चीनी का क्यूब उठाते हुए उसकी नज़र सामने से आती हुई लड़की पर गई।
थोड़ा चौका वो ,ये?
यहाँ?
लड़की अपनी आँखें तेज़ी से चारों तरफ़ फेरती है, पर उसकी नज़र जहाँ चमकती है वो टेबल उस लड़के से थोड़ी दूर है। लगभग दौड़ती सी वो उस टेबल की तरफ़ आती है।
अजीब हैं, इतने कम जगह में दौड़ -भाग कि क्या ज़रूरत? किसी का मेन्यू गिरते -गिरते बचा इसकी इस हरकत से। वेटर से माफ़ी भी ऐसी माँगी जैसे “हाँ तो क्या हुआ।”
इधर से नज़र हटा वो उत्सुकता से उस टेबल की तरफ़ देखता है, जहाँ उसकी आँखें चमकी थीं। वहाँ से एक दूसरी लड़की उठ कर, अजीब लड़की तक पहुँच चुकी होती है। दोंनो का मिलाप देख आस-पास के लोग हैरान कि, लड़कियाँ भी ऐसे मिलतीं हैं?
अजीब सी लड़की अपने पीठ का बैग हटा कर एक ख़ाली चेयर पर रखती है, जो ठीक लड़के के सामने है। इस क्रम में उसकी नज़र एक बार लड़के की तरफ़ जाती तो है पर टिकती नही।
लड़का शांत भाव से चाय में चीनी घोल रहा है। पर चाय जैसा हीं भूरा कुछ उसके दिमाग़ में घुमने लगता है। चम्मच हटा, कप को होंठों से लगता है। एक घूँट भरता है और फिर ओह! के साथ उस गरम घूँट को अपने अंदर भेजने की कोशिश करता है। गरम चाय उसके गले से होकर आँखो तक पहुँचती है। गले में हल्की घुटन और आँखों में नमकीन बूँदों जैसा कुछ तैर जाता है। इस बीच फिर से उसकी नज़र अजीब सी लड़की की तरफ़ जाती है। वो मेन्यू देखने में व्यस्त है। ऐसे में चाय की चीनी अधिक हो कर अब कड़वेपन सा जीभ पर पसर रहीं है।
कप को टेबल पर रख, अपने हाथों को देखते हुए वो सोचता है, क्या सच में इसने मुझे नही पहचाना? या फिर ठीक से देखा नही मुझे?
देखी तो थी एक बार पर आँखो में कोई आत्मीयता ना थी। मुझ तक आ कर लौट गई वें मासूम बेरहम आँखें।
पर ऐसा कैसे हो सकता है?
मैं तो “आभासी दुनिया का प्रिय लेखक हूँ।” प्रेम लिख-लिख कर प्रेम पाया है मैंने। शायद इसे हीं प्रेम में बहना ना आता होगा।
लेखक की मानसिक उलझनों ने टेलीपैथी का काम किया और अजीब सी लड़की ने नूडल्स औडर कर दिया। दोंनो लड़कियाँ अपनी दुनियाँ में खोईं हुईं थीं।
इधर कोने में बैठे लेखक ने चाय की बिल को देखा ,पलटा। जेब में खोंसी क़लम को थोड़ी ज़ोर से खींचा और क़लम की नीली स्याही छोटी सी सफ़ेदी पर पसरने लगीं...
चाय तुम सच में एक नशा हो
तुम्हारी निकोटीन मेरे दिमाग़ को बोझिल कर रहीं है
और उसकी निकोटीन मेरे मन में को।
नूडल्स के झूठे सोलीड स्टिक या मेरी भावनायें
दोंनो को उसकी मासूम निर्मम उँगलियाँ बेध रहीं हैं।
मैं दूर कोने में बैठा उस सुख और दुःख दोनो को जी रहा हूँ
जिसकी उसको ख़बर है या है भी नही?
जैसे -जैसे नूडल्स उसके मुँह तक लिपटी हुई जा रहीं है
वैसे-वैसे मेरी अभिमानी भावनायें खुलतीं हुई घुल रहीं है।
कुछ मेरे अंदर कुछ उस अजीब सी लड़की के अंदर।
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