Tuesday 29 December 2015
KHATTI-MITHI: फोटोग्राफर कम डिवोर्स कंसल्टेंट !!!!
KHATTI-MITHI: फोटोग्राफर कम डिवोर्स कंसल्टेंट !!!!: कल के मेरे ब्लॉग से बहुत लोग सदमे में होंगे।शरमा कर लाइक किया होगा ,और कमेंट ऐसे चीज़ो पर हिम्मत वाले ही करते है।मै माफ़ी चाहूँगी।मै कोई ताना...
फोटोग्राफर कम डिवोर्स कंसल्टेंट !!!!
कल के मेरे ब्लॉग से बहुत लोग सदमे में होंगे।शरमा कर लाइक किया होगा ,और कमेंट ऐसे चीज़ो पर हिम्मत वाले ही करते है।मै माफ़ी चाहूँगी।मै कोई ताना नही दे रही आप सब को।बस मन में थोड़ा डर है कि ,आप मुझे असभ्य या अश्लील ना सोच ले।क्या करूँ जब यात्रा के बारे में लिख रही हूँ।जो भी हुआ वो ना लिखना नाइन्साफ़ी होगी ,आपलोग के साथ।या फिर हो सकता हो मेरे कोई दोस्त जो न्यूड बीच जाना चाहते हो।कमसे कम मेरा ब्लॉग पढ़ कर उनको जाने की हिम्मत मिलेगी :P वैसे मै उतनी ही असभ्य या अश्लील हूँ ,जितना की एक आम इंसान।हाँ हर किसी का पैमाना अलग-अलग हो सकता है :) आप मुझे अपनी पैमाने के हिसाब से माप ले।बाकी तो मैने माउंटेन ड्यू पी ली है।डर पर भी काबू पा लिया है।खुद को जानती ही हूँ।यात्रा को आगे बढाती हूँ। हॉलोवेर बीच के बाद हमलोग साउथ बीच पहुँचे।हॉलोवेर बीच से 15 -20 मिनट की दुरी पर होगा साऊथ बीच।साउथ बीच पर पार्किंग की बहुत मारा -मारी थी।पार्किंग भी 35 डॉलर की।हमने गाड़ी पार्क की और भगवान का नाम लेकर बीच की तरफ चल पड़े।यहाँ तो काफी भीड़ थी।सफ़ेद बालू धुप में चाँदी से चमक रहे थे।रोड के किनारे हॉटेल और दुकाने अटी पड़ी थी।थोड़ी गर्मी थी उस दिन।पानी में जा के आने के बाद हमलोग बीच पर ही बैठे हुए थे।पानी जैसा नीला आसमान हो।धुप की वजह से या फिर हॉलोवेर बीच की वजह से शतेश का सिर दुखने लगा था।दिन के 2 ;30 बज गए थे।शतेश बोले खाना खा लेते है।हमलोग वही पास में 10 मिनट की दुरी पर एक इंडियन रेस्टॉरेंट "कॉपर चिमनी " गए।हमने ,बेबी कॉर्न मन्चूरियन ,बिरयानी ,छोले भटूर और छाछ आर्डर किया।शतेश का सिर दर्द बढ़ गया था।खाना खा कर उन्होने सिर दर्द की दवा ली।अच्छा हुआ मै दवा साथ ले गई थी।मैंने हॉटेल चलने को बोला।शतेश बोले नही चलो बीच पर ही लेट लूंगा।ज्यादा ड्राइव का मन नही है अभी।हमलोग बीच पर वापस आ गये।शतेश आ कर लेट गए। मै फोटो क्लिकिंग में लग गई।आधे घंटे के बाद शतेश को कुछ आराम हो गया।तब -तक वहाँ एक मॉडल का फोटो शूट हो रहा था।लोग उसको देख रहे थे।उसके साथ फोटो ले रहे थे।बीच -बीच में वहाँ कुछ -कुछ चल रहा था ,जो हमलोगो के लिए सामन्य नही था।हमलोग शाम को कपडे बदलने के लिए बाथरूम साइड गए।वहाँ बहुत बड़ी लाइन थी।लोग गाड़ियों के बीच में या उनके पीछे ही चेंज कर रहे थे।किसी को की फर्क नही पड़ रहा था। कोई किसी को देख भी नही रहा था।मैन कोई ऑप्शन ना पाकर गाड़ी के अंदर ही दोनों तरफ से तौलिया लगा कर चेंज किया।शाम को बीच पर घूमने के बाद। हमलोग स्ट्रीट नंबर 9 गए।बीच से वाकिंग डिस्टेंस पर ही है।बहुत ही लाइवली।रेस्टॉरेंट ,लाइव म्यूजिक ,बार लोगो की भीड़ आह बहुत ही सुन्दर।हमलोग "मैंगोज़ " रेस्टॉरेन्ट में गए।वहाँ शोज हो रहे थे लैटिन डांस और म्यूजिक पर।पर पर्सन एक ड्रिंक लेना कंपल्सरी था।मैंने लेमोनेड विथ कोकोनट वाटर लिया।शतेश का मालूम नही। खाने को बींइंग वेजिटेरिअन हर जगह दिक्कत होता है।हमने वेजी पिज़ा का आर्डर दिया।चीज़ो के दाम ज्यादा थे।पर ठीक है ,म्यूजिक ,डांस सब उसमे ही था।बिल कुछ 135 डॉलर के आस -पास आया।वहाँ से हमलोग रात के 11 बजे तक निकल लिए।जैसे -जैसे रात बढ़ रही थी ,वहाँ भीड़ बढ़ रही थी।हमारा अगला हॉटेल कीवेस्ट के रास्ते में था।सुबह कीवेस्ट के रास्ते में बहुत ट्रैफिक होती।इसलिए हमने कीवेस्ट जाने के रास्ते में ही हॉटेल बुक कर लिया था।अब तक हमारे सारे ट्रिप का सबसे सस्ता हॉटेल "लॉस वेगास" के बाद का।सिर्फ 45 डॉलर पर नाईट।रूम भी बहुत अच्छा ,ब्रेकफास्ट के भी ढेरो ऑप्शन।अमूमन हॉटेल में ब्रेकफास्ट के नाम पर सिर्फ ओट मील ,ब्रेड कंफ्लाक्स ,जूस ही होते है।पर यहाँ मफिन्स ,वफलस् ,फ्रूट्स ,डिफ़्फेरंट -डिफ़्फरेंट जूस ,कॉफी ,फ्रॉईड पोटैटो और भी बहुत कुछ।मुझे बहुत अच्छा लगा।मुझे तो डर था ,कि सस्ता है तो बकवास ना हो।पर इसका रिव्यु अच्छा था तो बुक कर लिया था।हमलोग ब्रेकफास्ट कर किवेस्ट के लिए निकल पड़े।आह बहुत ही सुन्दर ड्राइव थी वो।4 घंटे कैसे निकल गए मालूम ही नही चला। दोनों तरफ पानी बीच में सड़क और बादल ऐसे मनो नीचे की तरफ आ गए हो।हमलोग किवेस्ट पहुँचे।छोटा सा जगह पर बहुत साफ़ -सुथरा।छोटे -छोटे दूकान।रोड पर लाइव शोसज हो रहे थे।हमलोग एक पॉइंट पर गए जहां से "क्यूबा "90 माइल्स की दुरी पर था।समंदर के किनारे एक कोने पर सीमेन्ट का स्तूप जैसा बना था।उस पर 90 माइल्स टू क्यूबा ,साउदरन मोस्ट पॉइंट लिखा था।उसके साथ फोटो खिंचाने की लाइन लगी थी।एक तो गर्मी उसमे हमलोग भरी दोपहरी में पहुँचे थे। मैंने शतेश को बोला दूर से मतलब एक हाथ की दुरी से ही उसकी और मेरी फोटो ले लो।कौन एक घंटे लाइन में लगेगा।इसी बीच एक और मजेदार बात हुई।मियामी से किवेस्ट आते समय।बहुत ही प्यारा लाइट हॉउस जैसा दिखा।कुछ लोग वहाँ गाड़ी पार्क करके बैठे थे।मैंने शतेश को गाड़ी रोकने को बोला।हमने लेट ना हो इसलिए "चिपोटेले" मेक्सिकन रेस्ट्रोरेन्ट से खाना पैक करा लिया था।साथ में चिप्स पानी सब था।मैंने कहा हमलोग भी यही बैठ के खा लेते है और थोडे देर बाद चलते है।जब वहाँ पहुँचे एक लड़की ने मेरे स्कार्फ़ की तारीफ की और बोली बहुत ही अच्छे से बाँधा है ,तुमने।थैंक यू बोल कर हमलोग थोड़ा आगे चले गए।बहुत ही सुन्दर नजारा था।हमलोग एक दूसरे का फोटो लेने लगे।तभी वहाँ बैठे कुछ लोगो में से एक आदमी आया।बोला की अगर हमें कोई तकलीफ ना हो तो वो हमारी फोटो निकाल सकता है।उसने खुद को प्रोफेशनल फोटोग्राफर बताया।हमने उससे चार्ज पूछा तो ,बोला फॉर यू गायज इट्स फ्री।मेरी फ्रेंड को तुम्हारी वाइफ का टर्बन (स्कार्फ )अच्छा लगा। हमें क्या था.हमने उसे कैमरा दे दिया।सच में उसने बहुत प्यारी- प्यारी तस्वीरें निकली। हमें भी अपने कैमरे के इतने खूबी नही मालूम थी जितनी उसे।ये रही उसकी निकाली तस्वीर।
फोटो सेशन के बाद खाना खा कर हमलोग थोड़ी देर वही बैठे रहे।जब हम जा रहे थे। उस फोटोग्राफर ने हमें रोका। पूछा क्या तुमलोग न्यूली मैर्रेड हो।वैसे तो शादी के दो साल हो गए थे।पर मैंने हाँ कह दिया :) उसने अपना कार्ड हमारी तरफ बढ़ाया। बोला आई आम अ डिवोर्स कंसलटेंट टू। मतलब मै तलाक भी करवाता हूँ।अगर हमें लगे तो उसे कॉल करे। हम दोनों हँस पड़े।शतेश बोले नो वी आर गुड,थैंक यू।और कार्ड नही लिया। मैंने कहा जल्दी भागो यहाँ से।नही तो आये थे साथ जायेंगे अलग -अलग।रात को हमलोग वापस हॉटेल पहुँचे।चेंज करके फिर साउथ बीच पहुंच गए।इस बार हमलोग हमने 9थ स्ट्रीट पर ही दूसरे रेस्टोरेंट गए।मुझे उसका नाम नही याद अभी।मेरा पेट भरा था ,तो सलाद आर्डर किया।शतेश ने बर्गर ,फ्रीइस आर्डर किया।भगवान सलाद के नाम पर दो चार टुकड़े गाजर और खीरे के बाकी पालक के पत्ते सरसों के सॉस के साथ।शतेश हँसते हुए बोले मना किया था ना सलाद मत मँगाओ।चलो एक और बर्गर आर्डर कर देता हूँ।हमलोग जब कल रात मैंगोज़ में गए थे एक लड़की मुझसे बात करने की कोशिश कर रही थी।पर मै शोर में उसको सुन नही पाई।शतेश पीछे से मेरे कंधे पर टैप करके बोले ,देखो शायद फोटो लेने को वो लड़की तुमसे बोल रही है।मैंने जब उससे पूछा तो उसने असल में मेरी ड्रेस की तरीफ के लिए बात की।शतेश का मुँह बन गया।क्योकि ये ड्रेस उन्हें उतनी पसंद नही थी।इसकी वजह इसका प्रिंट और रँग था।मैंने चहकते हुए शतेश को बोला देखा -देखा।शतेश अभी उसी का बदला सलाद के टाइम ले रहे थे।तपस्या जरुरी नही हर वक़्त तुम्हारी पसंद सही हो,देखा -देखा।हमलोग 1 बजे रात तक वहाँ रुके।अगले दिन जेट स्की किया।एवरग्लाड नैशनल पार्क गए।जहाँ बोट पर बिठा के एक राइड पर ले गए।मगरमच्छ और क़ुछ विलुप्त हो रहे चिड़ियों को दिखाया।बॉट पर बैठी मै आस -पास के नज़रो से रिलेट करती हुई खुद को "हंगरी टाइड "की "पियाली रॉय" समझने लगी।जो बे ऑफ़ बंगाल में डोळ्लफिन पर रीसर्च करने आई होती है।फर्क ये था मै "तपस्या" हूँ और मै लुप्त हो रहे मगरमच्छ को देख रही थी।रात को हमारी वापसी की फ्लाइट थी।हमलोग फिर से पाम बीच पहुँचे।थोड़ा वहाँ घुमा और वापस एयरपोर्ट आगये।
फोटो सेशन के बाद खाना खा कर हमलोग थोड़ी देर वही बैठे रहे।जब हम जा रहे थे। उस फोटोग्राफर ने हमें रोका। पूछा क्या तुमलोग न्यूली मैर्रेड हो।वैसे तो शादी के दो साल हो गए थे।पर मैंने हाँ कह दिया :) उसने अपना कार्ड हमारी तरफ बढ़ाया। बोला आई आम अ डिवोर्स कंसलटेंट टू। मतलब मै तलाक भी करवाता हूँ।अगर हमें लगे तो उसे कॉल करे। हम दोनों हँस पड़े।शतेश बोले नो वी आर गुड,थैंक यू।और कार्ड नही लिया। मैंने कहा जल्दी भागो यहाँ से।नही तो आये थे साथ जायेंगे अलग -अलग।रात को हमलोग वापस हॉटेल पहुँचे।चेंज करके फिर साउथ बीच पहुंच गए।इस बार हमलोग हमने 9थ स्ट्रीट पर ही दूसरे रेस्टोरेंट गए।मुझे उसका नाम नही याद अभी।मेरा पेट भरा था ,तो सलाद आर्डर किया।शतेश ने बर्गर ,फ्रीइस आर्डर किया।भगवान सलाद के नाम पर दो चार टुकड़े गाजर और खीरे के बाकी पालक के पत्ते सरसों के सॉस के साथ।शतेश हँसते हुए बोले मना किया था ना सलाद मत मँगाओ।चलो एक और बर्गर आर्डर कर देता हूँ।हमलोग जब कल रात मैंगोज़ में गए थे एक लड़की मुझसे बात करने की कोशिश कर रही थी।पर मै शोर में उसको सुन नही पाई।शतेश पीछे से मेरे कंधे पर टैप करके बोले ,देखो शायद फोटो लेने को वो लड़की तुमसे बोल रही है।मैंने जब उससे पूछा तो उसने असल में मेरी ड्रेस की तरीफ के लिए बात की।शतेश का मुँह बन गया।क्योकि ये ड्रेस उन्हें उतनी पसंद नही थी।इसकी वजह इसका प्रिंट और रँग था।मैंने चहकते हुए शतेश को बोला देखा -देखा।शतेश अभी उसी का बदला सलाद के टाइम ले रहे थे।तपस्या जरुरी नही हर वक़्त तुम्हारी पसंद सही हो,देखा -देखा।हमलोग 1 बजे रात तक वहाँ रुके।अगले दिन जेट स्की किया।एवरग्लाड नैशनल पार्क गए।जहाँ बोट पर बिठा के एक राइड पर ले गए।मगरमच्छ और क़ुछ विलुप्त हो रहे चिड़ियों को दिखाया।बॉट पर बैठी मै आस -पास के नज़रो से रिलेट करती हुई खुद को "हंगरी टाइड "की "पियाली रॉय" समझने लगी।जो बे ऑफ़ बंगाल में डोळ्लफिन पर रीसर्च करने आई होती है।फर्क ये था मै "तपस्या" हूँ और मै लुप्त हो रहे मगरमच्छ को देख रही थी।रात को हमारी वापसी की फ्लाइट थी।हमलोग फिर से पाम बीच पहुँचे।थोड़ा वहाँ घुमा और वापस एयरपोर्ट आगये।
Monday 28 December 2015
KHATTI-MITHI: अनप्लांड मियामी यात्रा और आदि मानव !!!
KHATTI-MITHI: अनप्लांड मियामी यात्रा और आदि मानव !!!: कुछ दोस्तों ने मुझसे पूछा था ,मियामी की यात्रा कब लिखोगी ? मैंने तब उनको यही कहा था कि ,साल के अंत में मियामी और न्यू यॉर्क के बारे में लिख...
अनप्लांड मियामी यात्रा और आदि मानव !!!
कुछ दोस्तों ने मुझसे पूछा था ,मियामी की यात्रा कब लिखोगी ? मैंने तब उनको यही कहा था कि ,साल के अंत में मियामी और न्यू यॉर्क के बारे में लिखूंगी।मिआमी और कोलोराडो मेरी सबसे पसंदीदा यात्रा रही है।अब तक की यात्राओ में से।मिआमी जहाँ बिना प्लान के सब कुछ मजेदार हो रहा था।वही कोलोराडो दोस्तों के साथ रोड ट्रिप (16 घंटे की) मजेदार थी।अभी बात मिआमी की।मियामी जाने के लिए शतेश ने यूनाइटेड एयर लाइन की टिकेट ली थी।टिकट थोड़ी सस्ती मिली थी।पर उसमे एक क्लॉज था।अरे भाई कोई भी चीज़ सस्ती या फ्री नही होती क्या समझे ?तो क्लॉज ये था कि ,हमलोगो को डायरेक्ट नेवार्क से फ्लाइट ना लेके,पहले फिलिडेल्फिया जाना होगा।वहाँ से "एम ट्रैक" लेकर नेवार्क जाना होगा।फ्लाइट की टिकट एम ट्रैक के टिकेट काउंटर पर ही मिलेगी एकसाथ।फिलिडेल्फिया हमारे घर (न्यू जर्सी )से 45 मिनट या एक घंटे की दुरी पर होगा।बेस्ट पार्ट ये था की ,हमें एम ट्रैक का टिकेट नही लेना था।हमलोग खुश थे की ,अमेरिका के सबसे तेज चलने वाली,महँगी ट्रैन का हमलोग फ्री में दौरा कर रहे है।मुझे नही पता इससे एयरलाइनस को क्या फायदा हुआ होगा।हो सकता हो उनका कुछ एम ट्रैक वालो से कॉन्ट्रैक्ट हो।फिलिडेल्फिया पहुंच कर हमने वहाँ से एम ट्रैक लिया नेवार्क एयरपोर्ट के लिए।शाम के 8 बजे के करीब हमारी फ्लाइट थी।नेवार्क हमलोग समय से पहुंच गए थे।थोड़ा टाइम था ,तो हमने सोचा खाना खा लेते है।वैसे भी लोकल फ्लाइट में खाना नही मिलता।एयरपोर्ट पर ही रेस्तरां एरिआ में फ्राइड राइस ,सलाद और वेज रोल लिया।खाना ख़त्म करके वेटिंग एरिया में कुछ 20 मिनट वेट किया होगा।इसके बाद चेकिंग शुरू हो गई। हमलोग11 :30 के आस -पास मियामी से नियरेस्ट एयरपोर्ट "वेस्ट पाम बीच" पहुंचे।गाड़ी रेंटल लेने और बाहर निकले तक 12 ;45 हो गए थे।वहाँ से पास में ही शतेश ने हॉटेल बुक किया था।हमलोग 1 बजे तक हॉटेल पहुँचे।अगले दिन सुबह 9 बजे फ्रेश होकर हमलोग ब्रेकफास्ट के लिए निकले।ब्रेकफास्ट के साथ कहाँ -कहाँ जाना है ,का बुकलेट देखने लगे।जो हर टूरिस्ट प्लेस के हॉटेल या रेस्तरॉ में मिलता है।हुमलोगो ने एक दिन बीच ,एक दिन कीवेस्ट और एक दिन एक्टिविटी और अदर्स के लिए रखा।फटाफट तैयार होकर हमलोग निकल पड़े फेमस साउथ बीच की तरफ।शतेश ने जीपीएस में पॉइंट ऑफ़ इंट्रेस्ट डाला।और साउथ बीच की तरफ निकल पड़े।जीपीएस ने रास्ते में एक और बीच दिखाया।शतेश बोले इस बीच को भी देखते चले क्या ?सुना है यहाँ के सारे बीच बहुत सुन्दर है।मैंने कहा ठीक है चलो।रास्ते में ही तो है।इसे भी देख लेते है।हमलोग वहाँ पहुँचे तो ,पार्किंग के सिर्फ 7 डॉलर की।पार्किंग टिकेट के साथ संस्क्रीम के दो छोटे पाउच भी मिले।हमदोनों खुश कि ,इतनी सस्ती पार्किंग मिल गई।साथ में संस्क्रीम भी।वैसे भी हमारी क्रीम जल्दीबाजी में घर पर ही रह गया था।मैंने रास्ते में शतेश को बोला था ,कही मेडिसिन शॉप या वॉलमार्ट देख कर रोक लेना संस्क्रीम लेनी है।हमें कही कोई शॉप ऐसी नही दिखी।शतेश बोले अरे यार टेंशन मत लो।हमलोग इंडियन है।हमें टैनिंग नही होती :) गाड़ी पार्क करके हमलोग बीच ढूँढने लगे।जहाँ पार्किंग थी ,उसके सामने समदर तो था ,पर किनारे पत्थर लगे हुए।बैठने के लिए बेंच और ग्रिल करने की जगह थी।ट्रेल बने थे वॉक के लिए।दूसरी तरफ सड़क थी।4 -5 लोग तौलिया लेकर उस तरफ जा रहे थे।शतेश बोले इन्ही के साथ चल लेते है। लोग सड़क को पार कर लाइन से लगे पेड़ की तरफ जा रहे थे।हमलोग जब उधर गए तो एक बोर्ड पर लिखा था "हॉलोवेर बीच" दिस साइड।हमलोग भी सड़क को पार करके बीच की तरफ गए।दो -चार लोग आते -जाते दिख।मैंने शतेश से पूछा मैंने तो सुना है ,यहाँ के बीच पर बहुत भीड़ होती है।यहाँ तो लोग ही नही दिख रहे।शतेश बोले मै भी पहली बार आया हूँ मियामी।चलो थोड़ा आगे चलते है।हमलोग थोड़ा ही आगे गए होंगे कि ,कुछ नंगे लोगो को दौड़ते देखा।मैं हँस पड़ी।हमे लगा एक आध पागल हर जगह मिल जाते है ,शायद ये वही हो।हमलोग इग्नोर करके आगे गए।ओ बेटा आगे का नज़ारा देख कर मेरे तो आँख -कान दोनों लाल हो गए।शतेश मुझसे बोलते है ,कही ये न्यूड बीच तो नही ? मैंने कहा मुझे क्या मालूम।आपने जीपीएस देवी से पूछो।शतेश मुझसे सॉरी -सॉरी किये जा रहे थे।हमलोग ने सोचा अब क्या करे ? उन सारे लोगो में मतलब 1000 /2000 आदि मानव के बीच हमलोग बिल्कुल अलग दिख रहे थे।हमने सोचा थोड़ी देर बैठ जाते है।कोई एक कोना पकड़ के समुन्दर की तरफ देखते है।तुरंत जाना भी थोड़ा अजीब लग रहा था।वैसे भी कुछ लोग हमें भी देख रहे थे।वो समझ गए होंगे की ,हमलोग पहली बार ऐसी जगह पर आये है।या जैसे मैंने उन्हें पागल समझा था ,वो हमे समझ रहे होंगे।हमलोग थोड़ा और आगे जाकर ,जहाँ थोड़ी कम भीड़ थी।एकदम समुन्दर के किनारे तौलिया बिछाया ताकि हमारे आगे कोई ना हो।समुन्दर की तरफ देख के बाते करने लगे।बाते भी क्या इंडिया और अमेरिका के फ्रीडम को लेकर।यहाँ देखो ,औरत -मर्द ,बूढ़े -जवान सब नंगे मतलब नंगे घूम रहे है।आदि मानव की तरह।किसी को कोई फर्क नही पड़ रहा था।सब अपने -अपने तरह से एन्जॉय कर रहे थे।कोई डिस्क थ्रो खेल रहा था ,तो किसी का पति या बॉयफ्रेंड अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड का मसाज कर रहा था।बूढ़े लोग कही चेयर पर कही नीचे लेटे आराम से बाते कर रहे थे।इनसब सब दृश्य के साक्षी हमलोग बात -चीत के दौरान थोड़ा -इधर उधर नजर मार कर बने थे।तभी कुछ यंग लड़के -लड़की का ग्रुप हमारे सामने खाली पड़े समदर में कूद गया।अब हमलोग किधर देखे ? उफ्फ ये भारतीय लोक -लाज का खून।।शतेश को कुछ नही सुझा तो ,पेट के बल बालू पर लेट कर मोबइल निकाल कर अगला डेस्टिनेशन ढूँढने लगे।बोले बहुत हुआ चलते है। हमलोग अमूमन 15 -20 मिनट रुके होंगे वहाँ।बेचारे शतेश मन में सोच रहे होंगे ,यार कहाँ से तपस्या के साथ आ गया।अकेले या दोस्तों का साथ होना चाहिए था यहाँ।और मै चलो ये भी शौक पूरा करवा दिया तुमने शतेश को बोला।शतेश को लगा ये कमेंट था शरमा कर बोले ,अरे मुझे भी कहाँ मालूम था।हमलोग वहाँ से चलने लगे।आते वक़्त कोने पे झाड़ के नीचे एक बोर्ड दिखा। जिसपे लिखा था -बियॉन्ड दिस पॉइंट न्यूड बीच स्टार्ट।सेक्स इस ओफ्फेंसिव।यू मेय अरेस्टेड।नोट का सार ये था कि -इसके आगे नग्न लोग का समंदर मिलेगा।शारीरिक सम्बन्ध जुर्म है ,आपको जेल भी हो सकती है।मैं तो जोर -जोर से हँसने लगी ,कि इस बोर्ड को इतने कोने में क्यों लगा रखा है ? ताकी हम जैसे लोग कही नज़र पड़ते ही ना भाग जाये।पर एक बात माननी पड़ेगी।आजादी का हर मायना मैंने यहाँ (अमेरिका ) में देखा ,समझा और महसूस किया है।अच्छा है ऐसे बीच इंडिया में नही है।आप सोच सकते है ।वहाँ तो कपड़ो के ऊपर रेप हो जाता है।फिर यहाँ तो बात न्यूड बीच की थी।ये रहा हॉलोवेर बीच का एक कोना
तो ये थी ,हमारी अनप्लानड यात्रा।हॉलोवेर बीच के बाद हमलोग ने जीपीएस माता को छोड़ गूगूल भईया का साथ चुना।और पहुँच गए ,साऊथ बीच।कल उसकी कहानी ...........
Thursday 24 December 2015
KHATTI-MITHI: क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो !!!
KHATTI-MITHI: क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो !!!: माँ ! क्या लिखूँ तुम्हारे जन्मदिन के अवसर पर ? यही कि अब मुझे अच्छा नही लगता तुम्हारा जन्मदिन। "पच्चीस दिसम्बर" पूरी दुनिया में ...
क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो !!!
माँ !
क्या लिखूँ तुम्हारे जन्मदिन के अवसर पर ? यही कि अब मुझे अच्छा नही लगता तुम्हारा जन्मदिन। "पच्चीस दिसम्बर" पूरी दुनिया में क्रिसमस के लिए जाना जाता है।पर हमारे लिए तो सिर्फ तुम्हारा जन्मदिन होता है ।क्रिसमस तो एक छूटी भर था।वैसे भी छोटे जगह से होने के कारण हम कहाँ क्रिसमस ट्री लगाते या सांता का इंतज़ार करते ? हमारे लिए तो तुम्हारा जन्मदिन ही त्यौहार होता।और तुम हमारी प्यारी सांता।जन्मदिन तुम्हारा होता है ,नए कपडे हमलोग पहनते।मिठाई खाते ,कॉलोनी के लोगो में बाँटते।आज भी वो सिलसिला बरकार है।पर हमलोग साथ नही।तुम्हे जन्मदिन मानना पसंद नही।फिर भी हमेशा से ना चाहते हुए भी, तुम नए कपडे पहनती हो।हर बार कहती हो कि ,अब क्या जन्मदिन मानना।मैं बूढ़ी हो गई हूँ।हर बार हमारे लिए वो सब करती हो ,जो हमें अच्छा लगता है।तुम्हे याद है एक बार मैंने तुम्हारा बाल बनाया था।अपनी ड्रेस पहना दी थी।उस वक़्त भी तुम ना चाहते हुए ,मेरी ख़ुशी के लिए वो सब कर रही थी।तुम कितनी सुन्दर लगी थी।
मेरी और चुलबुल की हमेशा लड़ाई होती कि ,तुम किसे ज्यादा प्यार करती हो ? तुम्हारा हमेशा का फेवरेट डायलॉग तुम दोनों मेरे दोनों आँख हो।किसी एक को भी तकलीफ होगी तो दूसरा आँख रोयेगा।और चुलबुल जोश में आकर कहता तो लाओ मेरा वाला आँख मैं निकाल लेता हूँ।तुम इतनी भोली हो की तुम्हे लगता कि, सच में वो तुम्हारी आँख निकाल लेगा।तब मासूम सा चेहरा बना कर कहती ,अच्छा ठीक है निकाल लो।तुम्हारी ही माँ अंधी हो जायेगी।तुम्हे तो याद ही होगा ये तस्वीर
चुलबुल हमेशा लड़ता कहता माँ तुम मुझे प्यार नही करती।अगर करती तो थोड़ा काजल मुझे भी लगा देती।तुम्हे कुछ नही सूझता तो कहती ,अरे तुम तो ऐसे ही सुन्दर हो।या फिर स्टूडियो वाले ने दीदी को लगा दिया था।और मै तुम्हारे इस सफाई पे हँस -हँस के लोट -पोट हो जाती।माँ तुम्हार बारे में क्या लिखूँ ? मैंने तुम्हे हर रूप में देखा है।कभी एकदम कड़क तो कभी मुलायम ,कभी चिंतित तो कभी ख़ुशी में झूमती ,कभी हमसे मिलकर रोना तो कभी ना मिलने पर रोना।तुम्हारे संघर्ष के ऊपर तो एक किताब भी कम पड़ जायेगी।मैं कभी नही समझ सकती कैसे तुमने मेरा 14 साल इंतज़ार किया होगा।वो कौन सी उम्मीद रही होगी या फिर पापा का प्यार रहा होगा? पापा के ना होने की हमें कभी कमी महसूस ना होने दी।हर ख्वाहिशे पूरी की।मुझे याद है ,चार दिन का मुझे गिटार बजाने का भूत सवार हुआ।तुमने बिना कुछ कहे गिटार खरीदी दी।कभी डाटा नही की ,लड़की केवल पैसे बरबाद करती है।चुलबुल को कुछ माना भी कर दो पर मेरे लिए तुम हमेशा खड़ी रही।तुमने हर वक़्त मेरा साथ दिया ,चाहे वो पढाई हो या मेरी पर्सनल लाइफ।कही मैं गलत भी होती तो तुम और चुलबुल मुझे संभाल लेते।मेरी शादी के वक़्त सब बोल रहे थे कि ,कन्या दान जोड़े को देना चाहिए।तुम थोड़ी उदास थी ,पर मेरी ख़ुशी के लिए वो भी करने को तैयार थी।पर शायद तुम ये भूल गई थी कि ,तुमने दो जिद्दी ,शैतान बच्चो को जन्म दिया है।हमने भी कन्यादान तुमने से ही कराया।जिनको जो कहना था कहते रहे।पता है मुझे अपने शादी के एल्बम से तुम्हारी एक फोटो मिली। देखो तो जरा कौन सी माँ अपनी बेटी की शादी में जम्हाई पे जम्हाई ले रही होगी :)
वैसे एक बात बताऊ नींद तो मुझे भी आरही थी।शतेश तो बीच में सो भी गए थे :) कमबख्त इतने सारे रिवाज़ ही होते है ,कि इन्शान थक जाये।पर मुझे ये तस्वीर देख के बहुत हँसी आई।कमीना फोटोग्राफर मेरी माँ की जम्हाई पर नज़र डाले हुए था।मुझे नही पता मैं आज क्यों तस्वीरों ,ख़यालो में ही उलझी हूँ।रात के ढाई बज रहे है।हँस रही हूँ ,रो रही हूँ ,तुम्हे याद कर रही हूँ।इस वक़्त मेरी मन की क्या दशा है ,मै खुद नही जानती।मन कर रहा उड़ के तुम्हारे पास आ जाऊँ।अगर सच में कही सांता है।तो हे सांता ! मुझे और मेरे भाई को एक ही गिफ्ट दो।मेरी माँ की अच्छी सेहत ,ऐसा ही भोलापन ,और हमारा उम्र भर का साथ।माँ मै तुम्हारे साथ ही बूढ़ी होना चाहती हूँ।सोचो दोनों आराम कुर्सी पर बैठ कर अपने -अपने बच्चो की बुराई करेंगे।सामने हमारी बचपन की तस्वीर टंगी होगी।चुलबुल अपनी छड़ी के सहारे इधर -उधर घूमता तुमसे बहस कर रहा होगा कि ,तुम दीदी को ज्यादा प्यार करती हो।मै अपने टूटे दाँत के सहारे हँसती।और तुम अपनी काँपती उँगलियों को होठ पर रख मुझे चुप होने का इशारा करती।माँ तुमने सब इक्षायें पूरी की है।ये भी कर देना। क्योकि तुम माँ हो तुम कुछ भी कर सकती हो। कुछ भी।!Monday 21 December 2015
KHATTI-MITHI: मेरा इन्कॉउंटर !!!!
KHATTI-MITHI: मेरा इन्कॉउंटर !!!!: मैं और शतेश आज बसंतपुर जा रहे थे।सुबह से बारिश हो रही थी।हमलोग तैयार होके बैठे थे ,कि कब बारिश ख़त्म हो ,हमलोग निकले।मम्मी हँस रही थी।बोली ल...
मेरा इन्कॉउंटर !!!!
मैं और शतेश आज बसंतपुर जा रहे थे।सुबह से बारिश हो रही थी।हमलोग तैयार होके बैठे थे ,कि कब बारिश ख़त्म हो ,हमलोग निकले।मम्मी हँस रही थी।बोली लगता है तपस्या तुम्हारी माँ का बनवाया खाना ,वैसे ही रह जायेगा।भाई का कई बार कॉल आ गया था।नास्ते से लेकर खाने तक पर वो मेरा इंतज़ार कर रहा था।पर ये दुस्ट बारिस रुक ही नही रही था।हमलोग शाम के 4 बजके 30 मिनट पर घर से निकले।रोड तो अच्छा था ,पर लोग रोड को अपनी निजी सम्पति मान कर चल रहे थे।किसी ने रोड पर ही ठेला लगा रखा था।तो किसी की गाड़ी रोड पर पार्क थी।लोग बीच रोड पर साइकिल ,मोटर साइकिल चला रहे थे।बच्चे -बड़े रोड को फुटपाथ समझ कर खेल रहे थे ,चल रहे थे।हॉर्न की उनको कोई परवाह नही थी।मनो कह रहे हो ,बड़ा गाड़ी वाला बनतारह ,ना हटम का करबअ? शतेश सम्भल-सम्भल के गाड़ी चला रहे थे।मैंने हँसते हुये कहा ,टक्कर हो ना हो तुम खेत में जरूर गाड़ी ढुला दोगे।हमलोग 5 ;30 तक बसंतपुर पहुंचे।कॉलोनी का गेट बंद था।मैं छोटे गेट से दौड़ती हुई अंदर पहुँची।बाहर कॉलोनी की कुछ औरते -बच्चे बैठे थे।मुझे दौड़ते हुए देख कर बच्चे भी दौड़ते हुए मेरे पास आये।औरते आई बाप आई बाप करने लगी।मैंने उनको प्रणाम किया।तो मिसेस सिंह बोली जा हो लभली बियाह हो गईल लेकिन अभीहो उहे बुद्धि बा।दूल्हा के बाहर छोड़ के दौड़ैते आगइलु।मैं थोड़ा झेप गई।तब तक भाई भी बाहर आया।गेट खुलवा कर शतेश को अंदर लेकर आया।मुझे मारते हुए बोला और रात को आती।माँ मेरे आने की उम्मीद छोड़ शाम की पूजा की तैयारी कर रही थी।मुझे देख कर थोड़ी शॉक हुई ,फिर थोड़ा इमोशन दिखाया।मुझे बोली सुबह से सिर्फ खाना बनवा रही हूँ,और तुम आ ही नही रही थी।मैंने माँ को गले लगाया और थोड़ा रोना गाना हुआ। फिर माँ की नज़र मेरे कपड़ो पर गई।बोली अरे साड़ी और गहने क्यों नही पहने ? सब क्या सोच रहे होंगे।मैंने कहा छोडो ना ,जाओ शतेश भी आये है ,मिल लो उनसे।मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।रोज लोगो का मिलना-जुलना लगा रहता था।सुबह की चाय एक कॉलोनी के ही भईया के यहाँ से आती थी ,तो ब्रेकफास्ट किसी चाचा के यहाँ से,तो खाने की दावत कही और से।माँ परेशान की घर का भी खाना खाओ।ये ऐसा पहली बार नही था मेरे साथ। मैं जब भी बाहर से घर जाती, कॉलोनी के सब लोग ऐसा ही वर्ताव करते।बच्चे दिन भर हमारे यहाँ ही रहते।कोई स्कूल की छुट्टी ले लेता ,तो कोई टिफिन के बाद नही जाता।मुझे ख़ुशी थी कि ,वो सिलसिला आज भी मौजूद था।बस एक चीज़ का दुःख था कि ,अब लोग थोड़ा दिखावा कर रहे थे।थोड़े प्रैक्टिकल हो गए थे।मसलन कही जाओ ,जाते ही चाय नास्ता।उसके बाद आपने आस -पास के लोगो की बुराई।फिर मुझे बच्चा कब होगा और अमेरिका की बाते।ये तीनो बाते मुझे इरिटेट कर रही थी।पहले सब औरते एक साथ बैठती थी।अब लोगो का एक दूसरे के यहाँ आना -जाना बंद।बच्चे भी केवल मोबाइल या सीरियल ,फिल्म की बात कर रहे थे।क्या हो गया है सब को ? सबसे बड़ा ट्रेजेडी तो उस दिन हुआ ,जब मेरे यहाँ काम करने वाली बबिया की माँ एक लड़की को मेरे यहाँ लेकर आई।बबिया की माँ को भी दिखावे की बीमारी है।वो अपने पड़ोस की लड़की को सिर्फ ये दिखाने लाई थी ,की उसकी बेटी ठीक -ठाक घर में काम करती है।मैं ,भाई ,शतेश और भाई के एक -आध दोस्त आपस में बात कर रहे थे।तभी वो आई मुझसे बोली दीदी आपसे माँ किसी को मिलवाना चाहती है।मैं अंदर गई। देखा तो कोई 22 /23 साल की एक लड़की उसके साथ एक 15 /16 की दूसरी लड़की और बबिया की माँ बैठी थी।मुझे देख कर बबिया की माँ बोली यही इनकी बेटी है।माँ बोली लवली तुमलोग बाते करो मैं शाम का तुलसी जी को दिया दिखा देती हूँ।अब मेरा इन्कॉउंटर शुरू हुआ।बबिया की माँ मुझे बोली बबी तनी कुछ नास्ता (उस लड़की को) दे दी।मैंने बिस्कूट ,मिक्चर और थोड़ी मिठाई प्लेट में दे दी।तभी वो बोली अरे तनी नारंगिया आ सेउआ (सेब )भी काट के दे दी।तभी माँ तुलसी जी को दिया दिखा के वापस आई।ये सुनते ही माँ गुस्सा गई।बोली ये क्यों देगी ?आप दीजिये या बबिया को बोलिए।मेरी बेटी से मैं कभी पानी तक नही माँगती।बबिया की माँ शरमा गई बोली ,अरे नही हम खुद ले लेते है।माँ तो चली गई।पर इसका बदला उस लड़की ने मुझे पका कर लिया।उसके कुछ अंश।लड़की को आप इंटरभिवअर मान ले और मैं कैंडिडेट।
लड़की ;अच्छा तो शादी के कितने साल हुए ?
लवली ;दो साल।
लड़की ; शादी कहाँ हुई ? हसबेंड जी क्या करते है ?
लवली : शादी मढ़ौरा में हुई है। हसबेंड नौकरी करते है।
लड़की :मतलब क्या काम करते है ?
लवली :इंजीनियर है।
लड़की : इंजीनियर तो है।पर करते क्या है ?कोन से फील्ड में है ? पाइप फिटिंग की या बिजली- विजली का काम ?
लवली :(मन में कुढ़ते हुए अरे मेरी माँ) कुछ तो करते है कम्प्यूटर पर।
लड़की :अच्छा कम्प्यूटर। तो ये सब ठीक करते होंगे क्या जी ?
लवली : हम्म्म। सवाल से बचने के लिए छोटा हम्म्म।
लड़की :आपने सिंदूर क्यों नही लगाया ?पैर भी नही रँगे ? सुहागन को ये सब करना चाहिए।बाकी आजकल लोग कम ही करते है ,फैशन में।और भी कुछ बेतुके शादी से जुड़े सवाल।
लवली : थोड़ा हँसते हुए ,तुम्हारी तो शादी नही हुई ना ,बड़ा एक्सपीरियंस है।
लड़की :शादी की बात से खुश होते हुए।अरे नही महराज हम तो ऐसे ही पूछे। हमारी होगी तो हम भी करेंगे। (बातो से लग रहा था शादी के लिए मरे जा रही हो।)फिर सवाल- दो साल हो गए बच्चा क्यों नही हो रहा जी?
लवली :शर्म से लाल। (हे भगवान !अच्छा फ़साया।पहली बार मिल रही है।एक तो छोटी और देखो कितने कॉन्फीडेंट के साथ मेरे पर्सनल सवाल पूछ रही है) बोली अभी सोचा नही है।
तभी मेरी माँ फिर से आती है।ये सवाल सुन कर वो भी बोलती है ,उस लड़की से।अब तू ही पूछअ हम त पूछ के थाक गायनी।
मेरा गुस्सा सातवे आसमान में।मैंने गुस्से में माँ से पूछा ,पूजा के लिए देर नही हो रही ? लड़की खुद को तीसमार खान समझ कर।माँ के सामने ही दूसरा सलाह दे डाला।देखिए दवाई -वावई मत खाईयेगा।लोगो को उससे बच्चा नही होता।मैं वहाँ से बिना कुछ बोले ही उठ रही थी ,कि माँ समझ गई।अब तो होगा बिस्फोट।बोली अरे नही अभी ये लोग घूम- फिर रहे है।कोई बात नही आराम से सोच लेंगे।माँ उस लड़की को क्लैरिफिकेशन दे रही थी।मैं फिर बैठ गई।मन में सोच रही थी ,चलो कम से कम इसे दवा का तो मालूम है।वरना ये तो बच्चो की लाइन लगा देगी।इस लड़की को क्या समझाऊ।यहाँ तो शादीशुदा जिनको 3 /4 बच्चे है।उन्हें भी सेल्फ प्रोटेक्शन के नाम पर सिर्फ दवा ही मालूम है।हर कोई मुझे वहाँ यही सलाह दे रहा था।बच्चे करो ,दवा मत खाना।छोटे जगह रहते हुए भी सबको फैशन का मालूम है।सारे दिन टीवी से चिपके रहती है।सीरियल का एक -एक कैरेक्टर याद है।सारे विज्ञापन की चीज़े आपके घर में है।पर क्या कभी "कॉन्डोम" का ऐड नही देखा ? मामला गर्म देख कर उसने सवाल बदला।
लड़की ;तो कहाँ रहती है ,आप ?
लवली ; गुस्से को शान्त करते हुए ,अमेरिका।
लड़की :आपकी तो माँ बोल रही थी ,बिदेश।
लवली : हँसते हुए ,तो आपके अनुसार विदेश कहाँ-कहाँ है ?
लड़की :बिदेश त सउदिया में है ना।
लवली :ज्यादा दिमाग ना खपाने के चकर में ,हाँ।अमेरिका भी विदेश ही है।
लड़की :कितना तनखाह मिलता होगा ?
लवली :( बेटा आज तो तेरा मानसिक बलात्कार हो गया )खाने -पीने का खर्च निकल जाता है।
लड़की :दादी माँ की तरह आशीर्वाद देती हुई।अच्छा भगवान सबकी रोजी- रोटी बनाये रखे।खाने पीने तक हो जाता है और क्या चाहिए ? बाहर झाँकती हुई ,आपके हसबेंड कौन है ,बाहर बैठे लोगो में?
बबिया की माँ :अरे ऊ जे कुर्सिया पर हाफ पाइंट में नईखन बईठल इनका भाई के लगे उहे।
लवली :उसको भगाने के इरादे से ,बबिया की माँ को बोलती है। चाची इनके घर फ़ोन कर दीजिये ? शाम 7 :30 हो रहे है। घर वाले कही परेशान होंगे ?
लड़की :समय का जान कर।अरे नही- नही अब हमलोग जायेंगे। (दिमाग तो आपका चाट लिया ,पेट नास्ते से भर लिया और क्या चाहिए ?) आप भी आइये कभी हमारे यहां। हमारे यहाँ भी कमी नही है ,किसी चीज़ की।भगवान की दया से आटा चक्की है।सेवई पेरने की मशीन भी है।जाते -जाते उसे लगा होगा अरे इसने तो मेरे बारे में कुछ पूछा ही नही ?मैं ही बता देती हूँ।तभी बबिया की माँ बोली ये लोग सिर्फ कॉलोनी में रहते है।ज्यादा किसी के यहाँ आते- जाते नही।मुझे मिलने का फिर से वादा देकर वो प्रौढ़ ज्ञान की देवी गई।मैं भुनभुनाती हुई भाई के पास गई।सारा गुस्सा उसपर निकला।वो हँस कर बोला तो वहाँ से आ जाती या मुझे बुला लेती।मैं भी बबिया के माँ की वजह से मजबूर थी।जब थोड़ा गुस्सा शांत हुआ।मन में सोचा कितनी कम उम्र में लड़कियाँ/लड़के बड़े हो जा रहे है ,आजकल।या फिर उनको बड़ा बनने का शौख हो गया है?
लड़की ;अच्छा तो शादी के कितने साल हुए ?
लवली ;दो साल।
लड़की ; शादी कहाँ हुई ? हसबेंड जी क्या करते है ?
लवली : शादी मढ़ौरा में हुई है। हसबेंड नौकरी करते है।
लड़की :मतलब क्या काम करते है ?
लवली :इंजीनियर है।
लड़की : इंजीनियर तो है।पर करते क्या है ?कोन से फील्ड में है ? पाइप फिटिंग की या बिजली- विजली का काम ?
लवली :(मन में कुढ़ते हुए अरे मेरी माँ) कुछ तो करते है कम्प्यूटर पर।
लड़की :अच्छा कम्प्यूटर। तो ये सब ठीक करते होंगे क्या जी ?
लवली : हम्म्म। सवाल से बचने के लिए छोटा हम्म्म।
लड़की :आपने सिंदूर क्यों नही लगाया ?पैर भी नही रँगे ? सुहागन को ये सब करना चाहिए।बाकी आजकल लोग कम ही करते है ,फैशन में।और भी कुछ बेतुके शादी से जुड़े सवाल।
लवली : थोड़ा हँसते हुए ,तुम्हारी तो शादी नही हुई ना ,बड़ा एक्सपीरियंस है।
लड़की :शादी की बात से खुश होते हुए।अरे नही महराज हम तो ऐसे ही पूछे। हमारी होगी तो हम भी करेंगे। (बातो से लग रहा था शादी के लिए मरे जा रही हो।)फिर सवाल- दो साल हो गए बच्चा क्यों नही हो रहा जी?
लवली :शर्म से लाल। (हे भगवान !अच्छा फ़साया।पहली बार मिल रही है।एक तो छोटी और देखो कितने कॉन्फीडेंट के साथ मेरे पर्सनल सवाल पूछ रही है) बोली अभी सोचा नही है।
तभी मेरी माँ फिर से आती है।ये सवाल सुन कर वो भी बोलती है ,उस लड़की से।अब तू ही पूछअ हम त पूछ के थाक गायनी।
मेरा गुस्सा सातवे आसमान में।मैंने गुस्से में माँ से पूछा ,पूजा के लिए देर नही हो रही ? लड़की खुद को तीसमार खान समझ कर।माँ के सामने ही दूसरा सलाह दे डाला।देखिए दवाई -वावई मत खाईयेगा।लोगो को उससे बच्चा नही होता।मैं वहाँ से बिना कुछ बोले ही उठ रही थी ,कि माँ समझ गई।अब तो होगा बिस्फोट।बोली अरे नही अभी ये लोग घूम- फिर रहे है।कोई बात नही आराम से सोच लेंगे।माँ उस लड़की को क्लैरिफिकेशन दे रही थी।मैं फिर बैठ गई।मन में सोच रही थी ,चलो कम से कम इसे दवा का तो मालूम है।वरना ये तो बच्चो की लाइन लगा देगी।इस लड़की को क्या समझाऊ।यहाँ तो शादीशुदा जिनको 3 /4 बच्चे है।उन्हें भी सेल्फ प्रोटेक्शन के नाम पर सिर्फ दवा ही मालूम है।हर कोई मुझे वहाँ यही सलाह दे रहा था।बच्चे करो ,दवा मत खाना।छोटे जगह रहते हुए भी सबको फैशन का मालूम है।सारे दिन टीवी से चिपके रहती है।सीरियल का एक -एक कैरेक्टर याद है।सारे विज्ञापन की चीज़े आपके घर में है।पर क्या कभी "कॉन्डोम" का ऐड नही देखा ? मामला गर्म देख कर उसने सवाल बदला।
लड़की ;तो कहाँ रहती है ,आप ?
लवली ; गुस्से को शान्त करते हुए ,अमेरिका।
लड़की :आपकी तो माँ बोल रही थी ,बिदेश।
लवली : हँसते हुए ,तो आपके अनुसार विदेश कहाँ-कहाँ है ?
लड़की :बिदेश त सउदिया में है ना।
लवली :ज्यादा दिमाग ना खपाने के चकर में ,हाँ।अमेरिका भी विदेश ही है।
लड़की :कितना तनखाह मिलता होगा ?
लवली :( बेटा आज तो तेरा मानसिक बलात्कार हो गया )खाने -पीने का खर्च निकल जाता है।
लड़की :दादी माँ की तरह आशीर्वाद देती हुई।अच्छा भगवान सबकी रोजी- रोटी बनाये रखे।खाने पीने तक हो जाता है और क्या चाहिए ? बाहर झाँकती हुई ,आपके हसबेंड कौन है ,बाहर बैठे लोगो में?
बबिया की माँ :अरे ऊ जे कुर्सिया पर हाफ पाइंट में नईखन बईठल इनका भाई के लगे उहे।
लवली :उसको भगाने के इरादे से ,बबिया की माँ को बोलती है। चाची इनके घर फ़ोन कर दीजिये ? शाम 7 :30 हो रहे है। घर वाले कही परेशान होंगे ?
लड़की :समय का जान कर।अरे नही- नही अब हमलोग जायेंगे। (दिमाग तो आपका चाट लिया ,पेट नास्ते से भर लिया और क्या चाहिए ?) आप भी आइये कभी हमारे यहां। हमारे यहाँ भी कमी नही है ,किसी चीज़ की।भगवान की दया से आटा चक्की है।सेवई पेरने की मशीन भी है।जाते -जाते उसे लगा होगा अरे इसने तो मेरे बारे में कुछ पूछा ही नही ?मैं ही बता देती हूँ।तभी बबिया की माँ बोली ये लोग सिर्फ कॉलोनी में रहते है।ज्यादा किसी के यहाँ आते- जाते नही।मुझे मिलने का फिर से वादा देकर वो प्रौढ़ ज्ञान की देवी गई।मैं भुनभुनाती हुई भाई के पास गई।सारा गुस्सा उसपर निकला।वो हँस कर बोला तो वहाँ से आ जाती या मुझे बुला लेती।मैं भी बबिया के माँ की वजह से मजबूर थी।जब थोड़ा गुस्सा शांत हुआ।मन में सोचा कितनी कम उम्र में लड़कियाँ/लड़के बड़े हो जा रहे है ,आजकल।या फिर उनको बड़ा बनने का शौख हो गया है?
Wednesday 16 December 2015
KHATTI-MITHI: हमारे गाँव की कुलदेवी !!!
KHATTI-MITHI: हमारे गाँव की कुलदेवी !!!: सिलौहरी मंदिर में पूजा करने के बाद हमलोग गाँव की कुलदेवी के पूजा को गए।अच्छा एक और बात है ,घर के कुलदेवता या देवी और गाँव के कुलदेवता या द...
हमारे गाँव की कुलदेवी !!!
सिलौहरी मंदिर में पूजा करने के बाद हमलोग गाँव की कुलदेवी के पूजा को गए।अच्छा एक और बात है ,घर के कुलदेवता या देवी और गाँव के कुलदेवता या देवी अलग -अलग होते है।घर के कुल देवता /देवी को एक परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत तरीको से पूजते आते है।वही गाँव के कुलदेवता /देवी को पूरा गाँव पूज सकता है।वैसे ज्यादातर लोग किसी शुभ काम के होने या शादी व्याह जैसे मौके पर ही इनकी पूजा करते है।नही तो घर में है ही शिव जी ,विष्णु जी ,हनुमान जी ,दुर्गा माँ आदि -आदि।मेरे ससुराल के भी कुलदेवता "सोखा बाबा" ही है। इनके बारे में मम्मी ने कुछ नही बताया।शायद उन्हें भी इतना ही मालूम हो की, ये कुलदेवता है।हाँ गाँव की कुलदेवी है "सती मईया "उनकी कहानी मम्मी ने हमलोग को सुनाई।मुझे बड़ी खुशी हुई चलो कही तो मईया है।नही तो हर जगह बाबा ,बाबा।इस भावना का मेरे नारी होने से कोई सम्बन्ध नही।मैं तो बस शक्ति सामंजस्य की बात कर रही थी।अगर हर जगह मईया- मईया होता तो, मुझे बाबा के होने पर ख़ुशी होती।खैर छोड़े इस बवाल की बात को। हमलोग गाँव के एक सिंगल लेन वाले रास्ते से जा रहे थे।करीब 10 /15 मिनट चलने के बाद शतेश ने गाड़ी एक चौड़ी पगडंडी की तरफ मोड़ी।मैंने पूछा क्या हमलोग सही रास्ते पर जा रहे है ? शतेश बोले हाँ।रास्ता कच्चा है ,पर गाड़ियां जाती है वहाँ तक।शतेश मुझे दूसरी तरफ दिखाते हुए बोले ,वो देखो यहाँ हमलोग छठ पूजा करते है।हमलोग को वही उतरना था।चारो तरफ खेत ,पेड -पोधे।छठ पूजा के लिए बना एक तालाब।तालाब के किनारे कुछ छठ के स्तूप बने हुये।आस -पास में कुछ औरते घास काट रही थी।हमलोग को देख के आपस में बात करने लगी।घास काटना छोड़ कर हमें देख रही थी।शायद यही बात कर रही होंगी ,केकर बेटा -पतोह ह लोग ,या कहाँ से आइल बा लोग ? उनकी तरफ देखना छोड़, मैंने पास में एक यज्ञ मंडप देखा।वहां कुछ महीनो पहले बहुत बड़ा यज्ञ हुआ था।यज्ञ में एक आदमी को किसी ने मार डाला था।वो अलग कहानी है फिर कभी।वही पास में एक चापाकल लगा था।हमलोग हाथ पैर धो कर पहुंचे "सती मईया "के स्थान पर।स्थान के नाम पर एक बहुत बड़ा चबूतरा बना था।उसकी के ऊपर एक छोटा सा मंडप, जो ऊपर से खुला था।उसको चुनरी से छत बनाने की कोशिश की गई थी।दो गोलाकार आकृतियाँ।उनके ऊपर पीतल का एक परत चढ़ा हुआ।जिसको लोगो ने लाल -पीला कर रखा था।यही थी सती मईया।एक छोटा सा गेट भी था।मंडप से ठीक सटे ,पीछे की तरफ बहुत बड़ा पीपल और नीम का एक पेड़।ओह वहाँ से आने का मन नही कर रहा था।इतनी गर्मी में एक वही जगह थी जहाँ इतनी प्यारी हवा और मन को मोहने वाला वातावरण था।पूजा करके हम तीनो चबूतरे के पास खड़े होकर सती मईया और खेत- खलिहान की बाते करने लगे।ना चाहते हुए भी वहाँ से घर जाना पड़ा।बहुत सारे सवाल सती मईया के बारे में सोचती हुई, घर के लिए निकल पड़ी।आखिर कौन थी "सती मईया" ? मम्मी ने जो( दन्त कथा) सुनी -सुनाई कहानी हमलोग को सुनाई थी।वो ये थी।शतेश के पूर्वज में एक लड़की थी।उनकी शादी हो गई थी, पर कोई बच्चा नही था।एक दिन उनके पति का देहांत हो गया।पति की अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू हो गई।जब पति को श्मशान घाट ले जाने लगे ,वो अपने पति से लिपट -लिपट के रोने लगी।उन्हें जाने नही दे रही थी। लोग परेशान की अब क्या करे ? वहाँ गाँव का एक तेली भी था।जो अपना आपा खो बैठा और ताने देकर बोला ,रो तो ऐसे रही है ,जैसे सती बन जायेगी।एक तो पति का दुःख ,ऊपर से ऐसी बाते सुनकर उनको बहुत दुःख हुआ।वो बोली हाँ मैं "सती बनूँगी" ,पर मेरी भावना का मजाक बनाने वाले तुम भी गल -गल के मरोगे।तुम्हारा परिवार भी मेरे श्राप का भागी होगा।इसके बाद वो सती हो गई।उस तेली को भी कुछ समय बाद कुष्ठ रोग हो गया।उनके सती होने के बाद ,उन्हें गाँव की कुलदेवी की उपाधी दी गई।तेली के यहाँ कोई न कोई एक कोढ़ी होता गया, पीढ़ी दर पीढ़ी।अब मेरी दुबिधा ये थी ,क्या एक जीती -जागती स्त्री जल रही थी , दुःख से या समाज के ताने से ? क्या उसको रोकने की किसी ने कोशिश की होगी ?या सच में उसके मन में पति के साथ ही दुनिया छोड़ने की भावना रही होगी ?या फिर उसे जबरदस्ती जलाने के बाद सती माँ का नाम दे दिया गया।वाह समाज तुमने उसके पति के मरने के बाद उसके अंदर जीने की भावना तो नही भरी हाँ !उसके मौत को दैविक जरूर बना दिया।रहा उनके श्राप की बात तो पहले कोढ़ की कोई दवा न थी ,छुआ -छूत की बीमारी थी।घर में किसी को हो तो स्वभाविक है ,दूसरे को भी हो सकती थी।सचाई जो भी हो।आज वो हमारे गाँव की कुलदेवी है।मुझे माफ़ कीजियेगा सती माई।काश उस वक़्त मैं होती ,आपको बचा पाती।
आपसे हमेशा के लिए माफ़ी ,आपको सादर प्रणाम है ,"सती मईया"
आपसे हमेशा के लिए माफ़ी ,आपको सादर प्रणाम है ,"सती मईया"
Tuesday 15 December 2015
KHATTI-MITHI: कहानी मंदिर और दूकानदार की !!!!
KHATTI-MITHI: कहानी मंदिर और दूकानदार की !!!!: मेरी आज की यात्रा एक मंदिर और कुलदेवी की दन्त कथा से जुड़ी है।मेरी जानकारी के अनुसार लगभग हर हिन्दू परिवार के एक कुलदेवी या कुलदेवता होते है...
कहानी मंदिर और दूकानदार की !!!!
मेरी आज की यात्रा एक मंदिर और कुलदेवी की दन्त कथा से जुड़ी है।मेरी जानकारी के अनुसार लगभग हर हिन्दू परिवार के एक कुलदेवी या कुलदेवता होते है।वैसे उनकी कोई तस्वीर नही होती।पूजा घर के एक कोने में उनका स्थान बना रहता है।कुछ कुलदेवता/ देवी का गाँव से बाहर, किसी खेत में, एक बहुत ही छोटा मंदिर बना होता है।देवी /देवता के नाम पर मिट्टी या सीमेंट का गोल आकृति बना होता है।उस गोलनुमा आकृति को लोग सिंदूर ,कुमकुम से पोत -पोत कर लाल कर दिए रहते है।थोड़ा बचपन में जाये तो मैं हमेशा से थोड़ी कंफ्यूज रहती थी।कि ये कैसे देवी /देवता जिनका कोई रूप नही।नाम भी उनके थोड़े अलग होते है।जैसे मेरे मायका के कुलदेवता "सोखा बाबा" और "नर्शिम्हा भगवान" .नर्शिम्हा भगवान को तो कृष्णा सीरियल में देखा था ,पर ये सोखा बाबा कौन है मालूम नही।घर पर सब लोग इन देवताओ से बहुत डरते है।इनका पूजा बहुत ही नियम से होता है।इतनी श्रद्धा देख के कभी हिम्मत ही नही हुई ,सोखा बाबा के बारे में किसी से पूछने की।खैर शादी के बाद जब ससुराल गई तो वहाँ भी कुलदेवी के दर्शन कराये गए।तब तो इतनी जिज्ञासा नही थी ,उनके बारे में जानने की।उस वक़्त तो लग रहा था ,कब ख़त्म होंगे सारे रस्मो -रिवाज़।इस बार घर गई तो मम्मी बोली तपस्या इतने दिनों बाद आई हो ,जाके तुम और शतेश कुलदेवी के दर्शन कर लो।साथ में "सिल्हौरी के भोले बाबा" का भी दर्शन कर लेना।पास में ही है ,बहुत जगता मंदिर है।अमूमन दो -तीन गाँव के बीच कोई ना कोई एक मंदिर बन जाता है ,जो जगता (हर मनोकामना पूरी करने वाला )हो जाता है।दूर -दूर से गाँव वाले भगवान का आशीर्वाद लेने ,तो कभी अपने बेटा -बेटी का देखउकी (शादी की पहली बातचीत की शुरुआत )कराने आते है यहाँ।एक तरह से वो "मंदिर कम कम्युनिटी हॉल" होता है।सौभाग्य से वो जगता मंदिर मेरे घर से 10 मिनट की दुरी पर ही है।मैं ,मेरा भाई और शतेश मंदिर दर्शन के लिए निकले।मंदिर पहुंचे तो बाहर कुछ पंडित बैठे थे।माथे पर अलग -अलग तरीके का तिलक लगाये हुए।किसी ने गोल बिंदीनुमा ,तो कही गंगा की लहर बह रही थी ,कही शिव जी का आँख बना था।बगल में बैठा एक भक्त बड़ी प्रेम से खैनी मल रहा था।बाबा आवाज लगा रहे थे ,आइये यजमान आइये।पर हमलोग तो ठहरे खुद पंडित।इतनी आसानी से अपना ओहदा कैसे किसी और को दे देते ? हमने खुद ही पूजा करने का फैसला किया।मंदिर परिसर बूढी गाय और हड्डा -बीरनी का डेरा था।लोगो के अनुसार ये सब शिव जी के सवारी और भक्त थे।साफ -सफाई के नाम पर शिव जी के रूम को छोड़ बाकी जगहों पर सिंदूर ,बेलपत्र ,लड्डू ,बतासे गिरे पड़े थे।कुछ भगवान पर तो कुछ नीचे।शतेश और भाई ने हाथ मिलाने टाइप भगवान जी को प्रणाम किया और आगे बढ़ गए।मैं कभी जल गिरा रही थी ,तो कभी फूल और प्रसाद।तभी एक गाय मंदिर के कक्ष में चली आई।ऊपर से हड्डा उड़ने लगे ,प्रसाद और पानी की वजह से।डर से मैं चुलबुल (भाई )- शतेश चिल्लाने लगी।चुलबुल और शतेश आवाज सुनकर दौड़ कर आये।मुझे बाहर ला कर चुलबुल गुस्से में बोला।आज पूजा का सारा भूत उतर जाता ,जब गाय मरती या हड्डा कटता।हमलोग वहाँ का मुआयना टाइप करके बाहर निकल आये।बाहर आये तो मंदिर के पंडित लोग गाँजा पी रहे थे।मंदिर के ऊपर वाले भाग में भी कुछ भगवान थे।मतलब मूर्तियां थी।थोड़ा माहौल अजीब सा देख के भाई बोला रहने देते है।शतेश बोले अरे ये इनका रोज का काम है।कुछ नही होगा।चलो ऊपर भी देख लो।जब हमलोग ऊपर पहुंचे।देखा भगवान की मूर्तियों को जेल जैसा गेट बना कर बंद कर रखा है।लोगो ने गेट को ही सिंदूर से रंग दिया है।उसी के बीच फूल लड्डू और बतासे ठूसे हुए थे।एक आध पत्थर की मूर्तियाँ टूटी -फूटी कोने में पड़ी थी।वो भी लाल -पीली हो गई थी गुस्से में कि, उन्हें जेल में क्यों नही डाला।प्रणाम करके हमलोग वहाँ से बाहर निकले।मंदिर के बाहर छोटे -छोटे दूकान थे।जिसमे प्रसाद ,सिंदूर और लड़कियों के साजो सामान बिक रहे थे।शतेश के यहाँ एक लड़की काम करने आती है।मैंने सोचा उसके लिए कुछ खरीदा जाये।एक दूकान पर गई।भाई और शतेश भी पीछे -पीछे पहुंचे।मैंने एक माला लिया और एक हेयर पिन का दाम पूछा।दूकानवाले ने हेयर पिन का 35 रूपये बताया।वैसे मोल- भाव मुझे ठीक से नही आते।फिर भी मैंने उसको दाम थोड़ा कम करने को बोला।तभी मेरा भाई बीच में नारद की तरह कूद पड़ा।बोला एक तो गर्मी में ये सामान बेच रहा है ,ऊपर से दो पैसा कमायेगा नही ? मेरी और भाई की वही बहस शुरू हो गई।मेरा भाई दूकानवाले को बोला भाई एक पैसा कम मत करना।दुकान वाला बोला जाने दीजिये 30 रुपया दे दिजीए।उसे भी लग रहा होगा कैसा मुर्गा मिला है ,खुद ही कटने को तैयार।मैंने कहा ठीक है ,दे दीजिये।पर दूस्ट -पापी भाई बोला नही ! तुम्हे 35 रूपये ही देना होगा नही तो मैं दे दूँगा।मैंने गुस्से में हेयर पिन छोड़ा और बोला अब मैं लूँगी ही नही इसे।हमारा तमाशा देख के शतेश और दूकान वाले दोनों परेशान।हँसते हुए शतेश बोले अरे यार मैं दे देता हूँ।तुमलोग लड़ो मत।दूकानवाले ने मौका हाथ से जाता देख ,बेचारा सा मुँह बना कर बोला ,बहन जी परता नही पड़ रहा है।फिर भी चलिए 28 रुपया दे दीजिये।इनसब के बीच शतेश फ्रस्टेट होके दूकान वाले को 30रूपये दे दिए।पिन लिया और हुमलोगो को बोले जब तुमदोनो का हो जाये तो गाड़ी के पास आ जाना।हुमदोनो एक दूसरे को कोसते शतेश के पीछे -पीछे चल दिए।ये रही मंदिर की तस्वीर
कल कुलदेवी की कहानी......
कल कुलदेवी की कहानी......
Friday 11 December 2015
KHATTI-MITHI: कबीर और मेरी कल्पना का विद्रोही !!!
KHATTI-MITHI: कबीर और मेरी कल्पना का विद्रोही !!!: कबीर और गोरखनाथ जी की रचनाओं को ,"पंडित कुमार गन्धर्व "जी की आवाज में सुनना हमेशा से आत्मा को तृप्त करने जैसा होता है।ऐसा लगता ह...
कबीर और मेरी कल्पना का विद्रोही !!!
कबीर और गोरखनाथ जी की रचनाओं को ,"पंडित कुमार गन्धर्व "जी की आवाज में सुनना हमेशा से आत्मा को तृप्त करने जैसा होता है।ऐसा लगता है, मानो मन का ,कानो का एक अद्भुत ऑरगिज़म हो रहा हो।एक नशा जैसा हो जाता है।एक बार सुन लिया तो बार -बार एक ही गाने को प्ले करती रहती हूँ।आँखों से आँसू बहते रहते है।ये आँसू दुःख के कारण नही ,मन में त्याग और समर्पण के भाव के कारण आते है।आज मैं "युगन युगन हम जोगी" और "शून्य गढ़ शहर " सुन रही थी।पर आज इनको सुनने के बाद मन थोड़ा व्याकुल है।बार -बार मन रमाशंकर यादव "विद्रोही " जी की तरफ चला जाता है।मेरा और विद्रोही जी का साथ सिर्फ एक -आध सप्ताह का ही रहा।एक दो सप्ताह पहले से ही ,मैंने उनके बारे में जाना ,पढ़ा (धन्यवाद गर्वित ,धन्यवाद विष्णु)।पर अब वे मेरी कल्पनाओं में है।अब तक सिर्फ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्याल तक सिमटा एक वक्ति हर तरफ पन्नो पर क्यों रंगा है ?क्या ये सब पाने के लिए मरना जरुरी था ? क्या दुनिया में आपकी पहचान मरने के बाद ही मिलती है ?हो सकता हो जीते -जी उन्हें भी इन सब की ईक्षा ना हो।या "हो" जो ना मिल पा रही हो ,तो जोगी सा भेष बना लिया।मन को सबसे परे कर लिया।बस अपने आप में खोये रहे।ना समाज का डर ना परिवार का मोह।मन के गुस्से,पीड़ा को कविताओं का रूप दे दिया।मनमौजी जैसी जिंदगी जी।इसी ख्याल में कि कुछ नही तो कम से कम कोई पागल ,कोई फक्कड़ ,कोई विद्रोही ,तो कोई जोगी की तो उपमा जरूर देगा।अंततः आपको वो सब मिला।कही आप परेशान तो नही थे ? कही आपको ऐसा तो नही लगा कि, यहाँ किसान मर रहे है ,और मैं सिर्फ आसमान में धान बोन की बात करता हूँ।क्यों ना वहाँ जाके मैं सच में धान बोऊ।विद्रोही जी आप वहाँ धान बोइए।मै अपनी खिड़की से आसमान में लहराते आसमानी तो कभी सिंदूरी तो कभी काले धान के पौधो को देखूंगी।कबीर की भाषा मेरे कल्पना का एक जोगी एक "विद्रोही "
अवधूता युगन युगन हम योगी
आवै ना जाय मिटै ना कबह
सबद अनाहत भोगी
सभी ठौर जमात हमरी
सब ही ठौर पर मेला
हम सब माय सब है हम माय
हम है बहुरी अकेला
हम ही सिद्ध समाधि हम ही
हम मौनी हम बोले
रूप सरूप अरूप दिखा के
हम ही हम तो खेलें
कहे कबीर जो सुनो भाई साधो
ना हीं न कोई इच्छा
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं
खेलूं सहज स्वेच्छा
अंत में कबीर की ही कुछ पंक्तियाँ "विद्रोही "जी के शुभचिंतको ,दोस्तों और परिवार जनो के लिए,
अंत में कबीर की ही कुछ पंक्तियाँ "विद्रोही "जी के शुभचिंतको ,दोस्तों और परिवार जनो के लिए,
भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय। रोइये साकट बपुरे, हाटों हाट बिकाय ||
(जिसने अपने कल्याणरुपी अविनाशी घर को प्राप्त कर लिया, ऐसे सन्त भक्त के शरीर छोड़ने पर क्यों रोते हैं? बेचारे अभक्त - अज्ञानियों के मरने पर रोओ, जो मरकर चौरासी के बाज़ार मैं बिकने जा रहे हैं| )
भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय। रोइये साकट बपुरे, हाटों हाट बिकाय ||
Monday 7 December 2015
KHATTI-MITHI: नमकीन दाल भरी पूड़ी या मीठी पूरन पोली !!!!
KHATTI-MITHI: नमकीन दाल भरी पूड़ी या मीठी पूरन पोली !!!!: मै अपने ससुराल पहुँच चुकी हूँ।मेरा भाई ऊपर वाले कमरे में आराम करने चला गया।मुझे और शतेश को भी मम्मी ने आराम करने को बोला और अपने कमरे में च...
नमकीन दाल भरी पूड़ी या मीठी पूरन पोली !!!!
मै अपने ससुराल पहुँच चुकी हूँ।मेरा भाई ऊपर वाले कमरे में आराम करने चला गया।मुझे और शतेश को भी मम्मी ने आराम करने को बोला और अपने कमरे में चली गई।मम्मी के जाने के बाद शतेश तो खर्राटे लेने लगे पर मुझे नींद नही आ रही थी।ये वही कमरा था ,जहाँ से मै और शतेश परमानेंट रूमेंट्स बन गए थे।मेरे कहने का मतलब जो रूम शेयर करे वो रूममेट ही तो होता है।समय के साथ रूमेंट्स बदलते है ,पर अब तो इस जनम का रूममेट मिल गया है,जिसको चेंज नही कर सकते।इस बात की ख़ुशी भी है ,और दुःख भी।ख़ुशी ऐसे की रूममेट के बावजूद पूरा कमरा मेरा ,जैसे चाहूँ चेंजेज कर सकती हूँ।अपना सामान कही भी रख सकती हूँ।इस रूममेट पर अपनी धौंस जमा सकती हूँ।दुःख इस बात की लाख खर्राटों के बावजूद इस रूममेट का मर्डर नही कर सकती।वो तो शुक्र है ,बेड बड़ा है।वरना सुबह मैं नीचे गिरी हुई होती।अच्छा था हॉस्टल लाइफ।कम से कम कमरे में दो बेड तो होते थे।तू कर अपने बेड पे भांगड़ा।तू गिर नीचे ,मै तो आराम से सोऊ।एक दिन मेरा भी दिमाग घूमा।खर्राटे तो आते नही थे ,मैंने वॉलूम तेज करके टेबलेट पर गज़ल सुनने लगी।शतेश को गज़ल या हिंदुस्तानी क्लासिकल कुछ ख़ास पसंद नही।पहले मैंने मालिनी राजूरकर जी को सुना ,फिर जगजीत सिंह जी को,फिर गुलाम अली जी गा रहे थे।पर हद तो तब हुई जो कुम्भकर्ण (शतेश ) को कोई फरक ही नही पड़ा।उसी लय ताल से खर्राटे लेते रहे ,सोते रहे।गुस्से में मैंने दो -चार मुक्का मारा होगा।तभी गुलाम अली का ,हंगामा है क्यों बरपा बजने लगा।मैं जोर से हँस पड़ी।मुक्का खाने और मेरी हँसी सुनकर हड़बड़ा कर शतेश बोले ,क्या हुआ तपस्या सब ठीक है ना।और फिर सो गए।अब तो इस रूममेट की आदत हो गई है।किसी रात खर्राटे नही लेते ,तो मैं डर जाती हूँ।तो शतेश मस्त खर्राटों से घर को बेध रहे थे।मैं लेटी हुई खिड़की से बाहर खेतो के सौंदर्य का मजा ले रही थी।भोर हो गई थी।आस -पास के घरो से बच्चो के जगाने की आवाज आ रही थी।रे रुबिया उठ सबेर हो गईल।नइखू उठत रुकअ आवतानी।तभी मेरे घर से कूकर की सीटी की आवाज आई।समय कुछ 6 या 6 :30 हो रहे होंगे।मैं सौंदर्य पान और बहार की आवाजो से निकल कर किचेन की तरफ गई।देखा तो मम्मी दाल उबाल रही थी कूकर में।मैंने मम्मी को बोला इतनी सुबह क्या कर रही है? आराम से सब होगा।मम्मी बोली सोचा तुमलोग रास्ते में ठीक से खाये नही होगे ,और दाल भर के पूड़ी - खीर बनानी है ,तो समय लगेगा इसमें।मैंने कहा क्या जरुरत दाल भरके पूड़ी बनाने की।मम्मी ने कहा अरे नही तुम आई हो तो ,मैंने सोचा बनाती हूँ।बिहार में शादी के बाद जब नई दुल्हन ससुराल जाती है ,तो ससुराल में दाल भरी हुई पूड़ी ,गुड़ और चावल की खीर और सब्जी बनाया जाता है।इसे पड़ोसियों ,रिश्तेदारो में भी बाँटा जाता है।वैसे ये रस्म मेरा हो चूका था ,फिर भी मम्मी ये सब कर रही थी। उनको ये सब करके ख़ुशी मिल रही थी ,तो दूसरी और मैं भावुक हो रही थी।दाल भरी पूड़ी महाराष्ट्र की पूरन पोली का नमकीन वर्जन है।मतलब सारा प्रॉसेस सेम बस वहाँ दाल में चीनी या गुड़ डालते है ,बिहार में नमक डालते है।क्या करे हम बिहारी है ही नमकीन :) थोड़ी देर बाद शतेश भी जागे।मेरा भाई भी नीचे आँखे मलता हुआ आया।चाय की फरमाइश करके सामने चौकी पर बैठ गया।मैं चाय बना रही थी ,इसी बीच पापा टोकरी में सब्जी ले कर आये।मुझे टोकरी देते हुए बोले "देखअ बेटा अपना खेत में के ह ,हम बोअले बानी"।मैं हँसते हुए शतेश को बोली लो खाओ ऑर्गेनिक सब्जी।अमेरिका में ओर्गानिक ,इनऑर्गेनिक का बहुत ड्रामा है।सब्जी की टोकरी रख कर सबको चाय दिया मैंने।सब एकसाथ चाय पी रहे थे।पापा ने मजाक में मेरे भाई से पूछा , का हो चुलबुल बहिन के साथे ले जाईब का :) (क्या चुलबुल बहन को साथ ही ले जाओगे ) मेरा भाई हँसते हुए बोला ना पापा जी जब आपकी मर्जी हो भेज दीजिये दीदी को।तब तक मैं भी यही रहता हूँ।सबलोग हँसने लगे।
Tuesday 1 December 2015
KHATTI-MITHI: मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी !!!!
KHATTI-MITHI: मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी !!!!: पिछली यात्रा स्मरण से कहानी आगे बढ़ती है।मेरा भाई कहता है ,चलो घर चले।छपरा वेटिंग रूम से निकल कर हमलोग गाड़ी की तरफ जाते है।गाड़ी के पास पहुँच...
मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी !!!!
पिछली यात्रा स्मरण से कहानी आगे बढ़ती है।मेरा भाई कहता है ,चलो घर चले।छपरा वेटिंग रूम से निकल कर हमलोग गाड़ी की तरफ जाते है।गाड़ी के पास पहुँच कर पापा ड्राइवर को जगाते है।ड्राइवर मस्त शर्ट खोल कर बनियान में, पैर गाड़ी के खिड़की पर रख कर सोया हुआ था।पापा की आवाज सुनकर जागा।सामान गाड़ी में रखने के बाद वो बोला बाबा (मेरे ससुर जी ,को गाँव में सब बाबा कहते है ,ब्राह्मण होने की वजह से )रुकिए गाड़ी घुमा लेते है तो बैठियेगा आपलोग।गाड़ी स्टार्ट करने गया तो गाड़ी स्टार्ट ही नही हो रही।फिर हँसते बोलता है ,बाबा लागत ता धक्का देवे के पड़ी।बैट्री ख़त्म हो गइल बा।गरमी के वजह से पंखा चला के सूत गईल रहनी ह।पापा थोड़ा झल्लाते हुए बोले साफ़ बोका (मेल बकरी ) बाड़े ,गाड़ी के पंखा चला के सुते के चाही ? इस पूरी वार्तालाप का मतलब ड्राइवर गाड़ी में पंखा चला कर सो गया था ,जिससे बैट्री खत्म होगई थी ,और पापा झल्ला रहे थे।पापा को गाड़ी चलनी नही आती इसलिए एक ड्राइवर रखा है।ड्राइवर है तो बुद्धि से ठीक -ठाक पर थोड़ा और ज्यादा बुद्धिमान बनने की कोशिश करता है।खैर ये तो मनुष्य का स्वभाव ही है।पापा ,मेरा भाई और शतेश गाड़ी को धक्का दे रहे है रात के कोई 3 :30 हो रहे होंगे।मैं पीछे खड़ी सोच कर मुस्कुरा रही थी ,कि कही बीच में गाड़ी स्टार्ट हो जाये और धक्का देने वाला कोई झटके से गिर जाए तो ड्राइवर का क्या होगा।यही तो होता है ,पापी दिमाग की उपज।मुझे उनके गिरने की सोच की हँसी आ रही थी ,उनकी तकलीफ नही दिख रही थी जो वो धक्का लगाने में कर रहे थे।खैर ऐसा कुछ नही हुआ।गाड़ी स्टार्ट भी हो गई ,कोई गिरा भी नही।गाड़ी में जब बैठी तो मच्छरों का आक्रमण शुरू।खिड़की खुली होने से मच्छर गाड़ी के अंदर डेरा जमाये बैठे थे।या फिर हो सकता है ,ड्राइवर का "मजदुर खून" उन्हें पसंद आ गया हो।जो थकान की वजह से सोये ड्राइवर पर हर तरह से प्रहार कर रहे हो।ड्राइवर भी जैसे आँखे मूँदे सोच रहा हो ," खून ही तो है मेरा " ,पी लो।जब इंसान इंसान का खून पी रहा है ,तो तुम तो मच्छर- मक्खी हो।तुम्हारा काम ही खून पीना है।वैसे भी गरीबो का खून तो पसीने के बराबर होता है।"महत्वहीन" पर मैं भी ज्ञानी हूँ ,अकड़ू हूँ मैं तुम्हे अपने शरीर पर से नही हटाउँगा ,जब पेट भर जाए खुद उड़ जाना।हाँ मच्छर ज्यादा मत पी लेना ,नही तो उड़ा नही जायेगा तुमसे।और गलती से मेरा हाथ हिला तो नरक के अलावा कही और शरण नही मिलेगी।मैं भी क्या मच्छर और ड्राइवर के बीच उलझ गई।मेरा भाई, शतेश ,ड्राइवर और पापा बाते करते जा रहे थे।मैं अँधेरे में ,टिमटिमाते रौशनियों के बीच खिड़की से बहार देखती हुई पुराने दिन याद कर रही थी।मेरी विदाई भी ऐसे ही अँधेरे में हुई थी।समय कुछ 2 /3 घंटे आगे पीछे रहा होगा।ऐसा था कि सूर्योदय से पहले मुझे ससुराल पहुंचना था।तो मेरे भाई ने ठीक से रोने या लोगो से मिलने तक का मौका नही दिया।शादी के बाद कुछ रस्मो के पूरा होते ही मुझे गाड़ी में बिठा दिया।एक बार फिर से वही रास्ते ,वही शतेश।साथ में पापा और भाई का होना, ख़ुशी को और बढ़ा रहा था।सड़क के किनारे एक चाय के ढाबे पर पापा ने गाड़ी रुकवाई।सबने चाय पी और फिर घर के लिए रवाना हुए।बीच -बीच में ड्राइवर रास्ते और हमारी गाड़ी को कहाँ -कहाँ ठोक चूका था, बताते जा रहा था।शतेश की तो जान जा रही थी।उनकी रामप्यारी को ड्राइवर ने कितना कस्ट दिया था।इसी बीच हमलोग घर पहुँच गए। सुबह के 4 :30 हो रहे होंगे।गाड़ी की आवाज सुनकर मम्मी ने गेट खोला।मुझे और शतेश को देख खुद को रोक नही पाई।शतेश और मुझे गले लगाकर खूब रोइ।मैं भी रोने लगी ,शतेश भी थोड़े इमोशनल हो गए।मैं अपने रूम में पहुँची तो मम्मी ने मेरे रूम को काफी साफ़ और सजा कर रखा था।मुझे बहुत अच्छा लगा।मैंने मम्मी को थैंक यू बोला।तो बोली की मेरे लिए तो तुम आज दूसरी बार विदा होकर आई हो।तुम नही होती हो तो बेड मोड़ कर रख देती हूँ ,सारी खिड़की भी नही खोलती।धूल आता है और चूहे गद्दे काट देते है।मुझसे अब रोज -रोज इतनी साफ-सफाई नही हो पाती।पैर में दर्द रहता है ,लोग बोल रहे है गठिया हो गया है।रूबी(काम करने वाली लड़की )को कुछ एक्स्ट्रा पैसे देके सब करवाया है।देखो तुम्हारी शादी वाली बेडशीट बिछाई है।मैं और मम्मी फिर से रोने लगे।तभी पापा आते है ,और कहते है ये क्या रोना -धोना लगा रखी है सब। ये तो ख़ुशी का टाइम है।बेटा -पतोह के लिए कुछ बनाओ खिलाओ।फिर बोले काहो पिंटू लाल (शतेश )अब मत जा अमेरिका इहे रह।फिर रुक कर बोले ,चल ये पर बाद में बात होइ।अभी वैसे भी बहुत सुबह है ,इनलोगो को आराम करने दो और तुम (मम्मी ) भी सो जाओ।मम्मी आराम करने को बोल कर चली गई ,पर मेरी आँखों में नींद कहाँ। मच्छर ,ड्राइवर ,खून ,गठिया और मम्मी
Friday 27 November 2015
KHATTI-MITHI: शाइनिंग इंडिया और असहिष्णुता
KHATTI-MITHI: शाइनिंग इंडिया और असहिष्णुता: भाईयों और बहनों मैं थोड़ी कंफ्यूज हो गई हूँ।और इसी उम्मीद में कुछ लिख रही हूँ ,ताकि आपलोग मेरी कन्फ्यूजन दूर कर सके।ये "असहिष्णुता &qu...
शाइनिंग इंडिया और असहिष्णुता
भाईयों और बहनों मैं थोड़ी कंफ्यूज हो गई हूँ।और इसी उम्मीद में कुछ लिख रही हूँ ,ताकि आपलोग मेरी कन्फ्यूजन दूर कर सके।ये "असहिष्णुता " का सचमुच मतलब क्या है ? माँ रे माँ यहाँ तो ये शब्द टाइप करने में ही मेरी लग गई।कितनी कोशिश के बाद सही लिख पाई।वैसे इंटॉलेरेन्स तो कई बार सुना था ,ये भी सुना था बर्दास्त से बाहर और मेरा पंसदीदा अब झेला नही जाता।पर ये शब्द जो असहि---- आज कल ज्यादा ही प्रचलित हो गया है।माफ़ कीजिये खाली स्थान आप खुद भर ले।मुझे भी दस बार टाइप करना बर्दास्त के बाहर हो रहा है।कई रूपों में इसका आजकल प्रचार हो रहा है।पर मुझे ठीक -ठीक समझ नही आ रहा है।ये भरी -भरकम शब्द का सही मतलब है क्या ? वैसे अमेरिका में थैंक्सगिविंग की छुट्टी है ,और शॉपिंग पर भारी छूट है।लोग मैराथन शॉपिंग कर रहे है।ऐसे में शतेश का ये कहना यार हमसे नही हो पायेगा, कही ये भी असहि ---- तो नही ?ये तो थोड़ा पर्सनल हो गया।पर क्या देश से दूर रहना भी इसी कैटगरी में आता है ? मेरे कहने का मतलब ,यार ऑनसेट कब मिलेगा ? कब ग्रीनकार्ड आयेगा ?कब सिटीजनशिप मिलेगी ? बात चाहे डॉलर /यूरो /दिनार की हो पर आप अपना देश तो छोड़ ही रहे है।इसका मतलब भारत की आर्थिक स्थिती ठीक नही, या जो पैसे मिलते है उससे गुजरा मुश्किल से होता है।या फिर बाहर देश में सुख- सुबिधा ज्यादा है।अरे क्या बात करते हो मतलब भारत में सुबिधाये कम है क्या ? अरे असहि---- लड़की ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये बोलने की ? या फिर उन शादीशुदा जोड़ो की भावना कि जीतनी जल्दी हो अमेरिका/यूरोप में बच्चे पैदा करो।बच्चो को नागरिता मिल जाएगी।उनका भविष्य उज्जवल हो जायेगा।इसका क्या मतलब भारत में पैदा होने वाले बच्चो का भविष्य अंधकारमय होगा ? फिर यहां भी कही असहि ---- तो नही लागू होगी ? राम -राम कैसी बात कर रही हो तपस्या ? हम सब तो थोड़े समय के लिए अमेरिका /यूरोप /दुबई या कही और है।फाइनल डेस्टिनेशन तो इंडिया ही है।पर अभी वहाँ बहुत मारा -मारी है ,सैलरी में कुछ ज्यादा बचता नही ,अरे बच्चो के स्कूल फीस भी बहुत है।क्या अपने दोस्तों के बीच में भारत की कुछ ऐसी बातें करना भी असहि---- है ? लालू ,मोदी और केजरीवाल सब एक है ,कहना भी असहि ----- है ? कही सोशल मिडिया पर हम कुछ ज्यादा ही असहि -----तो नही हो रहे है ? हर बात पर बवाल करना हमारी आदत तो नही बन गई ?ऐसे भरी -भरकम शब्द का प्रयोग करने से अच्छा ,की हम हँसी मजाक में ही कहते रहे यार रहीम /राम अब नही झेला जाता।चल यार चाय या दारू पीते है।चाय या दारू पर राम/रहीम पूछता यार तपस्या ये "शाइनिंग इंडिया " को क्या हो गया है ? इसकी "शाइन " इस हिंदी के "असहिष्णु " शब्द से फीकी तो नही पड़ रही है।
नोट :-मुझे ऐसा लगता है इंडिया में इंटॉलरेंस से ज्यादा ऑपर्चुनिटी की कमी है ,सही मीडिया की कमी है ,शिक्षा की कमी है। वरना जो "हिन्दू " देश के बाहर रह रहे है ,वो अपने देश क्यों नही जाते ? जो हिन्दू दुबई या कुवैत भेड़ चराने या पाइप फिटिंग का काम मुस्लिम देश में करते वो भारत में क्यों नही करते ? मैं अभी भी ठीक से समझ नही पाई हूँ इस शब्द के मायने। कृपया बिना लड़े -झगडे मेरी शंका दूर करे।
Monday 23 November 2015
KHATTI-MITHI: चलो घर चलते है !!!
KHATTI-MITHI: चलो घर चलते है !!!: छुन्नू लाल मिश्रा जी द्वारा गया भजन "कइसे सजन घर जइबे हो रामा समझ ना आवे।प्रेम नेम कछू जानत नहीं ,साईं के कइसे रिझबे हो रामा समझ ना आ...
चलो घर चलते है !!!
छुन्नू लाल मिश्रा जी द्वारा गया भजन "कइसे सजन घर जइबे हो रामा समझ ना आवे।प्रेम नेम कछू जानत नहीं ,साईं के कइसे रिझबे हो रामा समझ ना आवे।कइसे सजन घर जइबे हो रामा समझ ना आवे"।कबीर का ये भजन भक्ति- भाव के संदर्भ में है, पर कही ना कही आज से दो साल पहले मेरे मन की दशा थी।ये दशा प्रेम ,नए परिवेश का डर, अपनों से बिछोह का दुःख सबका मिश्रण था।दो साल के बाद आज फिर से मैं ससुराल जा रही हूँ ,पर आज मन की भावनायें कुछ अलग थी।कबीर की ही भाषा में "मन का भ्रम मन ही थे भागा ,सहज रूप हरि खेलन लागा"।रही बात प्रेम की तो "नयनन की करि कोठरी ,पुतली पलंग बिछाय।पलकन की चिक डारिकै पिय कूँ लियौ रिझाय"।और इन दो सालो में ससुराल को कुछ ऐसा जाना जैसे "हम वासी उस देश के ,जहां बारह मास बसंत ,नीझर झरै महा अमी ,भीजत है सब संत।खैर कबीर मोह से बाहर आते हुए मैं अपनी बिहार यात्रा शुरू करती हूँ।छपरा स्टेशन पर हमारी ट्रैन रात को 1 :30 पर पहुँची।मेरे ससुर जी (शतेश के पिता ) रेलवे के डाक बिभाग में काम करते है।इस विभाग में 24 घंटे काम चलते रहते है।आप अपनी सुबिधा के अनुसार दिन या रात की ड्यूटी चुन सकते है।हाँ रात में काम करने का एक फायदा है कि ,आपको अगले दिन और रात दोनों की छुट्टी मिल जाती है।मतलब सप्ताह में 3 /4 दिन का ही काम करना होगा।मेरे ससुर जी को ये ऑप्शन ज्यादा पसंद है ,इसलिए उन्होंने रात की ही ड्यूटी चुनी है।उनके अनुसार ऐसे घर के काम मसलन खेती गृहस्ती को भी समय मिल जाता है।उस दिन भी उनकी ड्यूटी थी।ऐसे तो ससुर जी घर से ट्रैन या बस से छपरा आते थे ड्यूटी के लिए।पर जब भी घर के किसी सदस्य के आने की बारी होती तो वो घर से गाड़ी और ड्राइवर के साथ आते।स्टेशन पहुँचते उनका फ़ोन आया।कहाँ हो तुमलोग ? शतेश उनको बोले आप वेटिंग रूम के पास रुकिए हमलोग पहुँचते है।पापा मुझे देखते ही बोले "सब केउ मोटा जाई लेकिन तपस्या ना।ई त जइसन गइल रहे वइसन ही आयल बिया।मैंने कहा पापा ई त ख़ुशी के बात बा न की हम बदलनी ना।पापा हँस पड़े।सामान के साथ मुझे मच्छरों के बीच वेटिंग रूम में बिठा कर, पापा मेरे भाई और शतेश के साथ बाहर चले गए।थोड़ी देर में शतेश और भाई आये ,बोले पापा वापस ड्यूटी पर गए।कह रहे थे अभी थोड़ी रात है तो 3 :30 तक निकलते है।दोनों थोड़ी देर बैठे पर गर्मी और मच्छरों ने इलेक्शन कैंपिंग चालू की थी ,कि कौन बाजी मरता है।दोनों मुझसे बोले चलो बाहर बैठते है।बाहर थोड़ी हवा चल रही है।पर मैंने आदर्श बहू का फर्ज निभाते हुए बोला तुम दोनों जाओ।पापा का ऑफिस पास है ,उनके दोस्त या कोई स्टाफ देखेगा तो क्या कहेगा ?दोनों निरमोही।मुझे मच्छरों के बीच छोड़ कर भाग चले।मेरी आँखे वेटिंग रूम का मुआयना करने लगी और हाथ पैर मच्छर भगाओ आन्दोलन में लग गए।वेटिंग रूम में दो और परिवार थे।जिन्होंने इकलौते सीलिंग फैन के नीचे अपना चादर डाल दिया था।एक परिवार में सिर्फ माँ और 4 /5 का बच्चा सो रहा था।माँ बीच -बीच में बच्चे को बाँस के पँखे से भी हवा कर रही थी।पंखे के नीचे होने पर भी उनलोगो को उस मंद गति पंखा का हवा नही लग रह था।उस माँ को देख कर लगा सच में माँ को नींद में भी अपने बच्चो की चिंता होती है।मेरा अच्छा था ,पसीने से कपडा भींग गया था ,और थोड़े से भी हवा से दो पल के राहत जैसा कुछ लग रहा था।पता नही सच था या छलावा।दूसरा परिवार जिसमे पति -पत्नी एक छोटा बच्चा।जो अभी बैठ या खड़ा नही हो पा रहा था।शायद एक साल या उससे छोटा हो ,और बच्चे की दादी।तीनो मिल कर बच्चे को खड़ा करने की कोशिश में लगे थे।थोड़ी देर बाद बच्चे की दादी उसे तेल मालिस करने लगी।उसके पिता ने कपडे बदला।माँ रात के ढाई बजे बच्चे को पाउडर ,काजल से संवारने में लग गई।बच्चा रोने लगा।मैं भी तब से ये देख कर परेशान हो रही थी।एक तो गर्मी ऊपर से बच्चे के ऊपर होते अत्याचार ने मुझे दुखी कर दिया था।बच्चे ने मेरे मन के भाव को समझा और जोर -जोर से चिल्लना शुरू किया।बच्चे की माँ उसे गोद में लेकर दिवाल की तरफ मुड़ गई।उसे दूध पिलाने की कोशिस करती रही ,पर बच्चा नही ,अब तुम सहो मेरा अत्याचार।उसके पिता उसे बाहर घुमाने ले गए।तबी उनकी माता जी मेरी तरफ देख कर बोली गर्मी के कारण परेशान है बच्चा।मैंने मुस्कुरा कर लगभग हाँ जैसा ही कुछ भाव प्रकट किया।मन में तो ये चल रहा था ,माता जी गर्मी ने नही आपलोग ने बच्चे को परेशान किया है।अच्छा -भला खेल रहा था।नही आपको तो मालिश करनी है ,उसपर पाउडर ,टिका ,काजल सब पोतना है।कौन देख रहा आधी रात को जो इसे राजकुमार बना रही थी।पर इसका एक फायदा भी हुआ पुरे वेटिंग रूम में जोंसन बेबी पॉउडर की खुशबू फैल गई।मैं आँखे मूँदे खुशबू का मजा ले रही थी।इसी बीच थोड़ी आँख भी लग गई थी।थोड़ी देर बाद भाई और शतेश आये और बोले चलो घर चलते है।
Wednesday 18 November 2015
KHATTI-MITHI: राग दरबारी या अनिंद्रा का उपाय !!!
KHATTI-MITHI: राग दरबारी या अनिंद्रा का उपाय !!!: राग दरबारी किसी किताब का नाम है ,ये मुझे एक साल पहले ही मालूम हुआ।हुआ यूँ मैंने अमिताभ घोष ,अरुंधति रॉय ,अरविंद अडिगा ,झुम्पा लहरी ,मनिल सू...
राग दरबारी या अनिंद्रा का उपाय !!!
राग दरबारी किसी किताब का नाम है ,ये मुझे एक साल पहले ही मालूम हुआ।हुआ यूँ मैंने अमिताभ घोष ,अरुंधति रॉय ,अरविंद अडिगा ,झुम्पा लहरी ,मनिल सूरी ,खुशवंत सिंह ,अमिस जी "की लिखी कुछ किताबे पढ़ी। इन भारतीय लेखको द्वारा लिखी कुछ बेहतरीन अंग्रेजी की किताबे है।मन में एक ख़्याल आया क्या प्रेमचंद्र के सिवा हिंदी की और किताबे भी होंगी जो पढ़नी चाहिए ? हिंदी किताबो के बारे में मेरा ठीक वैसा ही विचार था ,जैसा इंग्लिश नॉवेल के बारे में हिंदी प्रेमियों को होता है।उन्होंने इंग्लिश की एक -आध किताब पढ़ ली और उसे पॉर्न किताब का नाम दे दिया।वैसे ही मैंने कई बार पुणे से घर जाते रेलवेस्ट्शन या फिर किसी बुक स्टॉल पर हिंदी की कुछ किताबे देखी।मैंने उन्हें आदर से शॉफ्ट पॉर्न का ख़िताब दिया।सभ्यता या शर्म की वजह से कभी खरीदने की हिम्मत नही हुई।हाँ घर में उपलब्ध मसलन सरिता और दो पन्नो की राजनीती के लिए ली हुई सरस सलिल कभी - कभार पढ़ी जरूर।इन दो पत्रिकाओ से लगा हिंदी में कुछ है ही नही पढ़ने को।खैर जब इन भारतीय लेखको की इंग्लिश नॉवेल पढ़ी ,तो सोचा इनमे से किसी ने तो हिंदी में कुछ लिखा होगा।बस गूगलिंग शुरू।निराशा हाथ लगी।पर गूगल भईया की मदद से कुछ बेहतरीन हिंदी के लेखको को जानने का मौका मिला।धन्यवाद गूगल भईया,आप मुझे हर तरह से मदद करते है।कभी एक माँ के रूप में खाना पकाने में ,तो कभी एक भाई के रूप में हर समस्या का समाधान देने में।माफ़ कीजियेगा पति के रूप में तुलना नही कर सकती।कारण पति मेरे हर सुख- दुःख मेरे साथ है ,मेरे पास है।आपकी कृपा से मुझे कुछ हिंदी की बेहतरीन किताबो के नाम मालूम हुए।मैंने आपकी मदद से ऑनलाइन खरीदने की कोशिस भी की।पर दुःख की बात ये हुई कि हिंदी किताबो के दाम डॉलर में कुछ ज्यादा ही थे।मैंने इंडियन ऑनलाइन साइट का सहारा लिया और इंडिया में ही किताबे आर्डर कर दी।बात शुरू हुई राग दरबारी से तो मुझे इस किताब का शीर्षक ही सुरीला लगा।अब तक मुझे राग दरबारी एक "हिंदुस्तानी राग " का नाम है, यही मालूम था।इस राग को सुर सम्राट "तानसेन जी" ने अकबर के दरबार में गया था पहली बार।तभी से इस राग का नाम राग दरबारी पड़ा।इसे राग को रात्रि के पहर सुना जाता है।प्यार और ख़ुशी को व्यक्त करता ये राग,अब आपकी मर्जी जब चाहे सुन सकते है।हिंदी फिल्मो के काफी गाने राग दरबारी पर बने है। मुझे जो पसंद है वो "बाहों के दरमियाँ "या "आपकी नज़रो ने समझा"।राग दरबारी से ज्यादा मुझे यमन ,भैरवी ,पीलू पसंद है।रागों के बारे में फिर कभी लिखूंगी।फिलहाल बारी अभी राग दरबारी किताब की।ये किताब हिंदी की एक बेहतरीन व्यंग कथा।जो व्यंग ना होके समाज का सच्चा आईना है।ये किताब 1968 में श्री लाल शुक्ला जी ने लिखी थी।मुझे आश्चर्य है की 1968 से 2015 तक कुछ नही बदला।या फिर शुक्ला जी को मालूम था ,चाहे 47 साल बीते या 100 साल।ये कथा हर साल दर साल लागू होती रहेगी।गबन ,धोखाधड़ी ,भ्रष्टाचार ,वंशवाद ,राजनीती अपनी जड़े और साल दर साल मजबूत करते जायेंगे।हमजैसे लोग या तो रंगनाथ या गयादीन बनकर रह जाते है।कहानी एक गाँव की है ,पर लगता है ये कहानी हर जगह व्याप्त है।कही छोटे अस्तर पर तो कही बड़े।अगर आप राजनेता बनना चाहते है तो ,एक बार आप इस किताब को जरूर पढ़े।वैध जी या प्रिंसपल साहब से आप बहुत कुछ सीख सकते है।किताब पढ़ने के बाद आपको वैध जी की राजनीती अच्छी ना लगे।पर क्या करे उनका नुस्खा पहले क्या आज भी मार्केट में अपनी जगह बनाये हुए है।कभी -कभी किताब आपको उबाऊ भी लगती है।पर वो क्या है ना हर सीधी -सच्ची चीज़ एक अंतराल के बाद उबाऊ हो जाती है।फिर भी बहुत सी चीज़े है ,जो आप इस किताब से सीख सकते है।मुझे ऐसा लगता है शुक्ला जी किताबो के धर्म गुरु या योग गुरु रहे होंगे।जिन्हे मालुम था ये सब्जेक्ट कभी फेल नही होगा।पर शीर्षक राग दरबारी क्यों ? वैसे मैंने कही पढ़ा था ,राग दरबारी सुनने वालो को नींद की बीमारी या मानसिक बीमारी में बहुत लाभ मिलता।शायद यही वजह हो शीर्षक का या फिर उनका राग प्रेम।किताब पढ़ के आप खुद ही निर्णय ले।
Monday 9 November 2015
KHATTI-MITHI: हाँ हम है गँवार !!!
KHATTI-MITHI: हाँ हम है गँवार !!!: माफ़ करना दोस्तों यात्रा को बीच में रोक कर मुझे राजनीतिक दंगल में कूदना पड़ रहा है।मुझे राजनीती की कुछ खास समझ नही।बस एक आम आदमी की तोर पर अप...
हाँ हम है गँवार !!!
माफ़ करना दोस्तों यात्रा को बीच में रोक कर मुझे राजनीतिक दंगल में कूदना पड़ रहा है।मुझे राजनीती की कुछ खास समझ नही।बस एक आम आदमी की तोर पर अपनी कुछ भावनाओ का लीपापोती कर रही हूँ।मुझे आश्चर्य है ,कितने मेरे दोस्त जो महीनो से मेरा हाल -चाल तक नही पूछा अचानक उनको मेरी याद आ गई।कोटि -कोटि नमन बिहार भूमि।कोटि -कोटि नमन लालू जी।आपसे कोई नाता ना होने के बावजूद ताने और गालियों का आनंद ले रही हूँ।पर खुशी से मिला जुला दुःख भी है, कि लोगो ने याद तो किया।ये आजकल के बुद्धिजीवी लोगो की दया दृस्टी है।उनकी कृपा है की वो भारत के हर राज्य को अपना समझते है।बिहार को अपना प्यार देने के लिए आप सब का बहुत -बहुत धन्यवाद।बिहारियों को गालियाँ देने , ताना देने के लिए और भी दिल से धन्यवाद।वो क्या है ना बिहार और उससे थोड़े बेहतर उत्तरप्रदेश के लोगो को गाली की आदत है।लोग हमें जातिवादी कह रहे है ,गवार कह रहे है।तो भईया जातिवादी तो है हम।हमारे खून में ही है जाति।बड़ी ख़ुशी की बात है ,आप जाति को नही मानते।तो इसी बात पर दिवाली की खुशियाँ मनाइये,पाकिस्तान में नही अपने देश में पटाके फोडिये।दिवाली की दिन किसी डोम या चमार से अपनी लक्ष्मी का पूजन करवाइये।मान लीजिये डोम पढ़ा लिखा ना हो , मंत्र -तंत्र नही जनता हो ,तो किसी लोहार ,सोनार राजपूत या मुसलमान को ही बुला लीजिये।जबतक धर्म से जाति नही जाती तबतक राजनीती से निकलना मुझे तो मुश्किल लगता है।रही चुनाव में हमारी बेवकूफी की बात तो हाँ हम बेवकूफ है।हमलोग आपसी प्रेम के बदले जातिगत दंगे वाला विकास नही झेल सकते।हम विकास के नाम पर उन अल्पसंख्यको को खून के आंसू नही रुला सकते।हमारे घर के मर्द दूसरे राज्यों में कमाने जाये तो जाये ,लेकिन हमारे घर के बच्चे , बूढ़े और महिलाये तो चैन से रह सके।हम धीरे -धीरे खुद अपना विकास करेंगे।कुछ बिहार के बुद्धिजीवी युवा इसको पलायन से जोड़ रहे है। अरे भाइयो किसने आपको रोक है।आप बिहार में भी रहकर 15 /20 हज़ार की नौकरी पा सकते है।पर आपको तो चाहिए आई बी एम ,कॉग्निजेंट ,इनफ़ोसिस या फिर मिक्रोसोफ़्ट।आप तो पलायन की बाते ना ही करे।ये निचले गरीब तबके कहे तो शोभा भी देता है।मुझे ऐसा लगता है बुद्धिजीवी वर्ग के लिए सोशल मिडिया ने उनकी बुद्धिता पास सर्टिफिकेट के लिए बना दिया।देश की किसी भी समस्या का समाधान ये हो हल्ला या कभी हिंदी गाली तो कभी अंग्रेजी गाली से कर सकते है।अंग्रेजी वालो की गाली शहद में लिपटी नीम के पत्तो जैसी होती है।ये लोग ज्ञानी नही महाज्ञानी ,सर्वोत्तम ज्ञानी की श्रेणी में आते है।भाई हमें मालूम है आप ज्ञानी हो।तो क्यों ना ये बेकार का बुरा - भला छोड़ ,थोड़ी अपनी सुख सुबिधा छोड़ बिहार जाए।अपने ज्ञान का प्रयोग विकल्प बनाने में करे।अपने लाखो की नौकरी छोड़ एक नए विकल्प बनाये।बिहार ही क्यों किसी और राज्य को सुधारना चाहते हो तो वही चले जाए।वरना इस बेकार की गालबाजी में कुछ रखा नही है।वो कहावत है ना ,जाके पैर फाटे ना बेवाई वो क्या जाने पीर पराई।वोट देने वाली जनता कही की भी हो उसका काम वोट देकर सबकुछ भगवान पर छोड़ना है।कही कोई सही विकल्प ही नही है।विचार बहुत जरुरी है ,पर उसकी- अपनी सीमा होनी चाहिए।वरना हर जगह नीतीश और लालू तो है ही।मेरे कुछ शुभ चिंतक सोच रहे होंगे अंत में इसने गवारों वाली बात कर ही दी।तो भईया बड़े बुलंद आवाज में और कैपिटल लेटर में "हाँ है हम गवार"।वो कहते है न क्यों गवार के मुँह लगना ?अपना तो इज्जत लेगा ही तुम्हरा भी नही छोड़ेगा।इसे अनुरोध समझे वरना फिर कहियेगा देखा जंगलराज शुरू हो गया !!!
Monday 2 November 2015
बच्चो के साथ शानदार यात्रा !!!
दोस्तों हमारी यात्रा आगे बढ़ती है।दिल्ली आये हुए हमलोग को चार दिन हो गए थे।मेरा तीज का व्रत था।तीज बिहारी बहनो का करवा चौथ होता है।फर्क इतना है ,कि हमलोग छन्नी के सहारे चाँद में अपने पति देव को नही ढूँढ़ते ,और ना ही शाम को पकवान खाते है।हमलोग को मालूम होता है कि ,चाहे कितना भी छन्नी से छान कर देखो पति तो बदलने वाला नही।तो क्यों पकवान खाए और क्यों किसी ग्रह -गोचर से पति की तुलना करे ? हमलोग बस सचाई को अपना कर चौबीस घंटे कुछ खाते पीते नही।पति के उम्र का तो पता नही पर हमें डिहाइड्रेशन जरूर हो जाता है।हाँ फिल्मे देख कर मेरी कुछ बिहारी दोस्त अब करवाचौथ करने लगी है।पर बहनो फिल्मो में तो शाहरुख़ ,सलमान होते है।वैसे भी फिल्मो जैसा प्यार तो मिल नही रहा तो फिल्मो की नक़ल से व्रत क्यों ?अगर पति देव भी साथ में व्रत करते तो कुछ बात होती।खैर जैसे -तैसे गर्मी में मरमरा कर मैंने तीज का व्रत किया।पारन मतलब व्रत तोड़ने के दिन हमलोग की ट्रेन थी।छूटी कम थी और घर जाने की जल्दी।इसलिए मेरे पापी पति की कृपा ,जो सुबह 9 :30 की डिबुरूगढ़ राजधानी की टिकेट ली थी।पारन करना था और शतेश के भाई की काम वाली बाई 7 बजे तक आई नही।मैं और मेरा भाई सब्जी काटने में लग गए।तभी बाई भी आ गई।जैसे तैसे उसने सब्जी रोटी बनाई।8 बजे तक हमलोग को निकलना था।ठीक से पारन भी नही हो पाया।अब आप ही बताइये जिस पति के लिए व्रत रखा उसने ही मेरी बैंड बजा दी।तो कैसे पति देव लिखू ? पापी पति माफ़ी माँग रहे थे ,पर उससे पेट थोड़े भरता है।टिफिन में पैक किया हुआ खाना खिला रहे थे।पर जो कैब बुक हुई थी ,उसका ड्राईवर मना करने लगा ,कि गाड़ी गन्दी हो जाएगी।वैसे ड्राईवर छपरा (बिहार ) का ही था।उसने अपनी बकवास चालू की।एक पूछो तो दस जवाब।उसकी लिखने बैठी तो पूरा ब्लॉग कम पडेगा।फेकू एक नंबर का।आराम से अपने चार मडर के तो कभी गाँव के ,तो कभी दिल्ली के किस्से सुनता जा रहा था।मेरे भाई को गुस्सा आया ,बोला आप बोलिए कम गाड़ी थोड़ा तेज चलाइये वरना हमलोग की ट्रेन छूट जाएगी।वो भी अपनी अजीब से स्टाइल में बोला तेज चलाऊँगा तो कही और पहुँच जायेंगे।शतेश बोले जाने दो उज्जवल चुप हो जाओ।हमलोग के चुप होने पर वो गाड़ी और धीरे चलाने लगा।शायद वो दुखी होगा कि ,कैसे सवारी है जो चुप चाप जा रहे है।सारी गाड़ियां हमलोग को छोड कर आगे जा रही थी।शतेश के भाई ने ड्राईवर को ताना मारा ,आरे ड्राईवर साहब मोटर साइकिल भी आपसे तेज निकल रही है।हमलोग हँसने लगे।उसके स्वाभिमान पर बात आ गई और उसने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ाई।भगवान की दया से हमलोग ठीक -ठाक स्टेशन पहुंचे।जब शतेश ड्राईवर को पैसे देने लगे।उसने फिर से राम कहानी शुरू की।किसी भी ड्राईवर को हड़बड़ाई नही ,वो तो मैं था जो सही सलामत पहुँच गए।हमलोग को देरी हो रही थी।पर उसकी बुजुर्गियत का ध्यान रखते हुए हाँ हाँ कहते हुए पीछा छुड़ा कर हमलोग प्लेटफार्म तक पहुँचे।ट्रेन सामने खड़ी थी।फटाफट सामान चढ़ाया गया।शतेश के भाई को विदा कह हमलोग की बिहार के लिए यात्रा शुरू हुई।हमारी बोगी में जोरहाट जिले(असम )के केंद्रीय विद्लाय के बच्चे भरे पड़े थे।वेलोग दिल्ली में खेल प्रतियोगिता के लिए आये थे।इतना शोर मचा रखा था ,कि शतेश और मेरे भाई को हल्ला कम करने को बोलना पड़ा।एक तो ड्राईवर ने दिमाग का तेल किया था ,उसपे बच्चे।पर बच्चे तो बच्चे ही होते है।मैंने दोनों को बोला जाने दो ना कितने खुश है सब।मैंने बच्चो से बात -चीत शुरू की।शतेश नास्ता करके सोने चले गए।जब भी बच्चे थोड़ा शोर करते ,मैं बोलती अंकल जाग जाएँगे।सब फिर धीरे -धीरे बात करने लगते।अपने स्कूल और प्रतियोगिता की बात करते ,फिर हल्ला शुरू करते।तो उन्ही में से कोई बोलता अबे धीरे बोल अंकल जाग जायेगा।मुझे उनकी हिंदी पर हँसी आती।बच्चो ने हुमलोगो को अपने मेडल दिखाए।अपने स्कूल की काफी बाते की।स्वागत कुमार और अभिनव राज से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई।फिर क्या था ,मेरे भाई और शतेश की भी बच्चो से दोस्ती हो गई।वे और भी घुलमिल गए।हमारे ही कम्पार्टमेंट में और भी बच्चे आ गए।उनके स्कूल की बहुत सी बाते फिर कभी।उन बच्चो को अमेरिका के बारे में इतना कुछ मालूम कि मैं अचम्भे में थी।मालूम हुआ सब डिस्कवरी और गूगल का कमाल था।कुछ तो खाने के ऐसे व्यंजन का नाम बता रहे थे ,जो मुझे भी नही मालूम था।मैंने बच्चो को चॉकलेट दिए।कुछ और मांग रहे थे ,तो कुछ शरमा रहे थे।सबके साथ फोटो ली।वो भी बहुत खुश थे।कुछ ने नंबर दिया तो किसी ने फेसबुक पर ऐड किया।हुमलोगो को रात 1 :30 मिनट पर छपरा उतरना था। मेरे भाई ने कुछ बच्चो को बोल रखा था ,रात को जगा दे।उन्हें तो जीतने की खुशी में नींद ही नही आ रही थी।रात को एक लड़के ने भाई को जगाया।हमलोग जब जगे तो एक आध को छोड़ सब बच्चे सो रहे थे।उन्हें अलविदा भी नही कह पाई।उनका साथ हमारी यात्रा को और भी सुखद बना गया।उनकी ट्रॉफी के साथ एक तस्वीर।
Tuesday 27 October 2015
खुद को ढूँढना बुरी बात नही !!!!
दोस्तों पिछले यात्रा के किस्से में मैंने आपलोग को अपने भाई के( मार्क्सवादी) दोस्तों से मिलवाया।अब महंगाई और अपने रास्ते ढूढंते दो और लोगो से मिलने की बारी है।तो यात्रा शुरू होती है।रात को शतेश के भाई के रूम पर पहुँच कर हमने खाना खाया।थोड़ी बात -चीत के बाद सोने की तैयारी शुरू हुई।मेरा भाई और शतेश के भाई तो बेड पे पहुँचते ही सो गए।बस हमदोनो ही रतजगा करते रहे।कारण पता नही , जेटलैग था ,गर्मी थी ,नई जगह थी या घर पहुँचने की ख़ुशी थी।रात भर हमदोनो छत पर घूमते ,बैठते ,बतियाते रह गए।सुबह होने का इंतज़ार था।सोच रहे थे कब शतेश के भाई या मेरा भाई जगे ? पिछले दो सालो में तो हमदोनो की बाते ही ख़त्म होगी थी।बस वही घिसी -पीटी बाते रीपीट हो रही थी।वो तो अच्छा था ,फ़ोन बंद था ,वरना मैं इस कोने तो शतेश दूसरे कोने।बेडा गरक हो इस टेक्नोलॉजी का और स्मार्ट फ़ोन का।सबका भला किया हो।पर पति -पत्नी को भाई बहन बना दिया है :)गर्ल फ्रेंड और बॉयफ्रेंड की दौड़ से जो आगे निकल आये है ,उन युवा के लिए तो बस टाइम काटने का साधन हो गया है, टेक्नोलॉजी और फ़ोन।प्रेम भरे मैसेज तो अब आते नही।पति और पत्नी बन जाने के बाद तो टेलीफोनिक रोमांस फुर्र हो जाता है।बस फ़ोन से ही रोमांस होता रहता है।फेसबुक ,ट्वीटर ,वॉटसअप और एक ही न्यूज़ को दस भिन्न -भिन्न चैनेल पे पढ़ते रहे।भिन्न चैनेल पे न्यूज़ पढ़ने का फायदा तो तब हो ,जब न्यूज़ ही बदल जाया करे।मसलन "पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोदी जी" हो जाए और "भारत के नवाज शरीफ़ जी " :)ओबामा जी बिहार के मुख्यमंत्री बन जाए।फिर मजा आता अरे वाह टेक्नोलॉजी तो कमाल की है।खैर सुबह के 6 बजे तक ना मेरा भाई जगा ना शतेश का।फिर हमने सोचा चलो चाय ही बनाते है।रसोई में गई तो दूध नही था।शतेश को 100 रूपये देते हुए बोली ,दूध ,ब्रेड और बिस्कुट लेते आइये।शतेश बाबू मॉर्निंग वॉक का बखान करते हुए दूध लेने चले गए।थोड़ी देर में मुँह लटकाये आये।आते ही बोले आरे यार हद हो गई महँगाई की।100 रूपये में सिर्फ एक लीटर दूध और एक पैकेट ब्रेड मिला।दूकानदार से बोला बाकी के पैसे तो बोला ,भाई साहब हो गया पूरा हिसाब।मैं उनके चेहरे और महँगाई का गान सुनकर हँसे जा रही थी।कारण अब तक जो इंसान रात भर मुझे इंडिया के बारे में गुणगान कर रहा था।वही अभी इसकी बुराई कर रहा था।पासपोर्ट लेने के बाद हमलोग शॉपिंग करने गए।वहां भी वही हाल।साड़ी -कपड़ो के दाम हमारी सोच से आगे जा चुके थे।महँगाई का आलम ये दिखा की ,एक डोसा 120 रूपये का ,बनाना शेक 80 रूपये का और तो और पानी भी 30 रूपये का।ये सब देख के हमदोनो थोड़े परेशान थे।सोचने लगे दो साल में इतनी महँगाई।कैसे जी रहे है कम कमाने वाले या मजदुर लोग ?अमेरीका में तो दो सालो में ना दूध का दाम बढ़ा ना पानी का।खाने -पीने के चीज़ो के दाम वही है ,जो दो साल पहले था।शायद यही था शाइनिंग इंडिया।पर एक ख़ुशी भी हुई ,अब लोग कमाने के साथ खर्च भी कर रहे है।एक समय वो था ,जब एक पीढ़ी ने सिर्फ कमाने और बचाने में सारी जिंदगी गुजार दी।शॉपिंग के बीच हमलोग मेरे भाई के दोस्त गर्वित और ईशान से मिले।एक तो गर्मी दूसरी भूख लगी थी।हमलोग ने सोचा खाते हुए बात -चीत होगी तो ठीक रहेगा।हमलोग पिण्ड बलूची पहुंचे।खाना आर्डर किया और बाते शुरू।गर्वित आई आई टी छोड़ चार्टड अकाउंटेंट का कोर्स कर रहा है।ईशान फुटबॉल कोच है।शतेश थोड़े गर्वित की बातो से सहमत नही थे।उन्हें लग रहा था ,इतना होनहार लड़का अपने भविष्य को लेकर ऐसा बेफिक्र क्यों है ? क्यों आई आई टी छोड़ी क्यों चार्टेड अकाउंटेंट बन रहा है ? पर मुझे ख़ुशी थी कि ,कम से कम वो अपने जीवन से सीख रहा है।खुद को ढूंढ़ रहा है।समाज से डर नही रहा।ना की मेरी तरह पैसे और समाज के लिए बैंक में नौकरी की।अपनी ख़ुशी के लिए पार्ट टाइम शनिवार और रविवार को एनजीओ में काम किया।अपनी ख़ुशी को पार्ट टाइम बना देना कौन सा तोप का काम है ? मुझे मालूम था ,समाज सेवा ,किताबे पढ़ना या लिखना ही मेरी ख़ुशी है।फिर भी इधर -उधर भटकती रही।कारण साफ़ था समाज का डर ,या खुद का मैरेज प्रोफाइल बनाना।जॉब कर रही है लड़की ,अच्छा लड़का मिल जायेगा।बात तो थोड़ी सही है।पर कुछ लोग शतेश की तरह भी होते है।जिन्होंने मेरी बैंकिंग प्रोफाइल की वजह से नही,मेरे एनजीओ के काम और मेरी सोच की वजह से शादी की।तो डरिये नही कुछ अलग करना चाहते है, तो जरूर कीजिए।खुद को ढूँढना बुरी बात नही है।मुझे बहुत अच्छा लगा गर्वित और ईशान से मिल कर।शायद इसलिए भी कि ,उनमे कहीं ना कही मेरा अतीत दिखा था।उन दोनों से विदा लेने का समय था।गर्वित ने मुझे बहुमूल्य गिफ्ट दिया।वो था "अ पोर्ट्रेट ऑफ़ द आर्टिस्ट एज अ यंग मैन "जेम्स जॉयस द्वारा लिखी किताब।धन्यवाद गर्वित।
Monday 19 October 2015
KHATTI-MITHI: भाई ,उसके दोस्त और मार्क्सवादी !!!
KHATTI-MITHI: भाई ,उसके दोस्त और मार्क्सवादी !!!: हमारी यात्रा का अगला दिन शुरू होता है।मैं ,शतेश वीसा स्टाम्पिंग के लिए दिल्ली में रुके थे।वीसा स्टाम्पिंग के प्रॉसेस के साथ दोस्तों से मिलन...
भाई ,उसके दोस्त और मार्क्सवादी !!!
हमारी यात्रा का अगला दिन शुरू होता है।मैं ,शतेश वीसा स्टाम्पिंग के लिए दिल्ली में रुके थे।वीसा स्टाम्पिंग के प्रॉसेस के साथ दोस्तों से मिलना -जुलना भी जारी रहा।फिंगर प्रिंटिंग के बाद हमें अपने एक फैमिली फ्रेंड निक्की और आशीष से मिलना था।भाई भी अपने कुछ दोस्तों से हमे मिलाना चाह रहा था।या यूँ कह ले काफी दिन बाद दिल्ली आया था।तो उसे भी अपने दोस्तों से मिलना था।उसने सोचा होगा एक साथ दोनों मसले निपट जायेगे।दीदी भी गुस्सा नही होगी और दोस्तों से मुलाकात भी हो जाएगी।वजह तो वही बेहतर बता सकता है ,पर मुझे उसके दोस्तों से मिल कर बहुत ख़ुशी हुई।कही ना कही उन्हें समझने की कोशिश करती हुई ,आत्म संतुष्टि का अनुभव कर रही थी।वरना ये दो साल मैंने कैसे -कैसे कल्पनाओ में काटे है ,ये मुझसे बेहतर कोई नही समझ सकता।ये भी हो सकता है ,भाई मेरी चिंता को कही ना कही समझ रहा था।इसलिए अपने दोस्तों से मुझे मिलवा रहा था।मैक्डॉनल्स में बैठी हुई मैं ,उस वक़्त दो तरह की नई युवा पीढ़ी को देख रही थी ,सुन रही थी और समझ रही थी।एक तरफ आशीष ,निक्की ,शतेश ,साकेत जी दूसरी तरफ मेरा भाई ,दीपक जी ,विष्णु जी और अनुराग जी।विष्णु जी ? अरे भाई मैंने किसी भगवान का नाम नही लिखा।ये एक व्यक्ति है।जिनका पेशा बँसी बजाना या सहस्त्र रानियों के बावजूद सिर्फ लक्ष्मी से पैर दबवाना नही।हाँ चक्र चलाने जैसा कलम चलाना जरूर है।संयोग से सिर्फ नाम एक जैसे है।अब इसपे बवाल मत कीजियेगा।की हिम्मत कैसे हुई हमारे विष्णु जी को मेक्डॉनल्स में बैठे हुए कहने की ? जाने वहाँ गौ मांस बिकता हो ?विष्णु जी तो गाय के सेवक थे।सच्चाई तो मालूम नही पर ऐसा मैंने भी अपनी आँखों से देखा है।महाभारत या कृष्णा सीरियल में।सचाई तो साक्षी महाराज या कोई गोभक्त ही बता सकते है।कारण वे ही सिर्फ हिन्दू है।भगवान से उनका डायरेक्ट सम्बन्ध है।देखो फिर मैं मुद्दे से भटक गई।तो विष्णु जी और अनुराग जी बैठे हुए थे।मैं इन दोनों ग्रुप की डरेर पर थी।दोनों तरफ की बाते सुन रही थी।देख रही थी ,कही एक ग्रुप गरीब बच्चो के भविष्य की सोच रहा था , तो दूसरा ग्रुप कहाँ फ्लैट या जमीन लिया जाय सोच रहा था।एक ग्रुप साधारण कपड़ो में।अपने खुशियो को छोड़ भारत की राजनीती, अपनी "कीमती सोच " से सवारने की कोशिश में लगा है ,तो दूसरा ग्रुप "माइकल कोर की पर्स ","कीमती घडी" ,"सगाई के ख़ुशी" में झूम रहा है।एक ग्रुप को लग रहा था की दूसरे ग्रुप के युवा पढ़े -लिखे होने के वावजूद अपना भविष्य अंधकारमय कर रहे है।तो वही दूसरे ग्रुप को लग रहा था ,की पढ़ -लीखकर आप सिर्फ पैसे छाप रहे है।मेरी कोशिश यही थी कि ,दोनों ग्रुप को समान इम्पोर्टेंस मिले। क्यों ? अरे भाई सारा मामला तो इम्पोर्टेंस और पद लोभ ही है ना।खैर भाई के दोस्त मेरे भी भाई सरीखे।उनसे भी मैं अपनेपन जैसी बात -चीत करने लगी।वैसे भी गंभीर मैं सिर्फ अपने सोच या पढ़ने /लिखने के वक़्त ही होती हूँ।इसी बीच थोड़ी मार्क्सवाद की चर्चा होने लगी।मेरे देवर (पति के छोटे भाई ) को लगा मेरे भाई और उनके दोस्तों की सोच मार्क्सवादी है।शतेश, आशीष और निक्की बातो में व्यस्त थे।इधर सिर्फ विष्णु जी नाम का फायदा लेते हुए , सारे महाभारत का सिर्फ मज़ा ले रहे थे।बाकी जन मेरे देवर पर बातो के विरोध के साथ टूट पड़े थे। आपलोगो से अनुरोध है ,बस मुझे इस गौ हत्या से बचाइयेगा।ये ना पूछियेगा कौन दल पांडव और कौन सा दल कौरव था।लो यहां भी गौ माता आ गई।तो चलिए कृप्या पढ़ते समय गौ की जगह मनुष्य हत्या जोड़ लीजियेगा।खैर थोड़ा माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश में दीपक जी को मैं चुप रहने को कहती हूँ।पर भाई जानकार लोगो की भी एक ख़ासियत होती है।जबतक सारा ज्ञान पिला ना दे ,रुकते ही नही :) मामले को देखते हुए , मैं मजाक में दीपक जी को भागने को कहती हूँ।ये दुहाई देते हुए की मेरा तलाक ना करवाये।मेरा भाई भी स्थिति को समझते हुए ,बातो को नया मोड़ देता है।हो सकता हो उस वक़्त भाई के बुद्धिजीवी दोस्त मुझे ,डरपोक या साधारण लड़की समझ रहे हो(जो की मैं हूँ :)।उन्हें ये भी लग रहा हो ,कहाँ उज्जवल भाई कहाँ तपस्या दीदी।पर कभी -कभी अपनों से हारने का मजा ही कुछ और होता है।जरुरी नही हर वक़्त या हर व्यक्ति के सामने आपनी बुद्धिमता प्रदर्शित की जाय।अपने देवर को अकेले देखते हुए ,उस वक़्त मुझे माँ की सीख याद आई।सुखी व्याहिक जीवन का राज पति के घरवालो को अपना बना लेना है।वरना पति दो पाटो में पिसेगा और साथ में तुम भी।मैंने आपको भी व्याहिक जीवन का टॉनिक दे दिया।अगर व्यवाहिक है तो ,समय अनुसार लेते रहे।साथ ही अलग -अलग तरह के लोगो से मिलते रहिए ,उन्हें सुनिए ,उनको समझिए।और ख़बरदार जो किसी को "मार्क्सवादी" कहा।कहने के पहले कृपया "मार्क्स " की किताबो को जरूर पढ़े।अपने देवर को तो मैंने दीपक ,अनुराग जी से बचा लिया रिश्ते की दुहाई दे।पर आपको तो खुद बचना है इस नए " हिन्दु " स्तान से !!
Tuesday 13 October 2015
KHATTI-MITHI: बस बदली थी ,तस्वीरें !!!
KHATTI-MITHI: बस बदली थी ,तस्वीरें !!!: सभी दोस्तों शुभचिंतको को मेरा नमस्कार ,प्रणाम एवम प्यार। सबसे पहले आप सभी को नवरात्री की ढेरो शुभकामनाएँ। माता दुर्गा से प्रार्थना है ,कि व...
बस बदली थी ,तस्वीरें !!!
सभी दोस्तों शुभचिंतको को मेरा नमस्कार ,प्रणाम एवम प्यार। सबसे पहले आप सभी को नवरात्री की ढेरो शुभकामनाएँ। माता दुर्गा से प्रार्थना है ,कि विश्व में हर जगह भाईचारा और शांति बनी रहे।हर किसी को भोजन ,स्वाथ्य और शिक्षा मिले।ओह !मैं तो भूल गई भाईचारे के लिए तो मुझे " माँ दुर्गा " की जगह " गाय माता " से प्रार्थना करनी होगी।गाय माता सच में आप ही हमारी माँ हो ,तभी तो हमारा जानवर जाग रहा है।खैर चलिए ,इसपर फिर कभी।एक विराम के बाद फिर से लिखाई शुरू करती हूँ।मुझे इस बात की ख़ुशी है की, मेरे " पचासवें ब्लॉग " की लिखाई ,मेरे भारत यात्रा की स्मृति है।कहाँ से शुरू करू ,क्या -क्या बताऊँ ? बहुत सारी बातें है।तो चलिए पहले ये बताती हूँ, मेरी यात्रा कैसी रही ? मेरी भारत यात्रा किसी रोलरकोस्टर जैसी रही।कभी खुशी तो कभी डर तो कभी मज़ा।वीजा स्टाम्पिंग से लेकर ,भाई के दोस्तों से मिलना ,शॉपिंग ,भागमभाग ,गर्मी ,एडवेंचर , महँगाई ,राजनीती ,डर , डेंगू ,लोगो के सवाल ,दर्शन और आने का दुःख सबका समावेश रहा।एक बार फिर मुझे ये लिखते हुए बहुत संतोष हो रहा है ,कि मैं भारत की रहने वाली हूँ।भारत वो देश है जिसमे आप कम समय में भी जीवन के सारे रंग देख सकते है।आह वो दिल्ली का एयरपोर्ट।बाहर निकलते ही पे -पो ,लोगो का हो हल्ला।मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि ,सच में मैं दिल्ली एयरपोर्ट पर हूँ।इसका कारण बार -बार हमारी यात्रा का टल जाना था।फ्लाइट से बाहर आने तक ना जाने मेरे दिल -दिमाग ने मेरी कितनी सारी पुरानी यादें ताज़ा कर दी।ये भी तय कर दिया था , क्या -क्या करना है ? कहाँ जाना है ? किनसे मिलना है।ऐसा लग रहा था ,इन दो सालो की भरपाई इन इक्कीस दिनों में करनी है। फ्लाइट के लैंड होते ही ,मेरे दिल की धड़कने क्यों बढ़ गई थी मालूम नही ? मैंने शतेश से पूछा आप इतने आराम से क्यों है ? आपको कुछ नही हो रहा ? मेरी खुशी देख शतेश हँसे जा रहे थे।बोले इतने दिनों बाद आई हो ,इसलिए ऐसा लग रहा है।बाद में आदत सी हो जाएगी।सामान लेना और इमिग्रेशन से बाहर आने के बाद मैं अपनी कमजोर आँखों से भीड़ में अपने भाई (चुलबुल )को ढूंढने लगी।शतेश से पूछती हूँ आपको मेरा भाई कही दिख रहा है ? शतेश बोले हाँ वो रहा सामने। तुमने लेंस क्यों नही लगाई :) यूनाइटेड इंडिया की फ्लाइट रात 9 :30 पर पहुंची थी।उस पर एयरपोर्ट के बाहर रिसीव करने वाले लोगो की लाइन।आँखों में अपने से मिलने की तड़प और उन्ही आँखों का जुल्म एक साथ दिखा मुझे उस वक़्त।भाई ने मुझे इधर -उधर देखता देख ,हाथ हिलाया।भगवान उसको देख कर पता नही मुझे क्या हुआ ? सारा सामान छोड़ -छाड़ कर दौड़कर भागी उसकी तरफ।दोनों एक दूसरे के गले लग जोर -जोर से रोने लगे।हम दोनों को आस -पास के लोगो की कोई खबर ना थी।बस था तो बीते सालों से आँखों में छिपे हमारे आँसू।जो बहे जा रहे थे।पीछे से सारा -सामान शतेश जैसे- तैसे लेके पहुँचे।पास आकर बोले अरे दोनों चुप हो जाओ सब लोग देख रहे है।पर हमें कहाँ किसी की परवाह थी।शतेश के भाई भी आये थे।मेरे पर्स को मुझे देते हुए बोले भाभी मैं भी आया हूँ।चलिए महराज घर चल के आराम से आपलोग रोईयेगा।मैं थोड़ा झेप गई।उनसे भी हाल -चाल पूछा।शतेश मेरे भाई से कहते है ,मैं भी दो साल बाद आया हूँ यार, मुझेसे भी मिल लो।अब झेंपने की बारी मेरे भाई की थी ;) शतेश के भाई ने कैब बुक किया था।कैब वाला एयरपोर्ट पर ही कही और हमारा इंतज़ार कर रहा था।उसको कॉल करके डायरेक्शन देने और सही जगह बुलाने में 20 /25 मिनट लग गए।जबकि वो हमसे ज्यादा दूर नही था।शतेश के भाई कैब वाले से खीजते हुए कहते है ,अरे यार कब से तुम्हे रास्ता बता रहा था।पहली बार आये हो क्या ? वो कहता है हाँ।मैं 3 -4 रोज पहले ही राजस्थान से दिल्ली आया हूँ।मुझे दिल्ली का पूरा रास्ता मालूम हो गया है।पर एयरपोर्ट पहली बार आया हूँ :) शतेश और उनके भाई कैब में सामान रख ही रहे थे ,कि दो लोग मिल कर हमारा सामान रखने लगे।मुझे लगा कैब वाले का दोस्त या वर्कर होगा,मदद कर रहा है।तभी देखा शतेश उनको पैसे दे रहे थे।मैंने गाड़ी में बैठते ही पूछा आपने उनको पैसे क्यों दिए ? मेरा भाई बोला ये उनका काम है ,बिना पूछे सामान गाड़ी में रख देना ,और पैसे मांगना।ऐसे ही उनका जीवन चलता है। मैंने कहा अगर नही दिया तो ? तो कुछ नही थोड़ा बहस होगा और क्या ?खैर हमलोग बाते करते ,पी -पा ,धूल ,उमस ,ट्रैफिक का मजा लेते हुए जा रहे थे।बातों में शतेश बोले ,तुम्हे एयरपोर्ट पर भागते और रोते देख पीछे से लोग कह रहे थे ,होता है होता है ,लोग इमोशनल हो जाते है।शतेश हँसते हुए कहते है ,मैं क्या कहता उनलोगो को कि ,जिसकी आप बात कर रहे है ,वो मेरी ही पत्नी है।हमलोग हँस पड़े।ट्रैफिक में फँसे हमारी नज़र बस और ऑटो पर गई।लगभग हर बस और ऑटो पर अरविन्द केजरीवाल का पोस्टर देख ,शतेश ने मेरे भाई से सवाल -जवाब शुरू कर दिए।मैं इनसबसे ऊपर खिड़की से बाहर देखती जा रही थी।रास्ते में वसंतकुंज के पास एक हॉटेल दिखा जहाँ मैं और भाई एक सगाई में गए थे।भाई के साथ उसकी यादें ताजा करती हुई खुश हो रही थी।भाई पूछता है ,कैसा लग रहा इतने दिनों बाद भारत आके।खुश होकर मैं कहती हूँ ,बहुत अच्छा।पहली नज़र में तो कुछ नही बदला था।वही सड़के ,वही भीड़ ,वही ट्रैफिक जाम ,वही बिजली के तार झुके हुए,वही मेरा भाई।बस बदली थी " तस्वीरें " शीला दीक्षित की जगह केजरीवाल , मनमोहन सिंह की जगह नरेंद्र मोदी और नटखट चुलबुल की जगह दाढ़ी वाला चुलबुल।
Friday 11 September 2015
KHATTI-MITHI: एक छोटा विराम !!!
KHATTI-MITHI: एक छोटा विराम !!!: दोस्तों कभी -कभी थोड़ा विराम भी जरुरी होता है। हमेशा चलते रहने से आपके अंदर वेग तो बना रहता है ,पर एक थकान और बोझिलपन महसूस होने लगता है।क...
एक छोटा विराम !!!
दोस्तों कभी -कभी थोड़ा विराम भी जरुरी होता है। हमेशा चलते रहने से आपके अंदर वेग तो बना रहता है ,पर
एक थकान और बोझिलपन महसूस होने लगता है।कभी -कभी प्रकृति द्वारा बनाया विराम अद्भुद अनुभूति देता है।लेकिन इस बार के विराम की वजह मेरा भारत जाना है।मन में बहुत से सपने है,तो किसी एक कोने में उनके टूटने का डर।कही इन दो सालो में कुछ बदला तो नही होगा ? ये जानते हुए भी कि ,परिवर्तन संसार का नियम है ,हम आसानी से बदलाव सहन नही कर पाते।घर जाने का उमंग।अपनों से मिलने की लालसा एक नई ऊर्जा भर रही है।ऐसा नही है कि ,मैं यहां दुखी हूँ ,या ये देश मुझे पसंद नही। पर बात वही है ,घर सिर्फ एक होता है ,बाकी के सब डेरा।लड़कियों की तो और विकट समस्या है।ना चाहते हुए भी उनके दो घर बना दिए जाते है। एक मायका तो दूसरा ससुराल।डेरा चाहे जितना बदले अच्छे दोस्त और अच्छा जीवन साथी वैसे ही होते है ,जैसे ससुराल।वो हर कोशिश करते है ,आपको अपनाने की और आप भी उनमे रम जाते है। मेरे सारे दोस्त जिनको मेरे ब्लॉग का इंतज़ार होता है।उनसे कुछ दिनों के लिए माफ़ी माँगती हूँ।इंडिया से आने के बाद बदले मोदी के बदले भारत की तस्वीर लिखूंगी।तबतक के लिए एक प्यारी सी कविता "दीपांकर गिरी" द्वारा लिखी हुई।
हवा के सहारे टंगे हुए है हम ।
ना हमसे कोई मुहब्बत करता है ,ना नफरत
ना कोई हमें खरीदता है ,ना हम किसी के हाथ बिकते है।
हम चाहते है ,सब हमारे साथ हो ,हम चाहते है, कुछ लोग हमारे साथ ना हो
क्योकि लड़ने के लिए कोई तो चाहिय। इसलिए उनकी तरफ भी कुछ लोग चाहते है।
वे हमें जानते है अच्छी तरह से।
हम ना क्रांति करते है ,ना शांति से बैठते है।
हमें हर वक़्त किसी का फ़ोन आता है
जबकि हम किसी और की आवाज़ सुनने को बेताब है।
कभी हम अँधेरे से भागते है ,कभी रौशनी से ,
कभी आमवस्या की तरफ चल पड़ते है ,तो कभी चाँदनी की तरफ भागते है।
हम चाय भी पीते है ,हम शराब भी पीते है ,
हम ना सोते है ,ना जागते है ,ना रोते है ,ना हँसते है।
हम कभी शहर में जंगल चाहते है ,तो कभी जंगल में शहर बसाना
हम ना नियम का पालन करते है ,ना नियम तोड़ते है।
हम ना पढ़ते है ,ना किताबों से दूर रहते है
हमें अखबारों के पन्ने अच्छे नही लगते ,इसलिए अखबारों को हम नही पसंद।
जब हम सूरज बन जाते है ,वो हमसे डरते है
जब हम चाँद बन जाते है ,वो हमें डराते है।
वो हमारी बढ़ी दाढ़ी में तिनका ढूंढ़ते है
हम उनके चिकने गालो पर पेड़ उगाना चाहते है।
वे चाहते है वे हमारे छत के नीचे आ जाये
पर कैसे ?
"हम तो खुद ही हवा में टंगे है
जहाँ ना छत है ना नींव" !!
Tuesday 8 September 2015
KHATTI-MITHI: Land of MISTAKE or MYSTIC BANARAS !!!!
KHATTI-MITHI: Land of MISTAKE or MYSTIC BANARAS !!!!: बनारस हमेशा से आकर्षण केंद्र रहा है।चाहे मोक्ष की चाह में हो या पर्यटन की लालसा में।फिल्म वालो की भी खासा रूचि रही है ,इसकी पृष्ठभूमी को ल...
Land of MISTAKE or MYSTIC BANARAS !!!!
बनारस हमेशा से आकर्षण केंद्र रहा है।चाहे मोक्ष की चाह में हो या पर्यटन की लालसा में।फिल्म वालो की भी खासा रूचि रही है ,इसकी पृष्ठभूमी को लेकर।ऐसे में एक ही साल में बनारस की चाल -ढाल दिखाता नया सिनेमा ,दो जबरदस्त फिल्म बनाता है।एक तो "मसान" दूसरा "मोहल्ला अस्सी" मोदी जी क्या जीते यहाँ से बनारस की काया ही पलट गई।कुछ तो बदला होगा या है ,पर क्या मालूम नही।कुछ नही सही पर कम से कम फिल्मकारों ने ही बनारस को समझा तो।फिल्मो में बनारस तो बहुत पहले से है।पर समय के साथ बनारस की जगह इंग्लैण्ड ,पेरिस ,स्विटरजरलैंड ,अमेरिका या दुबई ने ले ली।मैं भी उसी बदलते समाज का एक हिस्सा हूँ।अपनी संस्कृति से दूर डॉलर के लालच में फसी एक अनजान संस्कृति को अपनाती।फिल्म में सच कहा गया है ,पैसा सब कुछ खरीद सकता है।पर जब शांति ,ख़ुशी की बात आती है तो एक मौन।खैर बनारस से पास होते हुए भी मैं कभी बनारस नही जा पाई।कारण जो भी हो पर बहाने के तौर पर बाबा विश्वनाथ का बुलवा नही था।इस बार बाबा की कृपा हो तो जरूर जाउंगी।फिलहाल चले पन्ने और आपके मन को रंगने।मसान पर पहले लिख चुकी हूँ ,तो आज की कलम डायरेक्टर " चन्द्र प्रकाश दिवेदी"की फिल्म "मोहल्ला अस्सी" के नाम।फिल्म शुरू होती है बनारस घाट से ,जहाँ आरती हो रही है।बैकग्राउंड में "पंडित छन्नुलाल लाल मिश्रा जी" की आवाज में भगवान शिव का गीत डिमिक -डिमिक डमरू कर बाजे चल रहा है।आह पंडित जी की आवाज और बनारस की आरती ,पहला सीन ही मन को सम्पूर्णता से भर देता है।फिल्म में सनी देओल एक परंपरागत पंडा (पंडित ) बने हुए है।जिन्हे अपने संस्कृती ,सभ्यता और रिवाजो को बचाने का भूत चढ़ा होता है।उनकी पत्नी (साक्षी तंवर )दुसरो की तुलना करती हुई पंडित जी को समझाती है ,की आमदनी बढ़ाये। अब संस्कारो और सच्चाई पर चलने वाले ढीठ पंडित का क्या हो सकता है ,परिवार जैसे -तैसे दक्षिणा पर पेट भर रहा है।हालत से तंग आकर आखिर पंडित को भी अपने आदर्शों को ताक पर रखना पड़ता है।दूसरी ओर एक टूरिस्ट गाईड (रवि किशन ) बनारस आने वाले विदेशियो को बनारस दर्शन के साथ किराये का मकान दिलवाता रहता है।कमरा के लिए विदेशियो की पहली पसंद अस्सी घाट है।कारण यहां से गंगा पास और हर घर की खिड़की गंगा की तरफ खुलती है।अस्सी घाट पर ज्यादतर ब्राहम्ण ,ठाकुर ,और मल्लाह के घर है।पैसे की लालच में ठाकुर और मल्लाह घर किराये पर दे देते है।पर ब्राहम्ण गरीबी के बावजूद रिवाजो का ढोंग कर जी रहे है।वही एक भांग वाले की दुकान पर कुछ मिले -जुले बुद्धि जीवियो का सम्मेलन होते रहता है।राजनीती से लेकर ,सम्प्रायवाद ,आयोध्या मंदिर निर्माण ,विदेशियो को गाली ,बनारस की सभ्यता पर बहस होती रहती है।जैसे -हर छोटे -बड़े शहर में चाय की दुकान पर होती है।फिल्म में लगभग हर लफ्ज़ गाली से शुरू होता है।इसके बावजूद फिल्म बहुत ही अच्छी और मजाकिया तौर पर बनाई गई है।इतने जटिल समस्याओं को बहुत ही हल्के -फुल्के अंदाज में दिखाए गया है।ताकि आप हँस -हँस के रोये।यही है एक नेशनल फिल्म अवॉर्ड विनर ( फिल्म ,पिंजर ) डायरेक्टर की खूबी है।फिल्म में बैकग्राऊंड में कही कजरी गीत तो कही कबीर के भजन चार -चाँद लगा देते है।एक से बढ़ कर एक डायलॉग है जैसे -एक मुसल्मान कहता है ,वोट उसी को दूँगा ,जिसे पूरा मुहल्ला देगा।लेकिन वोट मैं दे भी दूँ तो कोई विश्वास नही करेगा।दुःख इसी बात का है।एक पंडा एक छोटी जात वाले व्यक्ति को कहता है,जा अगले जन्म में ब्राहम्ण ,भूमिहार या ठाकुर के घर पैदा होना।जब नौकरी के लिए गिड़गिड़ाओ तब पता चलेगा।एक दूसरा व्यक्ति हँस के पूछता है ,ये आशीर्वाद था या श्राप।यहाँ तो आशीर्वाद भी बिना गाली के पूरी नही होती।वही एक हजाम (नाई )एक विदेशी महिला के साथ भाग कर योगा गुरु बन जाता है।बार्बर बाबा कहता है ,जैसे ऐक्टर तेल -साबुन , क्रिकटेर गाड़ी ,घर, मोबाइल ,नेता देश बेचते है।वैसे मैं योग बेचता हूँ !!दुनियाँ एक बाजार है।"पहले समाज में एक बाजार हुआ करता था।अब बाजार में एक समाज साँस ले रहा है"।सारे गुण पैसे से खरीदे जा सकते है।जो निर्धन है ,वो समाज का कचरा है।वही राम जन्मभूमि पर भी कुछ बेहतरीन संवाद है।जैसे राम को लगता है आजीवन बनवास ही रहना होगा।पहले 14 साल का वनवास ,फिर सीता की परीक्षा अब जन्मभूमि का प्रमाण।किसे पता राम का घर ? वही भांग को शिव प्रसाद बताना इसका मन से सम्बन्ध ,मानव अस्तित्व से संबंध बताना आपको हसने पर मजबूर कर देगी।वही विदेशियो की भी पीड़ा को अच्छी तरह समझाया गया है।कैसे भारत उनके लिए पर्यटन केंद्र नही चंद डॉलर में सुबिधापूर्ण जीवन यापन का साधन है।कैंसे संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षक को इंग्लिश आना जरुरी हो गया है।एक साधु कहता है ,आने वाले समय में भारत एक बाजार होगा।ये करेगा या सुनेगा कम ,बोलेगा ज्यादा।जो आज के समय में बिलकुल सच लगता है।वही एक विदेशी कैथरीन कहती है ,बनारस अब मर रहा है।जिसे सुनकर एक बुद्धिजीवी तिलमिला जाते है।कैथरीन कहती है ,मुझे मालूम है बनारस में गाली देना और सुनना संस्कृति है।अब तुम्हे क्या बताये कैथरीन बहन सिर्फ बनारस ही ,नही पूरा भारत यहां तक समस्त विश्व मर रहा है।कहाँ गरीबी को सर पर बिठाया जाता है ,कहाँ ढोंग नही ,कहाँ नशा नही, कहाँ गाली नही? आधुनिक बनने के लिए कुछ तो कुर्बानी देनी होगी।गाली हिंदी में दो या इंग्लिश में है तो गाली ही।गरीब भारतीय हो या विश्व के किसी दूसरे कोने से है तो गरीब ही।आह समाज का कचरा!!बहुत कुछ है इसपर लिखने या समझने को।बस कबीर के भजन के साथ विराम ,
झीनी -झीनी बीनी चदरिया।।
काहे कै ताना काहे कै भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया
झीनी -झीनी बीनी चदरिया।।
झीनी -झीनी बीनी चदरिया।।
काहे कै ताना काहे कै भरनी
कौन तार से बीनी चदरिया
झीनी -झीनी बीनी चदरिया।।
Tuesday 1 September 2015
KHATTI-MITHI: भारतीय समाज और लड़कियो का कुँवारापन !!!!
KHATTI-MITHI: भारतीय समाज और लड़कियो का कुँवारापन !!!!: मियाँ -बीबी के जोक्स तो आपने बहुत सुने होंगे।किसी की खुशहाल दांपत्य भी देखा होगा।एक आध उथल -पुथल वाली वैवाहिक जिंदगी में भी ताका -झाँकी की ...
भारतीय समाज और लड़कियो का कुँवारापन !!!!
मियाँ -बीबी के जोक्स तो आपने बहुत सुने होंगे।किसी की खुशहाल दांपत्य भी देखा होगा।एक आध उथल -पुथल वाली वैवाहिक जिंदगी में भी ताका -झाँकी की होगी।पर क्या कभी किसी ऐसी लड़की को देखा है।जिसकी शादी ना हो रही हो।कुँवारापन एक श्राप बन गया हो।समझा है कभी ,सुन्दर ना होने पर बार - बार वर पक्ष से तिरस्कार ,गरीब होने पर दहेज़ का बोझ ,पढ़ी -लिखी हो तो उम्र का ताना ,पिता ना हो तो कौन कराये ब्याह की चिंता ,ब्याह तय हो तो अच्छे वर की अकांक्षा में मरती हुई लड़की की पीड़ा।पता नही मैं आज क्या लिख रही हूँ।पर मन व्याकुल है ,तो पन्ने रंग रही हूँ।मेरी ही कुछ जानेवाले जिनकी अब तक शादी नही हुई।उनसे बात करके लगता है ,मैंने शादी करके गोल्ड मेडल जीत लिया हो।या कोई बहुत बड़ा सम्मान पा लिया हो।पढ़ी -लिखी,अच्छी नौकरी पेशा एक लड़की।साधारण होने की वजह से कई बार रिजेक्ट हुई।मुझसे बात करते हुए रो पड़ती है।मैं उसे समझाने की कोशिश करती हूँ।पर खुद अंदर से रो रही हूँ सोच कर।क्या ये वही कॉलेज की टॉपर है ? जो एक ब्याह ना होने से अधीर है।एक लड़की जो कॉलेज टाइम में बहुत ही सुन्दर।उसके पीछे लड़को की कतार हुआ करती थी।आज उसके लिए लड़के नही मिल रहे।कारण उम्र और मोटापा।एक लड़की के माँ -बाप को गूँगा बनना पड़ा ,सिर्फ इसलिए की बेटी सुन्दर नही।वर पक्ष की आकांक्षा को पूरा करता उसका पिता यही सोचता होगा।चलो बेटी का ब्याह तो हुआ।एक लड़की सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर लेती है ,की उसकी शादी नही हो रही थी।पिता नही रहे।भाइयों को अपनी बीबी -बच्चो से फुर्सत नही।पड़ोसियों और रिश्तेदारो ने बाहर निकलना मुशिकल कर रखा था।तो दूसरी लड़की को अपने दोस्त से माफ़ी माँगना पड़ता है ,कि वो उसके लिए मेट्रिमोनियल से लड़का न ढूंढे।उसके भाई और पिता नाराज होते है।घरवालो के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचता है।कहते है हम मर गए है क्या ?जो तुम्हारी दोस्त शादी करवायेंगी।तो कही ऐसी लड़की जो अपने परिवार वालो की चमक -धमक वाला ,उच्चे हैसियत के लड़के की उम्मीद में साल दर साल गिन रही है।ये जितने भी उदाहरण मैंने लिखे ये सब कहानी नही सचाई है।कारण जो भी हो ब्याह का।लेकिन अगर लड़की की शादी नही होता ,तो गुनहगार लड़की ही है।क्या जरुरत थी उसे पैदा होने की ?हुई भी तो सुन्दर ,अमीर घर में क्यों नही जन्मी ? जन्मी भी तो पढाई के साथ ही ब्याह क्यों नही किया ? समय से ब्याह नही किया तो ,किसी अधेड़ या तलाकशुदा से शादी करने में हिचक क्यों रही है ? माँ बाप पर बोझ तो है ही।गाँव ,मुहल्ला रिश्तेदार तक खोट निकालने में नही चूकते।हाँ ये जरूर भूल जाते है ,की उनकी अपनी बेटी भी है।बेचारी लड़की 30 की दहलीज़ पर खड़ी।जब भी किसी दोस्त की शादी की खबर सुनती है ,उसका मन टीस से भर जाता है।दोस्तों की शादी में नाचते -गाते देख।कोई न कोई पूछ बैठता है , तू कब शादी करेगी ? बस एक दर्द के साथ झेप के कहती ,जब होनी होगी हो जायेगी।पहले जैसे अब किसी की किसी से रिस्तेदारी नही रही।जो लोग दूसरे की बेटी के लिए वर ढूंढते रहे या बताते रहे।पिता जब लड़का ढूंढ के थक जाता है।तो माँ पूछती है ,अगर कोई लड़का पसंद है तो बता दे।या फिर इससे अच्छा तो ये खुद ही लड़का पसंद कर लेती।इतनी परेशानी तो नही होती।माता जी जब आपकी बेटी के पीछे लड़को की कतार थी।उस वक़्त तो आपने इज़्ज़त का हवाला दे बेटी को रोक लिया।आज जब उन लड़को की शादी हो गई ,तो आप बेटी के आशिक ढूंढ रही है।अब इस उम्र में ना तो आपकी बेटी किसी को लुभायेंगी न कोई नौजवान उसपे फ़िदा होगा।मार्केट में नौजवान के लॉट की भी तो लड़कियाँ आ गई है।बस अब आप अपनी बेटी को कोसते रहिये। 30 साल की हो गई ब्याह नही हो रहा।छोटे शहरो की तो और भी बुरी स्तिथि है।लड़कियाँ पढाई के बाद घर में कैद हो जाती है।दिन भर टेलीविज़न पर फिल्मे या सास -बहू सीरियल देखती।सुन्दर ,पढ़े लिखे जीवन साथी की कल्पना में खोई हुई।ऐसा नही है की लड़को को कुंवारेपन की पीड़ा नही होती होगी।पर मुझे लगता है उनका दुख कुछ कम होगा।उनके पास उम्र की कोई तय सीमा नही।सुंदरता का कोई पैमाना नही।दहेज़ की कोई चिंता नही।उनके मनोरंजन के भी ढ़ेरो साधन है।उनकी शारीरिक जरूरते भी पूरी हो सकती है।कही भी रात गुजार कर आ सकते है।कोई नही पूछता।पर लड़की का क्या ?जरा सोचिये क्या उसकी शारीरिक जरुरत नही? क्या वो बेशर्म है जब शादी की बात करती है ?क्या उसका मन नही करता किसी से प्यार करने को।वो क्या करे जब उसका शरीर उसकी बेबसी ना समझ पाये ? वो क्या करे जब उसकी शादी ना हो रही हो ? वो क्या जबाब दे समाज के तानो का ?वो कब तक अपने कुँवारेपन के बोझ के नीचे मरती रहे।या यूँ कहे मर क्यों ना जाये।इस नए युग में भी शादी और शारीरिक जरुरतो के मापदंड पर झूलती लड़की को श्रद्धांजली।
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