Wednesday, 27 May 2020

उसकी(हर) ख़ामोशी !!!

“द पास्ट इज़ जस्ट अ स्टोरी वी टेल अवरसेल्फ़स”
कहानी उसकी(हर) खामोशी की...

एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है ;
ख़्वाब चुन रही है रात बेक़रार है
तुम्हारा इंतज़ार है, तुम पुकार लो …

धुन में डूबे दो प्रेमी युगल अपने काल और दुनिया से परे, किसी प्रेम लोक में डूबे हैं। कहते हैं एक दूसरे से, “अतीत सिर्फ एक कहानी है जो हम दुहराते हैं।”

थीयडॉर समन्था से कहता है, “मैंने किसी को ऐसे प्यार नही किया जैसे तुम्हें किया है।”
इधर अरुण राधा से कहता है, “तुम कहो और मैं ना मानूँ।”

उसकी खामोशी के साथ अब विदा की घड़ी आ गई है। नायिकाएँ जानती हैं कि अब उनके बस में कुछ नही सिवाए बर्बाद होने के। वे विदा माँगती है, पर दोनों नायक विरह की पीड़ा मात्र की कल्पना से तड़प उठते हैं। दोनो प्रेम से भरे हुए कभी आग्रह करते हैं तो कभी अधिकार जताते हैं ;

अरुण राधा से कहता है, “ मुझे छोड़कर मत जाना राधा।”
वहीं थियोड़ोर समन्था से बेचैन होकर पूछता है, “तुम क्यों जा रही हो समन्था ? नही तुम ऐसा नही कर सकती। हमलोग प्यार में हैं, तुम स्वार्थी क्यों बन रही हो?”

एक म्यूजिकल खामोशी पसर जाती है। आमने सामने सिर्फ़ दो ध्वनियाँ टकरा रहीं हैं।
एक अरुण की जो कहता हैं, “ राधा मुझसे प्रेम की ऐक्टिंग कर रही थी ये मैं मान नही सकता।”
और दूसरी समन्था की जो कहती है, “थीयडॉर,  मैं तुम्हारी हूँ भी और नही भी…”

बहुत कम ऐसा होता है कि कुछ फ़िल्में आपके ज़हन में एक अलग हीं मुक़ाम पा जाती हैं। ऐसा हीं कुछ “खामोशी” और “हर” के साथ है। यह पेचीदा सी कहानी जो मैंने ऊपर लिखी है वो दरअसल इन्हीं दो फ़िल्मों की कहानी है,ठीक वैसे हीं जैसे प्रेम सुलझा कहाँ होता…

अगर आपने दोनों फ़िल्मों को देखा होगा तो शायद आपको भी इसमें कई समानता दिखेंगी। हालाँकि दोनों के परिवेस और काल में अंतर है। एक सफ़ेद और काली दुनिया में प्रेम को रच रही है तो दूसरी चमक-धमक से भरी।

जहाँ खामोशी की राधा अपने गहरे कम संवाद से आपके मन पर गहरा छाप छोड़ती है, वहीं हर की समन्था अपने आवाज़ के जादू से आपको बांध लेती है।

एक तरफ़ राधा जो मानवीय प्रेम के ज़रिए मानसिक रोगियों को ठीक करने का ज़िम्मा लेती है। वहीं दूसरी तरफ़ समन्था एक ऑपरेटिंग सिस्टम है जो अपने शब्दों के ज़रिए लोगों के दिल में प्यार भर रही हैं। समन्था अपनी जानकारी से लोगों का जीवन सज़ा रही है और वहीं राधा अपने सेवा-भाव से मनोरोगियों का इलाज कर रही है।
संयोग देखिए बरस बीत गए पर दोनों ही काल में मनुष्य के मानसिक इलाज का ज़िम्मा प्रेम-पूर्ण स्त्री को हीं दिया गया है।

अंतत: दोनों ही नायिकाओं की दुनिया मानवों के विकास के साथ ध्वस्त हो जाती है। एक इंसान के प्रेम में पागल हो जाती है और दूसरी इंसान के नए पागलपन से अंत गति पा जाती है।

समन्था थीयडॉर के पूछने पर कहती है, “यह बता पाना मुश्किल है मेरे लिए की कहाँ जा रही हूँ पर कभी तुम वहाँ तक पहुँच जाओ थीयडॉर, तो मुझे ढूँढ लेना।”

वहीं पागलखाने के अंदर जाती राधा को देख कर अरुण कहता है ,” राधा मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”

फिर एक मीठी धुन उसकी खामोशी में गूँज रही है;

आई ऐम लायिंग ऑन द मून
माई डियर, आइ विल बी देयर सून
इट्स अ क्वाइयट एंड स्टेरी प्लेस
टाइमस वी आर स्वॉलोड उप
इन स्पेस वी आर हियर अ मिलियन माइल्ज़ अवे…

Friday, 1 May 2020

तुम्हारी याद आई और कॉल कर बैठी। ये भी ध्यान नही रहा की अभी सो रही होगी। कैसी हो तपस्या ?
और मैं यह  मैसेज देख कर उछल पड़ी। बिना ठीक हूँ जबाब दिए पुछा , “तू ज़िंदा है और साथ हीं खिलखिलाहट भेजी।”
जबाब,” दो बच्चों की माँ, नौकरी, घर की चाकरी क्या ही ज़िन्दा होगी...  ऊपर से कभी ये तो कभी वो हा-हा-हा…”

मैंने कहा ,” छोड़ रोना ये बता याद कैसी आई मेरी ?” 
जबाब,” तेरे पैर देख लिए ना हा-हा-हा... तुझे याद है तेरा चप्पलों से प्रेम और उनकी तस्वीरें निकालना।”

हाँ याद है :)
जबाब, “ मैंने तेरी दो तस्वीर माँगी थी ना वैसे हीं जूतों के लिए। वहीं आज दिख गई।”

हा-हा-हा तू सच में पागल है। इतने साल से रखा है उसे। 
जबाब,” हाँ ना, सोचा ब्रह्माण के पैर हैं पूजती रहूँ :P उसपर से तेरे पैर से जलन तो आज तक है। देख अभी भी धुआँ हो रहा होगा।

दोनो तरफ़ से हँसी के फ़वारे हा-हा-हा…

सखी आगे कहती है , “आज जब फोन की मेमोरी भर गई तो सफ़ाई के दौरान ये मिली। अच्छा ये बता,  अब भी तू चप्पलें उतनी ही ख़रीदती है ? उनकी फ़ोटो निकालती है ?” 

जबाब, “ना रे अब ये कमबख़्त टूटते ही कहाँ है। तेरी पसंद वाली पीली जूती आज तक चमक रही है। हाँ ये हैं कि,  दुकान पर अगर जाती हूँ तो एक फेरा इस सेक्शन में ज़रूर लगाती हूँ हा-हा-हा…

कब सुधरेगी तपस… इशु कैसा है? शतेश कैसे हैं ? और बता…
बातें अथाह… क़रीब एक-डेढ़ घंटे की सारी भावनायें लिखना मुश्किल है, पर कहानी का सार ये की,” कभी मुझे चप्पलों के प्रति बड़ा आकर्षण था।” आज भी है पर थोड़ा कम हुआ है। कारण यहाँ चप्पलें टूटती हीं नही जल्दी और इन्हें रखने की जगह में अब तीन लोगों के पाव है। 

ख़ैर होता ऐसा की साथ की, साथ की लड़कियाँ जहाँ पर्स या कान की बाली या लिस्टिक ख़रीदने में व्यस्त होती और मैं कहानी की किताबों और चप्पलों की दुकान पर होती। हाँ चप्पलों की ख़रीदारी में तब एक और दोस्त साथ होती। पर उसे ब्रांडेड ही अधिकतर लेने होते। 
मेरे पैसे कभी इतने पैसे नही होते की हर सेंडिल ब्राण्डेड हो या हर किताब ओरिजनल। 

पुणे रहती थी तो “एफ सी रोड” और दिल्ली आने के बाद “सरोजनी नगर” ज़्यादा जाने लगी। कभी-कभी साकेत भी जाती, पर वो सिर्फ़ किताबों के लिए। साकेत में किताबें सेल में मिलती। डेढ़ सौ में दो किताब या कई बार 100 रुपए में दो किताब। 

मुझे कभी ब्राण्डेड चीज़ों से कोई ख़ास लगाव नही रहा। बजट में मिली तो लिया नही तो बस आराम, रंग और डिज़ाइन पसंद हो बिना ब्रांड की भी चीज़ें ले लिया। 

मेरा भाई तो कई बार मज़ाक़ भी उड़ाता कि, 200 रुपए की चप्पल के लिए 150 रुपया ऑटो का दे देती है। और मैं कहती कि , “बोका ये  भी तो देखो की डेढ़ सौ या दो सौ की दो-चार सुंदर -सुंदर सैंडल लाती हूँ।”  

इसके साथ ही कई बार सरोजनी में किताब बेचते एक अंकल मिल जाते। तो कई बार नक़ली किताबें भी ले आती। 
मुझे याद है की एक बार मेरे पास आने के पैसे हो छोड़ कर सिर्फ़ सत्तर-पचहत्तर रुपए बचे थे। अंकल के पास मुझे “वाइट टाइगर” किताब दिख गई। दाम पूछने पर मालूम हुआ 150 रुपए। 
मैंने कहा ठीक बताए अंकल कितने में देंगे ? मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था 150 की चीज़ को 70 में देने को कहना। उसपर से विद्या माता, ज़्यादा मोल भाव ठीक नही लगता। 

उन्होंने ने कहा चलो 100 रुपए दो और ले जाओ। मैं बिना कुछ बोले वहाँ से जाने लगी तो उन्होंने ने आवाज़ देकर पुकारा, “ कितना में लोगी ? पहले भी किताब ले गई हो मुझसे इसलिए ख़ाली हाथ लौटाना ठीक नही लग रहा।”
मैंने झेंपते हुए कहा,” मेरे पास 70 रुपए है।”

किताब मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए उन्होंने कहा ,” यह लो।” 
यह वाक़या सरोजनी की मेरी सबसे प्यारी याद बन गई। 

हम्म, तो चलिए वापस चप्पलों की तरफ़ लौटते हैं। इधर तो मैंने उनकी तस्वीरें निकालनी बंद कर दी, पर यादों के लैपटॉप से कुछ तस्वीरें मिली है उन्हें शेयर कर रही हूँ। 

हाँ एक बात और उन दिनों मैं सैंडिल की तस्वीर के साथ ख़ूब प्रयोग करती थी। कभी उनपर गाने चिपकाती तो कभी ताला :) 
कभी उन्हें स्विमिंग पूल के किनारे ले जाती तो कभी चेरीब्लोसम के फूल या फ़ॉलकलर के पत्तों के साथ बिठाती। कई तस्वीरें गुम हो गई। जो जमा पूँजी मिली वो ये रही। 

Tuesday, 21 April 2020

कल्याण !

• चाचा “ किम जोंग उन” बीमार,  शतेश परेशान।
• चाचा किम ने ट्रम्प बाबा को चिट्ठी नही लिखी ,तपस्या परेशान।

• चाईना दाई कहती है, की जब एडस और एचवन एनवन वाइरस से एतना लोग मरा तो कोई पूछा जो हमसे सवाल दागा जा रहा है?  एतना सुन के सेट-अप (शतेश -तपस्या) दोनों परेशान।

•इधर , अमेरिका में तेल/गैस का दाम कम होते देख,  घूमंतु जोड़े के करेजा पर साँप लोट रहा है।  अरे दादा हो,  ई किरवनावा कब जाई ? अभीए त घूमे के लाहार रहल हऽ...
कपार पर हाथ रख के दूनों बेकत अब सोचता कि, साला पईसा बचावे के कौनवो जोगे नईखे हाथ में।

• आख़िरी ख़बर ऐसी की तैसी,
अमेरिका में लोग हुए बाग़ी। कहते है घर में नही रहेंगे-नही रहेंगे। इकनोमी के फेर में ट्रम्प बाबा भी पगलाए आ जाने कौन -कौन सा  ग्रेट अमेरिका का स्कीम लाते रहते है। भारत से दवाइयों मँगवा लिए आ कहते हैं कि अब बाहरी लोगों को आने पर रोक। हाय रे दागाबजवा।  ख़बर पूरी तरह समझ में आवे तब तक कहाँ है अपने हर-हर मोदी...

समाचार के अंत में सुनते है अमेरिकी लोगगीत,,

अमेरिका हमको जान से प्यारा है
आज़ादी हमारा नारा है ।
शुरू करें अब काम-धंधे
भूखे मरने से खा कर मरना अच्छा है।

लोगगीत पर सट-अप समझ नही पा रहें क्या प्रतिक्रिया दें।
तभी आकाशवाणी होती है,

“ना रहिए जीव त के पी घीव”

एतना सुनते ही सत्य का अर्थ हँसता है, हा-हा-हा हो गया कल्याण...
कल्याण ।

Friday, 17 April 2020

नंदा।

भले नंदा मुझे देरी से पसंद आई पर एक बात तो है, यार ये  बड़ी भोली दिखतीं थीं। मैंने उनके कुछ  पुराने ब्लैक एंड वाइट गाने सुने, उफ़्फ़ कितनी प्यारी लगी है क्या हीं कहूँ।
 आज इनकी याद यहाँ के मौसम को देख कर आई। एक तो महामारी ऊपर से मौसम की बीमारी। कभी झमाझम बारिश तो कभी गोंऽऽऽ-गोंऽऽऽ करती हवा तो कभी ताड़ताड़ती बिजली। भगवान सोच लिए है की धरती को कैसे भी साफ़ करके हीं दम लेंगे:)

अब ऐसे में मैंने भी  “गोन विथ द विंड” को रखा साइड में। चल पड़ी कल का बचा हुआ कढ़ी गरम करने। चावल चढ़ाया, प्रेम से पकौड़े तले। जितना खा सकती थी, कढ़ी -चावल और पकौड़े खाए और फिर तान कर सो गई। उठी तो बारिश धीमी हो चुकी थी।

घर के नर और मादा गौरिया,  खिड़की की दीवार पर सिर रख कर बाहर आती-जाती गाड़ियाँ देखने लगें। उन्हें आज गाड़ियाँ कम पक्षी उड़ते ज़्यादा दिख रहें हैं...
थोड़ी देर पक्षियों को घूरने के बाद,  बारी आती है चाय के साथ बचे पकौड़े खाने की । नर गौरिया चाय बनाने को चल पड़ा और मादा संगीत की खोज में टीवी के आगे।

बारिश के गीतों के साथ नंदा एक बार फिर टीवी पर छा गई। मादा गौरिया चाय के इंतज़ार में गाने देखते-देखते सोचने लगी, नंदा कितनी ख़ुशनसीब रही ना... भले हीं वो नूतन, वाहिद रहमान, मधुबाला या नर्गिस जैसी प्रसिद्धी ना पाई हो पर हर तरह के ख़ूबसूरत गीत इनके खाते में हैं।

चाहें भक्ति गीत हो, प्रेम गीत हो, विरह गीत हो, बरखा ऋतु हो, सेंसुअल गीत हो, दबंग प्रेमिका का गीत हो, पंछी-पखेरू , बादल-पतंग, पति-पत्नी हो, भाई-बहन पर गीत हो या माँ-बच्चें पर, हर तरह के गीतों पर इन्होंने ने अभिनय किया है। हाँ, कई गीत तो मुझे इधर जाकर मालूम हुआ की इनकी फ़िल्म की हीं है।
जैसे चल उड़ जा रे पंक्षी... इस गीत को बचपन में कितनी बार सुना होगा पर हर बार शायद तीसरी क़सम के बैलगाड़ी वाला गीत सोच कर लगता की इसमें भी वाहिदा हीं होंगी :)
“मूर्ख लड़की मैं”

Saturday, 4 April 2020

दीया जलाना है !!!

शाम को दीया जलाना मेरे लिए कोई नया नही। मैंने देखा है हर शाम माँ को दीया जलाते। मैंने देखा है वो शाम जब रोग या माहवारी की वजह से माँ दीया जला नही पाती तो मुझसे कहती, लभली दीया जला दो साँझा का समय हो गया है। मैंने देखा है अपनी सासू माँ को शाम का दीया जलाते। मैंने देखा है वो शाम जब किसी कारण से वो गाँव के पुराने घर जातीं तो हमें कह कर जातीं की शाम को दिया- बाती कर देना।

भारत में क़रीब आज भी 60-70% घरों में शाम को दीया  जलता हीं है। कुछ लोग ज़िंदगी की भागा दौड़ी में शाम का दीया जला नही पाते तो कुछ को ये उतना ज़रूरी नही लगता। हर किसी का अपना विश्वाश है इसे ना भी जलाए तो माता लक्ष्मी और साँझा माई से घर में सुख शांति की प्रार्थना करते है।

मैं भी कई बार शाम को दीया नही जला पाती। कारण वहीं रोग- माहवारी तो कई बार बाहर घूमना, शॉपिंग , सिनेमा या फिर दोस्तों के घर होना। हाँ घर पर होतीं हूँ तो रोज शाम दीया जला हीं लेती हूँ। जिस दिन नही जला पाती उस दिन कोई अफ़सोस या धर्म का भय नही रहता। यह बस एक ऐसा संस्कार है जो बचपन से मन पर अंकित है बाक़ी कुछ नही।

जिनके घर रोज दीया जलता है उनके लिए विश्वाश और जो नही जलाते वो शौक से आज दीया जलायेंगे या फिर  शौक  से हंगामा करेंगे। वैसे आज समय के फेर से दीया जलाने ना जलाने से कुछ बनने बिगड़ने वाला नही। हमें सावधानी तो हर हालत में बरतनी है।

बाक़ी जीवन का विश्वाश जैसे भी बना रहे बने रहना चाहिए। और भारत तो विश्वाश है । 

Sunday, 29 March 2020

तुमसा नही देखा !!!

क्या था इस लड़के में जो मैं इसकी हँसी पर फ़िदा थी। थी नही हूँ ... जब दुनिया राजकपूर पर फ़िदा हो रही थी मुझे राजेंद्र कुमार लुभा रहें थे। जब लोग अमिताभ पर प्यार लूटा रहे थे तो मैं विनोद खन्ना की दीवानी थी और जब जनता राजेश खन्ना पर मर रही थी तब मुझे संजीव कुमार और शशि कपूर लुभा रहें थे।

शशि कपूर से अपनापन लगता जब कोई उसे कुकरदाँता कहता। ये बात पहले भी कई बार लिख चुकीं हूँ। ख़ैर आज इनकी याद एक गाने की वजह से आइ।
गाना फ़िल्म राजा साहब से है। गाने को सुनकर मै अपनी माँ को याद करने लगी। अरे घबड़ाइए मत गाना इतना भी बेकार नही की माँ की याद दिला दी कहवाहत शुरू हो जाए।
वो क्या है ना मेरी माँ ये गाना देख रही होती तो कहती ,” जा ये मलेछिन इतना अच्छा लड़का मना रहा आ तुमको नाटक सुझ रहा है”
माँ क्या कहती सोचते हुए मैं अपनी सोच पर गई की आख़िर शशि ने किया क्या जो नंदा से माफ़ी माँगना पड़ रहा है। तुरंत तफ़सिस के लिए फ़िल्म ढूँढीं गई। फ़िल्म शुरू हुई और पहली बार नंदा इतनी बुरी दिखीं। फ़िल्म भागते हुए गाने से ठीक कुछ पहले तक पहुँची तो देखा खाया- पिया कुछ नही ग्लास तोड़ा बारह। हँस-हँस के हालात ख़राब। पर मेरी हँसी नंदा को बुरी लगी और वो ख़फ़ा हो गई।

ख़ैर शशि कपूर हीं इतनी छोटी सी बात पर इतने भोलेपन से माफ़ी माँग सकतें हैं और शशि कपूर हीं किसी कुरूप का बुरी तरह से तिरस्कार कर सकतें है।

नोट:- आज इस फ़िल्म के गाने से पहले के कुछ सीन दुबारा देखे जैसे कभी द हाउस होल्डर के कई सीन सिर्फ़ शशि कपूर के लिए बैकवार्ड करके देखे थे।

Friday, 27 March 2020

भाई-बहन संवाद महामारी के दिनों में !!!

भाई -बहन संवाद महामारी के दिनों में ;
बहन:- क्या खाए हो ?
भाई:- खिचड़ी ।

बहन:- खिचड़ी ? सारा राशन चार दिन में हीं खा गए हा-हा-हा
भाई:- ना रे बाकी, दाँत निकल रहा है। खाया नही जा रहा। लगता है इसी समय सारा ज्ञान मिल जाएगा हा-हा-हा...

बहन:- दवा तो नही होगा घर में एक लौंग रख लो मुँह में आराम मिलेगा।
भाई:- हम्म देखते है। भाई हँसते हुए, वैसे तुम भी रामदेव बन गई हो।

भाई:- कैसे लोग कह रहा है की बोर हो रहें है। हमको तो जानती हो इतना समय भी कम लग रहा है।
बहन:- मुझे भी। कितना कुछ रोज अधूरा रह जा रहा है। उसपर तुम्हारा भगिना क्या हीं कहें...

भाई:- क्या कर रहा है ? दिखाओ उसे।
बहन:- फ़ोन उसकी तरफ़ दिखती हुई( वीडीयो कॉल चल रहा है) ये देखो टीवी में आग लगने पर यहाँ बैठा अपने फ़ायर ट्रक से आग बुझा रहा है।
भाई:- कितना समझ रहा है रे, देख मुँह से पानी की आवाज़ भी निकाल रहा है हा-हा-हा....

बहन:- हम्म। वहाँ के कैसे हालात है?
भाई :- सब ठीक हीं है। वैसे कुछ मज़दूर पैदल हीं अपने घर को निकल चुकें है। सुनने में आया है की कई जगह उन्हें गाँव में घुसने नही दिया जा रहा की करोना लेकर आया है सब।

बहन :- आह ! दुखद। इनका भी हाल ट्रेन टू बुसन वाला ना हो। सभी अपने को बचाने में ख़ुद हीं मरेंगे।
भाई:- ये तो अभी शुरुआत है। अभी तो महामारी के अलावा हमें आगे भी बहुत कुछ सहने को तैयार रहना होगा। मेरे मुहल्ले में दो दिन पहले एक चोर आ गया था। लोगों ने उसे ख़ूब पिटा है। अब किसी के घर में खाने को नही होगा तो क्या करेगा ? जान है तब ना करोना है।

बहन:- हम्म। यहाँ भी वहीं हालत है। ग़रीब हर कोने में ग़रीब हीं है। उसके लिए सबसे बड़ी महामारी पेट है। यहाँ भी 15-20दिन से सब बंद है पर मेरी सोसाइटी में मज़दूर लगभग हर रोज काम कर रहें है। हालाँकि यहाँ सोशल दूरी तो पहले से हीं है। लोग कहाँ लोगों से इतना मिलते है फिर भी यहाँ बीमारी  फैलती जा रही है। लेकिन इनको कोई फ़र्क़ नही पड़ता जैसे। ये बेचारे हमारी सोसाइटी को सुंदर बनाने में लगे हुए है। इस समय में भी दुनियाँ को ख़ूबसूरत बनाने की चाह इंसान हीं कर सकता है।

भाई:- हम्म। चिंता की कोई बात नही बहन। मन और मस्तिष्क को मज़बूत रखना है। जो होना होगा वो होगा। वैसे ये कोई नया नही है। इससे पहले एच वन एन वन से भी करोड़ों लोग मरे थे। पर दुनिया आज भी है।
अच्छा ये बताओ कि और कोई साइंस से जुड़ी फ़िल्म ? आजकल मैं फ़िज़िक्स ख़ूब पढ़ रहा हूँ।

बहन:- अभी ऑल ओफ सड़ेन तो एक दो हीं नाम याद आ रहें है, इतना ना फ़िल्म देख लिए है की कोकटेल हो गया है हा-हा-हा
हाँ, थेओरी आउफ़ एवेरीथिंग, ब्यूटिफ़ुल माइंड, रेन मैन, फ़ॉरेस्ट गम्प तुम्हें पसंद आयेंगी।





Thursday, 26 March 2020

हेडी लमार !!!!

नेटफलिक्स पर एक बायोग्राफ़िकल डॉक्युमेंट्री है, “ बॉम्शेल हेडी”
कहानी एक ऐसी अदाकारा कि, जिसकी ख़ूबसूरती के चर्चे ख़ूब हुए। ख़ूबसूरती जिसके बारे में उन्होंने कहा;

“कोई भी लड़की ख़ूबसूरत हो सकती है, इसके लिए उसे सिर्फ़ मूर्ख दिखना और खड़े रहना है “

ज़ाहिर सी बात है ऐसा कहने वाली “हेडी लमार” ने अपने व्यक्तिगत जीवन में ये सब सहा- महसूस किया तभी कहा।

9 नवंबर 1914 को  ऑस्ट्रीया में जन्मी यहूदी हेडी, हमेशा अपने समय से आगे रहीं। कम उम्र में हीं अडल्ट फ़िल्म में काम करना, फिर शादी और हिटलर के युग में भाग कर अमेरिका आना।  हॉलीवुड की फ़िल्मों में काम करना और मन मुताबिक़ काम ना मिलने पर कुछ ना कुछ इंवेंट करने  की कोशिश करते रहना। इन सबके बीच इनकी प्रेम कहानियाँ और एक के बाद एक करके छः शादी के क़िस्से ख़ूब चले पर एक भी शादी कामयाब नही हुई।

हमेशा कुछ आविष्कार करने की ललक ने एक दिन हेडी को एक ऐसे आविष्कार के क़रीब ला दिया जिसका प्रयोग आज हम बहुत ज़्यादा करतें है। आविष्कार था, “फ़्रीक्वन्सी होपिंग टेक्नॉलोजी”  जो की ब्लूटूथ  का बेसिस है। हेडी ने अपने मित्र “जॉर्ज ऐन्थील” के साथ मिलकर इसका आविष्कार किया था। हालाँकि फ़िल्म इंडस्ट्री से होने के कारण उस वक़्त अमेरिकीन  नेवी ने इनके इस आविष्कार को इतना ध्यान नही दिया। उनके अनुसार इनका काम सुंदर दिखना और लोगों का मनोरंजन करना भर था ना की आविष्कार।
पर बाद में इनका यही आविष्कार अमेरिकी नेवी के काम आया और इन्हें सम्मान भी दिया गया।

पर  ये सम्मान पाने तक हेडी बहुत कुछ गवाँ चुकी थीं। इस बिलीयन डॉलर के आविष्कार के लिए उन्हें एक पाई भी नही मिली पर वो ख़ुश थी अपने नाम के सम्मान से।

कभी दुनियाँ की सबसे ख़ूबसूरत महिला हेडी, ढलती उम्र में ख़ुद को बदसूरत नही देख सकती थी। इसके लिए उन्होंने एक के बाद एक प्लास्टिक सर्जरी करवाई। कुछ कामयाब रही तो कुछ नाकामयाब। पर कहा जाता है उस दौर में प्लास्टिक सर्जरी कराने वाली वो शायद पहली अभिनेत्री थीं।

आज हेडी लमार हमारे बीच नही है पर वो हमेशा हमारे बीच है, फ़ोन के ज़रिए, जी. पी. एस के ज़रिए , ब्लूटूथ से जुड़ी हर डिवाइस के ज़रिए और उन सब लोगों के ज़रिए जो कहते है,” सुंदर लड़की का काम बस सुंदर दिखना है” 

Tuesday, 24 March 2020

क्रमशः अमित दत्ता फ़िल्म

क्रमशः
डिरेक्टर अमित दत्ता की शॉर्ट फ़िल्म जिसे मैंने कुछ तीन साल पहले देखा हो गर्वित के कहने पर। किताब, फ़िल्म, संगीत में मेरी रुचिदेखते हुए दोस्त महीब बताते रहते है कि ये कुछ अलग है देखो।

उन दिनों मैं माँ बनने वाली थी। गर्वित का मैसेज आया दीदी ये फ़िल्म नही देखीं है तो देखिए। मैंने फ़िल्म देखी और मुझे बहुत पसंद आई थी। एक अलग तरह की फ़िल्म है। सब कुछ रेफ़्रेशिंग। पुराने घर, उनकी मुँडेर पर हरियाली, पानी, पेड़, फूल, बैकग्राउंड म्यूज़िक और सिनेमेटोग्राफ़ी तो ज़बरदस्त। एक हीं पल में सिंघा और ढोल बज रहे है तो साथ में बच्चे की किलकारी, अगले पल हीं कोई क्लासिकल पीस जिसे ठीक से सुनने के लिए मैंने बीस बार बैकवार्ड-फ़ॉरवॉड किया होगा पर ठीक से सुन नही पाई। उस वक़्त मुझे नैरेटर पर बड़ा ग़ुस्सा आया कि चुप नही रह सकता थोड़ी देर...

इधर कुछ दिनों से इस फ़िल्म को देखने की बड़ी इक्षा पर नाम हीं नही याद आ रहा था। डिरेक्टर भी मुझे मणिक़ौल या तपन सिन्हा याद आ रहें थे, जिस वजह से फ़िल्म नही मिल रही थी। गूगल भी किया की, “घर में बरगद के पेड़ वाली फ़िल्म” पर मिली नही।

लगन इतनी की ग़ायब रहने वाले गर्वित भाई फिर फ़ेसबूक पर प्रकट हुए और थोड़ा बताने के बाद आज इन्होंने फ़िल्म का नाम भेज दिया। फिर से देखी फ़िल्म और फिर उस क्लासिकल पीस तक आते-आते खीज उठी।

इस छोटी सी फ़िल्म में भी दो-तीन कहानी चल रही है तो आप ख़ुद देखें इस बार स्पून फ़ीडिंग नही:)


Friday, 20 March 2020

रूम और करोना !!!

एक फ़िल्म है “रूम”
अगर आपकी फ़िल्मों  में रुचि है तो इसे ज़रूर देखिए। आजकल के हालत पर तो ये मेरे हिसाब से एकदम सटीक फ़िल्म है।
इसकी कहानी कुछ यूँ है;
एक लड़की अपने पाँच साल के बेटे के साथ एक छोटे कमरे में क़ैद है। लड़की को एक सनकी आदमी ने सात साल पहले अगवा  कर लिया था। उसके साथ बलात्कार करता और ज़िन्दा रहने भर का सामान उसे देता रहता। लड़की उस वक़्त 19 साल की डरी- सहमी, कमज़ोर महिला थी। एक-आध बार भागने की नाकाम कोशिश के बाद उसकी क़ैद और कठिन कर दी गई। इसी बीच उसे एक बेटा होता है। उसमें जीवन को उम्मीद जगी रहती है। रोज़ाना उसी छोटे कमरे में वो ख़ुद को और अपने बेटे को स्वस्थ रखने का हर उपाय करती है।

दिन बीतते है। बेटा बड़ा हो रहा है। बेटे की पाँचवी जन्मदिन पर उसे लगता है की, अब बाहर कैसे भी निकलना है नही तो उसका बेटा दुनिया नही समझ पाएगा,  ना हीं सुरक्षित रह पाएगा। ऐसे में वो अपने बेटे को ट्रेंड करती है भागने के लिए। मदद लेकर आने के लिए।
बेटा माँ की बताए तरीक़े से मरने की ऐक्टिंग करता है। उसका दुष्ट पिता जब उसका शव फेकनें को ले जाता है, वो ट्रक से कूद पड़ता है। फिर पुलिस की मदद से माँ भी आज़ाद हो जाती है।

तो इस कहानी को आप आज की इस भयंकर महामारी से जोड़ कर देखें।
* महामारी- वो शैतान इंसान है जिसने लड़की को अगवा किया था। लड़की शैतान की ताक़त को जानती हुई चुप-चाप क़ैद रही सालों। पर वो ख़ुद को तैयार कर रही थी।
* लड़की - आप और हम।
*  बेटा- तैयारी  और इलाज। तैयारी जो हम स्वस्थ रहने के लिए कर रहें है और इलाज, जिसकी खोज में डॉक्टर- वैज्ञानिक लगें हुए है।

आप भी कुछ  दिन क़ैद रह लीजिए बाक़ी तो आपको भी आज़ाद होना हीं है। बस लड़की की तरह धीरज रखिए। दिमाग़ से काम लीजिए। 

राग थेरेपी , गूगल जानकारी

हृदय रोग (cardiac care) राग दरबारी व राग सारंग से संबन्धित संगीत सुनना लाभदायक है। इनसे संबन्धित गीत हैं :-
* तोरा मन दर्पण कहलाए (काजल), 
* राधिके तूने बंसरी चुराई (बेटी बेटे ), 
* झनक झनक तोरी बाजे पायलिया ( मेरे हुज़ूर ), 
* बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम (साजन), 
* जादूगर सइयां छोड़ मोरी (फाल्गुन), 
* ओ दुनिया के रखवाले (बैजू बावरा ), 
* मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये (मुगले आजम )

2. अनिद्रा (insomania) राग भैरवी व राग सोहनी सुनना लाभकारी होता है, जिनके प्रमुख गीत हैं :-
* रात भर उनकी याद आती रही (गमन), 
* नाचे मन मोरा (कोहिनूर), 
* मीठे बोल बोले बोले पायलिया (सितारा), 
* तू गंगा की मौज मैं यमुना (बैजु बावरा), 
* ऋतु बसंत आई पवन (झनक झनक पायल बाजे), 
* सावरे सावरे (अनुराधा), 
* चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम), 
* छम छम बजे रे पायलिया (घूँघट ), 
* झूमती चली हवा (संगीत सम्राट तानसेन ), 
* कुहू कुहू बोले कोयलिया (सुवर्ण सुंदरी )

3. एसिडिटी (acidity) होने पर राग खमाज सुनने से लाभ मिलता है। इस राग के प्रमुख गीत हैं :-
* ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार (संगीत), 
* आयो कहाँ से घनश्याम (बुड्ढा मिल गया), 
* छूकर मेरे मन को (याराना), 
* कैसे बीते दिन कैसे बीती रतिया (अनुराधा), 
* तकदीर का फसाना गाकर किसे सुनाये ( सेहरा ), 
* रहते थे कभी जिनके दिल मे (ममता ), 
* हमने तुमसे प्यार किया हैं इतना (दूल्हा दुल्हन ), 
* तुम कमसिन हो नादां हो (आई मिलन की बेला)

4. दुर्बलता (weakness) यह शारीरिक शक्तिहीनता से संबन्धित है| व्यक्ति कुछ कर पाने मे स्वयं को असमर्थ अनुभव करता है। इस में राग जयजयवंती सुनना या गाना लाभदायक है। इस राग के प्रमुख गीत हैं :-
* मनमोहना बड़े झूठे (सीमा), 
* बैरन नींद ना आए (चाचा ज़िंदाबाद), 
* मोहब्बत की राहों मे चलना संभलके (उड़नखटोला)
* साज हो तुम आवाज़ हूँ मैं (चन्द्रगुप्त ), 
* ज़िंदगी आज मेरे नाम से शर्माती हैं (दिल दिया दर्द लिया ), 
* तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना (बीस साल बाद )

5. स्मरण (memory loss) जिनका स्मरण क्षीण हो रहा हो, उन्हे राग शिवरंजनी सुनने से लाभ मिलता है | इस राग के प्रमुख गीत है - 
* ना किसी की आँख का नूर हूँ (लालकिला), 
* मेरे नैना (मेहेबूबा), 
* दिल के झरोखे मे तुझको (ब्रह्मचारी), 
* ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम (संगम ), 
* जीता था जिसके (दिलवाले), 
* जाने कहाँ गए वो दिन (मेरा नाम जोकर )

6. रक्त की कमी (animia) होने पर व्यक्ति का मुख निस्तेज व सूखा सा रहता है। स्वभाव में भी चिड़चिड़ापन होता है। ऐसे में राग पीलू से संबन्धित गीत सुनें :-
* आज सोचा तो आँसू भर आए (हँसते जख्म), * नदिया किनारे (अभिमान), 
* खाली हाथ शाम आई है (इजाजत), 
* तेरे बिन सूने नयन हमारे (लता रफी), 
* मैंने रंग ली आज चुनरिया (दुल्हन एक रात की), 
* मोरे सैयाजी उतरेंगे पार (उड़न खटोला),

7. मनोरोग अथवा अवसाद (psycho or depression) राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना लाभदायक है। इन रागों के प्रमुख गीत है :-
* तुझे देने को मेरे पास कुछ नही (कुदरत नई), 
* तेरे प्यार मे दिलदार (मेरे महबूब), 
* पिया बावरी (खूबसूरत पुरानी), 
* दिल जो ना कह सका (भीगी रात), 
* तुम तो प्यार हो (सेहरा), 
* मेरे सुर और तेरे गीत (गूंज उठी शहनाई ), 
* मतवारी नार ठुमक ठुमक चली जाये मोहे (आम्रपाली), 
* सखी रे मेरा तन उलझे मन डोले (चित्रलेखा)

8. रक्तचाप (blood pressure) ऊंचे रक्तचाप मे धीमी गति और निम्न रक्तचाप मे तीव्र गति का गीत संगीत लाभ देता है। शास्त्रीय रागों मे राग भूपाली को विलंबित व तीव्र गति से सुना या गाया जा सकता है। -----ऊंचे रक्तचाप मे (high BP)
* चल उडजा रे पंछी कि अब ये देश (भाभी), 
* ज्योति कलश छलके (भाभी की चूड़ियाँ ), 
* चलो दिलदार चलो (पाकीजा ), 
* नीले गगन के तले (हमराज़) 
-----निम्न रक्तचाप मे (low BP)
* ओ नींद ना मुझको आए (पोस्ट बॉक्स न. 909), 
* बेगानी शादी मे अब्दुल्ला दीवाना (जिस देश मे गंगा बहती हैं ), 
* जहां डाल डाल पर ( सिकंदरे आजम ), 
* पंख होते तो उड़ आती रे (सेहरा ) 

9. अस्थमा (asthma) आस्था तथा भक्ति पर आधारित गीत संगीत सुनने व गाने से लाभ राग मालकँस व राग ललित से संबन्धित गीत सुने जा सकते हैं। जिनमें प्रमुख गीत :-
* तू छुपी हैं कहाँ (नवरंग), 
* तू है मेरा प्रेम देवता (कल्पना), 
* एक शहँशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल (लीडर), 
* मन तड़पत हरी दर्शन को आज (बैजू बावरा ), आधा है चंद्रमा ( नवरंग )

10. शिरोवेदना (headache) राग भैरव सुनना लाभदायक होता है। इस राग के प्रमुख गीत :-
* मोहे भूल गए सावरियाँ (बैजू बावरा), 
* राम तेरी गंगा मैली (शीर्षक), 
* पूंछों ना कैसे मैंने रैन बिताई (तेरी सूरत मेरी आँखें), 
* सोलह बरस की बाली उमर को सलाम (एक दूजे के लिए).

Wednesday, 18 March 2020

युग का प्रारंभ !!!

बाहर जाऊँ या ना जाऊँ... जाऊँ या ना जाऊँ... उहपोह में आकर खड़की से बाहर देखती हूँ। हवाएँ शीशे के दीवार से टकरा रहीं है। मानो उन्हें भी ठंड लग रही है, वो भी काँप रहीं हैं। शीशे की दीवार से गोंऽऽऽऽ ... गोंऽऽऽ गिड़गिड़ाती अंदर आने की विनती कर रहीं है। पर दीवार है जो टस से मस नही होता और इसके पीछे लगी दो आँखें बोल पड़ती है, आज बड़ी ठंडी है।

पाँव ख़ुद ब ख़ुद रसोई की ओर बढ़ चले हैं। हाथ चाय की पतीली ढूँढ रही है और दिमाग़ दूध वाली चाय बनाऊँ या निम्बू वाली ? दूध तो कम ही है,  ख़त्म ना हो जाए।
 ख़त्म हो गया फिर ?
 सत्यार्थ की माँ इतनी भाग्यशाली नही कि, बच्चा रोया और झट से छाती से लगा लिया। प्लास्टिक के गैलन में भरे दूध हीं अब उसके आहार है...

पीछे से आवाज़ आती है; आज इण्डियाना में 31 कन्फ़ॉर्म केस हो गए। मेरे ओफ़्फ़िस को भी पूरी तरह से बंद कर दिया गया।
ऑफ़िस पूरी तरह बंद? क्यों ?
एक व्यक्ति में लक्षण पाए गए है...

लक्षण...बीमारी का, डर का, अपनो को खोने का, मौत का....

दिमाग़ मेरा भटकने के लिए हीं बना है तभी तो ये हवा की ठंडी से इंश्योरेंस तक पहुँच गई और अब भटक रही है रही खिड़की के बाहर पसरी हल्की बर्फ़ की तरफ़। ऐसा लग रहा है कि डि डि टी का छिड़काव हुआ हो। प्राकृति सारे रोग-जीवाणु को ढाँक लेना चाहती है। चाहती है एक हिमयुग की शुरुआत और फिर एक नए लोक की श्रीशती....

चाय की आख़िरी घूँट के साथ कुछ पल सब गरम रहा.... आँखें मृत सी उसी ग्लास की खिड़की पर टिकीं  हैं। अचानक उनमें जीवन आ जाती है। चमक भर जाती है...
सामने एक गुलाबी महिला उन बर्फ़ के फुहारों को रोंद रही है । उसके हाथ में लगाम है दो जीवों का...
यही तो है प्रकृति की देवी और उसके हाथ में है, “नर और मादा”

नए युग का प्रारंभ...

Thursday, 12 March 2020

करोना वायरस !!!!


आज सुबह की दो ख़बरों ने थोड़ा परेशान कर दिया। वैसे तो थोड़ी परेशान तब से हूँ, जब से “करोना वायरस”  दिल्ली पहुँचा। भाई अकेला है वहाँ। हर वक़्त चिंता लगी रहती पर वहीं है भारत जैसे देश में पुरी तरह सट डाउन करना भी इतनी जल्दी मुमकिन कहाँ?  बस वहाँ हम सावधानी और प्रार्थनाओं के सिवा कुछ नही कर सकते। 

यहाँ होली के दिन कुछ दोस्त घर आए थे। रंगों के बीच बातचीत जब करोना तक पहुँची तो मालूम हुआ की, कुछ लोग तो दिल्ली में टेस्ट पोज़िटिव आने पर अस्पताल से घर भाग जा रहें है। उन्हें डर है कि, हॉस्पिटल वाले उन्हें क़ैद ना कर लें। 
इस बात में कितनी सच्चाई है मालूम नही पर हाँ हालात इटली तक ना पहुँचे तो हीं बेहतर है।

 क्यों आपकी थोड़ी सी लापरवाही कइयों की जान ले ले? क्यों ना भारत सरकार भी आप पर ग़ैर इरादतन हत्या का जुर्म ठोक दे ?

भारत में शायद करोना अब भी मज़ाक़ का विषय हो पर अब अमेरिका इससे भयभीत है। वो अमेरिका जहाँ के मेडिकल के बारे में आपने सुना हीं होगा। 

लोग अपनी सुरक्षा को लेकर इतने डरे हैं कि, स्टोरस में बेसिक दवाइयाँ, नैपकीन, सेनिटाईजर आदि नही मिल रहें है। आलम ये है कि भारतीय स्टोरों में चावल, आटे और सब्जियों की कमी हो गई है। 
फिर भी अब तक जाने क्यों लग रहा था कि, हम सुरक्षित है। लोग यूँ हीं डर का माहौल बना रहें है। जैसे कई बार भारत में होता है ना,  कि नमक ख़त्म होने वाला है और लोग पैकेट का पैकेट नमक भरने लगते हैं। 

पर अब समझ आ रहा है की,  ये माहौल डर का नही आपकी सुरक्षा का है। दुनिया चाहती है कि हम सब जीवित रहें, स्वस्थ रहें। 
तभी तो सत्यार्थ के स्कूल से मेल आया कि स्कूल बंद रहेंगे अगले अपडेट तक। यहाँ के प्रशासन द्वारा सूचना जारी की गई कि, किसी भी सार्वजनिक स्थल पर झुंड में जमा ना हो। सिनेमा और प्ले भी कुछ दिनों के लिए बंद किए जाए। 
और तो और इंडियाना में होने वाला प्रमुख गेम जो  “नेशनल कॉलेज अथलेटिक अस्सोशिएशन” द्वारा कराए जाते है वो भी रद्द कर दिए। 
आपको याद है ? इसी के तहत होने वाले फूटबोल मैच हम गए साल देखने गए थे।
ख़ैर इस बार तय हुआ कि, बिना दर्शक के हीं गेम होगा पर बाद नेब्रास्का के कोच की तबियत ख़राब होने पर ये पूरा गेम सीरिज़ हीं रद्द कर दिया गया। 

इसके साथ हीं 13 मार्च को होने वाला “ सेंट पैट्रिक डे” का परेड भी रद्द कर दिया गया। 

लोगों को बार-बार घर में रहने का हाथ धोने का सलाह दिया जा रहा है। अब थोड़ा भय लग रहा है कि अमेरिका भी कहीं “इटली” की राह पर आपात घोषित ना कर दे। 

यहीं सोच रही थी कि, दूसरी ख़बर आई “टॉम हेंक्स” और उनकी पत्नी भी इस वायरस के चपेट में आ गए है। टॉम मेरे पसंदीदा एक्टर में से एक। ये वहीं हैं जिन्होंने “फ़िलिडेफ़िया” फ़िल्म में एक एड्स पीड़ित का किरदार निभाया था। 
एक वायरस पीड़ित का किरदार जी कर कई अवार्ड जीतने  वाले टॉम आज दूसरे वायरस की चपेट में है। भगवान करें आप जल्दी स्वस्थ हो। 

इन्ही सब समाचारों के बीच मेरे दिमाग़ में एक फ़िल्म घूम रही है “ परफ़ेक्ट सेंस” एक ऐसी फ़िल्म जिसमें विश्व एक अनजान महामारी की चपेट में आ जाता है और इंसान अपनी सारी सेंसेज धीरे- धीरे खो देता है। सारी उम्मीदों और प्रयासों के बाद भी बच जाता है अंत में अंधेरा…
महामारी का अंधेरा।

Wednesday, 4 March 2020

द सैक्रिफाइस !!!

द सैक्रिफाइस
एक ऐसी फ़िल्म जिसे देखते वक़्त मुझे “राजा हरिश्चंद्र” की याद आई थी। जाने इसे बनाने से पहले आंदरे तारकौस्की को इस भारतीय राजा की कहानी मालूम थी भी या नही?
वैसे मैंने सुना था कि, रूसी लोग राज कपूर के बड़े दीवाने। ऐसे मे हो भी सकता है कि भारत के बारे मे इन्हें जिज्ञासा हुई हो और ये कहानी इनके हाथ लग गई हो। 
या फिर कैंसर से जूझते तारकौस्की अपने अंतिम दिनों मे सब कुछ त्यागने की इक्षा रखते हो और त्याग भी ऐसा जो कैमरा से सुंदरता को आज़ाद कर रहा हो..

फ़िल्म की शुरुआती कहानी जाने क्यों बड़ी सुस्त लग रही थी मुझे। पर जैसे इसके सभी कलाकार एक छत के नीचे मिले मज़ा आने लगा। वो आपस मे ऐसे बात कर रहे थे, जैसे कोई नाटक चल रहा हो। साथ ही फ़िल्म की जान इसकी  सिनेमेटोग्राफ़ी जो आपको कहीं जाने नही देती, वरना कहानी की हिंट तो मिल ही गई थी।

एक इंसान जो विश्व युद्ध के भय से अपने परिवार को बचाना चाहता है, उसने भगवान से प्रार्थना किया कि, हे परमात्मा इस विध्वंश से बचा लो तो मै अपनी सारी प्रिय चीज़ों का त्याग कर दूँगा। हमेशा प्रवचन देने वाला मै कभी एक शब्द नही बोलूँगा।
स्वप्न मे जैसे राजा हरिश्चंद्र ने सब राज-पाट दान कर दिया था, ठीक वैसे ही इस नायक ने स्वप्न मे युद्ध का भय देखकर  भगवान के आगे सब कुछ त्याग डाला। अपना सुंदर घर, पत्नी और प्रिय पुत्र...
पिता के चुप होते ही गूँगा पुत्र बोल पड़ा शायद यही नियम है समाज के लिए की, एक को चुप रहना है तो दूसरे को बोलना। दोनो साथ बोले तो शोर बढ़ जाएगा...

ख़ैर इतने दिनों बाद इस फ़िल्म की याद “मोदी जी और केजरीवाल सर” की वजह से आई। भाई को कहा कि क्या हमारे राजा के मन मे यह बात नही आती की प्रजा के लिए सब कुछ छोड़ दे? कुछ ऐसा करे की विध्वंश ना हो।

और चमत्कार देखिए तो, कुछ दिनो बाद ख़बर आती है कि महाराज ने सोशल मीडिया का त्याग करने का प्रण लिया। 
राजा ने दंगाइयों पर कठोर सज़ा का निर्देश दिया चाहें वो आप क्यों ना हो। 

पर क्या “सैक्रिफाइस” इतना आसान है ?

Thursday, 27 February 2020

ऐसे भी कोई करता है भला!!!

फ़ाइनली आज मेरी दूसरी इ -बूक, “ऐसे भी कोई करता है भला” लाइव हो गई अमेजन पर। 
लाइव-ज़िन्दा...

कहने को वो आज आपलोगों के लिए ज़िन्दा हुई पर मेरे साथ वो बीते कुछ सालों से जी रही है और आगे भी जीती रहेगी।
इस बार कहानी लिखना मेरे लिए ज़्यादा कठिन था  कारण, इसमें कल्पनाएँ कम रही।  कल्पना करके एक इंसान स्वर्ग तक पहुँच सकता है पर जीवन के नर्क को, स्वर्ग लिखना बेहद मुश्किल है....

कई रातें ऐसी हुई की मै ठीक से सो नही पाती। एक डर हमेशा मन मे रहता,  किसी को खोने देने का...बार- बार उठ कर गहरी नींद मे सोए हुए प्रेम को जगाती, “तुम ठीक हो?”
ऐसे मे “मनलहरी की सालगिरह” और फिर से शतेश ने मुझे दूसरी किताब की तरफ धकेला।

साथ ही मुझे याद आई एक मराठी फ़िल्म “फ़ाइअरब्राण्ड “ जिसमें नायिका को अपने डर से जीतने के लिए मनोचिकित्सक कहता है- अपने तकलीफ को रोज लिखो और उसे जोर से पढ़ो। इतनी बार लिखो- इतनी बार पढ़ो की वो बात आम बात लगने लगे तुम्हें। बस मैंने सोचा मै भी इसी बहाने एक किताब लिख डालूँ। कौन जाने प्यार याद रह जाए और बाक़ी सब बस कहने की बातें। 

वैसे तीन सप्ताह से भी कम समय मे किताब पूरी  करना अभी के लिए मुश्किल भरा रहा पर वहीं है, मेरी जिद्द कई बार मुझसे कुछ अच्छा करवा लेती है। 
भाई और शतेश कहते रहे की कोई डेड लाइन थोड़े है आराम से लिख कर पोस्ट करो, पर मुझे था की ये किताब इनके जन्मदिन तक उपलोड हो जानी चाहिए। चाहे मै रात के चार बजे तक क्यों ना जगूँ। कितने आँसू क्यों ना बहाऊँ...

ख़ैर किताब आपके बीच आ गई है। अमेजन से लेकर आप इसे “के डि पी” ऐप पर पढ़ सकते है। हाँ लिंक देने से पहले एक बात उन सभी दोस्तों से कहना चाहूँगी जिन्हें, मेरी यात्रा वृतांत मे आनंद आता रहा और मुझे इसे किताब की शक्ल देने को कहते रहे। तो ये रही प्रेम -दुःख-विश्वाश-ग़ुस्से मे डूबी यात्रा वृतांत....


Thursday, 20 February 2020

महाशिव रात्रि 2020

प्रकृति रंग बदल रही है धीरे -धीरे ...
ये कैसी घड़ी आइ है गौरी, जो मेरा मन व्याकुल हुआ जा रहा है। क्यों ऐसा लग रहा है कि वर्षों की तपस्या तुम्हारी नही मेरी थी, जो अब भी अनवरत चल रही है... तुम्हारी तपस्या तो विवाह तक आ कर पूरी हुई पर मेरे प्रेम की तपस्या तो अब शुरू हुई है।

अनेक देवों-दानवों के बीच मुझे अपने वर के रूप में चुनकर तुमने मेरा स्वभाग्य जगाया है। 

हे प्रिय ! इस घड़ी मेरा मन करता है कि, मैं तुम्हारी वैसी हीं वंदना करूँ जैसे गोपियाँ करतीं हैं कृष्ण को पाने के लिए,  जैसे सीता करतीं है राम को पाने के लिए। और कोमल हृदया तुम उन्हें, मन चाहा वर देती हो। 

हे जगत जननी ! ऐसा देख कर मेरे भी मन में भी इक्षा जागी है ऐसे वर की कि, मेरा प्रेम अद्वित्य हो... 
मै तुम्हारे माथे की सिंदूर से लेकर तुम्हारे चरणों की धूल तक में शामिल रहूँ। हे शैल पुत्री ! मुझे यह वर दो कि तुम्हारा प्रेम मेरे लिए अंतिम सत्य हो। हे शिव प्रिय ! अपने शिव की प्रार्थना स्वीकार करो ; 

हे श्रेष्ठ पर्वतों के राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती! आपकी जय हो, हे महादेवजी के मुख रूपी चन्द्रमा की चकोरी! आपकी जय हो। हे जगज्जननी! हे बिजली सी कान्तियुक्त शरीर वाली! आपकी जय हो।

आपका न आदि है, न मध्य है और न अंत है। आपके असीम प्रभाव को वेद भी नहीं जानते। आप संसार को उत्पन्न, पालन और नाश करने वाली हैं। विश्व को मोहित करने वाली और स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाली हैं

हे वर देने वाली! हे शिव प्रिय!  आपकी सेवा करने से चारों फल सुलभ हो जाते हैं। हे देवी! आपके चरण कमलों की पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं

मेरे मनोरथ को आप भलीभाँति जानती हैं, क्योंकि आप सदा सबके हृदय रूपी नगरी में निवास करती हैं। 
 हे प्रिय ! इस कारण मैंने उसे पहले प्रकट नहीं किया। ऐसा कहकर शिव अपने माथे का चंद्रमा पार्वती के सिर पर सज़ा देते है, जैसे वो प्रेम का ताज हो। 

कोमल हृदय पार्वती अपने गले का हार शिव के गले में डाल कर मुसकाती है... कहती हैं, आपकी सारी मनोकामना पूरी होगी। 

हे शिव ! मैं आपके प्रेम की जोगन आपको क्या वर दूँ...
फिर भी आपकी स्तुति को स्वीकारना मेरा धर्म है। तो चलिए हमदोनो के इस सम्पूर्ण प्रेम के लिए, कभी अलग ना होने के लिए मैं सकुचाती हुई आपको “अर्धनारेश्वर” होने का वर देती हूँ। 

ऐसा होते ही ब्रह्मांड में प्रेम खिल उठता है। एक दूसरे के पास बैठे शिव पार्वती अपना स्वरूप आदान-प्रदान कर रहें हैं...
एक ओर शिव जहाँ इस पल शक्ती की भक्ति में डूब रहें है वहीं दूसरी ओर शक्ति, शिव होती आनंदित हो रही है। 

Sunday, 9 February 2020

मनलहरी और बुखार !!!

ताप देवी पिछले के पिछले साल भी मुझ पर चढ़ गई थीं। उन्हें मेरे भूरे- पसनैल देह से सच में प्रेम हो गया था।
और मुझे ?
मेरे मन पर इनका प्रेम कैसे चढ़ता जब प्रेम एकतरफ़ा था…..

मुझे इनका आना तनिक अच्छा नही लगता। ये इतनी दबंग प्रेमिका की आते हीं मेरा सब कुछ बंद करा देतीं। स्कूल जाना ,खेल -कूद, खाना -पीना तक बंद हो जाता। अपनी क़ैद मे मुझे रखना इन्हें अच्छा लगता पर मै इनकी क़ैद से तड़प उठता। आज़ाद होने की हर कोशिश करता पर प्रेमिका कैसी जो इतनी जल्दी हार मान लेती ?

रात भर मुझसे प्रेम करने के बाद दिन मे मुझे निढाल छोड़ जाती। दिन भर मै देह दर्द से कराहता रहता। माई कभी काढ़ा तो कभी जड़ी देती। उधर रात की थकान के बाद मुझमे सोई मेरी प्रेमिका मुझसे अपनी सास यानि की मेरी माँ के ज़ुल्मो का बदला अगली शाम मुझसे जोड़ कर लेती। 
दुगनी गति से अपने प्रेम का ताप मुझे देती। मेरे शरीर को ऐंठन देती और मै बेचैन हो उठता। 
लहक कर वो कहकहा लगाती और मेरे आँखो से पानी गिरने लगते.....
ताप देवी दबंग प्रेमिका हुई तो क्या हुआ, कही तो उनके भीतर भी एक नारी है तभी तो मेरे आँसू देख वो पिघल जातीं।

“जाने क्यों पुरुषों को रोते देख ये महिलायें मोम सी बन जातीं है।”

प्रेम से भरी ये मेरे माथे पर छोटे -छोटे गोल पानी की बूँदे बिखेर देतीं। फिर धीरे -धीरे वो बूँदे पसरती हुई मसान सी बन जाती जो कि मेरी पूरे शरीर को भीगो रही होती.....
प्रेम की ऐसी ठंढक पाकर मै पस्त हो जाता। मेरी आँखें बंद हो जाती और मै प्रेम के मसान- सागर में भींगा सा सो जाता। 

ऐसे में मुझे समझ नही आता कि देहिक प्रेम के लिए रात का ही समय क्यों निर्धारित है ?


ख़ैर मुझे प्यार करने बुखार रानी पिछले साल भी आई। इस  साल भी वादे के मुताबिक़ वो हाज़िर थीं। इस साल ताप देवी ज़्यादा ग़ुस्से में थीं। मुझे दर्द देती रही। आँखों मे जलन और आँसू देती रही। देह का ताप बढ़ा कर मानो मुझसे पूछ रहीं थीं कि ,”इतने महीने क्यों नही याद किया मुझे ?”
क्यों नही केला या अमरूद खा कर पानी पिए ? क्यों नही बर्फ खा कर नदी नहाने गये ? क्यों नही बारिश में भींगे ? क्यों नही सुबह की शीत मे बिना चादर के सोए ?

मै बड़बड़ा उठा “क्योंकि मुझे तुमसे प्रेम नही “

ऐसी अपमान भरी बात सुनते ही उसने देह का ताप ऐसा बढ़ाया कि मानो मैं झुलस जाऊँगा। उसके  ताप को सह नही पाउँगा। अंतिम समय को याद कर मैं माई -माई कराह उठा…. 
माई की आँखो में भी नींद कहा थी ? 
एक बार में हीं “माई” सुनकर भाग कर आई मेरे खटिए के पास।
बबुआ ! ये बबुआ ! का हुआ ? सपना रहे हो का ?

मै क्या कहता, मेरी ज़बान तो उसकी ताप बहू ने बंद कर रखी थी। किसी  तरह मैंने उसे ,उसके प्रेम का वास्ता देकर बोलने की अनुमति ली। सूखे  जीभ और दर्द भरे कंठ से मैं इतना ही बोल पाया “पानी”

अगली सुबह मेरी आँख रामनगर के सरकारी अस्पताल में खुली ।आँखो के सामने माई का फुला हुआ सा चेहरा था। लगता है किसी बिरनी ने कई जगह उसे  डंक मार दिया है।
मेरी आँख खुलते ही डंक का दर्द माई की आँखो में उतर गया। “मुझसे लिपट कर फूट -फूट कर रो पड़ी “बबुआ हो बबुआ…..
का हो गायल रहे हो बबुआ….

मैने महसूस किया की माई कि बहू का मिज़ाज अभी ठंडा है।
देह मेरा बर्फ़ जैसा हो रहा है। पसीना निकलने से शरीर से एक अलग ही ख़ुश्बू आ रही है।
ख़ुश्बू ?
हाँ, ख़ुश्बू ।
हमारे लिए तो बदबू जैसी कोई चीज़ ही नही होती और फिर इस ख़ुश्बू की तो अब आदत सी हो गई है।

Friday, 7 February 2020

द लॉब्स्टर !!!!

एक फ़िल्म है “द लॉब्स्टर” बेकार बैकग्राउंड म्यूज़िक के साथ बनी ये फ़िल्म थोड़ी डिप्रेसिंग भी है पर अगर थोड़ा टिक गए तो मज़ा आने लगेगा। अगर ढूँढे तो इसमें आपको ज़बरदस्त ह्यूमर भी मिलेगा। आप इसी सोच के साथ मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते है कि, हे महादेव ! अगर इसका मेल नही मिला तो ये तो कुत्ता बन जाएगा।

ख़ैर , आज इस फ़िल्म के याद आने के पीछे का कारण “प्रेम दिवस” का आगमन है। जैसे गुलाब दिन पर गुलाब ना मिलने पर कई मासूम, कोमल हृदय  दुःख रो रहे होंगे, वैसे ही जैसे-जैसे खिलवना दिन, लेमनचूस दिन आएगा लोग की बेचैनी बढ़ती जाएगी। गले मिलन दिवस और प्रेम प्रदर्शन दिवस पर तो ये अपने चरम पर होगी।

क्या चरम पर होगी ?

वहीं दुःख और बेचैनी.....
पर क्यों भला ?

अरे भाई  कुछ तो हमारे ऑक्सीटोसीन हार्मोन का कमाल है आ कुछ सामाजिक प्रतिस्ठा का सवाल। इस में फँसी बेचारी प्रेमी जान....
फ़लाँ को ये मिला- चिलना को वो मिला, साथे-साथे बोयफ्रैंडो मिला गर्लफ़्रेंडो मिली आ एक हम है जो ताकते रह गए इसी दुःख -संताप से इतना ख़ूबसूरत महीना कलपते बीत जाता है। साला ई प्रेम ना हुआ डेड लाइन हो गया।

ठीक इस फ़िल्म की तरह की आपको “45दिन” के अंदर अपने मेल का पार्टनर खोजना है नही तो मामला गड़बड़ा जाएगा। आपको इंसान से जानवर बनना होगा।

वैसे एक तरह से सही ही तो दिखाया गया है इस फ़िल्म में। एक तय समय में अपने जैसा जीवन साथी चाहिए वरना आप समाज में रहने के लायक नही। भले उसमें प्रेम हो ना हो रूप-रंग मिलनी चाहिए, पसंद मिलनी चाहिए। बाक़ी तो मामला वही है “बिना प्रेम के आप दोंनो हीं सूरतों में जानवर बन जाते हो।”


Sunday, 2 February 2020

मनलहरी भाग -२

मुझे ऐसे देखते देख वो बोल पड़ी ,”क्या देख रहे हो ? चलो पैर धो लो ......ऐसे किसी को घूरना अच्छी बात नही ।”

मेरे कान उसकी इस बात से गरम हो गए। आँखें झुक गई। जीभ सूखने को हो आए। मै अनजाने श्राप के डर से भीतर तक काँप गया।
क्या मेरी आँखो पर अब पाबंदी की पट्टी बाँध दी जाएगी ? 
नही -नही…….
एक मेरी आँखें ही तो है जो बोलती है वरना  “हम्म” से ज़्यादा मेरी जीभ जानती भी क्या है ? 
मेरे डर को वो शायद समझ गई। मुझे कोई सज़ा, कोई श्राप ना देते हुए मेरे साथ घाट तक आई। ठीक उसी जगह पर जहाँ कुछ देर पहले जीवन से भरे उसके पैर मसान को सींच रहे थे।

आज कुछ तो था जो आस -पास सब अलग लग रहा था। सब कुछ अलग हो रहा था ये सोचते हुए मैंने अपना पैर पानी में डाला। 
एक चुभन सी हुई......
पर ये चुभन मेरे घाव की नही हो सकती। ये तो मसान के जल को जीवन रहित बनाने की चुभन है या फिर मेरे पनिले लाल ख़ून से मसान को अपवित्र करने की चुभन है।

आह रे मसान ! तु सच में कभी अमृत तो कभी विष पीती है। तुझे जो मिलता है उसे ख़ुद में समेट लेती है फिर मुझे क्यों शिकायत तुमसे ?
मुझसे थोड़ी दूर बैठी वो पूछ रही है; “ख़ून निकलना बंद हुआ ?” 
मै अपने गहरे भूरे पैर को देखता हूँ। सफ़ेद बालू पर जमा वो मसान के भीतर से मोटा लग रहा है। डर से भरा मेरा मन उन्हें हिलाता है ये सोच कर कि, कही मेरा अंगूठा ख़ून की कमी से मर तो नही गया.... 

टेढ़ी-मेढ़ी ऊँगलियाँ कुछ बालू में धंसी तो कुछ बालू पर उतराई। 
आहहऽऽऽ.... जय हो बरहम बाबा, जय हो काली माई मेरा अंगूठा तो बच गया है, कह कर मैं एक गहरी साँस लेता हूँ।

इधर मेरा साँस लेना और उधर उसका जाना अब तय हो चुका था ......

Saturday, 1 February 2020

मनलहरी !!!!

सोचता हूँ शाम की गोधुलि में जब सब कुछ इतना शांत और सुंदर है फिर मैं क्यों बेचैन हूँ ? कही ये मसान का जादू तो नही ?  या उन क़दमों का जादू है जो मसान को शांत किए हुए है। कही शांति और ख़ुशी की जड़ी तो नही उन क़दमों के तले....

मै बेचैन सा मसान की तरफ़ फिर से जाता हूँ। सोचता हूँ जल्दी से एक घूँट जल अपने इस बेचैन शरीर को भी दे दूँ। शायद कोई चमत्कार हो जाए..

मै नदी की तरफ़ भागता हूँ और गिर पड़ता हूँ। मेरे गिरने से धम्मऽऽऽ... की आवाज़ होती है और वो आँखें खोल देती है। झट से अपने पैर नदी से निकाल कर जहाँ मै गिरा हूँ वहाँ तक आती है। पुछने लगती है; लगी तो नही ? 

मै ख़ुद को लगभग उठाते हुए बुदबुदा उठता हूँ, ”आह ! पैर क्यों निकाला “क्या मेरा अमृत आज रह गया ? क्या मैं ऐसे ही बेचैन रहूँगा अब ...

उसने सिर्फ़ मेरी दर्द भरी आह को ओह ! के रूप में सुना। मुझे उठाने मे मदद करते हुए फिर पूछती है - ज़्यादा लगी क्या ? देखूँ तो..
उसे बिना कुछ बोले मै अपना पैर आगे कर देता हूँ। मेरे अँगूठे से ख़ून निकल रहा था। 

दया भरी आवाज़ का एक सोता फूटा  “अरे तुम्हारा तो अँगूठा फूट गया है। इसे जल्दी दबाओ तकी ख़ून बंद हो जाए।
पास पड़े बाँस के मूठ जिससे मुझे चोट लगी थी उसे देख कर कहती है “यहाँ बाँस कौन छोड़ गया ?”

अपने अँगूठे को दबाते हुए मैं इतना हीं बोल पाया “ये मरन का बाँस है”

मरन का ? आश्चर्य से उसने पूछा ....
माथा ऊपर उठा कर मैं उसकी तरफ़ देखता हूँ। उससे ज़्यादा आश्चर्य मेरी आवाज़ में था , “हाँऽऽ मरन का ।”

“मरन नही मालूम क्या आपको ?”

उसने बिना कुछ कहे “हाँ” में सिर हिलाया।

मैं पहली बार उसे इतने क़रीब से देख रहा था। उसे देख कर लगा ,”सच मे इसे मरन के बारे में क्या मालूम होगा।”
जीवन देता ये मुख मरन क्या जानता होगा भला..... इतनी दया की वे क्या ही प्राण जाते देखी होगी ?