“वोमेन इन द ड्यून”
बहुत दिनों बाद इतनी बेहतरीन फ़िल्म देखी। यह एक जापानी फ़िल्म है जिसकी बेहतरीन सिनेमेटोग्राफ़ी, बैकग्राउंड स्कोर और पात्रों का अभिनय आपको रोमांच से भरते रहते है।
बेहतरीन सिनेमा, सिनेमेटोग्राफ़ी, क्लोज़ अप शॉट, पात्रों का चयन आदि में कमाल के रहे आंद्रेई टारकोवस्की, इंगमार बर्गमान, सत्यजीत रे, वॉन कर वाई के बाद इस फ़िल्म के निर्देशक “हिरोसी टेसीगहारा” ने मेरा मन मोह लिया। इस फ़िल्म का एडिटिंग भी कमाल का है। किसी भी दृश्य को ज़रूरत से ज़्यादा खिंचा नहीं गया चाहे ड्रमेटिक हो या वह लव मेकिंग ही क्यों ना हो।
फ़िल्म की कहानी एक शिक्षक की है जिसे बालू में पाये जाने वाले कीड़ों में रुचि है। वह उन पर शोध कर रहा है। वहीं इसकी दूसरी पात्र एक महिला है जो सैंड ड्यून में रहती है। ‘सैंड ड्यून’ बालू का टीला जो आम तौर पर समुद्र के किनारे बहती हवाओं से बनता है या रेगिस्तान में हवाओं द्वारा। फ़िल्म में ड्यून समुद्र के किनारे बना है। जैसा हमारे इंडियाना में है।
ख़ैर। फ़िल्म की कहानी आगे कुछ यूँ बढ़ती है,
महिला अपने जीवन यापन के लिए बालू काट कर गाँव के लोगों को देती है, जिसे बेच कर वे अपना जीवन यापन करते हैं और बदले में इसे महीनें का राशन-पानी देते हैं। महिला के पति और बच्ची इसी बालू में दब कर मर गए हैं और वह अकेली है इस बालू से घिरे घर में। ऐसे में कीड़ों की खोज में अपनी अंतिम बस को मिस कर देने वाले शिक्षक को गाँव वाले रात को उस महिला के यहाँ ठहरने का आसरा देते हैं।
और फिर वह फँस चुका है एक जाल में। एकांत के जाल में… वह भागने की कोशिश करता है पर मुश्किल से सफल होते हुए भी वह इस रेगिस्तान से निकल नहीं पाता। वह उस महिला से कहता है, “ मैं फेल इसलिए हुआ क्योकि मुझे जियोग्राफी का ज्ञान नहीं। पर मैं एक दिन ज़रूर सफल होऊँगा।”
शिक्षक है, उसे ज्ञान है कि वह क्यों असफल हुआ। साथ ही वह कई तरीक़े से महिला को भी समझाने की कोशिश करता है कि यह जीवन भी क्या कोई जीवन है ?
इधर महिला जानती है उसे उससे प्रेम नहीं फिर भी शरीर को शरीर की ज़रूरत है। शिक्षक भी भागने के तिड़कम के बीच प्रेम का स्वाँग कर लेता है। भागने की जुगत लगाते लगाते उसने मरू से पानी निकालने का तरीक़ा ढूँढ़ लिया। वह यह ख़बर महिला को दे इससे पहले दर्द में तड़प रही महिला दिखती है। वह प्रेग्नेंट होती है पर उसकी प्रेग्नेसी आसान नहीं।
“ एक्टोपिक प्रेग्नेंसी” के लक्षण है। इस तरह की प्रेगनेंसी में एग गर्भाशय से नहीं जुड़ता बल्कि वह फैलोपियन ट्यूब, एब्डोमिनल कैविटी या गर्भाशय की ग्रीवा से जाकर जुड़ जाता है। ऐसी प्रेग्नेसी में बच्चे का विकास नहीं होता साथ ही समय पर माँ का इलाज ना हो तो जान तक पर बन आती है।
ख़ैर, अब इससे आगे क्या होता है इसके लिए आप फ़िल्म देखें। देखें की शिक्षक भाग पाता है या नहीं ? महिला का क्या होता है…