इस बार का इतवार बचपन के इतवार जैसा था। बदली छाई हुई थी, मौसम ठीक वैसा हीं जिसका हम बसंतपुर में इंतज़ार करतें। ना धूप की चुभन ना ठंड से ठिठुरते पाँव। ख़ूब खेलते और भगवान को कहते “ एक मुट्ठी सरसों झम-झम बरसो”
ख़ैर अब तो घुमना हीं मेरा खेल है तो निकल पड़े एक अलग यात्रा की ओर। अलग यात्रा से मेरा मतलब आज मैं आपको घर घुमाऊँगी। घर घुमाओगी ?
भला इसमें क्या घूमने को हो सकता है?
जी बिलकुल हो सकता है अगर मेरी नज़रों से देखें तो।
तो आज मैं आप सबको “मोबाइल होम पार्क “ ले कर चलती हूँ। पार्क से कन्फ़्यूज़ ना होईएगा। ये कोई पार्क नही बस नाम दिया जाता है ऐसा। साथ हीं ये घूमने की भी जगह नही पर मुझे बड़ी जिज्ञासा थी कि, कैसे यहाँ लोग रहते होंगे? कैसे घर होंगे? वैसे फ़िल्मों और डॉक्युमेंट्री में तो ऐसे घर बड़े देखे पर सच में नही देखा था।
मोबाइल होम या ट्रेलर होम एक ऐसे घर को कहते है जिसे आप एक जगह से दूसरी जगह ले कर जा सकतें है। हालाँकि एक बार एक जगह रख देने पर इनका मूव करना थोड़ा मुश्किल और महँगा है। अमेरिका में ऐसे घरों की संख्या कुछ 38,000 तक है। कुछ घर वेकेशन होम टाइप होते है तो वहीं ज़्यादातर कम आय के लोगों इसे लेते हैं। कम पैसे में अपना घर पाना का उनका सपना पूरा हो जाता है।
कॉम्पनी में बने ये घर जब ले हीं लिए तो ज़ाहिर है इन्हें कहीं तो रखना होगा। अब इसके लिए आपके पास या तो ज़मीन हो या फिर आप किसी “मोबाइल पार्क” में घर के हिसाब से ज़मीन बूक करें। आप यहाँ ज़मीन ख़रीद भी सकतें है या फिर महीने के हिसाब से ज़मीन का किराया देते रहे। ज़मीन के साथ मालिक आपको बिजली ,पानी ,गैस, सिवर सब मुफ़्त देता है। कुछ महीने का किराया 550-800 डोलर तक होता है छोटे घरों का ।
इन घरों को लेने में जहाँ कम पैसे में आप ख़ुद के घर के मालिक हो जातें है वहीं कुछ दिक़्क़तें भी है इनमे। जैसे की इनका दाम समय के साथ घटता जाता है। स्थाई घर जैसा दाम बढ़ता नही। दूसरा इन घरों को लेने के लिए लोन बड़ी मुश्किल से मिलता है। साथ ही बहुत ज़्यादा प्राकृतिक आपदा ये घर सह नही पातीं। फिर भी कुल मिला कर देखें तो एक अपने घर की बात हीं कुछ और होती है। हर बार बदलने की चिंता नही होती। कितनी यादें जुड़ जाती है इनसे। भले सस्ती, थोड़ी कमज़ोर सही पर है तो अपना। साथ ही इन मोबाइल पार्क में चुकीं कम आय वाले लोग रहते है, तो क्राइम भी थोड़ी होती है। डरिए मत, जान से मारने वाली तक तो नही सुनी मैंने, पर ड्रग्स और चाइल्ड मलेस्ट आदि की ख़बरें मिल जातीं है।
यहाँ से आने के बाद शाम की चाय पर भरत शर्मा द्वारा गया “देवी पचरा” गीत और रात को मैंने एक मराठी फ़िल्म “पीपल” लगा दी।
फ़िल्म की कहानी दिनभर के मन के भाव का सार था। हमदोनो अपने घर को बहुत याद कर रहे थे और इस कहानी ने तड़के का काम किया। कहानी थी एक बूढ़े व्यक्ति की जिसकी पत्नी का देहांत हो चुका है। उसके बेटे अमेरिका में सेटल है और वो बस स्काइप या फ़ोन के ज़रिए उनसे जुड़ा है। बच्चें उसे हर बार बुलाते है पर वो नही जाता पर एक बार बच्चों के बच्चें की जिद्द से जाने को तैयार हो जाता है। पर तय दिन वो अपने गाँव वापस लौट आता है।
ये वहीं गाँव है जिसे बरसो पहले वो छोड़ गया था और शहर में बस गया। उसे लगता है कि, कभी उसने घर छोड़ा फिर उसके बच्चों ने अब जाने उसके पोता -पोती क्या करेंगे?
ऐसे में वो अपने घर के आगे एक “पीपल “ का पेड़ लगाता है और कहता है कि “कहीं तो हमारी जड़े हो।”
ख़ैर अब तो घुमना हीं मेरा खेल है तो निकल पड़े एक अलग यात्रा की ओर। अलग यात्रा से मेरा मतलब आज मैं आपको घर घुमाऊँगी। घर घुमाओगी ?
भला इसमें क्या घूमने को हो सकता है?
जी बिलकुल हो सकता है अगर मेरी नज़रों से देखें तो।
तो आज मैं आप सबको “मोबाइल होम पार्क “ ले कर चलती हूँ। पार्क से कन्फ़्यूज़ ना होईएगा। ये कोई पार्क नही बस नाम दिया जाता है ऐसा। साथ हीं ये घूमने की भी जगह नही पर मुझे बड़ी जिज्ञासा थी कि, कैसे यहाँ लोग रहते होंगे? कैसे घर होंगे? वैसे फ़िल्मों और डॉक्युमेंट्री में तो ऐसे घर बड़े देखे पर सच में नही देखा था।
मोबाइल होम या ट्रेलर होम एक ऐसे घर को कहते है जिसे आप एक जगह से दूसरी जगह ले कर जा सकतें है। हालाँकि एक बार एक जगह रख देने पर इनका मूव करना थोड़ा मुश्किल और महँगा है। अमेरिका में ऐसे घरों की संख्या कुछ 38,000 तक है। कुछ घर वेकेशन होम टाइप होते है तो वहीं ज़्यादातर कम आय के लोगों इसे लेते हैं। कम पैसे में अपना घर पाना का उनका सपना पूरा हो जाता है।
कॉम्पनी में बने ये घर जब ले हीं लिए तो ज़ाहिर है इन्हें कहीं तो रखना होगा। अब इसके लिए आपके पास या तो ज़मीन हो या फिर आप किसी “मोबाइल पार्क” में घर के हिसाब से ज़मीन बूक करें। आप यहाँ ज़मीन ख़रीद भी सकतें है या फिर महीने के हिसाब से ज़मीन का किराया देते रहे। ज़मीन के साथ मालिक आपको बिजली ,पानी ,गैस, सिवर सब मुफ़्त देता है। कुछ महीने का किराया 550-800 डोलर तक होता है छोटे घरों का ।
इन घरों को लेने में जहाँ कम पैसे में आप ख़ुद के घर के मालिक हो जातें है वहीं कुछ दिक़्क़तें भी है इनमे। जैसे की इनका दाम समय के साथ घटता जाता है। स्थाई घर जैसा दाम बढ़ता नही। दूसरा इन घरों को लेने के लिए लोन बड़ी मुश्किल से मिलता है। साथ ही बहुत ज़्यादा प्राकृतिक आपदा ये घर सह नही पातीं। फिर भी कुल मिला कर देखें तो एक अपने घर की बात हीं कुछ और होती है। हर बार बदलने की चिंता नही होती। कितनी यादें जुड़ जाती है इनसे। भले सस्ती, थोड़ी कमज़ोर सही पर है तो अपना। साथ ही इन मोबाइल पार्क में चुकीं कम आय वाले लोग रहते है, तो क्राइम भी थोड़ी होती है। डरिए मत, जान से मारने वाली तक तो नही सुनी मैंने, पर ड्रग्स और चाइल्ड मलेस्ट आदि की ख़बरें मिल जातीं है।
यहाँ से आने के बाद शाम की चाय पर भरत शर्मा द्वारा गया “देवी पचरा” गीत और रात को मैंने एक मराठी फ़िल्म “पीपल” लगा दी।
फ़िल्म की कहानी दिनभर के मन के भाव का सार था। हमदोनो अपने घर को बहुत याद कर रहे थे और इस कहानी ने तड़के का काम किया। कहानी थी एक बूढ़े व्यक्ति की जिसकी पत्नी का देहांत हो चुका है। उसके बेटे अमेरिका में सेटल है और वो बस स्काइप या फ़ोन के ज़रिए उनसे जुड़ा है। बच्चें उसे हर बार बुलाते है पर वो नही जाता पर एक बार बच्चों के बच्चें की जिद्द से जाने को तैयार हो जाता है। पर तय दिन वो अपने गाँव वापस लौट आता है।
ये वहीं गाँव है जिसे बरसो पहले वो छोड़ गया था और शहर में बस गया। उसे लगता है कि, कभी उसने घर छोड़ा फिर उसके बच्चों ने अब जाने उसके पोता -पोती क्या करेंगे?
ऐसे में वो अपने घर के आगे एक “पीपल “ का पेड़ लगाता है और कहता है कि “कहीं तो हमारी जड़े हो।”
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