका जहाँ जन्म हुआ वो स्थान बंद था। इसे एक नैशनल हिस्टॉरिकल साइट का नाम दिया गया है। ऐसे में हमलोग बाक़ी की जगहें देखने चले गए। उन सब के बारे में दूसरे दिन बताऊँगी। अभी बात करती हूँ “द सेंटर फ़ॉर सिवल एंड ह्यूमन राइट्स “म्यूज़ियम  बारे में।

मार्टिन लूथर किंग के कामों को दर्शाने के लिए एक ख़ूबसूरत म्यूज़ियम अट्लैंटा डाउनटाउन में बना है। यहाँ पर विश्व भर में हो रहे या हुए सिवल राइट्स के बारे में जानकारी है। दो फ़्लोर के इस म्यूज़ियम में आपको मार्टिन लूथर किंग की जीवनी और उनके संघर्ष को कहीं पेंटिंग तो कही ओडियो तो कहीं छोटे -छोटे वीडीयो में दिखाया गया है। इनका प्रमुख भाषण “आई हैव आ ड्रीम “कुछ बीस भाषाओं में लिखा हुआ मिल जाएगा। साथ हीं अमेरिका के दूसरे प्रांत में कैसे काले लोगों ने विरोध किया था। कैसे किसी निग्रो बच्ची को स्कूल में दाख़िला नही मिला तो कैसे किसी पुलिस वाले ने किसी युवक को मार डाला आदि क़िस्से भी दर्ज हैं।

इसके साथ यहाँ गांधी ,मंडेला और लूथर के कई विचार लिखें है। मार्टिन लूथर किंग की कुछ चिट्ठियाँ ,लेख और उनके कुछ सामान को भी संग्रह किया गया है। साथ ही “निर्मल कुमार बोस” की “सेक्शन आउफ़ गांधी “ की भी एक प्रति है।मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था गांधी और भारत का कई जगह ज़िक्र पढ़ कर , सुनकर ।
हाँ यहाँ तस्वीरें लेने की अनुमति नही है। बाहर के हॉल या निचले तले पर आप कुछ तस्वीरें ले सकतें है। उन्हीं कुछ तस्वीरों के साथ मार्टिन लूथर किंग कुछ विचार जो मुझे प्रभावित करतें है-
* सौ सफल विचार बनाने से अच्छा, एक सफल विचार को गति देना है।यहीं सफलता का मूल मंत्र है।
* यदि तुम उड़ नही सकते हो तो दौड़ो, यदि तुम दौड़ नही सकते हो तो चलो, यदि तुम चल नही सकते हो तो रेंगो, लेकिन तुम जैसे भी करो तुम्हें आगे बढ़ना हीं होगा।
 *और अमेरिकी सिवल राइट्स मूवमेंट के नायक को उनकी हीं विचार द्वार सदर नमन।
किसी भी जगह हो रहा अन्याय हर स्थान पर न्याय के लिए ख़तरा है ।



Wednesday, 3 April 2019

त्रिकोण का चौथा कोण !!!!!

आज शाम की चाय जयदेव के साथ रही। जयदेव कौन ? मेरे कोई मित्र ?
 हम्म, कह सकतें हैं “काल्पनिक मित्र” जिनकी बनाई धुने मुझमें मित्रता ,प्रेम,उमंग सब भर जातीं हैं।
बात कर रही हूँ संगीतकार “जयदेव वर्मा” की। एक ऐसे संगीतकार जिन्होंने कई नए लोगों के साथ मिलकर बेहद ख़ूबसूरत गाने दिए। आज बात करती हूँ “त्रिकोण का चौथा कोण “फ़िल्म की।

फ़िल्म का नाम भले हीं अलगे लगे पर कहानी वहीं पुरानी है। हाँ उस समय को देखते हुए इस फ़िल्म का अंत थोड़ा अलग ज़रूर है।
कहानी कुछ यूँ है-
फ़िल्म का नायक अपनी अपनी गृहस्ती में ख़ुश है फिर भी कभी -कभी उसे अपनी प्रेमिका की याद आने लगती है। कहानी फलैस बैक में चल रही होती है। नायक नायिका को पहली बार एक म्यूज़िम में देखता है और पहली नज़र का प्यार हो जाता है। इधर नायक की माँ ने उसकी शादी अपने जानपहचान की लड़की से करने की सोच रखी है। नायक मना कर देता है कि, उसे किसी और से प्रेम है। इधर नायिका जो कुछ दिन दिनो के लिए अफ़्रीका से भारत आई होती है, उसे अचानक अफ़्रीका जाना पड़ता है। जिस होटेल में रुकी होती है वहाँ के वेटर को एक ख़त अपने पते के साथ नायक के लिए छोड़ जाती है, पर नायक को वो ख़त नही मिलता। नायक माँ की पसंद की लड़की से शादी कर लेता है और उनकी एक बेटी भी होती है। ऐसे में फिर से प्रेमिका की एंट्री होती है। दोनो मिलने लगते है और फिर वहीं क्या करें क्या ना करे वाली हालत। इधर नायक की पत्नी को दिल की बीमारी है। उसे जब नायक की प्रेमिका के बारे में मालूम होता है वो नायक से अपनी बीमारी छुपाती है। उसे लगता है कि ,बेचारा नायक उसकी वजह से फँसा है। नायक को जब ये बात मालूम है वो उसे डॉक्टर के पास ले जाता है। पत्नी प्रेमिका पर घर सौंप कर ऑपरेशन को जाती है। उसे लगता है वो बच नही पाएगी पर वो बच जाती है। इधर प्रेमिका अपने घर की तरह उसका घर और बेटी को सम्भाले रखती है। ऐसे में जब नायक की पत्नी घर आती है तो प्रेमिका घर से जाने को तैयार है। तब पत्नी प्रेमिका को ये कह कर रोकती है कि ये घर अब उसका भी है। दोनो क्या साथ नही रह सकतीं। और इस तरह फ़िल्म पूरी होती है ।

नायक -दिल  धड़कने की आवाज़ थी ख़ामोशी के सिवा कोई भी तो नही दिल धड़कने की आवाज़ थी ..  ...
नायिका -बेसब हमको फिर तीसरे का गुमा कैसे और क्यों हुआ ?
नायक :-कोई भी तो नही,दिल धड़कने की .....
तेरी ज़ुल्फ़ों में भीगीं हुई मेरी ये उँगलियाँ ढूँढती हैं तुम्हें ,छू रहीं हैं तुम्हें
आ ना जाए कहीं आज पैरों तले अपनी परछाइयाँ धीरे -धीरे चलो,मुँह से कुछ ना कहो
जो भी कहना है आँखो से आँखे कहे ....   .... 

Tuesday, 2 April 2019

चुनावी भारत ।

दो दिन पहले मैंने एक ऐसे इंसान को ब्लॉक जिनके पोस्ट मुझे यक़ीन नही दिला रहे थे की ये वहीं है ,जिन्हें मैं जानती हूँ ,आदर करती हूँ ।एक ऐसे इंसान जिनकी अपनी बेटी हो बहने हो वो हर फ़ालतू के वीडीयो पर माँ -बहन की गाली लगा रहें हैं ।हद तो तब हुई जब एक महिला कार्यकर्ता के वीडीयो पर उन्होंने उसके लिए रेप जैसे शब्द इस्तेमाल किए ।ख़ुद पर ग़ुस्सा आ रहा था ।मन घृणा से भर गया था फिर लगा उम्र हो गई है ,शायद अंडरोपौज से गुज़र रहें होंगे ।

इतना क्रोध ,इतनी हताशा क्यों है ? क्यों लग रहा है आपको की मोदी फिर से सत्ता में नही आ सकतें ?
जबकि आप गाली के एक बच्चें से भी पूछे तो वो बता देगा “अबकि बार मोदी सरकार “
क्या जोड़ -तोड़ की राजनीति कभी नही हुई ? क्या हो जाएगा अगर कुछ कम सीटें आए ?

लोग क्यों भूल रहें हैं कि ,किसी की बहन या बेटी का रेप होता है तो दूसरों के लिए महज़ एक न्यूज़ होता है ।आपके महामहिम नही आने वाले आपका दुःख कम करने या तुरंत फ़ैसला देने ।
उनके पास इतना समय होगा कि किसी गाँव ,छोटे शहर के रेप का फ़ैसला देखें ?,कौन जाने उस वक़्त वे क्या बेंच रहें होंगे ?

वैसे मुझे एक बात नही समझ आती ,क्यों बार -बार पेशा बदल कर लोगों से जुड़ने की कोशिश होती रही है ।कही कुछ ऐसा हैं हीं नही की आम लोगों से जुड़ सकें ? फिर तो हमारी सरकार को सच में सोचना चाहिए ।
भारत का प्रधानमंत्री होना कोई छोटी बात नही ।आप गर्व से ,सम्मान से ये क्यों नही कहते की मैं इस देश का नेता हूँ ।मैंने फ़लाँ -फ़लाँ काम किए है ।हाँ कुछ काम रह गए है जिन्हें पूरा करना है ।आप इसके बिना पर वोट दें ।
या सच में भारत की आधी जनता की सोच चायवाले ,चौकीदार तक हीं सीमित है ।वे भारत के प्रधानमंत्री तक सोंचते हीं नही ।

याद रखिए की कुछ लोग ऐसे ज़रूर होने चाहिए जो सरकार की ग़लती बार -बार याद दिलाते रहें ।ऐसे हीं तो सुधार होगा ।सरकारें जागरूक रहेगी ।भक्ति में दिमाग़ ,हाथ के चाईनीज फ़ोन  जैसा मत बनाइए की हर चीज़ का डूप्लिकेट ढूँढने की आदत हो जाए ।
अगर ऐसा तो तैयार रहिए अगले चुनाव में हवालदार बनने के लिए ।

पी एस:-मैं वोट देने नही आ रही इसलिए मेरा ये कहना कि आप वोट देने ज़रूर जाएँ ज्ञान देने जैसा होगा और आपको तो मालूम हीं होगा कि ज्ञान लोगों को कम हीं पसंद है ।ऐसे में अपने विवेक से काम ले ।साथ हीं ये मेरा वॉल है अगर आप मेरी किसी बात से असहमत है तो ज़रूर लिखे पर कूँड़ा ना फैलाएँ ।इसके लिए आपकी अपनी वॉल है ।