Sunday 7 April 2019

गुडी पाड़वा और बुधवार पेठ !!!!!

हिन्दू नववर्ष का आगमन हो चुका है। चैत के इस महीने में एक ओर जहाँ माता का आगमन होता है, वहीं इस दिन महाराष्ट्र में “गुडी पाड़वा” मनाया जाता है। चलिए पहले गुडी पाड़वा की कहानी सुनती हूँ-
किसी ज़माने में एक कुम्हार के बेटे ने अपने शत्रुओं से लड़ने के लिए मिट्टी के सैनिक बनायें। उन सैनिकों में प्राण फूँकें और उनकी मदद से अपने शत्रुओं पर विजय पाई। तभी से ये विजय पताका हर नव वर्ष पर हर महाराष्ट्रियन घर की शान रही। 
इस बात से एक और बात याद आई। पुणे के “बुधवार पेठ” के “दगडूशेठ गणपति” का मंदिर। आज के दिन यहाँ ख़ूब भीड़ होती है। अब बात इस गणपति मंदिर की तो इनकी भी कहानी तो बनती है। तो हुआ यूँ ,
पुणे में एक हलवाई रहता था। उसके एकलौते पुत्र की मृत्यु प्लेग से हो गई। ऐसे में वो और उसकी पत्नी लक्ष्मी शोक में डूबे रहने लगें। इसके निदान के लिए, उनके गुरु ने उन्हें गणपति मंदिर बनवाने की सलाह दी। हलवाई ने गुरु की बात मान इस मंदिर का निर्माण कराया और इस “दगडूशेठ हलवाई “के नाम पर यह मंदिर “दगडूशेठ गणपति” मंदिर हुआ। आज के समय में यह भारत के धनी मंदिरों में से एक है। साथ हीं यहाँ पाँच नारियल और दूभ चढ़ाने की भी प्रथा रही है। बाक़ी आपकी श्रद्धा, लोग यहाँ सोने -चाँदी भी चढ़ाते हैं।

ये मंदिर शहर के एक ऐसे इलाक़े में है जहाँ आपको आध्यतम से लेकर बाज़ार तक सब मिलेगा। पोस्ट को पूरी करने से पहले बुधवार पेठ से जुड़ी आपनी कुछ यादें बताती चलूँ। 
मैं यहाँ पहली बार , अपने हॉस्टल की कुछ दोस्तों के साथ गणपति फ़ेस्टिवल के समय गई थी। मंदिर को जाने वाले रास्ता मेरे लिए नया तो था हीं, थोड़ा अचरज भरा भी था। जिस गली से हमारी ऑटो जा रही थी, वहाँ के घर की सारी महिलाएँ घर के बाहर सजी हुई तो कुछ अजीब सी बैठी हुई थीं। मुझसे रहा नही गया तो मैंने अपनी एक दोस्त से पूछा कि ऐसा कैसे? इतनी सारी महिलाएँ रोड के किनारे, दरवाज़े की चौखट पर तो कहीं ठेले पर बैठी हुईं। मेरी दोस्त फुसफुसाई बाद में बताती हूँ ,कारण मेरे सवाल से ऑटो वाला पीछे मुड़ कर मुझे देखने लगा था। जैसे वो गली अंतिम छोर पर आई ऑटोवाले ने देखा की मुझे अब तक जवाब नही मिला था और मैं बाहर हीं देखी जा रही थी, तो बोला “रेड लाइट एरिया” है मैडम। मेरे कान गरम हो गए ये सुन कर। मैं झेंप गई थी, पर इसमें मेरी क्या ग़लती थी मैंने पहली बार ऐसी कोई जगह देखी थी। 

इसके तुरंत बाद दूसरी हैरानी, जब ऑटोवाले ने कहा -उतरिए। मैंने कहा आ गया मंदिर? 
उसे लग गया कि कोई नया रंगरूट है, बोला मंदिर के आगे पार्किंग नही। यहाँ से सामने देखो मंदिर है। हमारे ग्रूप में अधिकतर लड़कियाँ महाराष्ट्र की थीं। वो यहाँ पहले भी आ चुकीं थीं, बोली ,”अरे चल ना तुझे ले कर चलते हैं।”इस तरह जिस्म के बाज़ार के बीच गणपति बैठें है। 

ऐसा नही है कि यहाँ सिर्फ़ रेड लाइट एरिया हीं है। ताज्जुब की बात है कि यहीं पास में “सावित्री बाई फुले” ने पहली महिला विद्यालय की स्थापना की थी। साथ हीं यहाँ किताबों का, एलेक्ट्रोनिक्स का बहुत बड़ा बाज़ार है। सस्ती दामों में सब मिल जाता है अगर मोल-भाव करने आया तो। मोल-भाव की बात हो और महिलायें ना हो कैसे हो सकता है। यहाँ पास में हीं “तुलसी बाग़ “ है कुछ-कुछ  दिल्ली के “सरोजनी” जैसा पर सरोजनी जितना बड़ा नही। लक्ष्मी रोड पर शादी -ब्याह के साथ -साथ कई ब्राण्डेड कपड़े की दुकान भी मिल जायेंगी। भीड़-भाड़ वाली बुधवार पेठ को पैदल नापने से अच्छा दूसरा कोई विकल्प नही।

चलिए जाते -जाते दगडूशेठ गणपति के दर्शन करते जाइए। सड़क से सटे इस मंदिर के अंदर विराजमान गणपति की , साढ़े सात फूट की प्रतिमा की सजावट इतनी अच्छी होती है कि राहचलते लोग भी रुक कर एक बार प्रणाम कर आगे बढ़ते है। 

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