Wednesday, 5 December 2018

सफ़ेद रुई से हल्के !!!

कल ठीक इसी समय यहाँ बर्फ़ गिर रही थी ।ठंड में यहाँ बर्फ़ का गिरना कोई अद्भुत बात नही ।ऐसा भी नही था की कल इस मौसम का पहला बर्फ़ गिरा हो ,फिर भी मुझे कल कुछ अलग लग रहा था ।बर्फ़ के फ़ाहे जैसा मेरा मन भी उड़ रहा था ।
कोक स्टूडियो वाली प्ले लिस्ट लगा कर मैं घर के कुछ कामों में लग गई ।सत्यार्थ की सेवा के बाद ,नहाने गई ।बाथरूम का दरवाज़ा पीट-पीट कर सत्यार्थ शांत हो गया था ।मन में कई आशंकाओं की बीच जितनी जल्दी हो सका बाहर आती हूँ । आती हूँ तो ,सत्यार्थ खिड़की के पास खड़ा रेन -रेन कह रहा था ।मैं उसके पास गाई ,खिड़की से देखा तो बर्फ़ गिरने लगी थी ।मैंने उसे कहा ,रेन नही स्नो ।वो नो -नो करके सोफ़े के सिर पर चढ़ गया ।वहाँ से बाहर देखने लगा ।
मैं भी कुछ देर खड़ी हो गई ।

इधर कोक स्टूडियो से गाने “ मेंहदी हसन” जी के नम्बर तक पहुँच गये थे ।घर गूँज रहा है “रंजीश हीं सही .....
आचानक से इस गाने का बजना ,या जाने उनकी आवाज़ का जादू या मौसम ,मेरा मन बर्फ़ की तरह गिरने लगा ।बालों से कुछ बूँदे गर्दन पर गिरी या आँखो से मालूम ही नही चला ।

खिड़की के पीछे मैं बालों को सूखाने लगी और बाहर ,बर्फ़ घरों को ,पेड़ों को ,सड़कों को नम बना रहे थे ।उनकी सफ़ेद नमी कितनी सुंदर लग रही थी ,इधर मेरे बालों की नमी ,नीले टी शर्ट पर चकता बना रहे थे ।

मन कर रहा था छोड़ दूँ आपने क़तरे -बिखरे गीले बालों को यूँ ही ।टपकने दूँ बूँदे यूँ ही ।
पर क्या हो जो टी -शर्ट चकतों से भर जाए ?
पर क्या हो जो ज़ुकाम हो जाय ?
क्या हो जो सत्यार्थ मेरे बालों से खेलने लगे ?
क्या हो जो शतेश अभी घर आ जाएँ ?
और क्या हो जो ,”मेरे बालों में बर्फ़ जम जाए”
सफ़ेद रुई से ।

Monday, 3 December 2018

पोर्ट रीको यात्रा की अंतिम और अद्भुत कड़ी !!!

पोर्ट रीको यात्रा की अंतिम और अद्भुत कड़ी ।
मैंने कभी पढ़ा था “ट्रॉपिकल रेन फ़ॉरेस्ट “ कभी पढ़ा था “बीयोलमिनेसेंस “पर इतने सालों में इनकी यादें धुँधली हो गई थी ।
जब मालूम हुआ की इस जगह पर ये दोनो हीं है ,फिर तो मेरे टॉप अट्रैक्शन में ये दोनो शामिल हो गए ।

पूरे विश्व में सिर्फ़ पाँच बीयोलमिनेसेंस है ,जिसमें तीन तो पोर्ट रीको में हीं है ।सबसे सुंदर तो पोर्ट रीको के वीकुएस आइलैंड पर है पर वहाँ रुकने का कोई ठिकाना ना मिल पाने के कारण “लाजस के बायो वे “ गए ।

*बीयोलमिनेसेंस -लाइट का प्रोडक्सन सिंगल सेल या लिविंग ऑर्गनिजम के द्वारा होता है ।जैसा कि जुगनुओं में होता है ।घुप अंधेरे में ये और भी ख़ूबसूरत दिखते है ।
हमने उस हिसाब से छुट्टी प्लान कि थी कि जब अंधरिया रात हो ।
यहाँ जाने का सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीक़ा क्यांक है लेकिन हमलोगो ने बोट लिया था ।एक ही बोट है इस टूर के लिए “पैरडायज स्कूबा “ की ।रात के अंधेरे में हमलोग कुछ दस लोग निकले समंदर की सुंदरता देखने ।सबसे छोटा सत्यार्थ था  ।सबकी नज़र इस पर थी कि दौड़ भाग में पानी में गिर ना जाए ।सारे अनजान लोग पर ,इतना प्रेम सच में अद्भुत है ये जगह ।

कुछ आधे घंटे पैतालीस मिनट बाद हम उस जगह पर पहुँचे जहाँ ये अद्भुत नज़ारा देखना था ।पानी में हाथ या पैर डाल कर हिलाने पर लाखों बिजलियाँ चमक उठती ।मैं उस अनुभव को शब्दो में ठीक से बया नही कर सकती ।बोट के मालिक ने सबको चेतावनी दी कि पानी में ज़्यादा दूर ना जाए।मैं ,शतेश ,सत्यार्थ और बोट के मालिक के साथ उसका हेल्पर बोट पर रुक गए ।हम बोट की सीढ़ी पर बैठ बारी -बारी इसका आनंद लेते रहे । आप में ये सबसे ख़ूबसूरत चीज़ थी जो मैंने अनुभव किया ।

दूसरा “ईआई यूँकुये ट्रॉपिकल रैन फ़ॉरेस्ट “ 28000 एकड़ में फैला ये वन ,”वॉटरफ़ॉल ,तरह -तरह के पेड़ -पौधे ,जीव -जंतु से भरा है “।हेरिकेन के बाद इस वन की बहुत ज़्यादा क्षति हुई और लगभग एक चौथाई वन बंद है अभी ।साथ ही विजीटोर सेंटर भी बंद पड़ा है ।इस वन में नेट्वर्क भी नही लगता ।आप लोगों की मदद से आगे बढ़ सकते है ।साथ ही यहाँ जाने से पहले मच्छर ,किट-पतंगो से बचने वाला लोशन ज़रूर ले ।हमने वहीं के एक छोटे से दुकान से लिया ।बाक़ी आप पैदल भी इस वन को घूम सकते है अगर स्टेमीना है तो ।

लस्ट बट नोट लिस्ट,यहाँ के ऑर्ट हाउस ,म्यूसियम और कोफ़ी शॉप,और अमेरिका का दूसरा सबसे पुराना चर्च  ।हम एक  हीं म्यूसियम जा पाए “मसेओ दे लॉस” कभी ये वर्ल्ड वार दो के समय सैनिकों का ठिकाना था ,इसके एक हिस्से में उनका इलाज भी होता था ।पर इसका भी आधा हिस्सा अभी बंद था हरिकेन की तबाही के बाद ।एंट्री टिकेट पाँच डॉलर है ।निचले तले पर खाने -पीने की दुकान है ,ऊपर आपको म्यूसियम मिलेगा ।

Thursday, 29 November 2018

रुई का बोझ !!!

चंद्रकिशोर जयसवाल की उपन्यास पर एक बेहतरीन फिल्म बनी “रुई का बोझ “
फिल्म की कहानी एक बुज़ुर्ग व्यक्ति की है जो अपने परिवार से त्रस्त है ।अगर आपको ये लाइन पढ़ कर अमिताभ बच्चन की बागवान या राजेश खन्ना की अवतार की याद आ  रही है तो ,मै आपसे यही कहूँगी बस एक बार देखिये इस फिल्म को। 
जो ना देख पाए उनको लेकर चलती हूँ एक गाँव  में।इस गाँव में एक बुज़ुर्ग अपने तीन बेटों के साथ रहता है। समय के साथ बेटों का शादी -ब्याह होता है ,घर गृहस्ती से बोझ बढ़ता है और नौबत घर के बटवारे तक आ जाती है। 
घर  का बटवारा तो हो जाता है पर बुज़ुर्ग रहे किसके साथ ?तय होता है कि ,छोटे बेटे को उसकी जरुरत है तो उसके साथ रहे। 
कुछ दिनों तक तो बेटा -बहू खूब सम्मान देते है ,पर समय के साथ वो सम्मान कम होने लगता है। ऐसी स्थति में बुज़ुर्ग चिड़चिड़े से रहने लगते है।
उनकी हमउम्र का एक दोस्त उन्हें समझाता है -“बूढ़े लोग रुई के गठ्ठर के समान होते हैं। शुरू मे हल्के -फुल्के पर बाद में भींगी रुई समान भरी  इसलिए ,पारिवारिक शांति के लिए कुछ बातों को अनदेखा अनसुना करते रहना चाहिए। 
पर बुज़ुर्ग को ये बात समझ नहीं आई। उसे लगता है कि बूढ़ा हो जाने से अच्छा खाना पीना नहीं खाया जा सकता ?क्या अच्छा पहना नहीं जा सकता ?
रोज की कलह एक दिन बाप -बेटे में ऐसी नौबत ला देता है कि  बेटा क्रोध में बाप को घर के पीछे कोठरी में रहने की सजा दे देता है। इस समय फिल्म के बैकग्राउंड में जो सितार बज रहा होता है ,मानो आपके दिल को झकझोर रहा होता है। सोचिये कभी घर का मालिक और आज कोठरी में पड़ा हुआ है। 

ऐसे में बुज़ुर्ग घर छोड़ने का मन बनाता है।जंगल के मठ की ओर चल पड़ता है। घर के लोगो को अपनी गलती का अहसास हो जाता है पर ,बुज़ुर्ग रुकता नहीं है ।फिल्म का सबसे सुन्दर पार्ट यही है। बैलगाड़ी पर जाता बुज़ुर्ग ख्यालों में अपने दोस्तों से बातें करता है। 
उसका दोस्त कहता है -“कलयुग है ,पर कलयुग का ये मतलब नहीं की घर छोड़ कर भाग जाया जाय “ वापस लौट जाओ। 

बैलगाड़ी चल रही होती है ।बुज़ुर्ग गाड़ीवान से कहता है -कोकन घर से निकलते समय सोचा था अब घर नहीं लौटूँगा ,पर मैं अकेले कैसे रह पाउँगा ?सोच रहा हूँ ,दो -तीन दिन में जल चढ़ा कर लौट आऊंगा। 
गाड़ीवान कहता है -बहुत अच्छा मालिक  ।हम भी यही कहने का सोच रहे थे। 
बुज़ुर्ग गाड़ीवान को डांट लगाता है तो कहा क्यों नहीं ? अच्छी बात कहने में तुमलोग इतना सोचते क्यों हो ?
फिर कहता है कि दो -तीन दिन वहाँ क्या करूँगा ?आज शाम तक ही लौट आऊँगा और अंत में ये उसकी हालत ये होती है कि गाड़ीवान से कहता है -गाड़ी घुमा ले घर की तरफ। वहाँ जा कर मेरा मन बदल गया फिर ? बाल -बच्चों के बिना कैसे जिंदगी बिताऊंगा ।

**“गीता कनेक्शन :-
गाड़ीवान पूछता है -मालिक आप अचानक मन क्यों बदल लिए ?
बुज़ुर्ग कहते है -कोकन गीता का एक श्लोक याद आ गया ,

तुल्यनिन्दास्तुतिमोर्नी  संतुष्टो येन केनचित ।
अनिकेतः स्थिरमतिभक्तिरमान्मे प्रियो नरः ।।
 यानि ,जो निन्दा -स्तुति को सामान समझता है ,किसी भी प्रकार से शरीर निर्वाह में सदा ही संतुष्ट है और रहने के स्थान में शांत चित आसक्ति रहित है ,वो स्थिरबुद्धि मनुष्य मुझे प्रिय हैं ।

गाड़ीवान फिर पूछता है -लेकिन परमधाम का क्या मालिक ?
बुज़ुर्ग कहते है ,गीता में ही कहा गया है -

यत्सांख्ये प्राप्तये स्थानं ताद्दोगैरपि गम्यते ।
एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ।।
यानयोगियों द्वारा जो परमधाम प्राप्त किया जाता है कर्मयोगियों को भी वही प्राप्त होता है ।इसलिए जो मनुष्य ज्ञानयोग और कर्मयोग को एक सामान देखता है वही यथार्थ देखता है ।

नोट:-क्या मैं इस दुनियाँ का अकेला हूँ जो बूढ़ा हुआ ?क्या तुम सब कभी बूढ़े नहीं होंगे ?
ध्यान दीजियेगा इस लाइन पर और साथ ही गीता श्लोक पर ।



Monday, 26 November 2018

पोर्ट रीको के ख़ूबसूरत घर !!!!!

समुद्र तटों के अलावा पोर्ट रीको का दूसरा सबसे बड़ा अट्रैक्शन यहाँ का समृद्ध इतिहास और कला है ।यहाँ के कलरफूल घर ,घरों की बालकनी में झूलते फूल ,नीले -काले पत्थरो से बनी गालियाँ ,गली -गली में रेस्ट्रोरेंट ,आर्ट शॉप,और ख़ूब सारे पेड़ -पौधे आपका हर पल मन मोहते रहते है ।
ओल्ड सैन जुआन में कई सारी चीज़ें है देखने को ।सुबह से शाम तक का वक़्त कैसे बीत जाता है आपको पता भी नही चलता ।शाम को तो और भी रौनक़ हो जाती है ।म्यूज़िक ,डान्स खाना पीना सब आपको किसी ना किसी कोने पर मिल जाएँगे ।सच में लैटिन लोगों से सीखा जा सकता है हर माहौल में ख़ुश रहने का तरीक़ा ।

सबसे पहले मैं आपको यहाँ के फ़ोर्ट लेकर चलती हूँ ।कैस्टीलो सैन क्रिस्टॉबाल 500साल पुराना किला है ।शहर को बाहरी लोगों के हमले से बचाने के लिए ,स्पेनिश लोगों ने मिलकर अटलांटिक ओसन के आगे  एक दीवार खड़ी कर दी ।छः मंज़िला ये किला बाद में नेशनल हिस्टोरिक साइट घोषित हुआ ।इसके हर कोने पर एक एक गार्ड हाउस जैसा बना है ।जिसमें 24घंटे एक गार्ड रहता निरीक्षण को कि कोई हमला करने तो नही आ रहा ।क़िले के नीचे के दो फ़्लोर बंद है ।यहाँ घूमने के लिए दोपहर के बाद जाना ठीक होगा ।कारण अक्टूबर में भी हमारा दम निकल गया था ।आपको सीढ़ियों से ही एक फ़्लोर से दूसरे तक जाना है ।दम निकलने के बाद भी आप घूमना नही छोड़ते इतना ख़ूबसूरत नज़ारा आपके आँखो के आगे होता है ।
जैसा कि मैंने पहले बताया था यहाँ घूमना सस्ता है ।इसकी एंट्री फ़ी मात्र 7डॉलर पर पर्सन ,वो भी इस चार्ज में आप दो दिन घूम सकते है ।दो दिन के साथ दो किला भी ।दूसरा किला यहाँ से लगभग 15-20मीनट वॉकिंग है ।मेरा सुझाव ये है ,अगर आप अकेले है। तो ठीक पर बच्चे के साथ पैदल ना जाए ।शतेश पहले क़िले में हीं थक गये थे ।बोले मैं नही जा रहा ।मैं सत्यार्थ को लेकर निकल पड़ी बोली आप गाड़ी पार्किंग से लेकर क़िले तक 30 मिनट के बाद पहुँचो ।तबतक यही आराम करो ।मेरी जो हालत हुई मैं हीं जानती हूँ ।क़िले का शॉर्ट कट गेट बंद था ,लम्बा घूम कर गई तो वहाँ क़रीब 25/30 सीढ़ियाँ ।मेरी हिम्मत जबाब दे गई और मैं वही बाहर बैठ कर शतेश का इंतज़ार करने लगी ।

क़िले के साथ हीं सैंटा मारिया मैग्डलेना सेमटेरी है ।इस ख़ूबसूरत सेमेटेरी को अटलांटिक ओशन के सामने बनाने का कारण मृत्यु को ख़ूबसूरत दिखाना है ,ऐसा मुझे वहाँ पर खड़े एक गाइड ने बताया ।उसने कई फ़ेमस लोगों के नाम बताए जो यहाँ दफ़न थे और मैं उन्मे से किसी को नही जानती थी ।आप इसे भीतर से भी देख सकते है पर हमारे पास समय कम था ।भीतर जाने के लिए फिर आपको लम्बा पैदल जाना होता ।वैसे आप इसे बाहर से भी अच्छी तरह देख सकते है ।इसके पीछे ग्राउंड है जहाँ लोग पतंग उड़ाने के लिए आते है ।एक छोटा सा बुक स्टोर भी है जो हेरिकेन के बाद सिमट गया है ।
वापस स्ट्रीट पर आते हैं तो एक गली में छतरी टाँग रखी है ,जहाँ फ़ोटो लेने के लिए भीड़ लगी थी ।हम भी उसका हिस्सा बन गए ।उसके आगे ही गवर्नर का महल है ।

आज के अंतिम पड़ाव में कैसे तबाही को ख़ूबसूरती में बदला जाय ये कोई ऑर्ट आउफ़ यूनाइट से सीखे।यौको में हेरिकेन के बाद बहुत से घर तबाह हुए ।कई लोगों के रोजगार बंद हो गए ।ऐसे में यहाँ पर इस ऑर्ट ग्रूप ने लोगों के घरों को ख़ूबसूरत पेंट से सज़ा दिया ।यहाँ जाने की कोई एंट्री फ़ी नही ।आप अपनी इक्षा से लोकल लोगों के घरों से कुछ खाने पीने का ख़रीद ले ।हमने एक लोकल फ़्रूट आइसक्रीम ली थी ।
चलिए आगे अब तस्वीरों के ज़रिए यात्रा पर निकलते हैं -


Sunday, 25 November 2018

ही लाफ़ड ऐट माई सीनस इन हिज़ आर्मस आई मस्ट स्टे!!!!

पिछला सप्ताह मेरे लिए एक मेंटल ट्रॉमा जैसा रहा ।कुछ तबियत ख़राब तो कुछ मन ।मन के ख़राब होने का कारण एक बहुत प्यारी दोस्त भारत वापस लौट गई ।उसके जाने से पहले हम कुछ दोस्तों ने बाहर पार्टी रखी ।बातचीत के दौरान मुझे मालूम ही नही चला कब वेटर ने वेज और नॉनवेज स्टार्टर ला दिया ।शतेश ग़लती से चिकेन 65मेरी प्लेट में परोस दिए जीवन में पहला बाइट ग्लानि से भर गया ।वेटर आकर माफ़ीपर माफ़ी माँग रहा है ।मेरी आँखो में जाने क्यों आँसू आ गए हैं।बाथरूम की तरफ़ भागती ।शतेश और वेटर पीछे आते हैं।मैंने कोई बात नही कह कर बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया ।

कल हीं तो मैने “ऑन बॉडी एंड सोल “ हंगेरीयन फ़िल्म देखी थी ।कितनी निर्दयता से उसमें जानवर को काटते है ।मुझे अभी वो याद आ रहा था साथ ही ऊबकाई और रूलाई दोनो आ रही थी ।थोड़ी देर बाद मैं बाहर आई तो शतेश वहीं खड़े थे ।मेरे कुछ दोस्त भी थोड़ा आगे खाना छोड़ मेरा इंतज़ार कर रहे थे ।मुझे आते ही संतावना देने लगे ।ख़ैर उस रात मैं सो नही पाई ।

बात फ़िल्म की तो क्या कहूँ ,ऐसी फ़िल्म मैंने आज तक नही देखी थी ।ज़बरदस्त बात तो ये कि इस फ़िल्म की डिरेक्टर एक महिला हैं ।सच में एक महिला ही एक समय में इतनी क्रूर और अनंत प्रेमिका हो सकती है ।बहुत ही ख़ूबसूरती से शांत कविता की तरह इस फ़िल्म को बनाया गया है ।कई बार तो मैं डर जाती तो वही अगले पल उस हिरणी सी आँखो वाली नाईका की ऐक्टिंग में खो जाती ।बार -बार आप सपने के तिलस्म में खो से जातें हैं पर फ़िल्म अधूरा नही छोड़ पाते।
फ़िल्म कि कहानी कुछ यूँ है ,नायक और नाईका एक कसाईख़ाना में काम करते है ।दोनो ही अंतरमुखी व्यक्तित्व वाले होते है ।खास कर नाईका ।ऐसे में एक दिन उन्हें कॉम्पनी की मनोचिकित्सक द्वारा मालूम होता है की दोनो एक ही सपना देखते है।जी हाँ एक हीं सपना ।
मैंने आज तक एक बात को कई बार दो लोगों को कहते सुना है ,एक ही चीज़ सोचते भी देखा है पर एक ही सपना और वो भी रोज़ ।ये कभी नही सोचा था ।
हाँ तो ,दोनो सपने में हिरण होते है ।बर्फ़ीली वादी में एक तालाब के किनारे मिलते हैं।उन दोनो को भी इस बात पर यक़ीन नही होता ।इसलिए अगले दिन से वे आपना सपना एक पेपर पर लिख कर एक दूसरे को देते हैं।फिर उन्हें यक़ीन हो जाता है कि वे दोनो एक हीं सपना देखते है ।इस तरह रोज़ अपना सपना शेयर करने से उनके बीच प्रेम उपजने लगता है ।
नाईका जैसा कि बहुत ही अंतर्मुखी शर्मीली होती है वो नायक के प्रेम स्पर्श को एक बार नकार चुकी है ।नायक इसे अपनी ग़लती ,उम्र का फ़ासला और एक हाथ से अपाहिज होना  समझता है ।वो नाईका को अनदेखा करने लगता है ।नाईका इसे सह नही पाती है और आत्महत्या की कोशिश करती है ।

बाथटब में ख़ून और दर्द से भिंगी नाईका मौत का इंतज़ार कर रही है तभी टेप बजना बंद हो जाता है ।वो बेचैन सी टेप की तरफ़ बढ़ती है और फ़ोन की घंटी सुनाई देती है ।भाग कर वो फ़ोन के पास जाती है ।अब उसके चेहरे पर शांति है ।
मानो उस एक फ़ोन कॉल ने उसे जीवन दे दिया है ,जब नायक कहता है -मुझे नही मालूम कि मैंने तुम्हें इस वक़्त क्यों कॉल किया ।मुझे ऐसा लगा जैसे मैं मर रहा हूँ ।
फ़िल्म का सबसे डरावना ,मार्मिक ,रोमांटिक सीन यही है ।इस एक सीन में आप सब जी लेते हैं।
नायक और नाईका अंततः एक होते  है ।सपने का जादू ख़त्म हो चुका है ।अगली सुबह जब वे जागते है उन्हें याद हीं नही कि उन्होंने कोई सपना देखा हो ।

जाते- जाते
 फ़ॉरगिव मी हियर
आई कैनॉट स्टे
ही कट आउट माई टंग
देयर इस नथिंग टू से
लव मी ?
ओह लॉर्ड ही थ्रू मी अवे
ही लाफ़ड ऐट माई सीनस इन हिज़ आर्मस आई मस्ट स्टे


Saturday, 24 November 2018

नदी नारे ना जाओ श्याम पाइयाँ पड़ूँ!!!

आज फिर वो मसान के किनारे आई थी ।लेकिन आज का आना अलग था ।मैंने उसे कई बार देखा है ,बस देखा है।जिस  तरह उसका आज का आना अलग लग रहा था ,ठीक वैसे ही मेरा उसे आज का देखना अलग था ।जाने क्यों मैं आज उसे बार -बार देख रहा था ।एक वो है जिसे ख़बर भी नही कि कोई उसे देख रहा है । पानी को देख रही है ।कुछ गुनगुना रही है ।फिर धीरे से अपने दोनो पाँव पानी में डाल देती है ।कुछ देर अपने पाँवो को देखने के बाद गर्दन टेढ़ी कर आसमान को देखने लगती है ।मैं नदी के किनारे रेतीली पगडंडी पर आगे बढ़ने लगता हूँ ।उसे ख़बर भी नही कि कोई जा रहा है ।

देखता हूँ घर लौटते हुए कुछ पशु नदी के उसी घाट पर पानी पी रहें हैं ।जहाँ से कुछ दूर पहले वो अपने पैरों को पानी में डाल जाने किस लोक में खोई हुई ।उसने कभी मसान का पानी पिया होगा ?
मैंने तो नही पिया ।आख़िर क्यों पीयूँ मैं इसका जल ? इस पहाड़ी नदी ने जाने कितने जीवन और मृत्यु को सींचा है ।कौन जाने मेरे भाग्य में क्या हो ?
फिर देखता हूँ ,जीवन तो ये पशु मुझसे बेहतर अभी जी रहे हैं ।जाने आज मसान के पानी में क्या था जो इसे पी कर ये जल क्रीड़ा में डूब गये थे ।कहीं  ये उन क़दमों का असर तो नही ?हाँ हो सकता है ।
तो क्या मैं भी आज मसान का पानी चख लूँ ? इसी सोच विचार में मैं कभी उसे तो कभी नदी तो कभी पशुओं को देखता हूँ ।वो अब भी आँखे बंद किए गुनगुना रही है ।नदी शांत चीत बह रही है और पशु जल क्रीड़ा में लिप्त हैं।
इसी बीच मैं अचानक डर जाता हूँ ।सोचता हूँ ,कहीं मेरे जल पीने से पहले वो अपने पाँव ना पानी से निकाल ले ।मैं नदी की तरफ़ भागता हूँ और गिर पड़ता हूँ ।मेरे गिरने से धम्म की आवाज़ होती है और वो आँखे खोल देती है ।झट से अपने पैर नदी से निकाल मेरी तरफ़ बढ़ती है ।पूछती है लगी तो नही ? मैं बुदबुदाता हूँ -ओह !पैर क्यों निकाला ?क्या मेरा अमृत आज रह गया ?

उसे मेरा दर्द भरा ओह सिर्फ़ सुनाई देता है ।
मुझे उठाते हुए पूछती है - ज़्यादा लगी क्या ? देखूँ तो और मेरे पैर देखने लगती है ।
मैं उससे देखता रह जाता हूँ ।सोच में पड़ जाता हूँ  कि किसी अनजान से इतनी आत्मीयता ।शायद इसके मन का प्रेम हीं अमृत तो नही ।

मुझे कुछ चुभन सी हो रही है ।सोचता हूँ ये निश्चित हीं उस अमृत से वंचित होने की चुभन है ।
तभी वो कहती है -देखो ठेस लगने से नाख़ून निकल आया है तुम्हारा ।चलो पानी से धो लो ।ख़ून बंद हो जायेगा।
मैं बुत के समान उसके पीछे चल पड़ता हूँ ।नदी के घाट पर पहुँचता हूँ ।
आह रे मसान ! ठीक इसी जगह पर कुछ देर पहले इसके पाँव इस जल में थे।तू सच में कभी अमृत तो कभी विष है ।

जाने क्यों संकोचवश मैं अपना घायल पाँव मसान में डालता हूँ  और पूछ पड़ता हूँ -आप क्या गा रहीं थी ?
विषमय हो कर वो पूछती हैं -मैं ?
मैं कहता हूँ -हाँ आप ।
वो उठ खड़ी होती है ।नदी पार कर गाती हुई चली जा रही है नदी नारे ना जाओ श्याम पाइयाँ पड़ूँ।




Tuesday, 20 November 2018

पोर्ट रीको !!!!

अमेरिकी प्रवास के पाँच सालों में ख़ूब घूमना फिरना हुआ ।अमेरिका के लगभग सारे टॉप डेस्टिनेशन लिस्ट पूरा हो चुके थे पर घुमाई तो जारी रखनी है ।ऐसे में कुछ ऐसी जगह जो हर बार सोचते पर किसी ना किसी वजह से जा नही पाते ,वहाँ जाने का सोचा ।रह गए लिस्ट में पोर्ट रीको ,अलास्का और हवाई थे ।इस बार पोर्ट रीको की पर्ची निकली और हमेशा की तरह मेरी विश पहले पूरी हुई कारण शतेश का मन हवाई जाने को था ।

तो चलिए इस बार नैचरल ब्यूटी ,सागर के घर पोर्ट रीको आपको लेकर चलती हूँ ।सच बताऊँ तो ये जगह मुझे इतनी अच्छी लगी कि फिर से अभी जा सकती हूँ ।इतनी बड़ी त्रासदी (मारिया हरिकेन 2017) के बावजूद हर चीज़ फूल आउफ़ लाइफ़ मुझे नज़र आ रही थी ।मैं तो लगभग खोई हुई हीं रहती थी ।ख़ूब कल्पनाएँ की ,बादल ऐसा तो समुन्दर ऐसे ,पेड़- पोधो की आकृति ऐसी ,कोफ़ी का स्वाद ऐसा तो ऑर्ट ऐसे ।मुझे हर चीज़ में एक आकृति नज़र आ रही थी ।
।दूसरी सबसे बड़ी बात, ये जगह कुछ- कुछ अपने भारत सा लग रहा था ।शतेश कभी साउथ में पहुँच जा रहे थे तो कभी छपरा ,वही मैं कभी महाराष्ट्र तो कभी सिवान -बेतिया ।यहाँ के लोग भी इतने मिलनसार की क्या हीं कहा जाय ।इसपर अलग से लिखूँगी ।और और और ये अमेरिका के दूसरे शहरों से बहुत अलग था ।यहाँ हर चीज़ की अलग पहचान थी ।दुकान भी अलग -अलग ,हाँ चेन स्टोर (वॉल्मार्ट ,टार्गट ,मेसीज और भी बड़े स्टोर )थे पर उनकी बनवाट थोड़ी अलग थी ।बाक़ी पूरे अमेरिका में आपको एक ही तरह के रंग -रूप बनावट में सारे दुकान  ,घर  ,स्कूल ,सड़क दिखेंगे ।

ख़ैर ,मुझे नही लगता कि मैं एक बार में इतनी सारी बातें लिख पाऊँगी इसलिए कम से कम तीन भाग में इस यात्रा को लिखने फिर से जीने का सोचा है ।
हम्म तो पहले बता दूँ कि पोर्ट रीको “कोलंबस “की खोज है और यहाँ के बंदरगाह की वजह से इसका नाम पोर्ट रीको पड़ा ।हिन्दी में इसका मतलब समृद्ध बंदरगाह है ।हाँ तो जब कोलंबस पहली बार भारत की खोज में निकला तो वो 1493 में यहाँ पहुँचा।यहाँ के निवासी “टाईनो” को देख वो इंदीयन कह कर सम्बोधित किया ।जो बाद में इंदीयन कहलाने लगे ।फिर यहाँ की राजधानी “सेन जुआन “बनी जो कि एक संत के नाम पर रखी गई ।

कैरिबियन सागर और उत्तरी अटलांटिक सागर के बीच बसे इस आईलैंड पर क़रीब तीन सौ बीचेज है।इसके आस पास छोटे -छोटे कई आईलैंड है ।जिसमें मुख्य कुलेब्रा  ,वीकुएस ,मोना हैं ।कुलेब्रा का बीच तो विश्व के टॉप बीच की श्रेणी में भी आता है ।
हमने अपने तीसरे दिन की शुरुआत कुलेब्रा के बीच से हीं की ।यहाँ जाने के लिए आप फेरी या फिर लोकल फ़्लाइट से जा सकते हैं।हमने फेरी फ़जार्डो के एक नेवी बेस पोर्ट से ली ।पर पर्सन आने जाने का मिलकर कर टिकेट सिर्फ़ साढ़े चार डॉलर ।हम चकित थे ।यहाँ घूमना बहुत सस्ता है ।अगर फ़्लाइट से भी जाते तो सिर्फ़ 40डॉलर लगते पर हमें फ़्लाइट का पूरा मालूम बाद में हुआ ।कारण ज़्यादातर लोग फ़ेरी का हीं इस्तेमाल करते है ।फ़ेरी से हम 45मिनट में कुलेब्रा पहुँच गये ।वहाँ से टैक्सी ली फ़्लमेंको बीच के लिए ।ये भी सिर्फ़ पाँच डॉलर में आना जाना ।बीच का एंट्री टिकेट पर पर्सन 2डॉलर है ।
बीच का तट ख़ूब पेड़ पौधों से घिरा था ।मुर्ग़ियाँ बीच पर ऐसे हीं घूम रहीं थी पहली बार ऐसा देखा था ।सत्यार्थ की तो चाँदी हो गई थी ।और भी कई छोटे -मोटे जीव जंतु थे ।कुछ एक मच्छर जैसा काटता था पर मच्छर नही था ।वहाँ के एक दुकानदार ने बाताया कि मारिया के बाद अभी ये काफ़ी ठीक है ।
आज बस इतना ही ।आप तस्वीरों के ज़रिए सैर कीजिए .....

Sunday, 18 November 2018

मजनूँ और फ़्लॉरेंटीनो!!!

क्या कोई सारी उम्र किसी का इंतज़ार कर सकता है ? क्या कोई किसी से इतना प्रेम कर सकता है कि उसे अपने प्रेमी के अलावा कोई दिखता ही ना हो ? क्या ये बातें सिर्फ़ कहानियाँ  है या किसी ने इसे सच में जीया है ?
कई ऐसे सवाल आज की फ़िल्म के अंत के साथ फिर ज़िन्दा हो गए है । फ़िल्म थी इम्तियाज़ अली और साजिद अली की लैला मजनूँ।
इस फ़िल्म के साथ एक और अजीब बात मेरे साथ हो रही थी ।फ़िल्म को देखते -देखते मैं कई बार लव इन द टाइम आउफ़ कॉलरा मोड में चली जा रही थी ।कई बार लग रहा था कि मार्केज़ और इम्तियाज़ मिल कर कहानी लिख रहे थे ।हालाँकि पहली बार में मुझे लव इन द टाइम आउफ़ कॉलरा उतनी पसंद नही आई थी ।इसपर लिखा भी था ,पर इस बार फिर से पढ़ी तो कुछ अलग लगा ।पहली बार में किताब ना पसंद होने के कारण इस किताब के नायक की रूप रेखा और उसका कई बार औरतों ,विधवाओं ,प्रॉस्टिटूटऔर नाबालिग़ लड़की से सम्बंध बनाना फिर भी नायिका से झूठ कहना की वो वरजिन है ।मुझे ग़ुस्सा था झूठ क्यों बोला ? अगर इतना प्रेम था तो इतनी औरतों के पास क्यों गया ? जान ली ,एक बच्ची मर गई इस मैनियक के कारण ।

ख़ैर अब क्या सोचती हूँ वो बाद में ,अभी लैला मजनूँ के साथ चलिए ।इस फ़िल्म में भी नायक नायक जैसा नही लगता ।मैंने फ़िल्म के ट्रेलर को देख शतेश से कहा था बकवास फ़िल्म होगी ।पर पर पर फ़िल्म ओह क्या बनी है ,क्या लड़के ने काम किया है ,बहुत -बहुत सुंदर ।
नायक ख़ुद ही फ़िल्म में कहता है शक्ल अच्छी नही इसलिए जिम जाता हूँ ,कपड़े -जूते मेंटेंन करता हूँ ।आप कुछ देर के बाद ही नायक की शक्ल भूल कहानी में खो जाएँगे ।
इस फ़िल्म में भी नायक बिगड़ैल लड़का होता है पर लैला के मिलने के बाद सब बदल जाता है ।वो भी फ़्लॉरेंटीनो (किताब के नायक )की तरह नाईका पीछा करता रहता है ।नाईका के विवाह के बाद भी उसका इंतज़ार करता रहता है ।
हाँ मरखेज की किताब का नायक थोड़ा क्रूर भी कभी होता है ।उसे इंतज़ार होता है नाईका के पति के मरने की ।वही अपना मजनूँ कभी -कभी स्पिरिचूअल हो जाता है ।उसे दुःख  होता है लैला के पति के मरने पर ।

दोनो ही पात्र इंतज़ार में मानसिक बीमार जैसे हो जाते है ।एक औरतों की देह में प्रेम और शांति ढूँढता है तो दूसरा अपने आस पास लैला के होने के अहसास में डूबा रहता है ।शायद भारतीय प्रेम कहानी है तो इसे ऐसे ही दिखा सकते थे ।
जो भी हो पर दोनो ही नायक को प्रेम में मरना पसंद है ।अपनी प्रेमिका को भूलना इतना कठिन है कि एक 72 साल की उम्र में प्रेम का इंतज़ार कर रहा है और दूसरा चार साल की दूरी में अपनी प्रेमिका को हर वक़्त अपने क़रीब पाता है ।

आख़िर ऐसा क्या है इनके प्रेम में ? क्यों मृत्यु से शुरू होने वाली ये कहानियाँ जीवन तक जाती मालूम पड़ती है ।
क्यों मजनूँ लैला के इंतज़ार में बैठे अपने दोस्त से पूछता है -तुम्हें क्या लगता है कि वो आएगी ? दोस्त कहता है हाँ भाई ।
फिर मजनूँ हँसते हुए कहता कि -फिर मुझे क्यों लगता है कि वो नही आएगी ।
आशा -निराशा के बीच झूलता ये प्रेम कई बार तो लगता है कि दोनो के अहंकार से डूब गया जैसा देवदास में हुआ था ।प्रेम में इतना अहम कहाँ से आ जाता है ये भी समझना मेरी समझ से परे हो जाता है ।

ख़ैर दोनो कहानियों फ़िल्म और किताब से इस बार मुझे ये बात समझ आई कि प्रेम मन /आत्मा की तृप्ति है जहाँ देह सिर्फ़ देह रह जाती है ।कई बार होकर भी ये कई बार अधूरी रह सकती है तो कभी सिर्फ़ एक मुश्कान से पूरी मालूम होती है ।
मजनूँ सच में मजनूँ ही है कहता है -
तुम नज़र में रहो
ख़बर किसी को ना हो
आँखे बोले लब पे ख़ामोशी ।

उसे क्या इतनी भी ख़बर नही की खुदा की दी सबसे सच्ची चीज़ मनुष्य शरीर में आँखे हीं तो है ,वो क्या छुपा पायेंगी कुछ भी ।

Friday, 16 November 2018

दो गर्भ एक जीवन !!!

पिछले दिनों एक न्यूज पढ़ कर चौंक गई।सोचने लगी ऐसा भी हो सकता है क्या ? कैसे किया होगा ? कुछ भी संभव है जैसे कई विचार मन में आ जा रहे थे साथ ही पॉर्टरीको जाने की तैयारी भी चल रही थी।घूमने और  त्योहारों के बीच ये एक अनोखा न्यूज़ रह गया था।
न्यूज़ था कि टेक्सास में रहने वाली दो महिला कपल (लेस्बियन ) ने एक बच्चे को जन्म दिया। अब आप सोचेंगे  इसमें क्या अचरज की बात ? आई वी फ का जमाना है ,किसी भी स्पर्म डोनर से स्पर्म लेकर फर्टिलाइज़ कराया जा सकता है। हॉस्पिटल में बाक़ायदा ये सुबिधा मौजूद है।

अचरज ये रहा कि  एक बच्चा दो माँ के गर्भ में पला। ये अब तक का पहला और एकलौता प्रयोग था।
हुआ यूँ दोनों लड़कियाँ  काफी समय से रिलेशनशीप में थी। शादी भी कर ली थी। अब माँ बनने की ईक्षा थी। तय किया की आई वी फ की मदद से माँ बना जाय। पूरी तैयारी हो गई भ्रूण भी  तैयार हो गया। फैसला हुआ की बड़ी लड़की बच्चे को जन्म देगी। दोनों लड़कियों में कुछ ऐज गैप भी था। बच्चा बड़ी लड़की के गर्भ में पलने लगा।फिर पहले सेमेस्टर की परेशानियाँ उसे शुरू होने लगी। ऐसे में परेशान हो गर्भवती लड़की कहने लगी की वो बच्चा नहीं रखना चाहती।

अब ऐसे में  दोनों लड़कियां डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने एक रास्ता निकला की भ्रूण को गर्भवती लड़की से निकाल ,दूसरी लड़की में ट्रांसफर कर दिया जाय अगर दूसरी लड़की इसे पालना चाहती हो तो। दूसरी राजी हो गई और इस तरह एक बच्चा दो माँओं के गर्भ से होता इस दुनिया में आया।

कितना अद्भुत है ना। मैं तो सोच रही थी कि अगर ये बच्चा बिहार में हुआ रहता तो कितना सुकून होता इसे। जब भी किसी से लड़ाई होती और वो लाठी लिए कहता कि एक माई के औलाद बाड़ा त बाहर आव।
और बच्चा हँसते हुए कहता एक माँई के औलाद नईखी ,ना आएम का करबअ।

Tuesday, 13 November 2018

बाल दिवस 2018!!!!

बाल दिवस की बात हो और बच्चे ना हो ऐसा हो सकता है भला ?
तो चलिए इस बार मिलाते है मेरे गाँव के कुछ बच्चों से ।
वैसे तो ये बच्चे दिन भर मेरे दुआर पर खेलते रहते है पर इनका मेरे घर मे गृह प्रवेश मेरे और भाई के रहने पर ही होता है ।भाई ने कई बार इनको पढ़ाने की भी कोशिश की है ।
बस इनका मेरे घर की लगभग मालकीन बाबिया से नही बनता।करण दरवाज़े पर लगे फ़ुल खेल में तोड़ देना ,बाहर का नल खोल देना या फिर गंदे पैर घर में घुस जाना।

मेरे रहते ये कभी सत्यार्थ के साथ खेलने आते या फिर मुझे डाँस या गीत सुनाने।कभी -कभी ये टीवी देखने भी आतें।बाबिया भुनभुना  कर टीवी बंद कर देती ,इन्हें भगाती तबतक मैं आ जाती।ऐसे में इनकी मुझसे अच्छी दोस्ती हो गई थी ।

इसी बीच मेरा जन्मदिन आया।बाबिया ने घर को बेलून से सजाया था ।भाई ने बेतिया से केक भेजा था ।बाबिया मुझे अगले कमरे से निकाल सजावट कर रही थी।ऐसे में मैं दरवाज़े की सीढ़ी पर बैठ बाहर खेलते बच्चों को देखने लगी।

रुखानी आकर मेरे पास बैठ गई।मैंने उससे पुछा ,रुखानी क्या तुमने कभी केक काटा है ? वो शर्माते हुए बोली ना ।
फिर मैंने उन सब खेलते बच्चों को बुलाया ।सबसे उनका जन्मदिन पुछा पर किसी को ठीक से उनका जन्मदिन नही मालूम था ।थे भी तो छोटे -छोटे ।कोई बोल रहा था फागुन मे तो कोई जेठ ,अगहन ।ऐसे में मैंने सोचा क्यों ना आज इन बच्चों से ही केक कटवाया जाय ।

अब सबका नाम लेकर तो बडेय सोंग गाने मे दिक़्क़त होती तो रुखानी जो सबसे बड़ी थी उसका ही नाम लिया मैंने।मेरी तो हँस -हँस के हालत ख़राब हो रही थी उनको केक पर टूटता देख कर ।
बता नही सकती बच्चे कितने ख़ुश थे और उनसे ज़्यादा मैं ।भगवान इनसब बच्चों के साथ विश्व के तमाम बच्चों को प्यार दे दूलार दे ।ये यूँ ही हँसते मुस्कुराते रहें ।

उदासी!!!

कभी -कभी उदासी बिना वजह आपको उदास कर जाती है।जैसा की आज मुझे कर रही है।आज फिर मेरे एक दोस्त के माता -पिता यहॉं आए और मेरी जलन मेरी उदासी का कारण बन रही है।जलन का अब क्या कर सकतें है। नाम तपस्या होने से धीर नहीं आ जाता।

कैसी विडंबना है हम ग्रामीण परिवेश के लोगों की ,खास कर बिहार से आने वालों युवाओं की ,जो हमारे  माता -पिता हमारे लिए ऊँचा  आसमान देखते है और खुद धरती का साथ नहीं छोड़ते।
बचपन से हमें डॉक्टर, इंजीनियर ,सरकारी अफसर बनाने का ख़्वाब देखते है ।अपने उन्ही ख़्वाबों  के बीज हमारे अंदर बोने लगते है ।इस ख़्वाब में हमने उन्हें कई बार जलते देखा है।उनकी वो जलन हमें आज तक जलाती है ।
ओह ! मेरी वजह से माँ ने तकलीफ सही ।पापा ने अपना सारा जीवन झोक दिया।
फिर उनके जलन को राहत कैसे मिले ,इसमें हम जलने लगे।उनके सपने पूरी करने लगे।
ना उन्हें मालूम था ना हमें की इन सपनो की कीमत क्या होगी ? उनके  सपने ने वो सब कुछ दिया जो वो मेरे लिए चाहते थे  ,पर कीमत क्या थी ?
दुरी  विछोह …

कई बार कुछ ज्ञानी दोस्त ज्ञान देतें है ,अरे भाई कोई बिज़नेस कर लो ,।मुर्गीफार्म खोल लो , खेती करो ।रेस्टॉरेंट चलाने के बारे में सोचो ।ब्यूटी पार्लर ,कोचिंग सेंटर फ़लाना ढामकान नए स्टारअप अपने शहर में रह कर कर सकते हो ।पैसा कमा सकते हो ।माँ -बाप भी साथ रह सकतें है ,तुम भी ख़ुश माँ -बाप भी ।
भाक साला यहाँ मेरे माँ -बाप ने इतना त्याग मुर्गीफारम के लिए किया है क्या ? ज्ञानी बनते हो कि खेती में काफी संभावना है ।मेरे माँ -बाप ने कभी खेत में ठीक से काम करवाया मुझसे ? क्या अब वो देख पायेंगे मुझे खेतों में झुलसते ?और हमसे होगा क्या ?
 गिन कर तो हम तीन बार भवें बनवाए ,पार्लर क्या ख़ाक खोलेंगे ?
और रही बात कोचिंग की तो कभी बिहार आओ ,आँखे फट जायेंगी तुम्हारी ।ज्ञान देते हो ।

हमें भी ज्ञान आता है पर …
सब छोड़ कर वापस वहां तक जाना उफ्फ्फ ,फिर से अपने बच्चे को इस सपने के जाल में झोकना है
हम जहाँ से है वहॉं इंजीनियर तो बहुत हैं पर ,ढंग की कोई कम्पनी नहीं ।अब ऐसे में वो जो सपने कभी माँ बाप से होते हुए मेरे हो गए उन्हें छोड़ कर कहाँ जाऊँ ?

लोग कहते है कि हमारी सवेंदना मर रही है ।हम निर्मोही हो रहे है ।
पर ,क्या सिर्फ हम ही सवेंदनहीन हो रहे है ?
क्या आप (माँ -बाप ,सगे सम्बंधी )मोह में हैं ?

हाँ आप तो हैं मोह में ,अपनी धरती से ,अपने गांव से ,हमारे घर से ।
हमें उड़ने का ख्वाब दिखा कर ,हमें निर्मोही बना कर आप कहते हैं कि ,सिर्फ हमारी संवेदनाये मर रही है ।
क्या आप कभी ये नहीं सोचते कि जो बीज हमने अपने बच्चे में बोया उसको पेड़ बनाने में ,उसपर फल लाने में कितने उसके अपने दूर हो गए ,कितने उसके सपने मर गए ।
क्या आपको नहीं लगता कभी हमको भी अपना कम्फर्ट ज़ोन छोड़ कर उड़ना चाहिए ।अपने बच्चों के पास होना चाहिए ।

संवेदनाए दोनों की मर रही है इंतज़ार में ……

संजीव अभ्यंकर जी गा रहें हैं
उधो मन ना भए दस बीस
दस बीस ,दस बीस ।
इधर मेरा एकलौता मन भी सुख रोग से पीड़ित है।आँख से पानी अभ्यंकर जी के आवाज़ के जादू के कारण है या रोग के ये तो मालूम नही चल पा रहा पर नाक का पानी मन का रोग ही है।
काश सच में दस बीस मन होते ,एक बिगड़ा तो दूसरे का सहारा होता ।ऐसे में छठ पूजा का आना और पीड़ा दे रहा है।
इस बार भी जैसे -तैसे मालूम हुआ कि शिकागो मे कुछ लोग छठ कर रहें है।शाम की अरग मे जाने का सोचा था पर एक तो मन ऐसा उसपर कल एक्सट्रीम वेदर का अलर्ट आ गया।यानी ठंड ज़्यादा होगी ।ऐसे में इस बार शायद छठी मईया की इक्षा नही हमें बुलाने की।

मन बहलाने के लिए छठ गीतों की शुरुआत हुई पर यहाँ तो आलम ये कि हम दम्पती दुःख में डूबते जा रहें थे ।ऐसे में गाना बदल कर चू -चू टीवी लगा दिया गया ,कम से कम सत्यार्थ तो ख़ुश रहे।
जाने क्यों ये छठ सारे व्रत त्योहार के बराबर अकेली याद लेकर आती है ।

ख़ैर पिछले साल की तरह इस बार भी सत्यार्थ के साथ वीडीयो बनाने की कोशिश की है ।छठ के गीतों में आज का गीत भी मुझे ख़ूब प्रिय है।माँ अक्सर गाया करती थी /है ।
इसी के साथ आप सबको छठ पूजा की ख़ूब -ख़ूब शुभकामनाएँ ।छठी मईया ,सूर्य देव हम सब पर कृपा बनाए रखें।
लक्ष्मी किसे नहीं भाती ? तभी तो इनके आगमन की तैयारी में पूरा परिवार महीनों से जुटा रहता है ।जहाँ महिलायें घर की सफाई में लगी रहती है वही पुरुष और बच्चे अपने आस पास की गंदगी को साफ़  करने में लगे रहते हैं ।

मुझे याद है हम लोग सरकारी आवास में रहते थे फिर भी लगभग हर साल माँ खुद के पैसों से घर की रंगाई करवाती ।कई    बार घर साफ़ होता तो बस बहार की चार दीवारी की रंगाई होती। इसके लिए हम एक ही आदमी को बुलाते बाकी हम भाई बहन ही कर लेते थे। बड़ा अच्छा लगता जब रामराज मिट्टी का घोल दीवारों पर चढ़ता। दिवार के साथ लगभग हम भी रंग गए होते पर इस समय सब माफ़ था। कई बार रामराज मिट्टी और चुना का अंदाजा नहीं लगता ,कम पड़ जाता तो हम भाग कर बलराम चाचा की दूकान पर जातें। दौड़ कर चुना ,मिट्टी ले आतें।

फिर तो देखा -देखी और माँ के प्रोत्साहन से कॉलोनी के और लोग भी अपनी दिवार बहार से चमका लेते। सबके घर एक जैसे हो जातें।इसका कारन एक तो रामराज मिट्टी दूसरा पोचरा का कुचा। कॉलोनी में जिसके घर का पोचरा हो गया होता वो बचा हुआ कुचा बगल वाले को दे देता। इससे कभी कभार कुचा खरीदने का दाम पटाखों में लग जाता।

बलराम चाचा की दुकान कई मामलो में प्रिय थी। वहाँ रंगो के अलावा रस्सी ,लट्टू ,और छोटे -छोटे जानवर जैसे खरगोश ,चूहा ,कबूतर आदि भी होते। मैं जाती थी यहाँ झाड़ू ,रस्सी या रंगो के लिए पर कभी टाइम से आती नहीं थी। रुक कर कभी खरगोश तो कभी चूहा देखने लगती।

उम्मीद है आपके घर की भी सफाई हो गई होगी। सफाई यंत्र झाड़ू का लक्ष्मी पूजा के दिन बड़ा महत्व है। लोग इस दिन इसे खरीदते भी है लक्ष्मी मान कर। कई जगह तो इसकी पूजा भी की जाती है।
सफाई हो गई है तो अब देर किस बात की ,दिए ,मुंमबत्तियों की दुकान सजी है। जाइये खरीदिये और अपने घर को रौशन कर दीजिये।
आपने आस -पास का अँधेरा मिटा कर प्रेम ,सद्भाव की रौशनी कीजिये। मिठाइयाँ  खाइए ,पटाके  छोड़िये पर साथ ही प्रदुषण का भी ख्याल रखिये। स्वस्थ  बसंतपुर तो स्वस्थ हम सब लोग।

आप सभी को दीपावली की बहुत -बहुत शुभकामनायें। माँ लक्ष्मी की कृपा आप सबके के साथ मुझ पर भी बनी  रहे। 

Sunday, 4 November 2018

मध्यस्थ (मुनि क्षमसागर जी ,फ़्रेंज काफ़्का )!!!

मैं परिवर्तन में जीता हूँ
और
मौत से बेहद डरता हूँ
यह सोचकर
कि शाश्वत में जीना-मरना
दोनो मुश्किल है।

खिड़की के पीछे से कोई कह रहा था ,खिड़की के इस पार इसपर  झुकी लता फूल बन मुस्कुराई और खिड़की के भीतर झाँक कर बोली ,
मुझे मौत में जीवन के फूल चुनना है
अभी मुरझाना टूटकर गिरना
और
अभी खिल जाना है
कल यहाँ आया था कौन ,कितना रहा
इससे क्या ?
मेरे जाने के बाद लोग आएँ
अर्थी सम्भाले
कंधा बदले
इससे पहले मुझे ख़ुद संभलना है
अभी तो मुझे संभल -संभल कर रोज -रोज जीना और रोज -रोज मरना है ।

खिड़की के भीतर से आई आवाज़ और खिड़की से लिपटी लता की बात सुन रही खंडहर दीवार में चुनी जर्जर खिड़की हवा से खड़खड़ा उठी ।उसकी खड़खड़ाहट से भीतर और बाहर के दोनो जीव उससे लिपट जाते है ।उन्हें डर है कि कहीं ये उनके मिलन का आख़िरी द्वार टूट ना जाय ।

खिड़की दोनो तरफ़ के भाव को बरसों से जानती है ।अपने कबजो के हिलते कील के सहारे चो-चर करती हुई कहती है
सजीव जीवों का काया पलट हो रहा है ।तुम्हें मालूम नही क्या

मरने की चाह हीं दरअसल समझ की शुरुआत का पहला संकेत है ।

तुम दोनो मेरे सहारे एक दूसरे को जाने कब से जीवन दे रहे हो फिर भी मौत का इंतज़ार ।किसकी मौत का इंतज़ार है तुम्हें ?
इस दीवार के एक भाग से जकड़ी मैं कब तक मध्यस्थ रहूँगी ?क्या मेरे बैग़ैर तुम नही मिल सकते ? कहीं मेरे  द्वारा बनी ये दूरी हीं तुम दोनो जीवन तो नही मान बैठे ?
तुम सारे कीड़े -मकोड़े ,संबंधो के बीच
पहले एक दीवार ख़ुद खड़ी करते हो
फिर उसमें एक खिड़की लगाते हो
पर ज़िन्दगी भर क़रीब रहकर भी
खुल कर कहाँ मिल पाते हो ।

खिड़की के भीतर से फिर आवाज़ आई ,हमारे चाहने से क्या होता है ?ब्रह्मांड आपनी तरफ़ सबको खींच रहा है काठ की  खिड़की ।हम चाहे या ना चाहे
जीवन में अलग रहते हुए भी हर जीव कहीं ना कही किसी से जुड़ना चाहता है
किसी भी समय ,परिस्थि ,मौसम ,अवस्था में ,ज़िम्मेदारियों के बावजूद हर आदमी कम से कम एक
स्नेहपूर्ण बाँहों की ओर खुलने वाली
खड़की चाहता है ।

खिड़की जीव के बात से ख़ुद पर इठला रही है ।इतनी ख़ुश कि अपने पल्लो को मानो पंख समझ उड़ जाना चाह रही है ।
एक अकेला कील जो अब तक खिड़की का प्राण बना था उसने खिड़की को मुक्त कर दिया ।हमेशा हमेशा के लिए ।
चर्रर्रर्र की आवाज़ के साथ जुदा होती खिड़की बोली ,
हे तड़पते जीवों मेरे अंदर और बाहर के सुनो ,मैं
गंतव्य यात्रा पर निकल चूकी हूँ।
बार -बार तुम पूछोगे कि कितना चलोगे ?कहाँ तक जाना है
मैं मुस्कुरा कर आगे बढ़ जाऊँगी
किससे कहूँ कि कहीं तो नही जाना
मुझे इस बार अपने तक आना है ।

Tuesday, 23 October 2018

मक्किनक आईलैंड !!!

अमेरिका जैसे विकसित देश मे एक ऐसी भी जगह है जहाँ सब कुछ होने के बावजूद कोई मोटर गाड़ी नही चलती ।आज भी यहाँ घोड़े गाड़ी ,हाथ गाड़ी और साईकिल हीं चलती है ।
क्या कहा आपने ,सड़क ही नही होगी तो कैसे चलेगी गाड़ी ?
जी नही ऐसा बिल्कुल नही है ।अमेरिका की लगभग हर एक गली -कुचें सड़कों से पटी पड़ी है ।यहीं तो वजह है कि यहाँ धुल -मिट्टी नही दिखतीं और मेरा सत्यार्थ इन पर गिर -गिर कर नए -नए घाव लेता रहता है ।

इस जगह पर तो बक़ायदा हाईवे भी है ।हाईवे का नाम एम-185 है ।
जगह इतनी साफ़ और सुंदर कि यहाँ की कुल आबादी से ज़्यादा पर्यटक यहाँ आते है ।
इस ख़ूबसूरत जगह का नाम है -मक्किनक आइलैंड ।मिसिगन राज्य का एक हिस्सा जो लेक हूरोंन का हिस्सा है ।मिसिगन तो आपने आप मे हीं प्राकृतिक ख़ूबसूरती से भरा हुआ है ।यहाँ के लेक मानो समुद्र हो ।पानी इतना साफ़ कि कई ख़ूबसूरत समुन्दर इसके आगे पानी भरे।

ऐसे ही राज्य के मक्किनक आईलैंड तक जाने के लिए आपको फेरी की मदद लेनी होती है ।मैकनउ सिटी से आपको फेरी लेनी होगी जो कि  लगभग 20-25 मिनट मे इस आईलैंड पर उतार देते है ।जैसा कि मैंने पहले बताया यहाँ कोई पेट्रोल /डिजल वाली गाड़ी नही चलती तो आप यहाँ पैदल ,साईकिल (रेंट करके ) घोड़ा गाड़ी से घुम सकतें हैं ।पुरा आईलैंड हीं 8 माईल मे फैला है तो आसानी से एक दिन मे घुम सकतें है ।घुमने की भी कुछ ही जगहें है ।बाक़ी आप किसी भी कोने मे रुक कर घंटो बिता सकतें हैं ।इसे निहार सकतें है ।

अच्छा तो अब बता देती हुँ कि यहाँ गाड़ियाँ क्यों नही चलती ? प्रदूषण और लोगों के स्वस्थ को देखते हुए यहाँ 1890 से हीं गाड़ियाँ बैन हैं ।
हमने भी यहाँ उतर कर साईकिल रेंट किया ।अभी आधे से भी कम सफ़र तय किया था कि बारिश शुरू हो गई ।मैंने शतेश को कहा चलते रहते है इतनी मे ज़्यादा नही भीगेंगे और ऐसे ख़ूबसूरत जगह पर बारिश मे साईकिल चलाने का मज़ा अलग ।शायद बारिश ने मेरी बात सुन ली और दिल पर ले लिया ।बोला अब तो तुम्हें भीगो के ही रहूँगा ।थोड़ी देर में वो मूसलाधार बारिश की हमलोग साईकिल छोड़ ,सत्यार्थ को ले एक पेड़ की तरफ़ भागे ।अब पेड़ से ये बारिश अड़े?
सामने एक घर मे पार्टी चल रही थी ।उसका पैटियो बाहर ख़ाली था ।हम सोच रहे थे कि जाए या नही तभी दो लड़के लगभग अपनी साईकिल फेंकते हुए उधर भागे ।हम भी उनके पीछे पेटियों के अंदर दाख़िल हो गए ।किसी ने कुछ नही कहा ।करण उधर वो एकलौता घर था कोई और कहाँ रुकता ?

यहाँ देखने को अर्क रौक ,फ़ोर्ट मकनिक ,देविल किचेंन ,मकनिक ब्रिज और ख़ूबसूरत घरों के साथ लेक का किनारा है ।
अच्छा यहाँ आने से पहले एक दिन हमने मकनिक सिटी मे बिताया ।यहाँ होटेल के मामले मे हमने आज तक के सफ़र मे सबसे बड़ा धोखा खाया था ।वाटरपार्क वाला होटेल बूक किया था और वाटर पार्क ही बंद था ।कूछ काम चल रहा था ।साथ ही होटेल के कई हिस्से मे काम चलने की वजह से एकदम कोने का रूम दे दिया था ।इसकी कहनी कभी और पर ये शहर भी प्यारा लगा मुझे ।यहाँ रात को हमलोग तारें देखने गए थे ।एक पल को हमें हीं तारें दिख गए पर मज़ा आया ।यहाँ का एक दुकान बड़ा मज़ेदार लगा ।
साथ ही अगर आप यहाँ या मक्किनक आईलैंड आए तो यहाँ के हौट फ़ज खाना ना भुले ।


Monday, 22 October 2018

माता का न्याय !

नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। और इसी के साथ माता रानी के आगमन का उत्साह मन को उल्लास से भर रहा है। ऐसे में कलकत्ता का दुर्गा पूजा और हाल में वहाँ घटी एक वीभत्स घटना से मुझे दो क़िस्से याद आ रहें हैं। दोनों ही क़िस्से लगभग एक समान है बस देश काल अलग रहा है। 

एक तो ग्रीक कथा है और दूसरी अपने भारत के पश्चिमी चंपारण की कहानी है। पश्चिमी चंपारण, बिहार का एक ज़िला है। 
ग्रीक कथा कुछ इस प्रकार है, 
मेड्युसा नाम की एक लड़की थी। वह बहुत रूपवान हुआ करती थी।वह ग्रीक देवी, “एथेना” के मंदिर में पुजारन थी और वहीं रहती थी।मंदिर में आने वाले कई लोग तो उसे ही देखने आते थें। उसकी सुंदरता का बखान करते ना थकते। उसके बालों को वे एथेना देवी के बालों से भी सुंदर कहते। मेडूसा के रूप की ख्याति पोसाइडन तक भी पहुंची। जो की इस कथा के अनुसार एथेना देवी का प्रेमी और समुद्र का देवता था। उसने जब मेड्युसा को देखा तो उसपर मोहित हो उठा। मेड्युसा की पोसाइडन में कोई रूचि नहीं थी। वह कुंवारी ही रहकर एथेना के मंदिर की पुजारन बनी रहना चाहती थी। एक दिन पोसाइडन शाम को मौका पा मेड्युसा की तरफ़ बढ़ा। ऐसे में बचने के लिए मेड्युसा मंदिर में भागी। उसने मदद के लिए एथेना देवी से गुहार लगाई। लेकिन देवी एथेना ने उसकी कोई मदद नही की। बलात्कार के बाद जब पोसाइडन जा चुका था तो देवी एथेना वहां आई। मंदिर में दुष्कर्म की सजा के रूप में वे बिना जाने मेड्युसा को ही शाप दे डाली की आजीवन वह अकेली रहेगी। उसके जिस सुंदर बालों पर लोग रीझते हैं वह भी साँप बन जायेंगे। 
पर जैसे ही देवी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने उसे यह वरदान दिया कि जो भी उसकी आँखों में ग़लत दृष्टि से देखेगा वह पत्थर का हो जायेगा। 

अब बात करती हूँ, पश्चिमी चंपारण के क़िस्से की, 
इस ज़िले के सहोदरा नामक स्थान पर एक ग़रीब लड़की रहती थी। वह बहुत ही सुंदर थी। गाँव में उसकी सुंदरता के क़िस्से कहे जाते। एक दिन वह बकरी चराने निकली तो गाँव की सीमा के पार कुछ लड़के उसे घेर लिए। उसने उनसे काफ़ी विनती की लेकिन वे मानने को तैयार ना थे। ऐसे में लड़की, माँ दुर्गा से प्रार्थना करने लगी कि हे माँ! मेरी रक्षा करें। माँ दुर्गा ने उसकी रक्षा स्वरुप उसे उसी क्षण पत्थर का बना दिया। और उसे पूजित होने का वरदान दिया। तब से आज तक उस लड़की की पूजा माता सहोदरा के रूप में होती हैं। इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि यहाँ पुजारन भी महिलाएँ ही होती हैं। यानि यहाँ की एक ख़ास समुदाय, “थारु” की ही महिलाएँ ही पुजारिन चुनी जाती हैं।

दोंनो ही क़िस्सों को याद कर सोचती हूँ कि देवी ने पीड़िता को ही सजा दी… क्या देवी माँ उस समय महिषासुर जैसा न्याय नहीं कर सकतीं थीं ? कई सवालों के जबाब सुलझे-अनसुलझे यूँ ही भटकते रहते हैं। फिर भी अगर आप बिहार जाए, चंपारण जाने का मौक़ा मिले तो सहोदरा माई के दर्शन को ज़रूर जाएँ। 


Wednesday, 25 July 2018

सेंट लूई !!!

इंडीऐनापोलिस से सेंट लूई की दूरी बाई ड्राइव कुछ साढ़े तीन घंटे की है ।रास्ते में अगर एक -दो बार रुके तो ये समय चार घंटे से पार हो जाता है ।रुकना तो हो गया ,चले अब सेंट लूई की तरफ़ ।

रास्ते में ख़ूब बड़े -बड़े खेत मिलेंगे ।छोटे -छोटे कल कारख़ाने भी ।तो कुछ जानवरों के तबेले ।फ़सल के मामले में अमेरिका मक्के के लिए जाना जाता है और मक्के की सबसे बड़ी मंडी सेंट लूई में ही है ।
इसके अलावा गेट्वे आर्च ,सेंट लूई चिड़ियाघर ,साइयन्स सेंटर ,बसिलिका चर्च भी काफ़ी प्रसिद्ध है ।छोटे -छोटे पार्क तो भरे पड़े है ।

मिसोरी स्टेट में सेंट लूई मिस्सिसिपी नदी के किनारे बसा हुआ है ।ये शहर प्रवासियों द्वारा ही बसा है ।कुछ लोगों से सुना था ,शाम को ये शहर उतना सुरक्षित नही पर मुझे ऐसा कुछ नही लगा ।हो सकता हो कुछ एक साल पहले एक -आध घटना हुई हो ।
घटना से याद आया ,यहाँ एक काले लड़के को मार दिया गया था।काफ़ी बवाल हुआ था पूरे अमेरिका में इस घटना को लेकर ।
डाउन टाउन में पार्क से लेकर कसिनो तक है ।सत्यार्थ की वजह से हम कसिनो नही जा पाए ।जुआघर में बच्चे ले जाने की अनुमति नही है

गेटवेअर्क  की बात करे तो 630 फीट ऊँचा अर्क अफ़िल टॉवर से कम नही ।क्वीन फ़िल्म में देखा था ना हर जगह से दिखता था ।इसका आर्च का भी यहीं हाल है ,कही से भी दिख जाता है ।कही से मतलब सेंट लूई शहर से है ।

इसके सामने पुराने कॉर्ट के साथ एक पब्लिक लैब्रेरी है ।वही पीछे की तरफ़ अमेरिका की सबसे बड़ी मिसिसिपी रिवर ।नदी के किनारे बैठने को बेंच ,वॉकिंग ट्रेल के साथ कुछ तैरते रेस्टरेंट शाम को और ख़ूबसूरत दिखते हैं ।

प्रसिद्ध चिड़ियाघर फ़ॉरेस्ट पार्क में है ।फ़ॉरेस्ट पार्क न्यू यॉर्क के सेंट्रल पार्क से लगभग दुगुना होगा ।काफ़ी कुछ है यहाँ ।हिस्ट्री म्यूज़ीयम ,साइयन्स सेंटर ,आर्ट म्यूज़ीयम ,कई छोटे इवेंट पार्क ।
 चिड़ियाघर अमेरिका के चंद बड़े फ़्री चिड़ियाघर में से एक है,पर कुछ चीज़ें फ़्री नही है ।अगर आप पास ले लेते हैं तो घूमना आसान हो जाता है ।साथ ही जो चीज़ें फ़्री नही वो भी देख लेते है ।एक छोटी ट्रेन सारे पोईट तक पहुँचा देती है ।उतरिए देखिए फिर ट्रेन पकड़ लीजिए ।

सत्यार्थ को अच्छा लगे इसलिए हम म्यूज़ीयम सब छोड़ चिड़ियाघर गए और गरमी में पटपटा के रह गए ।पति -पत्नी दोनो सिर दर्द से बेहाल ।सलाह तो ये है कि यहाँ आप जुलाई अंतिम के बाद ही जाए ।

खाने -पीने के हर तरह के ऑप्शन है ।भारतीय भोजन की भी कई सारी दुकान है पर ,डाउंटाउन में पार्किंग की बहुत मारा -मारी है ।
अच्छा हुआ यूँ हम दो दिन के लिए गए थे ।पहली शाम को हीं सिरदर्द हो गया ।हमने खाना टू गो “रसोई “ से ऑर्डर किया पर मन ना ठीक होने से होटेल आ गए ।बाद में पिज़्ज़ा ऑर्डर कर होटेल तक मँगवाया ।अगले दिन सोचा ,चलो आज रसोई में खाते है ।पहुँचे वहाँ तो पार्किंग नही ।मुश्किल से दूर एक पर्किंग मिली ।घाम में पसीने से भिंगे वहाँ पहुँचे तो वहाँ कोई पार्टी चल रही थी ,जिससे बाहरी लोग को खाना नही मिल सकता था ।भगवान भी ना बदला लेकर हीं रहता है ।
वहाँ से झल्लाते हुए हम गोकुल रेस्टरेंट पहुँचे ।गायत्री मंत्र के बीच भोजन सम्पन्न  हुआ।
वहाँ से वापस अपने आशियाना की तरफ़ मुड़ चले ।

Friday, 13 July 2018

येंगूलर गायरस !!!!

एक सखी की सलाह पर “वह भी कोई देश है महाराज “किताब मँगवाई ।पढ़ना शुरू किया तो बस पढ़ती गई ।सच में इस किताब की लिखाई बहुत ही रोचक है ।
किताब में बहुत कुछ मज़ेदार है ,जानने योग्य है ।
 एक पक्षी हॉर्नबिल के बारे में भी ज़िक्र है ।लेखक लिखते है हॉर्नबिल जोड़ा नही बदलते ,वफ़ादार प्रेमी माने जाते है ।रूप ही इनका दुश्मन है ।उसके पंखो से नागा अपने मुकुट सजाते है ।साथ ही धनेश यानी इस पक्षी का मांस और तेल कामशक्तिवर्धक माना जाता है ।नीम हकीम ,घूमंतू वैध प्रेमविहीन अंधविश्वासियों को फाँसनेके लिए इस पक्षी का चोंच प्रयोग करतें हैं।

इसे लाइन को पढ़ते समय मुझे अपने विज्ञान की एक शिक्षिका याद आ गई ।एक बार पढ़ाई के क्रम में उन्होंने बताया था ,रेडबैक एक मकड़ी है जो अपने पार्टनर को मेटिंग के बाद खा जाती है ।ये सुबह की प्रार्थना वाला मेटिंग नही ।जानवर भी भला प्रार्थना करतें होंगे ?
हेय, सच में बड़ी मज़बूत हृदय वाली मकड़ी है ये तो यह कह कर मैं और मेरी दोस्त ख़ूब हँसे थे ।

हृदय से एक और बात याद आई उन्होंने ये भी बताया था कि ,केंचुए को पाँच दिल और ऑक्टोपस को तीन ।आप अंदाज़ा लगा ही सकतें है इसपर मैंने और मेरी दोस्त ने क्या सोचा होगा ।
मुझे केचुआ तो बनाना नही था ।ऐसे में प्रशंसा को ही पाँच दिल की मालकीन का ख़िताब दे दिया गया ।पाँच दिल के ख़ातिर उसे केचुआ बनने से भी हर्ज ना था ।हम हँस -हँस के पागल हो रहे थे कि ये बेचारे जीव पाँच -पाँच दिल ले कर करते क्या होंगे ? हमसे एक ही नही संभलता ।

वैसे एक बात तो है ख़ाली दिल ही नही प्रेम और वफ़ादारी में भी कुछ जीव श्याद हम मनुष्यों से आगे है ।ऐसे ही नही एक प्रेमी सारस जोड़े रामायण के आरम्भ का कारण बने ।
प्रेम में डूबे जोड़े को एक शिकारी मार देता है ।महर्षि वाल्मीकि इस घटना को देख कर दुःख से बोल पड़ते है

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:।
यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥

कहते है हंस अपने पार्टनर के प्रति सबसे ज़्यादा वफ़ादार होते हैं।ये अपने पार्टनर की हर तरह से मदद करते है ।मसलन घर बनाने ,भोजन लाने ,बच्चों को पालने आदि ।हॉर्नबिल  की तरह ।पर अगर किसी कारण वश इनका पार्टनर नही रहे तो ये वियोग में प्राण दे देते है ।तभी तो शायद हिंदी फ़िल्मों के गाने इनकी उपमा से लिपटे पड़े है ।

यही नही एक और बात बताऊँ ये जो भेड़िया है ना भेड़िया वो भले ही ख़तरनाक हो पर अपने साथी और परिवार के लिए काफ़ी ईमानदार होते है ।अपने पार्टनर के मौत के बाद दूसरा पार्टनर भी नही ढूँढते ।
ये तभी ट्वाइलायट में इनको रखा था क्या ? भगवान जाने पर अब से कोई आपको भेड़िया कहे तो यही सोच के मुस्का दीजिएगा सफल प्रेमी ।

अच्छा अगर आप पेंगविन वाली डॉक्युमेंट्री देखेंगे तो उसमें दिखता है कि ये अपने साथी से कितना प्यार करतें है ।कुछ तो दूर होने पर भी अपने साथी से मिलने का इंतज़ार करते है हाय ! इनको भी विरह होता है ।
हे गंगा माईया तोहे साफ़ हम रखबो
साइयाँ से कर द मिलनवा हो राम ।

मुझे तो लगता है इन जीवों का येंगूलर गायरस वाला हिस्सा हमसे ज़्यादा विकसित है ।वरना जानवर क्या जाने प्रेम भला जब हम विकसित जीव नही समझ पाते ।

Monday, 2 July 2018

अष्टयाम !!!!

अष्टयाम :-

घर जब आई थी तो घूमने फिरने के साथ पूजा -पाठ भी होता रहा ।माँ कि इक्षा थी कि मेरे आने के बाद अष्टयाम करवाए ।
अष्टयाम का वैसे तो मतलब आठ पहर होता है ।यानि कि चौबीस घंटे में तीन -तीन घंटे का एक पहर ।
पर साहित्य के दृष्टिकोण से यह एक कविता का रूप है ।जैसे कविता के ही द्वारा किसी व्यक्ति विशेष ,देवगण का गुणगान करना ।

धार्मिक दृष्टिकोण से अष्टयाम दिन के किसी भी शुभ समय से प्रारम्भ कर ,अगले दिन उसी समय तक भजन -कीर्तन ,पूजा पाठ आदि के द्वारा सम्पन्न होता है ।वैसे तो अमूमन लोग अष्टयाम चौबीस घंटे का हीं करवाते है पर ,कहीं -कही लोग नव दिन का भी भजन -कीर्तन रखते है ।

चौबीस घंटे तक भगवान का भजन -कीर्तन करने के लिए मंडली बुलाया जाता है ।इसमें चौबीसों घंटे बिना रुके राम और कृष्ण का नाम गा कर जपा जाता है ।

“हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे “

मंडप में सारे भगवान विराजमान होते है ।सबकी पूजा होती ।श्रिंगार ,भोग ,संध्या आरती और रामायण पाठ सब साथ में चलता रहता है ।बस भजन में प्रमुख राम और कृष्ण होते हैं ।

ऐसे तो अष्टयाम कई बार देखा सुना है पर इस बार का अष्टयाम कुछ अलग था ।अलग इस मायने में कि ,मैंने आजतक कोई “महिला मंडली “ को गाते नही सुना था ।बहुत से लोगों के लिए भी ये नया था ।कारण ज़्यादातर पुरुष मंडली ही होते है ।

हुआ यूँ था ,मेरे जन्मदिन के अवसर पर इसका आयोजन करने का भाई ने सोचा ।दिन आठ मार्च ,महिला दिवस तो सोचा गया क्यों ना इस बार महिला मंडली हीं बुलाया जाये ।हमने इनके बारे में एक चाचा जी सुना था ।
पर कुछ कारणवश आठ को अष्टयाम नही हो पाया फिर भी मंडली हमने महिलाओं की हीं बाँधी।

महिला मंडली के साथ कुछ पुरुष ढोलक ,झाल अपने वाद्ययंत्र के साथ थे ।महिलायें और पुरुष दोनो “थारु” समाज से थे ।ये लोग नेपाल के तराई क्षेत्र के आस -पास रहते है ।
सबसे विशिष्ट बात ये कि ,इस समाज में महिलाओं को विशेष सम्मान दिया जाता है ।मंदिर में पूजा -पाठ कराने से लेकर घर की ज़िम्मेदारी तक थारु महिलायें बख़ूबी निभाती है ।
सुना था बहुत कर्मठ स्वभाव होता है इनका और सच में देख भी लिया ।
मंडली के लोग ईसकॉन को मनाने वाले थे यानी कृष्ण प्रेमी ।शाकाहारी ,बिना लहसन प्याज़ का ख़ुद से पकाया भोजन करने वाले ।बहुत ही सीधे -साधे लोग थे ।उनके बच्चे पढ़ने में इतने होशियार जाने जंगल के किस स्कूल में शिक्षा लेते थे या फिर शांत दिमाग़ का असर था ।

अष्टयाम बहुत ही अच्छे ढंग से सम्पन्न हुआ ।मैं थोड़ा काम में रहने कि वजह से कई चीज़ें देख ना पाई ।अगर भगवान की इक्षा हो तो फिर इस इस मंडली से मिलने का अवसर मिलेगा ।
आपलोग भी थोड़ा भक्तिमय हो जाय ।आपके लिए कुछ अंश ।
वैसे माँ कहती हैं ,इस यज्ञ की ध्वनि जहाँ तक जाती है ,वहाँ तक का वातावरण शुद्ध हो जाता है ,जागृत हो जाता है ।

Monday, 18 June 2018

चम्पारण भितिहारवा आश्रम!!!!

आज आपसबको चम्पारण लेकर चलती हूँ।
आज की यात्रा शुरू करें, इससे पहले कुछ ऐसी बातें जो हमारी आज़ादी से जुड़ी है।

आज़ादी की चाह किसे नही होती ? एक सोने के पिंजड़े में क़ैद पक्षी भी आज़ाद होना चाहता है, जबकि उसे उस पिंजरे के अंदर सब कुछ मिल रहा होता है। फिर हमारे पूर्वज तो इंसान ठहरे भला। भले शारीरिक-आर्थिक कमज़ोर ही सही पर उनकी चेतना तो काम कर रही थी।
ऐसे में अंग्रेजों के ज़ुल्म  कोई कब तक सहता? क्रांति की शुरुआत तो बहुत पहले 1857 में हीं हो गई थी, पर इसके बाद अबतक कोई ऐसा बड़ा आंदोलन नही हुआ था जिससे गोरों की नीव हिल जाए। लोगों में ये विश्वाश आ पाए कि हम मुक्त हो सकतें है।

साल 1894,”मोहन दास करमचंद गांधी “ अफ़्रीका में रंगभेद मिटाने में लगे हुए थे। वहाँ सफलता मिलने के बाद उन्हें अफ़्रीका छोड़ना पड़ा। वे भारत वापस आ गए।

इधर भारत का एक राज्य, ख़ासकर उस राज्य का एक भाग “चंपारण “ अंगरेजो के ज़ुल्म से कंकाल हुआ जा रहा था।चंपारण की ज़मीन पर किसान लाल रक्त से नीला फल उगा रहे थे ।
तीनकाठिया प्रथा के तहत “नील की खेती” ज़बरन किसानो पर थोप दी गई थी। साथ ही पचासन तरह के टैक्स देना उनकी मजबूरी हो गई थी। ऐसे में नील का नीला ज़हर पीना ही उनका जीवन बन गया था। श्याद यही से ज़हर को नीला रंग मिला होगा ।

ख़ैर, ऐसे में चंपारण की धरती को एक चाणक्य मिला। वैसे तो इनका नाम इतिहास के पन्नो में बस आ भर जाता है ,लेकिन अगर ये ना होते तो गांधी को शायद महात्मा बनने के लिए और भटकना होता ।
राजेंद्र प्रसाद , मौलाना मझरुल हक़, बृजकिशोर प्रसाद को एक ऐसे आंदोलन से जुड़ने का मौक़ा नही मिलता  जिसमें पहली बार अहिंसा हथियार बनने जा रही थी।

ये चाणक्य थे “राजकुमार शुक्ल” मैंने इन्हें चाणक्य इसलिए कहा क्योंकि ये चाणक्य की तरह ही तो थे। भले स्वभाव से भोले पर एक बार सपथ ले ली कि, अंगरेजो से अपने फ़सल का, अपने जले हुए घर का , अपने लोगों का , अपनी मिट्टी का बदला लूँगा तो लूँगा। चाहे उसके लिए जो करना पड़े।

राजकुमार शुक्ल, गांधी के पीछे लग कर उन्हें चंपराण बुला ही लाए। यहाँ के लोगों पर ज़ुल्म देख कर गांधी यही रुकने का फ़ैसला कर बैठे।
गांधी ने पश्चमी चंपारण के  “भितिहारवा “  में अपना आश्रम बनाया। कस्तूरबा को भी कुछ दिनो बाद यहाँ बुला लिया।जब तक चंपरण से नील की खेती बंद नही हुई , गांधी यहीं रहे और आज ये जगह “सत्याग्रह की जन्मभूमि” बनी ।
गांधी के आश्रम का नाम “भितिहारवा आश्रम” पड़ गया।

तो अब इतिहास से निकल कर वर्तमान में आती हूँ। आज इसी भितिहारवा आश्रम आपलोगो को लेकर चलती हूँ। सरकार द्वारा आश्रम की रोगनपट्टी हुई है। देखरेख को कुछ कर्मचारी भी है। हाँ , लोगों तक इसकी पहुँच आज भी कम हीं है तभी तो पर्यटन के नाम पर सिर्फ़ हमलोग और एक और परिवार पहुँचा था यहाँ।

कैसे पहुँचे :- भितिहारवा गांधी आश्रम बेतिया से कुछ 50/55 किलोमीटर तथा नरकटियागंज से 15/16 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ आप अपनी सवारी या नरकटियागंज से ऑटो से पहुँच सकते है। वन वे रोड है जो लगभग ठीकठाक हालत में है।
आश्रम से थोड़ी दूर पर चाय -पानी की एक छोटी सी गुमटी है। भोजन वैगरा की कोई व्यवस्था नही है और ना हीं रहने की कोई व्यवस्था है।

तो हमेशा की तरह  मेरी वहीं पुरानी लाइन , अगर कोई मित्र चंपरण भ्रमण की इक्षा रखता हो। यहाँ  जाना चाहते हों तो मेरे घर पर रुक सकते है। बाक़ी घूमना -फिरना आपकी अपनी ज़िम्मेदारी।

देखने योग्य :- इतिहास महसूस कीजिए फिर सब कुछ हीं सुंदर और देखने योग्य लगेगा ।

मेरे साथ सबसे अच्छी बात ये हुई ,मैंने तभी पुष्पमित्र जी की किताब जब “नील का दाग़ मिटा “पढ़ी थी ।इस किताब की वजह से ये आश्रम लगा कल की ही तो बात है ।
किताब बहुत ही सरल भाषा में लिखी गई है ।एतिहासिक होने के बावजूद आप कहीं ऊब महसूस नही करतें ।हाँ कुछ जगह लगता है कि एक हीं बात बार -बार कही जा रही हो पर शायद यही लेखक की मंशा हो कि पाठक श्याद पुरानी बात भूल ना जा रहें हो आगे बढ़ने के क्रम में ।इतिहास जो है ।

नोट:-सोमवार को आश्रम बंद रहता है ।

Wednesday, 6 June 2018

संवेदनाओं का मरना !!!

कभी -कभी उदासी बिना वजह आपको उदास कर जाती है।जैसा की आज मुझे कर रही है।आज फिर मेरे एक दोस्त के माता -पिता यहॉं आए और मेरी जलन मेरी उदासी का कारण बन रही है।जलन का अब क्या कर सकतें है। नाम तपस्या होने से धीर नहीं आ जाता।

कैसी विडंबना है हम ग्रामीण परिवेश के लोगों की ,खास कर बिहार से आने वालों युवाओं की ,जो हमारे  माता -पिता हमारे लिए ऊँचा  आसमान देखते है और खुद धरती का साथ नहीं छोड़ते।
बचपन से हमें डॉक्टर, इंजीनियर ,सरकारी अफसर बनाने का ख़्वाब देखते है ।अपने उन्ही ख़्वाबों  के बीज हमारे अंदर बोने लगते है ।इस ख़्वाब में हमने उन्हें कई बार जलते देखा है।उनकी वो जलन हमें आज तक जलाती है ।
ओह ! मेरी वजह से माँ ने तकलीफ सही ।पापा ने अपना सारा जीवन झोक दिया।
फिर उनके जलन को राहत कैसे मिले ,इसमें हम जलने लगे।उनके सपने पूरी करने लगे।
ना उन्हें मालूम था ना हमें की इन सपनो की कीमत क्या होगी ? उनके  सपने ने वो सब कुछ दिया जो वो मेरे लिए चाहते थे  ,पर कीमत क्या थी ?
दुरी  विछोह …

कई बार कुछ ज्ञानी दोस्त ज्ञान देतें है ,अरे भाई कोई बिज़नेस कर लो ,।मुर्गीफार्म खोल लो , खेती करो ।रेस्टॉरेंट चलाने के बारे में सोचो ।ब्यूटी पार्लर ,कोचिंग सेंटर फ़लाना ढामकान नए स्टारअप अपने शहर में रह कर कर सकते हो ।पैसा कमा सकते हो ।माँ -बाप भी साथ रह सकतें है ,तुम भी ख़ुश माँ -बाप भी ।
भाक साला यहाँ मेरे माँ -बाप ने इतना त्याग मुर्गीफारम के लिए किया है क्या ? ज्ञानी बनते हो कि खेती में काफी संभावना है ।मेरे माँ -बाप ने कभी खेत में ठीक से काम करवाया मुझसे ? क्या अब वो देख पायेंगे मुझे खेतों में झुलसते ?और हमसे होगा क्या ?
 गिन कर तो हम तीन बार भवें बनवाए ,पार्लर क्या ख़ाक खोलेंगे ?
और रही बात कोचिंग की तो कभी बिहार आओ ,आँखे फट जायेंगी तुम्हारी ।ज्ञान देते हो ।

हमें भी ज्ञान आता है पर …
सब छोड़ कर वापस वहां तक जाना उफ्फ्फ ,फिर से अपने बच्चे को इस सपने के जाल में झोकना है
हम जहाँ से है वहॉं इंजीनियर तो बहुत हैं पर ,ढंग की कोई कम्पनी नहीं ।अब ऐसे में वो जो सपने कभी माँ बाप से होते हुए मेरे हो गए उन्हें छोड़ कर कहाँ जाऊँ ?

लोग कहते है कि हमारी सवेंदना मर रही है ।हम निर्मोही हो रहे है ।
पर ,क्या सिर्फ हम ही सवेंदनहीन हो रहे है ?
क्या आप (माँ -बाप ,सगे सम्बंधी )मोह में हैं ?

हाँ आप तो हैं मोह में ,अपनी धरती से ,अपने गांव से ,हमारे घर से ।
हमें उड़ने का ख्वाब दिखा कर ,हमें निर्मोही बना कर आप कहते हैं कि ,सिर्फ हमारी संवेदनाये मर रही है ।
क्या आप कभी ये नहीं सोचते कि जो बीज हमने अपने बच्चे में बोया उसको पेड़ बनाने में ,उसपर फल लाने में कितने उसके अपने दूर हो गए ,कितने उसके सपने मर गए ।
क्या आपको नहीं लगता कभी हमको भी अपना कम्फर्ट ज़ोन छोड़ कर उड़ना चाहिए ।अपने बच्चों के पास होना चाहिए ।

संवेदनाए दोनों की मर रही है इंतज़ार में ……

Thursday, 24 May 2018

माँ!!!

हम दोनो को धड़कने एक साथ चल रहीं थीं।धड़धड़ -धड़धड़ -धड़धड .......
एक पल को तुम्हें सीने से लगाए मैं सोच में पड़ गई कि कहीं ये मेरा भ्रम तो नही ।ये कैसे हो सकता है ?
मैंने थोड़ी देर के लिए अपनी साँसे रोक ली और फिर से हम दोनो की धड़कने गिनने लगी ।इतने में मेरी साँसे फूलने लगी ।मैंने ज़ोर से एक साँस बाहर हवा में फेंकी और दूसरी अपने अंदर भर ली ।
इस क्रम में तुम थोड़ा हिले और फिर मुझसे लिपट कर सो गए ।मुझे अपनी हरकत पर हँसी आ रही थी ।भला साँस बंद करने से भी धड़कने रूकती है ।काउंटिंग शुरू ही करनी थी तो कुछ और सोच लेती ।

ख़ैर पागल लड़कियों का कुछ भरोसा नही होता ,अनुलोम -विलोम तो होता नही साँसो की गिनती चाहतीं हैं ।
मेरा दिमाग़ अब भी गुना भाग में लगा है ऐसे कैसे एक साथ धड़क -धड़क -धड़क ।हमदोनो की प्लस रेट तो अलग है ।
मेरी प्रति मिनट साठ से अस्सी के बीच होगी और तुम्हारी  एक सौ तीस -एक सौ चालीस के बीच ।ऐसा कैसे हो रहा है ।एक पल को तो इन गिनती के चक्कर में मेरी साँसे भारी होने लगीं थी ।

फिर मैंने इन साँसो के खेल से ध्यान हटाया ।सोचा हो सकता है मैं इसके प्रेम में हूँ श्याद इसलिए मेरी धड़कने तेज़ चल रहीं है ।इसके साथ चल रहीं है ।मेरी एक -एक धड़कन इसके साथ चलना जो चाहती है ।

क्या ?

हाँ सही तो सुना आपने ।मेरी एक -एक धड़कन इसके साथ चलना जो चाहती है ।
चाहे भी क्यों ना माँ जो हूँ मैं इसकी ।
“माँ “
मेरे सत्यार्थ की माँ ,मेरे इशु की माँ ,मेरे मीर मस्ताना मेरे राजा ,सोनू ,मोनु ,जान सबकी माँ ।बस माँ ।

हवा में इतने ऊपर लटके तुम्हें अपने सीने से लगाया जाने मैं क्या -क्या सोच रही थी ।था भी तो नही कुछ करने को ।गोद में तुम सामने टँगी तुम्हारी फ़ोल्डेबल क्रिब आसपास बेसुध पड़े सहयात्री ।

जाने कब आँखे मूँदे -मूँदे ,सोचते -सोचते तुम्हारे जन्म तक पहुँच गई ।तुम्हारा अचानक आ जाना हम तीनो के लिए कोस्टर राइड जैसा था ।ख़ुशी ,चिंता ,विश्वास ,उल्लास और प्रेम ।
तुम्हारे घर आने के बाद डॉक्टर का हर कुछ दिन पर कॉल आता कि सब ठीक है ना ।मैं कैसी हूँ ? डिप्रेसन की समस्या तो नही हो रही ?मेरा जबाब होता -ना।सब ठीक है ।

डिप्रेसन ? और वो भी तुम्हारे होने पर ?
हाँ ,डिप्रेसन ।श्याद मुझे हुआ हो और मालूम ना चला हो ।श्याद लाखों माताओं को होता हो और मालूम ना चलता हो ।

डॉक्टर ग़लत तो नही पूछती थी ।क्यों ना हो डिप्रेसन ?
अब तक जो दो दिल धड़क रहें थे वो फिर से एक हो गया ।जो अंदर भरा हुआ था वो ख़ाली हो गया ।जो मेरे ख़ून से सींचा जा रहा था ,जो मेरी साँसो से चल रहा था ।जो एक नाम के अंबेलिकल कॉड से जुड़ा था ,आज उसी कॉड से अलग होते समय दर्द इतना जैसे मेरा मर जाना ।

दुःख तो होता होगा ।बहुत होता होगा ।ऐसा जैसा किसी के जाने का दुःख ।तभी तो श्याद गाँव में रिवाज है बारह दिन तक कुछ ना करने का ,छूत लगने का ।पर श्याद तुम्हारे होने के असीम ख़ुशी और सुख में हम वो जाने का दुःख भूल जातें है ।
सच तो ये भी है ,ये जाना तुम्हारे साथ बहुत कुछ लेकर आता है ,ख़ुशी के आँसू ,असीम प्यार ,ढेर सारा आशीर्वाद और जीवन का चक्र ।

Tuesday, 22 May 2018

आज बात हॉलैंड की ।एक मिनट रुकिए मैं यूरोप वाले हॉलैंड की बात नही कर रही ।अमेरिका में भी एक हॉलैंड है ।है ये अमेरिका में पर इसकी ख़ूबसूरती यूरोप के हॉलैंड जैसी हीं है ।ऐसा मेरे एक दोस्त जो यूरोप हो आए है उन्होंने ने बताया ।

बात करते है इस हॉलैंड की तो जब यूरोप से डच लोग (नीदरलैंड के लोग )अमेरिका आए तो अपनी सुबिधा और प्रकृति अनुसार अमेरिका के अलग -अलग भाग में बस गए ।वैसे तो डच अमेरिका के हर भाग में थोड़े -बहुत संख्या में मिल जायेंगे पर किसी -किसी भाग में इन्होंने अपनी कॉलोनी बना ली है ।मतलब वहाँ इनकी संख्या ज़्यादा है ।आपको याद होगी मेरी वर्जिन्या ट्रिप ।

इसे ऐसे समझे ।जैसे हम भारतीय अमेरिका आ गए ।मैं बिहार की तो मैं और दूसरे बिहार के लोग साथ मिलकर अमेरिका के किसी एक भाग में जा बसते है ।ऐसे तो भारतीय अमेरिका के हर प्रांत में है पर इनकी संख्या न्यू जर्सी ,टेक्सस और कैलिफ़ोर्नीया के कुछ भाग में ज़्यादा है ।

हाँ तो फिर आते है हॉलैंड की तरफ़ ।ये मिशिगन राज्य में लेक मिशिगन के किनारे बसा हुआ है ।छोटी जगह है पर हर तरफ़ फूल हीं फूल ।ट्युलिप के फूल हॉलैंड की पहचान है इसलिए यहाँ ज़्यादातर ट्युलिप हीं आपको दिखेंगे ।मई महीने में यहाँ ट्युलिप फ़ेस्टिवल भी होता है ।जिसे देखने काफ़ी लोग आते हैं।

हमलोग भी पहुँच गए इस फ़ेस्टिवल में ।इंडीयाना मेरे ठिकाने से कुछ तीन साढ़े तीन घंटे की दूरी पर हॉलैंड शहर है ।दो दिन के लिए हम भी पहुँच गए वहाँ ।एक दिन में भी आप घूम कर आ सकते हैं पर ठीक से घूम नही पाईएगा ।भागमभाग हो जाएगी।

हमलोग क़रीब डेढ़ दो बजे यहाँ पहुँचे।अड्रेस “वेलधीर टूलिप गार्डन “का ही डाला था ।एंट्री फ़ी दस डॉलर पर पर्सन ।तीन छोटे -छोटे विंड्मिल और ट्युलिप से भरा खेत ।सत्यार्थ ने तो ऊधम मचा दी ।
फूल तोड़ने पर ढाई सौ डॉलर फ़ाइन था ।लगभग एक घंटे रुकने के बाद जैसे तैसे बाहर आए तो सत्यार्थ बाबू अपना एक जूता गिरा चुके थे ।
बाहर कुछ गिफ़्ट शॉप थे ,जिसमें लकड़ी के बने टूलिप और जूते बिक रहे थे ।साथ ही चीनीमिट्टी के ख़ूबसूरत बर्तन भी ।

यहाँ से फिर डाउंटाउन को निकले ।शाम को फ़ायर वर्क्स और कुछ प्रोग्राम थे जो बाद में मौसम ख़राब की वजह से कैसिल हो गए ।मौसम जो ख़राब हुआ कि हमलोग भाग कर होटेल आ गये ।हल्की धूप थी पर वो कँपाने वाली हवा की मत पूछिए ।सत्यार्थ की तो आँखो से पानी आने लगा था ।

दूसरे दिन मौसम अच्छा था ।सुबह हल्की बारिश हुई थी पर ठंड कम थी ।आज हमलोग  “विंड्मिल आईलैंड गार्डन “गए ।हॉलैंड की दूसरी पहचान विंड्मिल और लकड़ी के जूते भी हैं
एंट्री फ़ी यहाँ भी दस डॉलर पर पर्सन ।ट्युलिप से भरे बाग़ में दो विंड्मिल लगे थे ।एक विंड्मिल तो पुराना होने के बावजूद आज भी काम कर रहा था ।उसका अलग से आधे घंटे का टूर था ।अंदर जाने पर इसकी मदद से कैसे अनाज की कुटाई ,छटाई और पिसाई होती है एक महिला गाइड बताए जा रही थी ।
इसके बाद हम डाउंटाउन आ गए ।कुछ एक घंटा यहाँ बिताने के बाद हमलोग “हॉलैंड स्टेट पार्क “जो कि लेक मिशिगन के किनारे है वहाँ गए ,”हॉलैंड हॉर्बर लाइट “देखने ।ये इस शहर का पहला लाइट्हाउस है ।लाल रंग के होने के कारण इसे “बिग रेड “नाम से भी पुकारते है ।

और इस तरह हॉलैंड की यात्रा सम्पन्न हुई ।यात्री अपने घर को लौट आए ।
कुछ तस्वीरों के ज़रिए आप की भी यात्रा शुरू होती है अब ।




Saturday, 14 April 2018

राम और रेप !!!!

पिछले कुछ दिनो से सोशल मीडिया पर एक ही चर्चा है -“राम और रेप “
दोनों ही नया मुद्दा नहीं है ,न ही दोनों पर किसी भी सरकार ने कभी ढंग का कोई निर्णय लिया।सरकार की क्या बात करे? हमने ,हमारे समाज ने भी तो बस हो -हल्ला ही किया।मुद्दे दर मुद्दे भटकते रहे।या फिर भटकाए जाते रहे। 

राम ने स्त्री सम्मान के लिए जानवरों ,माफ़ कीजिये मेरा मतलब बंदरो ,रीछों से है की मदद से शक्तिशाली रावण का वध कर दिया।जबकि उसने तो बस उनकी पत्नी का अपहरण किया था। और हम... 

हम ना तो भगवान् है ना बन सकते है ,इसलिए तो आज कई स्त्रियों ,बच्चियों के शारीरिक दोहन को भी राम का रंग दे रहें हैं।हम उन कथित जानवरों से भी नीच है जिनका अपना कोई विवेक नहीं।जिन्हे बस खून की प्यास है। 
“ओह !राम ने सबको बाँट दिया”

वहीं कभी जाति का दायरा मिटाने  के लिए निचले तबके के लोगो ने ,अपने नाम में राम लगाना शुरू कर दिया था।शायद ये सोच कर कि ,राम सबके हैं।मूर्ख लोग धर्म के जाल को समझ ही नहीं पाए। 

धर्म ने इस कदर पागल बना रखा है कि ,इसकी मिशाल नीचे लगी तस्वीर है। 
तस्वीर राजापट्टी (सारण जिला ) के एक चौक की है।यहाँ बाबा साहेब जी की मूर्ति की स्थापना हुई।कुछ सवर्ण गवारों को ये बात हज़म नहीं हुई।उन्हें लगा उनके इलाके में किसी निचले तबके के इन्शान की मूर्ति कैसे ? अपने दल के साथ उन्होंने मूर्ति के सर को तोड़ने की कोशिश की।कालिख पोता।

नालायकों को कहाँ मालूम की वो खुद पर कालिख पोत रहें है।खुद का मस्तिक ,विवेक धर्म के नाम पर कूट रहे है। 
अच्छा है अम्बेडकर आप नहीं रहे ,वरना धर्म का ऐसा नंगा नाच देख कर आप खुद अपने मुँह पर कालिख पोत लेते।
ऐसे में आपके जयंती की क्या शुभकामनायें। 


Sunday, 28 January 2018

बिहार में सर्दी !!!

बिहार में सर्दी रानी जाते -जाते रह गईं।लगा था सरस्वती पूजा के बाद दिन खुलने लगेगा ,पर यहाँ तो छब्बीस जनवरी से सूर्य देवता लगभग ग़ायब से ही रहे हैं ।हर घर के लोग बाहर घूर लगाए बैठे हैं ।घर तो छोड़िए लोगों ने सड़कों को भी नही छोड़ा है ।
कल कुछ काम से बेतिया जाना हुआ ।सुबह के दस बज चुकें थे और चारों तरफ़ धुँध ही धुँध ।इस मौसम में भी कुछ किसान खेतों में गन्ना छील रहें हैं तो ,कुछ बच्चे बकरी ले कर निकल पड़े हैं ।मुझे थोड़ा अफ़सोस हुआ ।
भाई से पूछी ,ऐसे मौसम में गन्ना छीलने की क्या ज़रूरत ? क्या एक -दो दिन रुक कर ये लोग नही कर सकतें ?
भाई बोला -बहन किसान के लिए फ़सल से ज़्यादा कुछ महत्वपूर्ण नही होता ।फ़सल ही उसका जीवन है ।जब जीवन ही नही तो क्या ठंड क्या बारिश ।इनके गन्ने का नम्बर लगा होगा मिल में ,इसकी वजह से ये परिवार इस ठंड में खेत में लगा हुआ है ।

कुछ आगे जाने पर लोगों ने लगभग सड़क को ही घर -दुआर बना रखा था ।सच पूछिए तो इस बार मुझे आपने गाँव में गंदगी ज़्यादा दिख रही थी।लोगों ने सड़कों पर ही घास-फूस ,खर -पतवार फैला रखा था ।उनके मवेसी उसी पर लेटे हुए थे ।कही गोबर तो कहीं राख ।इनके बीच आग तापते लोग ।कई जगह तो ड्राईवर को गाड़ी मोड़ने में भी दिक़्क़त हो रही थी।लोगों ने खादर ,पतवार सड़क पर ही जमा कर रखा था ।

 ये सब देख कर मैंने भाई से कहा - अपने गाँव के लोग बहुत गंदगी में रह रहें हैं ।ऐसे में तो बीमारी फैल जाएगी।
भाई बोला गंदगी ?
 कहाँ दिख रहा है तुम्हें बहिन ? थोड़ा इनके नज़रिए से भी देखो ।ये जो तुम गंदगी कह रही हो ,ये सब जैविक चीज़ें हैं ।आसानी से सड़ गल के खाद बन जायेंगी ।फिर इन लोगों के काम आ जायेंगी ।साथ हीं इनसे कभी कोई बड़ी बीमारी नही होगी ।
“गंदगी तो तुम फैला रही हो डाइपर के रूप में " और हँसने लगा ।
वहीं दूसरी ओर तुम बताओ ,जिसको दुआर नही ।झोपड़ी का घर है ।मवेसी हैं ।इतनी ठंड में वो अपने जानवर कहाँ बाँधे ? जलावन कहाँ से लाए ? ये जो तुम खर -घास सड़क पर देख रही हो ,उसपर दिन में उनके मवेसी रहेंगे ,साथ ही उनके जलावन का इंतज़ाम भी हो जाएगा ।
इनके पास हीटर तो है नही जो जला कर ताप लिया ।अब ऐसे में थोड़ा राख फैल भी जाता है तो क्या हो गया ?

इस तरह अपनी तकलीफ़ और इन लोगों का दर्द देख कर सर्दी माता से नम्र निवेदन है -हे माई ! अब तो दया करो ।
कुछ तस्वीरें -