Monday, 27 November 2017

बेटी की शादी !!!

आज एक मित्र ने अपने सोसायटी में रहने वाले गार्ड की परेशानी लिखी ।परेशानी ये थी की -उनकी बेटी की शादी तय हो गई है ,पर पैसे की समस्या है ।मुझे ये पोस्ट पढ़ कर अपनी शादी के दिन याद आ गए ।कुछ समझ नही आता कैसे हो बेटी की इस समस्या का समाधान ।
मेरी कहानी कुछ यूँ रही -
मेरी माँ मेरी शादी के पीछे पड़ गई थी ।कारण मेरी पढ़ाई हो गई थी ।जॉब भी करने लगी थी ।ऐसे में आस -पड़ोस के लोग माँ को टोक देते ।सुन -सुनकर माँ भी इस बारे में सोचने लगी थी ।मेरा मन अभी एक -दो साल शादी का नही था ।या यूँ कहे मुझे शादी से बड़ा डर लगता था ।मैं टालते रहती ।ऐसे में माँ अपनी बी पी का बहाना करने लगती ।वहीं हर माँ की तरह ,कही मर गए तो बेटी की शादी भी नही देख पायेंगे आदि -आदि ।

फिर मेरे हाँ कहने के बाद असली समस्या शुरू हुई ।मेरे पिता जी नही है ।माँ ने ही दोनो भाई बहन को पाला है ।अब अरेंज मैरिज वो भी बिहार में ? लड़के के घर रोज़ दौड़ने की प्रैक्टिस करने वाला कौन था मेरे घर ? कौन गाँव -गाँव जाकर इतना लड़का ढूँढता ? जी हजुरी करता ।

ऐसा नही है कि मेरे रिश्तेदार नही ।सबलोग हैं ।सब लोग अच्छे नौकरी पेसा लोग हैं ।अब ऐसे में कौन मेरे लिए बार -बार छुट्टी लेकर लड़का ढूँढे ।मामा जी ,चाचा जी ने दो तीन लड़के बतायें ,पर बात वहीं ।लड़का पुणे ,बंगलोर ।परिवार किसी गाँव में ।लड़के के परिवार से तो मामा -चाचा मिलने जाने को तैयार थे ।लड़के से कौन इतनी दूर मिलने जाय ।फिर अपने यहाँ का देखा -देखौकि अलग से ।ऐसे में मेरा भाई (जो मुझसे छोटा है )एक लड़का को देखने गया ।बहुत बुरा लगा था मुझे उस दिन ।ख़ैर भाई को लड़का तो अच्छा लगा पर परिवार नही ।

ज़रा सोचिए सारे साधन थे मेरे पास ।बस एक पिता का ना होना ,मेरे छोटे से भाई को कितना ज़िम्मेदार बना गया ।
**कई बार मैं सोचती थी ,इससे अच्छा तो लव मैरिज कर लेती ।
हमलोग शादी को लेकर इतने भी परेशान नही थे ,कारण अभी तो शुरुआत ही की थी ।वहीं मेरे लिए रिश्तेदारों के बताए रिश्ते भी आ रहे थे ,पर कही कुंडली नही मिलती तो कही माँ को उस रिश्तेदारी में शादी नही करनी ।
फिर भी मैंने माँ और भाई से कहा तुमलोग इतना मत सोचो ।मैं किसी से भी शादी के लिए तैयार हूँ ।किसी से मतलब पेशा से है ।फिर तय हुआ शादी अगले साल करनी है तो ,अगले साल लड़का ढूँढे ।माँ को समझा कर मैं भाई फिर से मस्त हो गए ।माँ भी अगले साल का इंतज़ार करने लगी ।

इसी बीच भाई के एक दोस्त जो उससे बड़े थे ,हमारे फ़्लैट पर आए ।मेरे भाई के हर उम्र के दोस्त है ।उन्होंने अपनी बहन की शादी मेटरीमोनियल से तय की थी ।बहन को भी हमलोग जानते थे ।शादी तो पटना (घर ) से होनी थी ।बस उनकी सगाई दिल्ली में थी ,तो दीदी को कुछ मदद चाहिए थी ।उन्होंने ही भाई को कहा मेरा भी प्रोफ़ाइल बना दे ।

प्रोफ़ाइल बन गई ।आह ! क्या दिन थे वो ।ऑफ़िस से आने के बाद हम दोनो भाई बहन जीवन साथी की साइट खोल कर ख़ूब मज़े करते ।एक इक्सेल सीट बना लिया था ।भाई कहता चल बहिन ,ग्रूम -ग्रूम खेला जाय ।
रोज़ लड़का देखते ,मज़ाक़ उड़ाते ।जो अच्छा लगता उसका रिक्वेस्ट ऐक्सेप्ट करते ।फिर सीट में उनका नाम ,शहर का नाम ,शिक्षा ,जॉब ,परिवार वाला खाना भरते ।
खाना पकाने वाली आंटी को चाय बनाने को कह,हमलोग इसमें ही लग जातें ।जबतक खाना नही बनता।जीवन साथी हमारा मनोरंजन का साधन बन गया था ।समझ लीजिए फ़ेस्बुक हो ।

फिर दिवाली में जब घर गई ।माँ को बताया ऐसे लड़का ढूँढ रहें है ,उसने सिर पकड़ लिया ।बोली तुम दोनो का दिमाग़ खराब हो गया है ।दो फँसोगे एक दिन । ऐसे शादी -ब्याह कहीं होता है ब्राह्मण में ? क्या बाहर रहते हो न्यूज़ नही सुनते ? ऐसे शादी के लिए मेरी हाँ कभी नही होगी ।और भी बहुत कुछ ...

हमलोग ने माँ को समझाने के लिए जीवन साथी की साइट खोली।एक लड़का माँ को भी अच्छा लगा पर उसका घर राँची था ।माँ को तो ऐसे भी मन नही था ,बोली इतनी दूर बेटी की शादी नही करेंगे ।
तभी भाई को जाने क्या सूझा बोला -रुको सर्च करते हैं ।बिहार का कोई लड़का है क्या इस साइट पर ।और फिर हमें "शतेश "मिले ।मिले भी इतना पास की भले ये सात समुन्दर पार थे ,पर इनका घर जहाँ हम रहते वहाँ से 45 मिनट की दूरी पर ।इनसे भाई की बात हुई ।फिर माँ के ना हाँ के बीच भाई शतेश के घर पहुँच गया ।

शतेश के घर वाले हैरान ।एक 24/25 साल का लड़का अपनी बहन की शादी की बात करने आया है ।
शतेश के पापा बोले किसी बड़े -बुज़ुर्ग को बुला लाओ ।तुमसे क्या शादी की बात करे ?तुम्हें अनुभव ही कितना है ?

मेरे घरवाले ऐसी शादी की बात से डर रहे थे ।डर था कुछ गड़बड हुई तो उन्ही पर इल्ज़ाम होगा ।सब कुछ ना कुछ बहाना बना रहे थे ,ना आने का ।
फिर जब हमने माँ को मना लिया सब आए ।शतेश के घर भी गए ।
कुल मिला कर ये समझिए ,मेरी शादी सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे भाई ने की है ।माँ के मामा जी तब छपरा में मेजर थे ।उन्होंने ने काफ़ी मदद की ।
शादी की सारी तैयारी मैंने और भाई ने माँ के मामा जी की मदद से की ।
यक़ीन मानिए , भगवान की कृपा से मेरी शादी ,मेरी घर की सबसे अच्छे से अरेंज शादी हुई ।शतेश के पापा आज भी मेरे भाई से बहुत प्यार करते है ।उसकी मिशाल सबको देते रहते है ।

नोट :-कहानी संक्षेप में लिखी ।पर ये समझ लीजिए बेटी कि शादी खास कर बिहार में एक गम्भीर समस्या है ।किसी के पास साधन की कमी तो कहीं पिता की कमी ।आजकल "अगुआ "(शादी कराने वाला ) का लुप्त का ना होना और समस्या पैदा कर देता है ।सिर्फ़ पैसा ही नही आपको ख़ुद को लगाना होता है बेटी की शादी में ।
बेटी के योग्य या अयोग्य का इससे कोई सम्बंध नही ।योग्य भी हार मान किसी से शादी को राज़ी हो जाती है ।
ऐसे में महाराष्ट्र ,दिल्ली की तरह बिहार में भी शादी योग्य लड़के -लड़की की पत्रिका निकलनी चाहिए ।शादी का ख़र्च भी दोनो पक्षों को आपस में बाँट लेना चाहिए ।
**याद रखिए किसी की बेटी की शादी ही नही अपके बेटे की भी तो शादी है ।

Wednesday, 1 November 2017

बुरी आत्मा का प्रवेश !!!

31अक्टूबर ,हेलोवीन के दिन एक व्यक्ति के अंदर पापी दुष्टात्मा प्रवेश कर गई ।जहाँ एक तरफ़ लोग हेलोविन के उत्साह में डूबे थे ,दूसरी ओर एक पापी आत्मा काल का रूप ले रही थी ।उसने न्यू यॉर्क में अपनी गाड़ी से लोगों को कुचल डाला ।ट्रिक (हेलोविन का एक रिवाज )को उसने सचमुच भयावह बना डाला।मासूम लोग ये भी नही समझ पाए कि,ये ड्राइवर की सोची समझी चाल है या गाड़ी की ख़राबी ।जबतक कुछ समझ आता है ,कई लोगों की जान चली गई ।
जहाँ ये घटना हुई ,वो वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से ज़्यादा दूर नही है ।
वहीं "वर्ल्ड ट्रेड सेंटर "जिसके "नाइन इलेवन" के ज़ख़्मों की निशानी अभी भी वहाँ मौजूद है ।आज भी हज़ारों मृतकों के नाम ,उस फ़ाउंटन के दीवारों पर आँसू बहा रहे होते है । पूछते है कि ,क्या ग़लती थी हमारी जो हम यहाँ हैं ।
हमें यहाँ नही होना था ।हम भी आपकी तरह इस ख़ूबसूरत दुनिया को जीना चाहतें थे ।
आज भी लोग यहाँ आ कर इमोशनल हो जातें हैं ।उस समय को याद करतें हैं ।उस वक़्त हमारी आत्मा तड़प उठती है ।हम अपना हाथ बढ़ाना चाहतें हैं ,आपके आँसुओं को पूछने के लिए ।आपको इस क्रूर दुनिया में रहने की हिम्मत देने के लिए।पर हमारे हाथ तो काट लिए गए ।
कैसा संयोग है ,कुछ ही सप्ताह पहले मैं ,शतेश और सत्यार्थ यहाँ गए थे ।वैसे हमलोग तो कई बार यहाँ आ चुकें हैं ,पर सत्यार्थ पहली बार आया था ।लोगों की भीड़ और फ़ाउंटन उसे आकर्षित कर रही थी ।फ़ाउंटन के मार्बल पर वो बार -बार हाथ मार रहा था ।मानो सत्यार्थ के अंदर बसे भगवान इन मार्बल पर ख़ुदे व्यक्ति के आँसू पोंछ रहे हों।सत्यार्थ के बार बार उछलने और हाथ मारने से हमलोग उस जगह से हट गए ।डर लग रहा था कि ,वो गिर ना जाय ।
फिर हमलोग जो मेमोरीयल हॉल बना है ,वहाँ गए ।इसकी मेमोरीयल की आकृति एक गिरते हुए हवाईजहाज़ की दी गई है ।इसके अंदर तमाम बड़े शोरूम और डब्लू टी सी मेट्रो स्टेशन भी  है ।अंदर में काफ़ी सुरक्षा व्यवस्था है ।
पहली बार मैंने यहाँ देखा कि,टॉलेट जाने की गाली के बाहर भी गार्ड तैनात थे ।गार्ड से आप डर के माहौल की उम्मीद ना करें ।वो जीतनी सुरक्षा के लिए होते हैं ,उतने ही मददगार भी । कुछ पूछना हो तो उनसे बेधकड पूछ सकतें है ,चाहे वो ट्रेन रूट की बात ही क्यों ना हो ।लोग बाग़ तस्वीरें निकालने में मशरूफ थे ।हमने भी कुछ तस्वीरें लीं और निकल पड़े टाइम स्क्वाइअर की तरफ़ ।
नोट:-पूरी इमारत सफ़ेद रंग की बनी है ।शायद शान्ति की उम्मीद हो ,या 9/11 की कफ़न की चादर ।
इसी बीच भारत में भी ऐन टी पी सी कांड हो गया ।लगता है सच में कलयुग आपने अंतिम चरण की ओर है ।

Wednesday, 11 October 2017

कब्रिस्तान !!!

वीकेंड हमारा घूमने के नाम फिक्स होता है। कही ना कही जरूर ही जाते है ,जबतक कोई मौषम की गड़बड़ी ना हो या अपनी तबियत की गड़बड़ी ना हो। इसी तरह दुर्गा पूजा वाले वीकेंड को, हमने ब्रज टेम्पल जाने का प्लान किया। सच बताऊँ तो मुझे अमेरिका का कंट्री साइड यानि छोटे -छोटे गाँव जवार के रास्ते और गाँव  ही ज्यादा पसंद आते है। हो सकता हो छोटे जगह से आने का असर हो। खैर मंदिर जाने का रास्ता बहुत ही सुन्दर है। उसकी तस्वीरों के साथ फिर कभी मिलूंगी। आज कब्रिस्तान की बात करनी है।
हुआ यूँ ,रास्ते में मुझे एक कब्रिस्तान दिखा। सुन्दर -सुन्दर फूल लगे थे उसमे। सड़क से बिल्कूल सटे। चलती गाडी से ही एक दो फोटो लेकर ,मैं कुछ सोचने लगी। सोच रही थी कि ,यहाँ अबतक की अंतिम यात्रा नही देखी। कैसी होती होगी ?क्या -क्या होता होगा ? फिल्मों में तो कई बार देखा है ,पर कभी किसी क्रिस्चन के फ्यूनरल को सच में नहीं देखा। 
हाँ एक बार डेज़ी से बातचीत में मालूम हुआ था कि ,ईसाई लोग दफ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। लेकिन लोग अब खर्च और जगह की कमी को ध्यान में रखते हुए दाहसंस्कार भी कराने लगे हैं। पर जो रूढ़िवादी ईसाई हैं वो आज भी दफनाना ही पसंद करते है। 
विषय से ना भटकते हुए तपस्या कब्रिस्तान देखने और सोचने पर आओ। हाँ फिर बहुत कुछ सोच रही थी जो बाद में बताऊँगी। अभी हुआ यूँ कि ,खूबसूरत वन वे रोड से निकल कर हमलोग हाईवे पर आ गए। स्पीड लिमिट 50 की थी ,पर गाड़ियाँ रेंग रही थी। ऐसा भी नहीं था कि ,ट्रैफिक हो या कोई एक्सीडेंट दिख रहा हो जीपीस में। वही दूसरे लेन में कोई गाडी ही नहीं जा रही थी। मैं और शतेश हँस रहे थे कि हुआ क्या है ? लोग इतनी कम स्पीड में क्यों जा रहें ? दूसरी लेन में कोई जा क्यों नहीं रहा ? शतेश बोले ऐसे रेंगने से अच्छा दूसरी लेन में चल लेते है। फिर पता नहीं मुझे क्या सुझा मैंने कहा रहने दो। लोग इतने बेवकूफ तो नहीं  शायद आगे रोड बंद हो। काफी जगह रोड का काम भी चल रहा था। खैर हमलोग भी उसी लेन में रेंगते रहे। कुछ 20 मिनट आगे जाने के बाद एक मोड़ था ,जहाँ एक आदमी काले कोट में एक तख्ती लिए खड़ा था -फ्यूनरल ट्रैफिक। भगवान् कसम मैं थोड़ी शॉक्ड रह गई। ये क्या अभी यही सोच रही थी कि ,किसी की अंतिम यात्रा नहीं देखी यहाँ और ये देखो।
जो दूसरा लेन ख़ाली था ,उसपर आगे लाइन से गाड़ियाँ जा रही थीं। सबके ऊपर एक छोटा सा झंडा लगा था ,जिसपर फ्यूनरल लिखा था। मैं और शतेश उन गाड़ियों को देख बात करने लगे कि ,कितना शांत और सम्मान के साथ अंतिम यात्रा चली जा रही है। हमारी लेन की गाड़ियाँ मोड़ के  बाद तेज हो चुकीं थी। फिर कुछ 25 /30 गाड़ियों के बाद हमें एक बड़ी सी गाडी में कॉफिन (शव का बॉक्स ) धुँधला सा दिखा। उसके आगे कुछ गाड़ियाँ बेहद धीरे चल रहीं थी। मैंने शव को प्रणाम किया ,मुक्ति की प्रार्थना की और फिर सोच में डूब गई। शतेश भी चुप थे। शायद वो भी कुछ सोच रहे हों। 
*अब जो कुल मिला कर मेरी सोच थी वो ये रही -मुझे डेज़ी की बातें याद आ रही थी कि -कैसे क्या होता है ।यहाँ अंतिम यात्रा के लिए ज़्यादातर लोग पहले ही अपने लिए किसी फ्यूनरल होम से बात करके प्लॉट बुक कर लेते हैं ।अपनी अंतिम इक्षा की गति अपने घरवालों या किसी पेज पर लिख कर रखे रहते है कि ,उन्हें जलना है या दफनाना ।जो ऐसा नहीं कर पातें उनके परिवारजन या मित्र अपने हिसाब से जो ठीक लगे कर देतें हैं ।यहाँ कब्रिस्तान भी दो होतें हैं -एक ग्रेवयार्ड (जो चर्च के अधीन होता है या चर्च का हिस्सा होता है )दूसरा समेटरिज (ये प्राइवेट प्रॉपर्टी होती है )
ग्रेवयार्ड के भरने के बाद समेटरीज बनाई गई ।डेज़ी के अनुसार यहां भी प्रार्थना उसके बाद भोज होता है ।सब दो या तीन दिन में निपट जाता है ।ये परिवार और मरने वाले की ईक्षा के अनुसार होता है ।
पता नहीं आज मैं ये सब क्यों आपसब तक पहुंचा रही हूँ ।बस मुझे लगा जैसे मेरी जानने की ईक्षा थी शायद औरों को भी हो ।
नोट :- लोग यहां कब्रिस्तान भी घूमने जाते हैं ।कई फेमस कब्रिस्तान ने जाने की फी भी लगती है ,गाइड भी होते हैं ।अभी हैलोवीन आने वाला है तो यहाँ कुछ प्रोग्राम भी होते हैं । मेरा भी बड़ा मन था ,लूसियाना का सेंट लुइस सिमेट्री और विर्जिना का अर्लिंग्टन नेशनल सिमेट्री (सिविल वॉर के सैनिकों के साथ जॉन एफ कैन्डी का भी शव दफन है )देखे का ।गई दोनों जगह पर लूसियाना में उस दिन बारिश हो गई ।वर्जिनिया वाले का टिकट एक आदमी 49 डॉलर। मतलब दोनों का लगभग 100 डॉलर। शतेश मेरा मज़ाक उड़ाते हुए बोले की -श्मशान देखने में समय और इतने पैसा तपस्या ही बर्बाद करने का सोच सकती है। मैंने भी जोक को सीरियसली लिया और जाने से मना कर दिया। खैर अब नहीं देखा तो नहीं देखा। देखिये गूगल से ली हुई तस्वीर। 
पहली लुसियाना की :- जहाँ कब्र मिट्टी के ऊपर घर जैसे बने है।दूसरी सिविल वॉर के सैनिकों की।
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Friday, 22 September 2017

ब्रह्मचारिणी माता का तप रूप !!!

दुर्गा पूजा का दूसरा दिन ।
यहाँ पर जीसस के देख रेख में सब सामान्य है ।पर भोले बाबा की नगरी में ,इन पावन दिनो में भी माँ के रूपों का हनन हो रहा है ।ऐसे में या तो भोलेनाथ समाधि में लीन है ,या उन्हें लगता है कि देवी ख़ुद समर्थ हैं ।ये पापी राक्षस कब समझेंगे की ,चाहे युग कोई भी क्यों ना हो ।नारी का अपमान विनाश का कारक होता है ।
आज "माँ ब्रह्मचारिणी "रूप में हैं तो क्या हुआ ? कभी तो काली रूप धरेंगी ।तब तुम अपना नाश देखना अधर्मियों ।
माँ के शांत स्वरूप को उनकी कमज़ोरी समझ रहें हैं ये लिजलीजे कीड़े ।
जब यहीं कोमल शरीर हज़ारों -हज़ार साल तप करके ।कभी फल -फूल तो कभी निर्जला व्रत करके ।अपने संयम और प्रेम से भोले अगड़भंगी को वश में कर सकती हैं ।फिर तुम जैसे गंजेडी -लफ़ंगो की क्या औक़ात ।
माँ आपके ब्रह्मचर्य को दुनिया अबला समझ रही है ।मुझे आपके महाकाली रूप का इंतज़ार है ।या तो आप सर्वनाश करें या फिर इस नफ़रत और घृणा से भरे समाज में प्रेम का संगीत घोलें ।

सबकी मनोकामना पूरी करने वाली माँ मेरी भी विनती सुन ले ।आपने माता सीता की प्रार्थना स्वीकार कर ,उन्हें राम को वर स्वरूप दिया ।पर मुझे किसी राम की इक्षा नही ।
मुझे तो बस इस दुनियाँ में अपने तरीक़े से स्वतंत्र जीने का वरदान दो ।अपने तरीक़े से राम या रावण चुनने की आज़ादी दो ।मुझे कोई डर -भय ना हो अपने इस नारी स्वरूप को लेकर ।
हे माँ ! मेरी  इस प्रार्थना को स्वीकार करो ।
https://youtu.be/LVIL0qPdo0U


Thursday, 21 September 2017

शैलपुत्री ,गिरिराज नंदनी !!!

दुर्गा पूजा शुरू हो चुकी हैऔर  मुझे बसंतपुर की याद आ रही है। कभी वहाँ के पंडाल की तो ,कभी दिन -रात बजने वाले भोंपू की।दिन -रात बजने वाले भक्ति गीतों से मानो भक्तिमय माहौल हो जाता ।उस वक़्त गीत भी अपने पारम्परिक मैया के गीत या पचरा बजते ।आज की तरह नही धिंचिक टाइप ।आवाज़ भी इतनी की जिससे किसी को परेशानी ना हो ।सच में बसंतपुर में हमेशा बसंत ही रहता ।कॉलोनी में बैठे -बैठे आते -जाते लोगों की झुण्ड को देखना। सुबह उठ कर फूलों की रखवाली करना।रोज हनुमान चालीसा पढ़ना।दस दिन स्कूल की छुट्टी और हमारी मौज ।एक ही दिन सारा होमवर्क करके आठ दिन खेलते रहते ।कितना उत्साह रहता नवमी का ।

यहाँ तो सब दिन एक ही जैसे ।त्योहार भी शांति से आकर चले जाते हैं ।मंदिर में सुविधानुसार शनिवार या रविवार को फ़ंक्शन होता है ।सज धज कर जनता वही इकट्ठा हो त्योहार मना लेती है ।बाक़ी अपने -अपने घरों में सब पूजा -पाठ कर ही लेते हैं ।यू ट्यूब से मैया के गीत सुनकर ख़ुश हो लेते है ।

आज दुर्गा पूजा का पहला दिन यानी "शैलपुत्री माता " का दिन है ।माँ के नव रूप में प्रथम ।शैलपुत्री नाम माँ का पर्वतराज हिमायल के पुत्री होने के कारण पड़ा ।माँ के इस रूप को पार्वती या हेमवती भी कहते हैं ।
कहा जाता है कि ,पार्वती जी सती का ही दूसरा रूप हैं ।
सती जब अपने पिता के अपमान से क्रोधित होकर आत्मदाह कर लेती हैं ।तो उनका अगला जन्म पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के यहाँ होता है ।
शैलपुत्री को प्राकृति भी माना जाता है ।पर्वत ,वायु ,वन ,भूमि सबका मिश्रित रूप ।
माता दुर्गा के इस रूप को कोटि -कोटि प्रणाम ।
साथ ही गिरिराज नंदनी की वंदना करते हुए अश्विनी भिंडे जी को सुने ।
https://youtu.be/3dQBbgns


Friday, 15 September 2017

जितिया व्रत और कथा !!!

तीज पर मैंने कई पोस्ट पढ़े कि,क्यों पुरुषों के लिए व्रत रखें? पर जितिया के लिए हर जगह सन्नटा था। संतान मोह होता ही कुछ ऐसा है। इसमें कुछ सही गलत नही लगता। बस हमारे बच्चें स्वस्थ रहें, ख़ुश रहें यही हर पल कामना होती है। हालाँकि ये व्रत भी पुत्र के लिए ही किया जाता है। पर कुछ माएँ अपवाद भी तो होती हैं। जैसे की मेरी माँ।
तो चलिए कहानी के शौक़ीन लोगों को व्रत कथा भी सुनाई जाए।
व्रत :-जितिया।
मनोकामना :- वंश वृद्धि ,संतान दीर्घायु हो।
पूजन :-शिव -पार्वती, गणेश के साथ जितबानन गोसाई की पूजा।
विधि:- निर्जला उपवास। नदी के तट पर कथा सुनना। पार्वती माँ की शृंगार सामग्री के साथ गणेश जी के लिए कुछ खिलौने, प्रसाद, दान -दक्षिणा और अगले दिन पारन।

कथा :- जितिया कथा में तीन कहानियाँ सुनाई जाती है। जब छोटी थी तो माँ के साथ नदी किनारे जाती। कहानियों से शुरू से ही लगाव की वजह से औरतों के बीच बैठ कर मैं भी कथा सुनती। एक साथ तीन -तीन कथा पंडित जी सुनाते। अगर कोई महिला बीच में बात करने लगती तो मोटकू पंडित जी ग़ुस्सा हो जाते। कथा छोड़ कहते “कथा सुने आएल बानी लोग की पंचायत करे ?” बतिया ली लोग हम जा तानी।
कुछ औरतें पंडित जी के प्रकोप से डर कर चुप हो जाती तो कुछ पंडित जी को छेड़ने लगती। हमारे यहाँ पंडित जी से मज़ाक़ या शादी-ब्याह में उनके नाम से गाली गाना कोई नई बात नही।
इधर मैं तबतक अपने दोस्तों के साथ नदी किनारे खेल कर आ जाती। कारण पंडित जी तो अभी प्रवचन लम्बा चलेगा।

वैसे जितिया के बारे में ये प्रचलित है कि, जिसको पुत्र होगा वही करेगा। मेरी माँ कथा के बाद पहले मेरा ही नाम लेती फिर भाई का। कई औरतें माँ को टोक भी देती “येजी पहले बेटा के नाम ली।”
"माँ मुस्कुरा कर कहती -मेरे लिए पहले लव्ली फिर चुलबुल।"

ख़ैर मेरी राम कहानी से आगे जितिया की कथा तक पहुँचते हैं ।
पहली कथा :-एक बार एक जंगल में चील और सियारीन घूम रहे थे, तभी उन्होंने कुछ महिलाओं को नदी के किनारे इस व्रत को विधि पूर्वक करते देखा और कथा सुनी। चील ने इस व्रत को ध्यानपूर्वक देखा और श्रद्धा पूर्वक व्रत का पालन किया। वही सियारीन का ध्यान बहुत कम था। उसने व्रत तो किया पर रात को भूख लगने के कारण, माँस खा लिया। व्रत के पुण्य से चील की संतानों को कभी कोई हानि नहीं पहुँची। वहीं सियारीन की सभी संताने एक एक कर मृत्यु को प्राप्त हो गाई।

दूसरी कथा :-महाभारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु से अश्व्थामा बहुत क्रोध में था। बदले की भावना से उसने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगो को पांडव समझकर मार डाला।लेकिन वे सभी द्रोपदी की पाँच संताने थी।उसके इस अपराध के कारण अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया।उसकी दिव्य मणि छीन ली।जिससे क्रोधित हो अश्व्थामा ने उत्तरा (अर्जुन की दूसरी पत्नी )की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया।
ब्रहमास्त्र को निष्फल करना असंभव था। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर, उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया। गर्भ में ही मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम “जीवित्पुत्रिका" पड़ा बाद में यहीं “राजा परीक्षित” हुए। तब ही से इस व्रत को किया जाने लगा।

तीसरी कथा :-गन्धर्वों के राजकुमार का नाम जीयूतवाहन था। वे बड़े उदार और परोपकारी थे। जीयूतवाहन  के पिता ने वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय इनको राजसिंहासन पर बैठाया। पर इनका मन राज-पाट में नहीं लगता था। वे राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले गए। वहीं पर उनका मलयवती नाम की राजकन्या से विवाह हो गया।
एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीयूतवाहन काफी आगे चले गए तो वहाँ उन्होंने एक वृद्धा को विलाप करते देखा। पूछने पर वृद्धा ने बताया कि मैं नागवंश की स्त्री हूँ। मुझे एक ही पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के सामने नागों ने उन्हें प्रतिदिन खाने हेतु एक नाग देने की प्रतिज्ञा की है। आज मेरे पुत्र की बलि का दिन है।

जीमूतवाहन ने वृद्धा से कहा, डरो मत माते। मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज उसके बजाय मैं स्वयं अपने आपको लाल कपड़े में ढाँक कर शिला पर लेट जाऊँगा। नियत समय पर गरुड़ आए और वे लाल कपड़े में ढाँके जीमूतवाहन को पंजे में दबोच उड़ चले। मृत्यु को पास देख कर भी गरुड़ का शिकार शांत चीत रहा तो गरुड़जी बड़े आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने जीयूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीयूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया। गरुड़जी उनकी बहादुरी और बलिदान से बहुत प्रभावित हुए। प्रसन्न होकर गरुड़जी ने उनको जीवनदान  दिया ।साथ हीं नागों की बलि न लेने का भी वरदान दे दिया ।इस प्रकार जीयूतवाहन के साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई ।तभी से पुत्र की सुरक्षा हेतु जीयूतवाहन की पूजा की जाने लगी ।
तो अंत में बोलें :-ये अरियार ।
ता का बरियार ।
जाके कहिएय राजा रामचन्द्र जी से की -सत्यार्थ के माई जितिया कईले बाड़ीन ।
इम्पोर्टेंट :- इस व्रत कथा में भी बहुत डराया गया है की,खाने -पीने से संतान पर कष्ट आ सकतें हैं।मैंने पहली बार ये व्रत किया ।संतान मोह में या पहली बार की उमंग वश निर्जला व्रत तो कर लिया पर अगले दिन पारन के बाद बीमार पड़ गई ।माँ और एक दोस्त ने बताया ये व्रत लगता है ।मतलब इसके बाद थोड़ा बीमार पड़ सकतें है ।ख़ैर इसका नुक़सान तो मेरे सत्यार्थ को हुआ ।बीमार मैं हुई बेचारा कल पूरे दिन सिर्फ़ दूध पर ही रहा ।मैं कुछ बना ही नही पाई ।शतेश शाम को आकर उसके लिए खिचड़ी बनाए ।।शतेश ने व्रत के दिन छुट्टी ले रखी थी ,इसलिए अगले दिन पारन का खाना बना कर ऑफ़िस चले गए ।
निष्कर्ष :- अगले साल से मैं भगवान का नाम लेकर पानी पी लिया करूँगी तीज व्रत की तरह ।अगर माँ ही बीमार रही तो संतान कहाँ से स्वस्थ होगा ।

Thursday, 7 September 2017

वर्जिनिया बीच पर शिव पार्वती के साथ गणेश !!!

शिव ,पार्वती से कहते हैं :-पार्वती सुनो ना शीत ऋतु के आगमन से पहले फिर से किसी समुन्द्र तट चलते है।
पार्वती :- शिव जी ,आप खाली समुन्द्र तट करते रहते है। ग्रीष्म ऋतु क्या आई ,आप चार धाम की तरह समुन्द्र के चक्कर लगवाने लगे।आस -पास के तो सारे समुन्द्र नाप लिए ।अब क्या बचा है प्रिय ?
शिव :-मेरी अर्धनारेश्वरी ! इस बार तुम्हे मैं "कुमारी समुन्द्र तट "ले चलूँगा। साथ ही शेनंदोह वन और नीली पहाड़ की चोटी भी दिखाऊंगा।
पार्वती :-मैं कुछ समझी नहीं शिव।
शिव :-प्रिय ! ये जो मानव जाति वर्जिनिया बीच कहते हैं ना। इसका असल नाम हमने कुमारी समुन्द्र तट रखा था।
बटवारे के बाद ये जीजस के अधिकार क्षेत्र में आ गया। जीजस को "वर्जिन" शब्द से प्रेम ,तो विर्जिन नाम रख दिया।  कुछ वर्षों बाद ,पाटलिपुत्र से युवाओं की टोली यहाँ मजदूरी करने आई। उन्हें हर शब्द के बाद -आ ,वा ,या लगाने की आदत। ऐसे में वे आदत अनुसार -इसको वर्जिन -या या कहने लगे। अब मजदुर आदमी तो जनता है। जनता सबकी माई -बाप। तो तब से ये "कुमारी तट से वर्जिनिया "कहा जाने लगा।

पार्वती :-अच्छा तो ये शेनंदोह और नीली पहाड़ की चोटी  का भी कुछ किस्सा है क्या महादेव।
शिव :- हाँ पार्वती। ये जो "शेनंदोह वन "है ना ,ये मेरे और नन्दी का ही अपभ्रंश नाम है। शिव -नन्दी। ये सब जीजस की चाल है। देखो मक्कार ने ,मेरा आशियाना नीली पहाड़ की चोटी का भी नाम बदल कर "ब्लू रिज माउंटेन "कर दिया। तुम तो जानती ही हो पार्वती नीला रंग मुझे कितना पसंद है। खैर जाने दो। मैं भोले नाथ हूँ ।माइंड नहीं करता इनसब बातों का। हमदोनो को प्राकृति से प्रेम है ,तो चलो प्राकृति की ओर।

उड़न खटोले पर सवार शिव -पार्वती नन्हें गणेश के साथ निकल पड़े कुमारी तट ।मनोरम यात्रा का सुख बढ़ाने के लिए शिव ने शारदा जी को याद किया।
शारदा जी शुरू हो गई -शिव से गौरी ना बियाहब हम जहरवा खइबे ना।
शिव जी मंद -मंद मुस्कुराते हुए बोले :-तपस्या ओह मेरा मतलब पार्वती ,मुझे आपने ब्याह के दिन याद आ रहें है।
पार्वती -मुझे भी शिव जी । शारदा जी ने तो मेरे पीहर की याद दिला दी भोलेनाथ ।

इसी सब के बीच उड़न खटोला कुमारी बीच पर उतरा। सामने देखा तो एक राक्षस की मूर्ति।
पार्वती शिव से कहती :-शिव राक्षस। शिव हँसते हुए बोले -मेरी भोली पारो ,ये समुन्द्र देव की मूर्ति है। इनको मैंने जलजीवों की रक्षा हेतु लगा रखा है। चलो देख लो नजदीक से ।
फिर वहाँ से शिव -पार्वती गणेश के साथ समुन्द्र तट पहुँचते हैं।
लोगो की दयनीय स्थिति से पार्वती व्याकुल हो जातीं है। शिव से कहती हैं -बेचारे लोग कैसे बस तन ढँके हुए ।,बेघर से बालू पर मछली से पटपटा रहें हैं। सूर्य की किरणों से उनके शरीर लाल हुए पड़े है  ।
शिव पार्वती को समझाते है :-देखो तो पगली ,ये लोग ऐसे जीवन से कितने खुश हैं। बालू में लोट कर उन्हें आनंद आ रहा है। प्रेमी युगल पानी से खेल रहें हैं। एक दूसरे की चित्र उतार रहें है। तुम नाहक ही परेशान हो रही हो। आओ गणेश के साथ तुम्हारी भी एक चित्र बना लूँ।
चित्र बनाने के बाद शिव ने कहा -अच्छा सुनो पारो ,जहाँ रात्रि विश्राम के लिए रुकेंगे। वहीं "श्वेत -काले "लोगों के बीच युद्ध हुआ था। वैसे डरने की कोई बात नहीं हैं।मैंने  नारद गूगल से सब पता कर लिया है ।
शाम हो गई है ।गणेश रोने लगें ।शिव पार्वती से कहते हैं -गणेश के दुग्ध पान के बाद ,हमलोग भी भोजन का प्रबंध करते हैं ।सोच रहा हूँ बुद्ध को मानने वाले लोगों के यहां ही भोजन किया जाय ।क्या कहती हो पार्वती ?
पार्वती :-ठीक है शिव ।थाई लोगों को हमारे आने की सुचना दे दी जाय ।
वर्जिनिया बीच पर शिव पार्वती

Wednesday, 30 August 2017

कहानी भूतों की !!!

आज एक इंट्रेस्टिंग कहानी सुनाती हूँ। भूतों की है ,आप बीती है।
बसंतपुर जहाँ हमलोग रहते थे ,उस कॉलोनी के बाउंड्री से  सटे तड़कुल के पेड़ लाइन से थे। हमलोगों से मेरा मतलब ,मेरी माँ ,मेरा भाई मेरे चाचा की लड़की और मैं से हैं। बाकी कॉलोनी में अलग -अलग क्वाटर में दूसरी और फॅमिली रहती थीं। सब एक परिवार की तरह ही थे लगभग। सभी एक दूसरे के सुख -दुःख से लेकर आटा -दाल तक आपस में बाँटते थे। हम बच्चें भी खूब उधम मचाते। इसमें सबसे बड़ा उद्यमी मेरा भाई था। गिरना -पड़ना ,कटना ,टेटनस की सुई तो उसका प्रसाद था।
एक दिन हुआ यूँ कि ,कोई कुत्ता कॉलोनी में घुस गया था।बच्चे  उसे भगाने लगे। लेकिन कुत्ते को मेरा भाई पसंद आया। उसने प्यार से दाँतों से भाई के हाथ को चुम लिया। फलस्वरूप दस सुई लगने का डॉक्टर ने फरमान जारी किया।
 डॉक्टर ने मरहम -पटी कर दी। बोले सुई तो यहाँ नहीं मिलेगी ,या तो छपरा या फिर सीवान जाए। हमलोग का रो -रो कर हालत ख़राब। खैर माँ ने मेरे होमटाउन बेतिया जाने का निर्णय लिया। घर के लोग भी वहाँ थे। मेरा कुछ वार्षिक परीक्षा आने वाला था। ठंढ भी शुरू हो गई थी। ऐसे में माँ मुझे और चाचा की बेटी को कॉलोनी के लोगों के हवाले कर भाई के साथ बेतिया चली गई। अब मेन कहानी शुरू होती है -
माँ के जाने के बाद हम दोनो बहनों की खूब मौज हो गई। कॉलोनी वाले भी खूब प्यार लुटा रहे थे। हमारी कॉलोनी में चौकीदार हमेशा से रहा है ,तो डर वाली भी कोई बात नहीं थी। माँ ने कहा था ,अपने घर में ही सोना। पोद्दार ऑन्टी की बेटी (ममता )मेरी अच्छी दोस्त थी। उसको मेरे घर सोने आने के लिए बोल दिया गया था। ऐसे में शर्मा ऑन्टी के यहाँ भी उनके भाई की बेटी आई थी। वो भी बोली -पूनम भी तुमलोगो के साथ सोने चली जाएगी। चार लोग रहोगे तो डर नहीं लगेगा।
 पहली रात भाई के दुःख में ,दूसरी रात  ख़ुशी में बीत गया ।तीसरी रात की कहानी से पहले भूमिका -
अगले दिन हमलोग शाम को खेल रहें थे ।तभी वो जो ताड़कुल के पेड़ बाउंड्री से सटे थे ना ,उनपर कुछ बाज़ (चील ) मड़राने लगें। हमलोग खेल रहे थे और पूनम की नज़र उधर गई। हमलोग भी उधर देखने लगे।
राजबली चाचा की बेटी बेबी दी जो हमलोग के साथ खेल रहीं थी ।चील को देख ,भागते हुए बोली -बाप रे ,भागो इधर से ।जहाँ भी चील उड़ता है ,वहाँ भूत होता है । किसी के घर पर बैठ जाए तो लोग उसे छोड़ देतें हैं ।
हमें यकीन नहीं हुआ ।थोड़ी दूर पर पोद्दार ऑन्टी बैठी थी। हमलोग ने उनसे पूछा ।वो बोली की हाँ होता तो है ,लोग पूजा -पाठ करवा कर रहते हैं ।तुमलोग क्या फालतू बातों में हो ,खेलो जा कर ।
बेबी दी को भी डांटा ऐसी बातों के लिए ।ऐसे में पूनम को मजाक सूझ रहा था -बोली मैं किसी से नहीं डरती ।भूत से भी नहीं ।ऐसा कह कर वो उस पेड़ से सटे बाउंड्री के पास जाकर -जोर -जोर से कहने लगी -ये भूतवा कहाँ बारीस रे ।आव -आव ।हमलोग उसे बुलाते रहे वो आई नहीं ।हँसती रही ,कहती रही ।जब हमलोग भाग गए तो वो भी आ गई ।

अब तैयार हो जाइये थ्रिलर के लिए -रात को ममता के साथ पूनम भी मेरे घर सोने के लिए आई ।खाना हमारा हो गया था ।गप शुरू हुआ ।पूनम ने फिर से भूत वाली बात छेड़ दी । मेरी दी ने उसे डाँटा की ऐसा करोगी तो तुम्हे नहीं सुलायेंगे ।हमारे साथ रहने की चाहत ने उस वक़्त उसे रोक लिया ।
फिर जब हमलोग लगभग सोने जा रहे थे पूनम का ड्रामा शुरू हो गया ।रात के कुछ ग्यारह ,साढ़े ग्यारह बज रहे थे ।ठण्ड शरू हो गई थी ।कॉलोनी में सब सो गए होंगे ।यहां पूनम को कभी पिसाब लगता कभी पाखाना ।कभी बोलती भूख लगी है तो कभी कहती गर्मी लग रही है ।हमलोग पूनम को समझा रहें थे ।पूनम बोलती ठीक है अब सो जायेंगे पर फिर ड्रामा करने लगती। गुस्से में आकर दीदी बोली ,चलो तुम्हे तुम्हारे घर पहुंचा देते है।ये सुनकर  पूनम खूब रोने लगी। मैंने दीदी को कहाँ अच्छा जाने दो अब नहीं करेगी। चलो सोते हैं।
फिर अचानक पूनम को क्या हुआ मालूम नहीं। जोर -जोर से हँसने लगी। दीदी डाँटी तो खूब रोने लगी। फिर बोली मैं नहाउंगी।
हम सब परेशांन। एक तो ठंढ ऊपर से इन सब ड्रामें में रात के डेढ़ बज गए। ऐसे में ठंढे पानी से कैसे नहाएगी? पर पूनम ने ज़िद धर ली। दीदी भी गुस्से में बोली -जा नाहा। पूनम हमारे सामने ही सारे कपड़े उतारने लगी। दीदी ने डांटा तो हँसती हुई चापाकल की तरफ भागी। नहाये जा रही है। अब तो हमलोग डरने लगे थे। समझ नहीं आ रहा था क्या करें। पूनम नहाना छोड़ ही नहीं रही थी। मैंने दीदी और ममता को कहा छोड़ देते हैं खुद आ जाएगी। मैं जाकर रजाई में घुस गई।
इधर दीदी और ममता ने कैसे भी पूनम को चापाकल से दूर किया । कपडे पहनाये। उसको समझाने लगीं।
पर पूनम तो पूनम। हाँ कह देती ,फिर शुरू हो जाता नया खेल। मैंने दी और ममता को कहा चलो हनुमान चालीसा पढ़तें हैं ।अगर भूत हुआ तो भाग जायेगा ।सबको बात ठीक लगी ।लालटेन की रौशनी में चालीसा शुरू हुआ ।पर पूनम के ड्रामे की वजह से ममता और दी ठीक से पढ़ नहीं पाए ।मैंने बिना उधर ध्यान दिए पढ़ा और आराम से सो गई ।
दी और ममता को पूनम ने और परेशांन किया ।
सुबह -सुबह ही उसे उसके घर ले जाकर दी ने उसकी शिकायत की ।अगली रात से उसकी इंट्री बंद थी ।
कुछ महीनों बाद वो अपने गांव चली गई ।बीमार रहने लगी ।एक दो -साल बाद पता लगा -उसपर किसी जबरदस्त भूत का साया था ।फिर क्या ?कथा गइल बन में सोचो अपना मन में ।
मालूम नहीं क्या सच था ।पर ये बात सिद्ध है हनुमान जी ऑलवेज रॉक्स ।बोलो जय बजरंग बलि की ।


Monday, 21 August 2017

पूर्ण सूर्यग्रहण !!!

अमेरिका में पूर्ण सूर्यग्रहण लगभग एक शताब्दी बाद होने वाला था। एक महीने से जोर -शोर से न्यूज़ चैनल वाले इसका प्रचार कर रहे थे। मानो ये अपने यहाँ की तरह कोई अपसगुन नहीं ,कोई दैविक दर्शन हो। लोग फ्लाइट बुक कर रहे हैं। जिस जगह पूर्ण सूर्यग्रहण है ,वहाँ के हॉटेलस में जगह नहीं हैं। और तो और सनग्लासेस की तो पूछिए मत। मतलब मार्केटिंग  के स्टूडेंट के लिए अमेरिका परफेक्ट है। कैसे मौका और सामान को चमका के बेचना है ,कोई इनसे सीखे। हम भी इसी फेरे में अमेज़ॉन से चश्मा आर्डर लिस्ट में डाल दिए थे।  बस कांड ये हुआ कि मुझे दिन का कन्फ्यूज़न हो गया। कल रात गूगल न्यूज़ पर कल  होने वाले सूर्यग्रहण का पढ़ कर लगा हो गइल। अब का होइ ?  एगो त अपने चश्मा  ऊपर से डायरेक्ट देख के बचलो आँख ना लालटेन बन जाओ।
इशु को खिला कर ,रात के डेढ़ बजे पिन होल बनाना शुरू किया। बन तो पाँच मिनट में गया ,पर साथ ही बचपन की कई यादें ताज़ा हो गई। सातवीं क्लास में थी ,जब प्रभात सर ने ग्रहण देखने का तरीका बताया था।
एक तो पिन होल दूसरा शीशे से रिफ्लेक्शन ,तीसरा एक्स -रे रिपोर्ट से देखना ।
 मेरे पास ना तो शीशा है ना ही एक्स -रे रिपोर्ट। तो ऑप्शन फर्स्ट ही काम आ सकता था।
एक तो यहाँ के डॉक्टर। सारी रिपोर्ट -जाँच अपने डेटा में रखते है ,मानो जाँच ना हो खजाना हो। आप उस जाँच पोर्टल से जुड़े होते है ।अपनी आई डी से लॉगिन कर देख सकते है ,पर हाथ में कुछ नहीं देते ।
अपने भारत का  ठीक हिसाब -किताब होता है। पैसा दियो हो ,ले जाओ अपने पार्ट पुर्जा का कागज़ -पत्तर।
इसी बहाने एक्स -रे को देखने चार लोग आते हैं , चकित होते। सब लोग उसे देख ,बिना डॉक्टरी के  डॉक्टर बन जाते। आहा ऊपर से सिम्पैथी अलग से मिलती। मज़ा आ जाता है ।
खैर विषय से ना भटकते हुए ,फिर पीछे से माँ की आवाज़ आती है -लवली ज़्यादा मत देखो आँख ख़राब हो जायेगा। कॉलनी में इसे देखते बड़े -बुज़ुर्ग अलग -अलग कयास लगाते। मसलन इस साल बाढ़ या सूखा पड़ेगा। भूकंप भी आ सकता है ,महामारी आदि -आदि। वहीँ कॉलोनी के बच्चे एक दूसरे को बता के खुश होते की मुझे भी दिखा मुझे भी।
इस तरह इधर ग्रहण खत्म होता उधर माँ का ग्रहण शुरू होता। चलो नहाओ ,राशन -पानी दान का छुओ। खाना तो बना नहीं होता या फिर पहले का खाना फेंक दिया गया होता। तो बस जल्दी से चूड़ा - दही का भोग लगाओ।
ग्रहण में पकाया हुआ खाना भले फेंक दे ,पर दूध -दही नहीं फेंकते। ये दैविक पदार्थ  होते हैं ,ऐसा सब कहते हैं।
तो इस तरह बचपन से निकल कर ,फिर से अपनी बालकनी से आज मैंने सूर्य ग्रहण देखा ।
तो चलिए देखिये कुछ तस्वीरें ,मेरी बनाई पिन होल के द्वारा ।हालाँकि मुझे थोड़ी देर से याद आया तस्वीर लेने का ,पर जो भी दिखा बहुत सुन्दर था ।हमारे यहां पार्शियल ग्रहण था ।
मज़ेदार किस्सा :- ग्रहण के समय अँधेरा हो गया ,मुझे लगा मेरी बालकनी में सूर्यदेव के दर्शन नहीं होंगे। इशु को छोड़ कर नीचे जा नहीं सकती थी। थोड़ी देर इंतज़ार के बाद नियमानुसार इशु को नहलाया ,खुद नाहा कर पूजा करने जा रही थी कि शतेश का कॉल आया -तपस्या तुमने देखा क्या ग्रहण ? जल्दी बाहर जाओ अभी दिख रहा है। भाग कर बालकनी में गई और सूर्यदेव के साथ इक्वल हॉफ की कृपा से देख पाई। अब समस्या ये की फिर से नहाऊँ क्या ? अब कौन फिर से बेटे को नहलाये ,खुद नहाये। बस हनुमान जी का नाम लेकर ,पानी छिड़क लिया। राशन की जगह पाँच डॉलर छू कर ग्रहण मुक्त हो गई ।

Tuesday, 15 August 2017

द आर्ट ऑफ वॉर!!!

कान्हा का जन्म हो गया अब माता यशोदा के धैर्य की बारी है। यहां तो कभी -कभी मेरा धैर्य खोने लगता है। आपको सलूट है यशोदा माँ। आप कैसे कान्हा को इतना तैयार करती थी। मेरा बेटा तो डायपर पहने में भी मेरी माँ याद करवा देता है।
वैसे प्यार मुझसे बहुत करता है। प्यार का आलम ये है कि ,जब भी मैं खाने बैठूँ तो रोने लगता है व फिर पोट्टी करने। उसके बरहिया (जन्म के बारहवें दिन की पूजा ) में राहुल सांस्कृयान की वोल्गा से गंगा क्या छुआ दिए ,अभी से घुमड़ शास्त्री बनने लगा है। शाम को बाहर नहीं लेकर जाओ तो युद्ध की स्थिति बन जाती है।
एक दोस्त ने कहा -तुम्हारी सोहबत का ही असर है। मैंने कहा सोहबत का नहीं खून का असर  है। अब समस्या ये भी है कि इसका क्या उपाय हो।
आज शाम मैं बहुत फ्रस्टेट हो गई थी। बाहर बारिश जैसा मौषम था ।जनाब रोये जा रहें थे। कहाँ ले जाय। शतेश बोले चलो कहीं चल लेते है। मेरा बिल्कुल जाने का मन नहीं था। शतेश और इशू की जिद्द से निकल पड़ी। गाड़ी में बैठते ही इशू महराज चुप हो गए। शतेश बाबू मॉल ऐरिया की तरफ गाड़ी ले लिए। गाड़ी " बार्नेस एंड नोबल " के पास गाड़ी रोक दिए। बोले चलो कोई बुक ले लो ।मूड ठीक हो जायेगा। गुस्सा तो था ही पर ये शॉप देखकर थोड़ा शांत हो गई। बोली लेकर भी क्या फायदा जो पढ़ ही नहीं पाती।
खैर दुकान के अंदर गई। ना -ना करते हुए दो किताब ले ली। थैंक यू मेरा राजदुलारा ,मेरा सोना,मेरा मीर मस्ताना ,मेरा बदमाश खून सत्यार्थ  ,तुम्हारी वजह से कितने दिनों की सोची किताबें ले पाई ।

पहली किताब -"द आर्ट ऑफ वॉर " और दूसरी -"द मेटामॉर्फोसिस एंड अदर्स  स्टोरीज। "
द आर्ट ऑफ़ वॉर काफी समय से पढ़ने का मन था। देखते ही ले लिया। माहौल भी अनुकूल है ।बेटा  घर में पानी पीला रहा है । इधर उत्तर कोरिया बम दाग़ने को तैयार है । वही मातृभूमि को चीन डरा रहा है। ऐसे में चाइनीज़ माल ओह्ह सॉरी चाइनीज़ लेखक को पढ़ना ठीक नहीं तपस्या । देशद्रोह जैसा कुछ फील होगा ।उम्म्म ,ना नहीं हुआ ।,चाइनीज़ खाना और कोई अच्छी किताब कहाँ से देशद्रोह टाइप फिलिंग लाएगा । एक पेट भर रहा है एक दिमाग ।दोनों संतुष्ट तो हम संतुष्ट ।
दूसरी किताब - फ्रैंज काफ़्का के कुछ कोट और "इन द पेनल कॉलोनी "शार्ट फिल्म की वज़ह से लिया ।
*मैं आज़ाद हूँ यही वज़ह है की खोया हूँ ।
*प्यार विरोधाभास का नाटक है ।


Tuesday, 8 August 2017

स्टैमफोर्ड ,चर्च के अंदर की कहानी !!!!

स्टैम्फ़र्ड छोड़ने से पहले आख़िरकार मैंने वहाँ के चार चर्च के दर्शन कर लिए ।वॉक वाला नही भाईलोग ,अंदर जा कर  देख ,सुनकर कर आई हूँ इस बार । आज चर्च के अंदर की तस्वीरें आपके सामने पेस होंगी ।

तो सबसे पहले वो वाला चर्च -जहाँ से मेरे धातुरे के उखाड़ फेंका था । इस चर्च के बारे में पहले भी लिख चुकीं हूँ ।नाम है इसका "फर्स्ट प्रेजिबटीरीयन (पादरी ,पुरोहित )चर्च  "इसे एक मछली जैसी आकृति दी गई है ।अंदर की दीवारों पर ख़ूबसूरत रंग -बिरंगे शीशे लगाए हुए है ।चर्च के अंदर लगभग सौ लोगों की बेंच पर बैठने की व्यवस्था है ।सामने एक छोटा सा स्टेज है। उसके पीछे पीतल या किसी पीले धातु से लाइट जैसा आकर दिया गया है ।यहाँ कभी कोई कोरस गाने -बजाने का प्रोग्राम होता है तो ,कभी प्रेम ,दया ,सेवा का ज्ञान दिया जाता है। जब हम गए थे ,म्यूज़िकल प्रोग्राम ख़त्म हो चुका था ।सबलोग जा चुके थे । चर्च भी थोड़ी देर में बंद ही होने वाला था ।भाग -भाग के अंदर गए ।ऐसे में इशु की किलकारियों से ख़ाली चर्च गूँज उठा ।मेरा बच्चा शायद रंग -बिरंगे शीशे देख कर खुश हो गया था ।इस चर्च में सभी समुदाय के लोग आ सकते हैं। इनका उद्देश्य बाईबल का प्रचार -प्रसार करना और इसे मानना है।समुदाय की सेवा भी ये लोग अपने -अपने तरीक़े से करते हैं ।
ये रही तस्वीरें -

दूसरा चर्च -जिसके बाहर बोर्ड पर हमने अमेरिका के बारे में लिखा था। इसी के सामने वो पार्क है ।जहाँ मुझे बिहार की ,बम्बई वाली ऑन्टी मिली थी। चर्च के अंदर ज्यादा जगह नहीं है ,फिर भी मुझे लगता है बेंच पर 50 लोग बैठ सकते हैं ।इसका नाम -फर्स्ट कंग्रेगेशनल(धार्मिक समूह ) चर्च है ।इसमें भी सब एक हैं ।प्यार और दया की बातें होती है ।एक पादरी  आते है और ज्ञान की बातें करते ।मैं इस चर्च में क्रिश्मस के रात को गई थी ।उस समय तो इसके अंदर मुफ्त की ब्लैक कॉफी मिल रही थी ।साथ ही कुछ लोगों ने स्टॉल लगा रखा था । जो भी बिक्री होगी  ,उसकी आमदनी किसी कैंसर संस्था और बच्चों के लिए दान में जाती ।मैंने एक लैवेंडर की ख़ुशूब  वाली मोमबती ख़रीदा ।
ये रही तस्वीर-

तीसरा चर्च -चर्च ऑफ़ द अर्चनजेल्स(देव दूत ,महान फ़रिश्ता ) ।ये मेरी रसोई की खिड़की से दिखता रहता ,पर इसे ही मैंने सबसे लास्ट में देखा अंदर जा कर ।घर की मुर्गी वाला हिसाब है ।इसके फ़ॉलोवर यूनानी रूढ़िवादी क्रिस्चियन हैं ।जो की जीजस के उपदेश या उनके भक्ति द्वारा मुक्ति में विश्वास रखते हैं ।जीजस के विचार को पढ़ते और पढ़ाते है ।उसका प्रचार करते हैं ।इसमें बच्चों के लिए एक स्कूल भी है ।फ्री नहीं है भाई ,पैसे देने होते हैं ।
हाँ यहाँ फ्री में कुछ- कुछ ग्रीक फंक्शन होते हैं । पर मुझे जबतक मालूम होता ठण्ड शुरू हो चुकी थी । स्टैमफोर्ड की ठण्ड और मेरी प्रेग्नेंसी उफ़्फ़ !क्या मस्त आलस का जमाना था ।खूब सोती थी । इस वजह से जा नहीं पाई ।जब बाद में गई तो ,चर्च कंस्ट्रक्शन की वजह से अंदर से बंद था ।स्टेज को कपडे से घेर रखा था ।हर तरफ लकड़ी और गत्ते पड़े थे ।बाहर की तस्वीर ये रही -

Monday, 31 July 2017

फेसबुक और तुनकी ब्राह्मण तपस्या !!!

सबसे पहले तो बहुत -बहुत धन्यवाद मेरे प्यारे दोस्तों का ,जिन्होंने मेरा  फेसबुक प्रोफाइल देखा और मुझे मैसेज किया -तपस्या सब ठीक हैं ना ?
 व्हाटअप पर तो मैंने रिप्लाई कर ही दिया था। मैसेंजर पर आज रिप्लाई किया।
वो तस्वीर मैंने वीमेन एब्यूज के विरोध में लगाया था। एक प्यारी दोस्त ने मुझे इसके बारे में बताया था।

वैसे फेसबुक के बारे में बैठे -बैठे मस्त ख्याल आया। ये जो  फेसबुक के फाउंडरस है ,उनमे से प्रमुख -मार्क ज़ुकेरबर्ग को तो नाम से लगभग सब जानते ही है ।दूसरे डस्टिन मॉस्कोवित्ज़ ,एडुआर्डो सवेरिन ,एंड्रू मकोल्लुम और क्रिस हैं। इनमे एंड्रू और क्रिस को छोड़ बाकी तीनों यहूदी है। 
यहूदी लोगों के बारे में कहा जाता है ,वो बड़े मतलबी ,घमंडी,लालची और बिज़नेस माइंडेड  होते हैं। पर साथ ही एक समाज और दया भाव में भी विश्वास करते है। अब मेरे तो कोई यहूदी दोस्त है नहीं ,जो सच्चाई मालूम हो। जो पढ़ा है ,सुना है लिख दिया।

पर गौर कीजिये तो फेसबुक में ये सारे गुण है ।एक समाज तो बना ही है ।दूसरा यहाँ कभी -कभार तेज बनने के क्रम में लोग एक दूसरे के साथ कठोर हो जाते है। मतलबी तो होते ही हैं -मेरे पिक पर लाइक ,कमेंट नहीं तो हम तुम पर क्यों करें। बात दया धरम और बिज़नेस की तो वो भी हो ही जाता है -मसलन ,किसी बिछड़े को मिलवाओ ,फलाना ऑर्गनिज़शन से जुड़े ,दान दे। भगवान् ,अल्लाह की तस्वीर को लाइक करें ।

बस मार्क के एक कमेंट बॉक्स को हमलोग ठीक से समझ नहीं पाते। कमेंट हैं ही -टीका -टिप्पणी।हम जैसे निरीह लोग बुरा मान जाते हैं।आज से दो साल पहले तक मैंने फेसबुक का एक फीचर लगा रखा था ।जिसके वजह से कोई मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेज पता था।
 ऐसा करने का प्रमुख कारण -गुड  मॉर्निंग -गुड नाईट पर टैग करना
-कॉफी ,गुलाब या पकाऊ शायरी के साथ भी टैग करना।
-शादी के बाद नए -नए देवर नन्द का पैदा होना। मेरी तस्वीरें सेव करके मम्मी तक पहुँचाना। मेरी पोस्ट का पोस्टमार्टम करना।
-फोटो को लाइक और कोई अच्छा कमेंट करने का आदेश देना। (अब जेल लगा कर सर पर मुर्गा बनाइयेगा और कहियेगा शेर लिखो तो कैसे चलेगा।)
-और सबसे बड़ा अमेरिका फैक्टर। भाई मेरे कौन सा मेरे पूर्वज अमेरिकी थे ? मैं भी आज नहीं तो कल वापस आ ही जाऊँगी। फिर कहियेगा ल हो गइल धोखा। (मेरे इस नेचर में भी -घमंड ,मतलबीपन ,और थोड़ा दया भाव है )

खैर कई बार भाई या मेरे कुछ दोस्त टोक देते हैं कि ,दोस्तों का दायरा थोड़ा बढ़ाओ। मेरा जबाब हर बार यहीं होता -दायरा बढ़े ना बढ़े दिमाग़ी दरद ना बढ़े। मेरी इसी गन्दी आदत की वजह से सोशल मीडिआ पर मेरे सीमित ही दोस्त बने ,पर खुशकिस्मत हूँ जितने है उनमें आधे से अधिक को मैं जानती हूँ। कुछ लोगों से प्रभावित भी हूँ। वहीं कुछ के लेख पसंद है। वो तो भला हो मेरी एक जूनियर का कहा -दीदी आप तो ईतना ना फेसबुक पर प्रोटेक्शन लगाई थी कि ,टेक्सास में होने के वावजूद हम मिल नहीं पाए। फिर मुझे आत्मज्ञान हुआ और सारे प्रोटेक्शन को उसी दिन अलविदा कह दिया। तो इस तरह मेरा सोशलपना शुरू हुआ।

कुल मिलाकर कहें तो मैं सोशल मीडिया पर अब भी कम ही फ्रेंडली हूँ। पर जिनसे हूँ दिल से हूँ। वैसे ये इतनी अच्छी बात तो नहीं ,पर ब्लॉका -ब्लोकी से तो अच्छा है।(मार्क सॉरी मैं लालची नहीं बन पाई )

रही बात प्रोफाइल पिक्चर की तो ,इस मामले में मैं बहुत -बहुत ही आलसी रही हूँ। अबतक कुल मिला कर मैंने पाँच -छह बार ही प्रोफाइल पिक चेंज की होगी (सॉरी मार्क मैं बिजनेस माइंडेड भी नहीं बन पाई )
वहीं  शुक्रवार शाम से ही मेरे फ़ोन की लगभग छुट्टी हो जाती है रविवार शाम तक। मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि ,कहीं घुमनें गए फ़ोन में लगे पड़े है। दोस्त के यहाँ गए या वो मिलने आये और फ़ोन पर लगे पड़े हैं।हाँ तस्वीरें लेना अपवाद है।(सॉरी मार्क कम सामाजिक होने के लिए )

तो कुल मिला कर कहानी का सार ये है -मैं तपस्या चौबे ब्राह्मण की ब्राह्मण रह गई।
 *अगर मैं जल्दी रिप्लाई नहीं करती तो ये या तो टाइमिंग का दोष है या शनिवार -रविवार का ,(घमंड नहीं)
अपवाद -कभी -कभार आलस का भी।
* आजकल मैं थोड़ा ज्यादा फ्रेंडली हो रही हूँ ,अगर आप मुझे झेल सके तो
*कहीं नहीं गई। किसी से मिलना -जुलना नहीं रहा तो फ़ोन की छुट्टी भी कभी -कभार कैंसिल हो जाती है
*सबसे इम्पोर्टेन्ट -कम दोस्त हो पर आपको समझने वाले हो तो ,ये भगवान का आशीर्वाद है इस कलयुग में। 

Friday, 28 July 2017

समस्या !!!

ये फ़्राइडे को बारिश क्यों होती है ? ख़ैर अच्छा हुआ जो हुई ।
फ़ेस्बुक -फ़ेस्बुक खेलने लगी ।इसी बीच पुष्य जी के एक मित्र ,के पोस्ट पर नज़र गई ।
कितनी स्वाभाविक सी बात लिखी है इन्होंने ।पढ़ने पर आपको लगे कि ,हाँ ऐसा तो है ही।पर ऐसा है क्यों? शौचालय क्या घर की ही बुनियादी ज़रूरत है ?

मैं बहुत पहले ही इस पर एक आपबीती लिख चुकीं हूँ ।फिर से संक्षेप में साझा कर रही हूँ - छपरा से बनारस जाने वाली ट्रेन का इंतज़ार मैं ,मेरा भाई और शतेश कर रहे थे ।मुझे बाथरूम जाना था ।मैं वेटिंग रूम गई ।वेटिंग रूम में मरम्मत का काम चल रहा था ।पूरा रूम कबाड़ा बना हुआ था ।फिर भी हिम्मत करके मैं उसके टॉलेट तक गई ।उसकी हालत देख भागने के अलावा कुछ नही सूझा । वापस आकर भाई को बताया की भाई ,बाथरूम बहुत गन्दा है । भाई बोला दो मिनट रुको ।जीजा जी चाय लेने गए हैं ।आते है तो चलता हूँ ।शतेश आए तो भाई बोला -आप रुकिए सामान के साथ मैं दीदी के साथ दूसरा बाथरूम ढूँढता हूँ ।
रात के साढ़े ग्यारह हो रहे थे ।शतेश बोले तुम रुको चुलबुल ,मैं जाता हूँ ।भाई बोला आप सामान और चाय को बचाये रखिए ।हमलोग आते है । मैं और भाई प्लैट्फ़ॉर्म के सबसे आगे बने एक कम्प्यूटर ऑफ़िस तक गए ।भाई बोला तुम यहीं रुको ।मैं अंदर देख कर आता हूँ ,टॉलेट है या नही । वापस आकर बोला है दीदी ।सीधे से राइट जाओ । जाओ मैं बाहर हूँ ।मैं चली गई बाथरूम ।
जैसे बाहर निकली कुछ शोर सुना ।देखा तो एक आदमी भाई से बहस कर रहा था ।उसको कह रहा था ,ये पब्लिक टॉलेट नही है ।उसकी आवाज़ से ऑफ़िस के दो -तीन लोग और आ गए ।मैं तो डर गई ।पर भाई मेरा भाई ।जब बोलना शुरू किया सब उसे देखने लगे । जिसने पुलिस बुलाने की बात कि थी ,भाई के तर्क से उसकी हवा गुम थी ।बाद में ऑफ़िस के लोग भाई को बोले जाने दो बेटा ।जाओ -जाओ । पर ऐसे ही सब लोग आने लगे तो ये पब्लिक टॉलेट बन जाएगा ।
फिर भाई ने कहा -तो फिर जल्दी ही यहाँ का पब्लिक टॉलेट ठीक कराने की कोशिश करें ।वैसे भी रेल्वे सरकार की सम्पत्ति है ,और सरकार पब्लिक की ।भाई के इस बात से थोड़ा लाइट माहौल हुआ ।कुछ लोग हँसने लगे ।हमलोग वहाँ से चल दिए ।
प्लाट्फ़ोर्म पर आकर हमलोग के चर्चा का विषय शौचालय ही था ।
सच में कितनी गम्भीर समस्या है ये । ख़ैर बिहार तो पिछड़ा है हीं,पर सच मानिए मुझे तो अगले शहर में भी पब्लिक टॉलेट आसानी से नही दिखते।ना पुणे में ना ही दिल्ली में ना ही कलकत्ता में ।हाँ दिल्ली में मेट्रो के शौचालय ने हेल्प ज़रूर किया है ।वही शतेश से सुना है ,बंगलोर में काफ़ी जगह पब्लिक शौचालय है।

दुःख -पता नही कब तक महिलाओं को झाड़ियों दीवारों ,वीराने को ढूँढते रहना होगा ।कब तक पान -गुटके के सीमेंट से सने ,गंदी गालियों के ईंट के बीच ।नाक को इस हद तक दबाए हुए कि ,जान चली ना जाए इस ब्लाडर के फेर में ।

Sunday, 9 July 2017

बसंतपुर के लाल बाबा !!!

सावन का महीना शुरू हो गया है। ऐसे में मेरे बसंतपुर के लाल बाबा की बात ना हो ,ये कैसे हो सकता है।वैसे तो बसंतपुर में तीन मंदिर है। एक काली माँ का ,दूसरा लाल बाबा का और तीसरा दुर्गा जी का। अब इनमे सबसे पुराना मंदिर कौन सा है ,ये मैं नहीं जानती। पर ये जरूर मालूम है ,दुर्गा मंदिर काफी बाद में बना। जब से बसंतपुर में रही ,यानि मेरे बचपन से ही ,लाल बाबा का मंदिर और काली माई का मंदिर देख रही हूँ ।
आज बात  बसंतपुर में लाल बाबा की ।ये इकलौता शिव मंदिर है ,बसंतपुर में ।मंदिर परिसर में मेरे फेवरेट हनुमान जी की भी एक मूर्ति है । मुझे जहाँ तक याद है ,ये मंदिर सफ़ेद रंग का हुआ करता था ।इसकी बाहरी दीवारों पर साँप की आकृति बनी हुई थी ।मंदिर के अंदर बिच में शिवलिंग स्थापित है ।चारो कोने पर कुछ प्रमुख देवगण की छोटी -छोटी प्रतिमायें थी ।जिसमे गणेश जी ,ब्रह्मा जी ,विष्णु जी ,पार्वती जी ,बसहा बैल आदि थे ।मंदिर के बाहर हनुमान जी की एक बड़ी सी मूर्ति थी ।
मंदिर बिलकुल सड़क से सटे है ।ऐसे में पहले यहाँ जाने पर माँ की ढेरों हिदायत होती ।ठीक से सड़क पार करना ,गाड़ी देखते रहना ,गाड़ी आ रही हो तो रुक जाना आदि -आदि ।ऐसे तो मंदिर दुर्गा पूजा ,अनन्तपूजा ,शिवरात्री में जाना होता ।पर सावन के सोमवार की बात ही कुछ और थी ।मंदिर में ज़्यादातर महिलायें ,लड़कियों की भीड़ लगी होती ।कारण ज़्यादातर पुरुष तो बोल बम गए होते ।कुछ आते तो झट से जल चढ़ा कर चले जाते ।महिलायें आराम से पूजा करती ,थोड़ी बात -चीत ,नोक -झोंक करती फिर घर जातीं ।लड़कियों को भी जाने क्या अच्छे पति का भूत सवार होता ।पिद्दी -पिद्दी हो कर ,सोमवार का व्रत कर लेतीं।मैं ही नालायक थी जो घर में इतना धार्मिक माहौल होने पर भी एक शिवरात्रि को छोड़ शादी तक कोई व्रत नही किया ।

और हमारे गंडक कॉलोनी में तो बेलपत्र तोड़ने और फूल चोरी करने वालों की लाइन लगी होती ।वही कुछ लोग माँ से फूल मांग कर भी ले जाते ।माँ खुद सावन की पूजा में इतना व्यस्त हो जाती कि पुरे महीने उन्हें किसी और काम के लिए फुरसत ही नहीं होती ।मेरे लिए भी काफी मजेदार समय होता ।रोज सुबह 125 बेलपत्र तोड़ना। उन्हें साफ़ करना। दो -तीन दिन पर नदी में प्रवाहित करने जाना। आह एक अलग ही उत्साह होता। अच्छा 125 बेलपत्र इसलिए तोड़ना होता ,कहीं साफ़ -सफाई या माँ के राम नाम लिखने में कुछ पत्ते टूट भी जाए तो 108 तो रहे ही।उसपर  ज़ुल्म तो ये होता जब इनको तोड़ने में मच्छर कहर ढ़ाते। घर आकर थोड़ी देर तक तो पैर ही खुजाती रहती। माँ कहती सलवार पहन कर जाया करो। अब कौन सुबह -सुबह सलवार पहने ,वो भी गोलचुन की फ़्रॉक पर ।कई बार तो सावन पूरा होने से पहले ही नीचे जो बेलपत्र होते खत्म हो जाते। फिर कॉलोनी में बेकार पड़ा ट्रैक्टर हमारे काम आता। ये बिल्कुल बेल के पेड़ के ही नीचे खड़ा रहता।

ऐसे तो माँ मेरी मंदिर कम ही जाती। वो घर पर ही पूजा करती थी। पर मैं कभी -कभार कॉलोनी या पड़ोस के लोगों के साथ चली जाती। पूजा करने के लिए नहीं घूमने के लिए हा -हा -हा। अब बसंतपुर में घूमने की कोई जगह है ही नहीं। इसी बहाने तरह -तरह के लोग दिखते।
एक बार तो जल चढ़ाने के लिए दो औरतों में झगड़ा हो गया था। पहली वाली का चढ़ा फूल हटा कर दूसरी वाली ने अपना चढ़ा दिया। इसपर पहली वाली महिला गुस्से में बोली -ये रउरा दर्खाई नईखे देत का ? काहे हामार फूल बेलपत्तर हटाइनि हअ। अभी अगरबत्ती देखावल बाकीये रहल हअ। दूसरी महिला तुनक कर हाथ चमका कर बोली -पचहत्तर घंटा रउरे जल चढ़ायेम त  अउरी लोग का करी ।
मुझे तो दोनों की नोकझोंक पर खूब हँसी आई ।घर आकर ऐसे ही नाटक कर कर अपने चाचा की बेटी को दिखा रही थी कि ,माँ ने देख लिया ।गुस्से में बोली यही सीखने जाती हो मंदिर । पढ़ाई के डर से भागी फिरती हो। अब मंदिर नहीं जाना है समझी ।
खैर इसके बाद भी मैं कई बार मंदिर गई ,पर वहाँ  हुआ झगड़ा कभी घर आकर नहीं बताती ।कुछ और झगड़े हैं जो फिर कभी बताऊँगी ।फिलहाल आप सब को सावन की बहुत शुभकामनायें ।भगवान भोले नाथ सब पर कृपा बनाये रखे ।बोल बम ।

विशेष -मंदिर अब और भी सुन्दर हो गया है ।एक तस्वीर आप सबके लिए ।धन्यवाद वरुण इस सुंदर तस्वीर के लिए ।

Wednesday, 5 July 2017

लाल रंग !!!

चार जुलाई अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस। तीन दिन की छुट्टी। कहीं परेड तो कहीं आतिशबाजी। इनसबके बीच फेसबुक बंद रहा। कुछ अच्छे पोस्ट भी मिस हो गए।सरसरी नजर डाली तो देखा ,कुछ लोग साम्प्रदायिक हिंसा पर तो कुछ लोग पीरियड कम वीमेन फ्रीडम पर अपने विचार रखे हुए हैं।

 मैं तो बस यहीं कहूँगी -"जब तक काली स्याही से लाल -लाल लिखते रहेंगें सब काला ही दिखेगा "वैसे भी रक्त का स्वाभाव ही कुछ ऐसा है ,जब तक शरीर के अंदर बह रहा है तब तक ठीक है। जहाँ शरीर से बाहर निकला या अंदर घुसा पीड़ा तो देगा ही।" अब चाहे वो दंगे के रूप में निकले ,बीमारी -दुर्घटना में निकले -चढ़े। या फिर पीरियड -प्रसव में निकले -चढ़े।
हम सामान्य क्यों नहीं हो जाते। फिर ना तो दंगे होंगे ना पीरियड -पीरियड चिल्लाना।
दंगे हमेशा से होते रहे है। फिर भी हमारे पूर्वजों ने यहीं सीखाया ,सब अपने हैं। प्रेम से बढ़ कर कुछ नहीं।वो भी चाहते तो आज हम किसी मौलवी साहब या डॉक्टर अख्तर हुसैन के यहाँ नहीं जाते। ना ही नईम मुझे अपना दोस्त मानता ना मेरे भाई के दोस्त मेरी शादी में शरीक़ होते। अब पेपर ,रेडिओ के ज़माने में कहाँ लाईक ,कमेंट करके लड़ते -झगड़ते।

अब ऐसा भी नहीं है कि सब फेसबुक ,ट्विटर ,बजरंग दल ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या किसी मौलवी के दल का दोष है। हम मनुष्य है। भगवान /ख़ुदा ने दिल -दिमाग़  दिया है। कुछ उसका भी उपयोग करें। ऐसा तो है नहीं की हम सबको देश निकला दे देंगें या मार डालेंगें। निकालें भी क्यों ? आपके घर से आपको निकला जाय फिर ? चाहे वो किसी धर्म का हो।

मुझे भी अपने घर टूटने का दुःख होता है - जब मैं छोटी थी। गाँव जाती तो आँगन में इतने लोग देख कर हैरान हो जाती। सबकी गोड़ लगाई अलग। कुछ पंद्रह -सोलह कमरे। सब में लोग। खूब हँसी -मजाक तो कभी झगड़ा-तकरार। धीरे -धीरे कमरे रह गए लोग अलग -अलग बस गए। अलग बस कर भी लोग एक दूसरे की फ़िराक में रहे। हँसी -मजाक तो गायब हुआ मन का चैन भी दो रूम के कमरे में दफ़न हो गया। बटवारे के बाद भी चैन नही। ये तो मेरे एक छोटे से घर की कहानी है।बाकि गांव या शहर के टूटने से किसे सुक़ून मिलेगा ये तो राम जाने ख़ुदा जाने।

 खैर दूसरा रक्त पीरियड का तो ,मुझे ये किसी वीमेन फ्रीडम का हिस्सा बिल्कुल नहीं लगता। इसपर बात करना सिर्फ जागरूकता भर हो सकती है। थोड़ा लोग सहज हो सकते है। कुछ टैबू से छुटकारा मिल सकता है (सबसे इम्पोर्टेन्ट दवा नहीं ले सकते दर्द में ) महिलाओं को थोड़ा आराम दिया जा सकता है।वैसे भी बेसिक हाईजीन जरुरी है ये जाना सबके लिए जरुरी है। इससे ज्यादा पोस्टमार्टम कीजियेगा तो शव छत -विछत तो होगा ही।
मैंने एक बार लिखा था -सिर्फ एक माँ ही बता सकती है कि प्रसव की पीड़ा क्या है ? उस पीड़ा को कोई महिला (जो माँ ना बनी हो )या पुरुष कभी नहीं बता सकते। किसी भी दर्द को वही समझ सकता है ,जिसने उसे जिया हो। बाकी लोग साथ जरूर दे सकते है। मनोबल जरूर बढ़ा सकते है।
बाद बाकी पीरियड पर लिखने वाले पुरुषों या फिर बीबीसी को पुरुष समस्याओं पर भी लिखना चाहिए। इसकी भी जानकारी लोगों को कम है। जो महिलायें लिख रही है वो इसे वीमेन फ्रीडम से ना जोड़ कर ख़ुद को आज़ाद करें।
ज्ञान तो हम देते नहीं बस जो मन में आता है चिपका देते है। तो सब भूल कर इस गीत को सुनिए (गौर से सुनियेगा तो इसमें दंगे और पीरियड दोनों का दर्द सुनाई देगा हा-हा -हा )

Tuesday, 27 June 2017

इंद्रधनुष !!!

झमाझम बारिश। थोड़ी धुप थोड़ी छाँव। ऐसे में इंद्रधनुष का उगना ,मानों मन का सात रंगों में रँग जाना। फिर से मैं बसंतपुर पहुँच  गई। वैसे तो कॉलोनी के बच्चे हर छोटी -छोटी बातों पर शोर मचाते। पर तीन चीजें ज्यादा कौतुहल और शोर का कारण बनती। पहला -बन्दर का आना। दूसरा -हेलीकॉप्टर का दिख जाना ,और तीसरा -इंद्रधनुष का उगना। बन्दर के आते ही सब उलहे हू -उलहे कहते उसके पीछे भागते। माँ कहती की आज तुमलोग को बन्दर जरूर काट लेगा। मैं तो डरपोक नंबर वन। भाग कर घर में चली जाती। भाई और बच्चों के साथ लगा रहता। वहीं जब हेलीकॉप्टर दिखता तो सब चिल्लाने लगते ,जहाज -जहाज। सब आसमान की तरफ देखने लगते। कोई थोड़ी देर से बाहर निकलता तो पूछता किधर ? दिख नहीं रहा है ? तो सब मिलकर जिधर हेलीकॉप्टर जा रहा होता दिखाते। हेने बा -हेने बा। कई बार तो दिखाने वाला /वाली अपने सिर से पूछने वाला का सिर सटा कर आसमान की ओर ऊँगली दिखा कर कहता ,वो रहा। अब दिखा ? पूछने वाले /वाली को फाइनली जहाज दिख जाता। दोनों खुश हो जाते। ठीक ऐसा ही इंद्रधनुष के साथ होता। सब भाग कर बाहर निकलते। बारिश की वजह से जो कैद मिली होती ,उससे मुक्ति मिल जाती।

इंद्रधनुष अमूमन जब थोड़ी धुप में बारिश हो तभी दिखता है। अमीन चाचा ने बताया था ,ऐसी बारिश में शेर -शेरनी की शादी होती रहती है। हमलोग चिल्लाते -शेर -शेरनी का बियाह हो रहा है ,शेर शेरनी का बियाह हो रहा है। नंदन -चंपक का इतना प्रभाव था कि ,सोचने लगती। कैसे हो रही होगी शादी ? कहाँ हो रही होगी ?जंगल तो यहाँ  पास नहीं ? आज के बच्चों जैसे हम क्यूट कहाँ ,जो सवाल पूछ -पूछ कर बड़े लोगों का दिमाग चाटते। फिर भी वो कहते हाउ क्यूट एंड स्मार्ट। हम तो खुद में सवाल ,खुद से जबाब। वैसे कभी -कभार पूछ भी लिया करते। तब भी स्मार्ट नहीं बड़ा तेज सुनकर संतोष कर लेते। पर ऐसा बहुत कम होता।

कॉलोनी के अमीन चाचा ,मुझे बहुत प्रेम करते। वहीं कई तरह की कहानियाँ शाम को सुना दिया करते। एक बार इंद्रधनुष के  बारे में बताया -प्रियंका जानती हो ,इंद्रधनुष इंद्र का धनुष है। इसलिए इसका नाम इंद्रधनुष है। वे असुर को इसी धनुष से मारते हैं। मैंने पूछा -चाचा अभी भी असुर हैं क्या ? वो हँसते हुए बोले -असुर तो हर जन्म में होते है। फिर कुछ सालों बाद -प्रभात सर ने इसके पीछे का विज्ञान बताया तो ,खुद पर हँसी आ गई। खैर आप यहाँ के इंद्रधनुष को देखें। इंद्रधनुष के ठीक बाद जलते हुए आसमान को देखे। लगता है ,इंद्र असुरों को जला कर चलें गए।


Tuesday, 20 June 2017

सुख की ,मोक्ष की तलाश !!!

ऐसी क्या मनोदशा हो सकती है कि ,कोई सब कुछ छोड़ दे। सबकुछ छोड़ने से मेरा मतलब भौतिक सुख से है। कौन सी घुट्टी ये धार्मिक गुरु पिलाते हैं ? क्या होता है इन ऑर्गनाइज़ेशन का मोटो ? क्या ये लोग सच में खुश रहते हैं ? क्या सच में मोक्ष मिल जाती है ? मोक्ष क्या है ?

ऐसे बहुत से सवाल कई बार मन को अशांत कर देते है। पीछे कुछ महीनों में ,कबीर ,बुद्ध और कृष्ण के बारे में जितना हो पाया ढूंढा ,पढ़ा। अभी भी खोज जारी ही है। पर संतुष्टि वाला उत्तर नहीं मिला। कुछ गुणी जनों से भी इसके बारे में जानने की कोशिश की।कुछ जान पाई कुछ रह गया।

मेरा एक प्रिय दोस्त करीब सात -आठ साल पहले इस्कॉन से जुड़ गया। भाई ने इसके बारे में बताया था। सुनकर दुःख तो हुआ था। पर उस वक़्त मैं और भी बेपरवाह थी। खुद से फ़ुरसत कहाँ थी ,जो ऐसी बातें सोचती या जानने की ईक्षा रखती। उम्र भी तो ऐसी ही थी।
फिर मुझमे और मेरे दोस्त में क्या अंतर था। उसे बीस -बाईस साल में ईतना ज्ञान कैसे मिल गया ? माना वो पढ़ने में इंटेलिजेंट था ,पर मैं भी तो थी। जहाँ तक मुझे लगता है ,उसके घर से ज्यादा तो मेरे घर में धार्मिक माहौल था और है। ऐसा भी नहीं था कि ,गरीबी और दुःख में उसका जीवन बिता हो। एक बहुत ही संपन्न परिवार से ताल्लुक है उसका। ख़ैर मैं उसे लगभग भूल चुकी थी ,कि कुछ महीनों पहले वो मुझे फिर से मिल गया। उससे जितनी बातें हुई। जितने सवाल -जबाब हुए।  हर बात का एक ही जबाब ,सांसारिक वास्तु से सुख नहीं मिल सकता तपस्या। मोक्ष चाहिए। नहीं तो फिर से जीवन चक्र में फँस जायेंगे। तपस्या तुम भी महामंत्र जपा करो।

महामंत्र -हरे राम -हरे राम ,राम -राम हरे हरे ,
हरे कृष्ण -हरे कृष्ण ,कृष्ण -कृष्ण हरे हरे !

इस्कॉन वाले इसे महामंत्र कहते है। मुझे अब तक नहीं मालूम था कि ,ये महामंत्र है।
उससे बहुत सी बातें हुई। कुछ तस्वीरें भी भेजी उसने। देखा तो सारी मण्डली युवाओं की। मन बेचैन हो गया।
आह ! इनके माता ,पिता ,भाई -बहन पर क्या बीतती होगी ? ऐसे कौन सी सुख की ,मोक्ष की तलाश है इनकों ,जो प्रियजनों का दिल दुखा के मिलने वाला माँ कहती है -किसी के आत्मा को रुला के आप चैन से नहीं रह सकते। फिर इन्हें चैन कैसे मिल जाता है ? क्या इनके परिजन सच में खुश होते होंगें ,इनके इस निर्णय से ?

मेरे दोस्त ने मुझे कुछ -कुछ पढ़ने के लिए भी भेजा। मैंने पढ़ा भी। पर  विद्या कसम जो भी पढ़ने को उसने भेजा था। वो तो मैं पहले से ही लगभग जानती थी। कभी माँ से सुना तो कभी कहीं पढ़ा था। मैंने उससे कहा भी कि ,इसमें बहुत कुछ नया नहीं है। मुझे मालूम है ये सब। मेरे घर में धर्म -कर्म ,पूजा -पढ़ का  माहौल शुरू से रहा है। मेरे दोस्त को ये बात शायद बुरी लगी।(वैसे इनलोगों को गुस्सा नहीं आता ) मुझसे कहता है -ब्राह्मण होने का ईतना गर्व। मैंने उसे अपनी बात समझया की ऐसा नहीं है।

वहीं ,अभी कुछ दिनों पहले ही ,गुजरात के वर्षिल शाह जो मात्र सत्रह साल के हैं। जैन मुनि बन गए। वो भी बारहवीं के टॉपर हैं  । कहीं मन्नत तो नहीं थी। टॉप करने पर साधु बन जाऊँगा। खैर ,
-मुझे ये नहीं समझ आ रहा है की ,क्या इस उम्र में मनुष्य की चेतना इतनी प्रबल होती है कि ,अध्यात्म को समझ सके। --क्या इनके अंदर शंकराचार्य ,बुद्ध ,महावीर,विवेकानंद जी जैसा बोध ज्ञान ऊपज चूका होता है।
-क्या पूजा -पाठ ,धर्म प्रचार को कर्म कहा जा सकता है ? अगर हाँ तो  इसका फल क्या है ?
-कर्म के बिना फल कैसा ?
-फल की चिंता नहीं तो मोक्ष का लालच क्यों ?
-मोक्ष क्या है ? जब आत्मा अमर है।
-जब आत्मा शरीर बदलती रहती है तो ,जीवन चक्र से मुक्ति कैसे ?
-कृष्ण और राधा का प्रेम ही सर्वपरी है तो ,शिव अर्धनारीश्वर कैसे ?
-मन के दरवाजे खुली रखो ,तो कुछ चीज़ें करने पर पाबंदी क्यों ?
बहुत से सवाल है मेरे ,ढूंढ रही हूँ। देखे कब संतुस्ट हो पाती हूँ।
फिलहाल तो वर्षिल शाह के माता -पिता के मजबूत ह्रदय की तारीफ करनी होगी। उन्हें ख़ुशी है कि ,सी ए बनने वाला उनका बेटा संत बन गया। वो तो इतने खुश हैं कि ,अपनी बेटी को भी इस रास्ते पर भेजना चाह रहे है।

Monday, 19 June 2017

मौसम और यादें !!!

चर्च का घंटा बज रहा है। घड़ी देखा तो पाँच चुकें है। घर के सामने जो चर्च है ,उसमे एक टावर है। जो हर घंटे बजता है। इसकी घंटियाँ बहुत सूदिंग आवाज़ करती है। इंट्रेस्टिंग ये है इसमें 56 घंटियाँ लगी है। इसमें लगी 36 घंटियां दूसरे विश्व युद्ध के समय, स्विट्ज़रलैंड की नेस्ले कम्पनी ने लगाने के लिए दी थी। खैर ,ईधर मेरा सत्यार्थ भी बज रहा है। मौसम का भी मिज़ाज भी गड़बड़ा गया है। मेरे दिमाग भी ऐसी में बैठे -बैठे ,यैसे -तैसे हो रहा है। सत्यार्थ को चुप करा रहीं हूँ। फिर सोचा बालकनी में थोड़ी देर खड़ी होती हूँ ,शायद चुप हो जाय। यहाँ  बालकनी का मतलब एक टेबल चार चेयर। कुछ फूल -पत्तियां या ज्यादा से ज्यादा थोड़े लाइट -बिजली वाले झाड़ -फेनुस। लोग अमूमन बालकनी में या तो सिगरेट पीने  के लिए निकलते है ,या कभी -कभार साफ़ -सफाई के लिए। सत्यार्थ बाहर आकर चुप हो गया। सामने पड़े चेयर पर मैं भी विराजमान हो गई। थोड़े देर सत्यार्थ को लेकर बैठी रही। वो भी नेचुरल हवा पी कर सो गया। अभी  हवा तेज हो गई है। मैं उसे घर में सुला आती हूँ। पर मेरा मन तो बालकनी में ही अटका हुआ है। उसे सुला कर , फ़ोन लेकर फिर से बालकनी में आ जाती हूँ। बाहर के मौसम को देख घर की बहुत याद आ रही है। घर यानी मेरे बसंतपुर की।

थोड़ा आँधी सा उठा और मेरा मन आँधी की तरह कॉलोनी में पहुँच गया। काश ,कोई आम का पेड़ उग आता यहाँ। दौड़ कर टिकोड़ा चुनने भाग जाती। अब तो आम भी पक गए होंगे। माँ पीछे से आवाज़ लगाती -आ जाओ तुमलोग ,मेघ -बुनी में बंदइया बने फिरते हो। खैर नहीं है तुमलोग का आज। पर हम तो हम। भागते हुए -कहते माँ न ,जल्दी आ जायेंगे। मत गुस्साओ। हवा की तरह भागते। ठेस लगने पर  बुनि की तरह गिरते। फिर टिकोड़ा लाकर खाना पकाने वाली दीदी को देते। कहते मेरे आम का चटनी मत पीसना ,इसका खटमिट्ठी बनाना।  अरे -अरे बिजली चमकी भागो अंदर । यादों से भागते हुए मैं अंदर आ गई।

पर मन का क्या करे ? मन फिर से बालकनी की शीशे की दिवार से चिपक गया। फिर से बाहर निकल आई। सोचा एक विडिओ बना लेती हूँ। जब अपनी भावनायें आप तक पहुँचाऊँ तो ,आप भी यहाँ के मौसम का आनंद ले सके। और देखिये तो सही ,इंद्र देव भी प्रसन्न होकर प्रेम बरसाने लगे। आप भी देखिये बिना आम के ,बिना कागज के नाव के ,बिना बच्चों के बारिश कैसी दिखती है।


 खैर फ़ोन को आराम देकर ,टीवी की नाक में ऊँगली की। अपनी फेवरेट प्लेलिस्ट में कुछ ढूंढने लगी। फिर मुझे "-सावन के दिन आये ,सजनवा आन मिलो (भूमिका ) "सॉन्ग दिखा। मौसम को देखते हुए इसे बजा डाला।
फिर एक याद गुदगुदा गई। जब पहली बार ये गीत भाई ने सुनाया था। वीडियो देख कर खूब हँसी थी। उसको मारते हुए कहा -पागल ,क्या -क्या सुनते हो तुम भी। वो भी कहाँ कम। जबरदस्ती मुझे पकड़ कर ये गाना सुनाया। मैं कहे जा रही थी ,माफ़ कर दे भाई। मार हो जाई अब। वो बोला -होई त होई। मुझे पकड़े रहा। आख़िर मुझे सुनना पड़ा। अच्छा लगा तो फिर से बजवाया। गाना अधूरा है ,तो बार -बार भाई से पूछती ,भाई रे ऐसा क्यों ? उसपर हीरो बगीचे में होते हुए भी ,प्लास्टिक का गुलाब लिए घूम रहा है।
उफ्फ्फ !अभी भी सोच के हँसी आ रही है। ये लीजिये फिर से घंटा बज उठा।एक ,दो ,तीन ,चार ,पाँच ,छह।


Tuesday, 6 June 2017

बसंतपुर मेरा मालगुडी !!!

बसंतपुर मेरा मालगुडी से कम नहीं। चुलबुल -लवली की कहानियाँ तो इसके बिना अधूरी ही है। आज की कहानी कुछ इस तरह है।
चुलबुल तो छोटा था ,साथ ही नटखट भी। इस वजह से लवली को ही बाहर के काम करने पड़ते थे। मसलन राशन ,सब्जी ,किरोसिन तेल ,दवा -दारू सब लाना। इनकी माँ बाज़ार कम ही जाती । कई बार लवली अपनी माँ से कहती -माँ तुम जाओ ना बाजार। मुझे खेलने जाना है। माँ प्यार से समझती ,बेटा बड़े घर की महिलायें रोज बाज़ार नहीं जाती। तुम तो बड़ी समझदार हो ,फटाफट सबकुछ लेकर आ जाओगी। इस तरह लवली का बसंतपुर बाजार से परिचय हुआ। किसी दिन सब्जी लाना ,तो किसी दिन साबुन -तेल ,कभी मिठाई तो कभी दवाई। सब्जी छोड़ कर ,सबकुछ लगभग एक ही जगह मिल जाती। वो जगह थी "भारत मार्किट"

बसंतपुर में मार्किट जैसा शब्द पहली बार भरत मार्किट के लिए ही सुना। ऐसे तो सब्ज़ी मंडी ,भीतरी बाज़ार, हाई स्कूल रोड में दुकान हुआ करती थी। पर मार्केट नाम से एक ही था ,भरत मार्केट ।
भरत मार्केट में कुछ लाइन से आठ -दस छतदार दुकानें थी । एक -दो झोपड़ी वाली दूकान भी थी। झोपड़ी वाली दुकान लवली को ज्यादा पसंद थी। हो भी क्यों ना ? उसमे मिठाइयाँ जो बिकती थी।रघुनाथ की मिठाई की दुकान। भरत मार्किट सड़क से सटा हुआ था। लाइन से जो दुकानें थी -उसमे कोने पर एक पंक्चर बनाने वाले की दूकान थी। उसके बाद एक किराना स्टोर था। फिर बसंत जी की दवा की दुकान। इसके बाद न्यू गोल्डन जेनरल स्टोर। न्यू गोल्डन परचून की दूकान थी। साबुन -तेल ,एसनो -पाउडर से लेकर चॉकलेट -बिस्कुट ,कॉपी -किताब सब कुछ मिल जाता था इसमें। इससे लगे ही नेहलिया जेनरल स्टोर भी था । इसके बाद चंदन मेडिकल शॉप। इस मेडिकल शॉप के बाहर बेंच लगी हुई होती। लोग बैठ कर अखबार पढ़ते। बात -चीत करते। लवली -चुलबुल के गांव से जब भी बाबा जी ,चाचा जी आते। उनका पहला अड्डा चन्दन मेडिकल दूसरा शर्मा जी पेपर वाले की दूकान। सबसे अंत में फिर  से एक किराना की दुकान ।इन दुकानों के पीछे भी कुछ दुकानें थी । जिसमें लवली का जाना कम ही होता। दूकान थी ,गीता प्रेस। लवली सिर्फ एक बार अपनी माँ के साथ रामायण लेने गई थी।
 इस मार्किट की खास बात लवली को ये लगती की ,एक तो जो छतदार दूकान थे। उसमे दोनों तरफ से सीढ़ी बने हुए थे। ऊपर की तरफ़ कुछ तीन दुकान थी ।तीनों ही सिलाई की दुकान ।मोती टेलर ,चाँद टेलर ।तीसरे दूकान का नाम बदलता रहता। लवली कभी -कभी एक तरफ से सीढ़ियों से चढ़ कर जब सारे दूकान के ऊपर से गुजरती ,खूब खुश हो जाती। दूसरी तरफ से निचे उतरती। फिर चढ़ती ,फिर उतरती। कभी नीचे जाते लोगों को देखती तो उसे और मजा आता। आहा मैं इन सबसे ऊपर हूँ। कभी -कभी छत की मुँडेर से नीचे झाँकती तो ,डरती हुई भागती। दिल उसका जोर -जोर से धड़कता। गिर गई होती तो ? सुई लगती क्या ?
भरत मार्किट के मालिक की भी दो दुकान थी। एक बलराम जी की रस्सी ,झाड़ू , चूहेदानी ,चुना आदि की दूकान। दूसरी कपड़ा की दूकान। लवली को बलराम जी की दूकान भी खूब पसंद थी। दुकान की एक ख़ास बात ये थी ,यहाँ बहुत सारे कबूतर होते ।कुछ छोटे -छोटे जानवर जैसे ,ख़रगोश ,बत्तक, तोता ,सफ़ेद चूहा आदि भी बिकते। कई बार सब्ज़ी ख़रीद कर जब लवली लौटती तो ,ख़रगोश के पिंजड़े के पास खड़ी हो जाती । बलराम चाचा कभी तो उन जानवरों से खेलने देते ,कभी उनकों निकाल कर कटवाने की बात से डरा देते  । लवली झोला उठा कर भाग पड़ती। वो हँसने लगते । कहते आओ -आओ नही कटवाएँगे ,पर लवली कहाँ रूकती ।
इसी के साथ ही जो कपड़े की दुकान थी । ज़्यादातर कॉलेनी वाले यहीं से कपड़े खरीदते। कपडे की दूकान के पास ही एक खैनी बेचने वाला बैठता। छोटा सा चौकी टाइप उसका दुकान होता। कई बार जब माँ के साथ लवली कपड़ें  लेने जाती तो उसकी नजर खैनी की दूकान पर ही होती। दूकान वाला खैनी काटने को एक छोटा सा पहसुल जैसा कुछ रखता। उसको दिखा कर मुस्कुरा  कर कहता, आओ बबुनी कान काट दी। लवली डर जाती। पर माँ जो साथ होती तो भागती नहीं। खैनी वाले के दूकान से थोड़ी दूर पर ही एक पकड़ी का पेड़ था। जिसके नीचे एक मोची बैठा करता। बगल में भुजा का ठेला भी लगता था। लवली -चुलबुल के  हवाई चप्पल की मरमत वही होती। कई बार तो मोची एक दो कील मार देता और पैसा भी नहीं लेता। हँसते हुए कहता -बबुनी एतना चप्पल टूटेला ? ठीक से चलल कराअ।
इस मार्किट की एक और खास बात थी। यहाँ एक कुँआ भी था। लवली की माँ लवली को समझा कर भेजती कुँआ की तरफ से मत जाना। कई बार लवली उधर से नहीं जाती पर कई बार उत्सुकता वस चली जाती की देखे क्या होता है। भरत मार्किट के हाते में एक चापाकल भी था। चापाकल के बगल में एक तूत का पेड़ था। लवली कभी -कभी खरीदारी से लौटते समय, तूत बीन कर खाने लगती। लवली के पास एक पीले रंग का पॉकेट वाला फ्रॉक था। उसे वो फ्रॉक बहुत पसंद था। आज बाजार वो वही पहन कर गई थी। लौटते समय तूत के पेड़ ने अपनी तरफ खींच लिया। खूब सारे तूत जमीन पर गिरे थे। उसने ने कुछ खाया और कुछ चुन कर फ्रॉक की पॉकेट में रख लिया। घर पहुँचते -पहुँचते फ्रॉक में कई जगह दाग लग गए थे। लवली खूब रोई। माँ समझती रही ,पर अगली बार से वो फिर कभी तूत के पेड़ की तरफ नहीं गई।
फोटो क्रेडिट -वरुण कुमार। 



Monday, 5 June 2017

पोर्टलैंड की सैर !!!

 आज का दिन हमने पोर्टलैंड के लिए रखा था।अगला दिन अकार्डिया नेशनल पार्क के लिए ।पोर्टलैंड का लाइट हाउस मशहूर है। हम भी देखने निकल पड़े। हॉटेल से कुछ दस मिनट की दुरी पर ही ,फोर्ट विलियम्स पार्क था। इसी पार्क के एक किनारे पर लाइट हाउस है।ये पार्क समुन्द्र से सटे ही है।यहाँ तक आप अपनी कार या कुछ टूरिस्ट बस के द्वारा जा सकते है। वैसे तो पार्क में फूल -पत्ती कम ही थे ,पर सुन्दर हरे घास ,कुछ जंगली फूल और समुन्द्र इसकी शोभा बढ़ा रहे थे।
ये रहा लाइट हाउस ।
यहाँ लाइट हाउस के साथ ही एक छोटा सा गिफ्ट शॉप और खाने -पीने की एक दूकान भी है ।यहाँ बाथरूम के लिए आपको थोड़ी परेशानी हो सकती है ।चलता -फिरता बाथरूम किसी कोने में रखा होगा। आपको ढूढ़ना या पूछना पढ़ सकता है । पार्क से बाहर निकलते समय समुन्द्र के किनारे कुछ बेंच ,टेबल आपको मिल जायेंगें ।आराम से बैठिये ,खाइये -पीजिये ।कई लोग ऑनलाइन ,टेबल रिज़र्व करवाते है ।थोड़ा सा ऊपर की तरफ जाते है तो ,कुछ आधा -अधूरा कंस्ट्रक्शन  देखने को मिलता है ।इसका नाम गोडार्ड  मैंशन है ।कोलोनेल गोडार्ड अमेरिकन सिविल वॉर के फर्स्ट कमांडेड थे ,मेन विलुण्टीर रेजिमेंट के ।
यहाँ से हमलोग निकले  ईस्टर्न प्रॉमनेड पार्क की तरफ़ ।रास्ते में ओल्ड पोर्ट देखते हुए। ओल्ड पोर्ट में ईंट और पत्थर से बने लाल रंग के बिल्डिंग और शॉपस है ।मुझे कुछ अलग लगा ।रुकने का मन था पर ,पार्किंग ही नहीं मिल रही थी । हमलोग गाड़ी से ही इन गलियों में 3/4 चक्कर लगाए और आगे बढ़ चले ।प्रॉमनेड पार्क में के एक तरफ़ ख़ूबसूरत घर तो दूसरी तरफ़ समुन्दर ।पार्क में हर जगह बैठने को बेंच है ।ट्रेल है ।बच्चों के खेलने की जगह है ।आप पूरा दिन बीता सकते है यहाँ।
ये कुछ घर की तस्वीरें ।साथ ही यहाँ मुझे एक ख़ूबसूरत बुज़ुर्ग जोड़ा दिखा जो शादी कर रहे थे ।

Thursday, 1 June 2017

राष्ट्रीय फूल की दौड़ में हरसिंगार !!!

बदलाव की हवा चल रही है। शासन बदला ,सड़क का नाम बदला ,शहर का नाम बदला। अब बात हो रही है , राष्ट्रीय पशु की। कल  बारी अगर राष्ट्रीय फूल की आएगी तो ? आपके हिसाब से कौन सा फूल बाजी मार ले जायेगा ? सोचिये -सोचिये।

गुलाब ? अरे नहीं जी ,गुलाब तो मजनुओं की पसंद है। एंटी रोमियों वाले पहले ही छाँट देंगे। कुछ लोग कोट -वोट में भी खोंसते थे /है। साथ में काँटे भी लगे है। बिल्कुल नर्दोष नहीं है जी ,ये तो। गुलाब तो ऐसे ही आउट हो गया। बेली ,गेंदा ,जूही ,मोगरा ये सब तो कमल के आस -पास भी नहीं टीक सकते। फिर ?
फिर क्या ? मुझे लगता है ,एक फूल है। जो पूरी तरह जीत सकता है। "पारिजात " के फूल। इनको "हरसिंगार " भी कहते है। सफ़ेद और "गेरुआ "रंग का मिश्रण इस फूल को और खूबसूरत बनाता। ख़ुश्बू भी कमाल की होती है। हरसिंगार के फूल ,पेड़ ,पत्ते ,छाल सबका उपयोग औषधि बनाने में होता है। इतना निर्दोष फूल है की ,दिन की तपिश तक नहीं सह सकता। और तो और नाम तो देखिये -हरसिंगार ,"हरि " हाँ जी दैवीय कनेक्शन भी है।पहली बार पृथ्वी पर आया भी तो कहाँ ?
द्वारिका में महाराज। सुनिए , एक कथा है। जो माँ बताया करती थी हरसिंगार के बारे में ,सुनाती हूँ -

हरसिंगार के फूल समुन्द्र मंथन के समय प्रकट हुए थे । इंद्र की चालाकी की कथा तो आप सब ने सुनी ही होगी। वे इस फूल को भी इंद्रलोक लेकर चले गए। एक बार कृष्ण ,रुक्मिणी जी के साथ इंद्रलोक गए। वहाँ रुक्मिणी जी को ये फूल बहुत पसंद आये। उन्होंने कुछ फूल अपने बालों में खोंस लिया। वापस जब कृष्ण और रुक्मिणी द्वारिका आये तो ,कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा ने ,उन फूलों को रुक्मिणी के बालों में देखा। सत्यभामा ,कृष्ण से जिद्द कर बैठी। कान्हा ,मुझे भी ये फूल चाहिए। कृष्ण क्या करते। पहुंचे इंद्र के पास। पर इंद्र ने पारिजात को पृथ्वी पर भेजने से मना कर दिया। फिर क्या था ,युद्ध हुआ। मार -काट मचा कर पारिजात द्वारिका तक पहुँचा। सत्यभामा फूल पा कर खुश हो गई। इसके अलावा ये फूल लक्ष्मी जी को भी पसंद है।

साथ ही ,मेरी यादों के फूल में ,एक नाम हरसिंगार का भी है। मैंने भी इसे लगाया था। पर कुछ सालों बाद बारिश के पानी के जमा होने से पेड़ सड़ गया। कितने सुन्दर फूल लगते थे। खिलते भी शान से। साल में एक बार ही। वो भी पवित्र महीने में  -कुछ दशहरा ,दिवाली ,छठ  के आस -पास। मेरे बाग़ान में जो पेड़ था। उसके नीचे माँ ,रात में एक धुला हुआ चादर बिछा देती। सुबह फूलों को समेट कर कुछ माँ रखती तो कुछ पड़ोसी पूजा के लिए ले जाते।   
तो इस तरह मुझे लगता है ,हरसिंगार को ही राष्ट्रीय फूल घोषित होना चाहिए। हर कैटेगेरी में फिट। वैसे भी ज्यादा कमल खिलने से ,बहुत कीचड़ हो गया है भाई।

Wednesday, 31 May 2017

लॉन्ग वीकेंड ट्रिप "अकार्डिया नेशनल पार्क "

इस लॉन्ग वीकेंड हमारी सवारी निकली "अकार्डिया नेशनल पार्क " की सैर करने। लास्ट ईयर इसी मेमोरियल डे के लॉन्ग वीकेंड पर हमलोग "येलो स्टोन नेशनल पार्क " गए थे। उस समय मेरे  सत्यार्थ का सृजन हो रहा था। मेरा सत्यार्थ मेरी आँखों से सब देख रहा था। इस बार सत्यार्थ हमलोग के साथ ,अपनी प्यारी -प्यारी आँखों से सब देख रहा था। तेज हवा के झोंके जब उसके नन्हे चेहरे से टकराते तो ,थोड़ा घबड़ाता ,थोड़ा चौंक जाता।फिर आँखे खोलने -बंद करने लगता।

अकार्डिया नेशनल पार्क ,"मेन स्टेट " में आता है। ये  स्टैंफोर्ड से कुछ छह घंटे की दुरी पर है। पहले हमलोग 6 /7 घंटे की दुरी एक ही ब्रेक में पूरी कर लेते थे। अभी सत्यार्थ है तो ,छोटे -छोटे ब्रेक लेने का सोचा। इसलिए हमलोग फ्राइडे चार बजे    ही घर से निकल गए। इस बार की सवारी में फिर से  ड्राइवर रिपीटेड  (शतेश ),मनमौजी सवारी (तपस्या ) रीपिटेड। बस एक नये सदस्य सत्यार्थ जुड़े थे। पहली बार किसी ट्रिप पर हमलोग सामान भर -भर कर ले जा रहे थे। बेचारी सी आर  वी  कह रही थी ,मुझ पर रहम करो। गाड़ी है ट्रक नहीं। ट्रंक फुल हो जाने के बाद भी ,रॉकर को आगे की सीट पर रख के ले जाया गया। इस बार हमलोग खाना पकाने का सामान भी साथ ले जा रहे थे। पहले कहीं भी रुक कर खा लेते थे। अभी सबकुछ मीर मस्ताना अका सत्यार्थ तय करता है। वैसे तो सत्यार्थ ज्यादा परेशान नहीं करता ,पर उसका भी मूड अपनी माँ की तरह स्विंग होता रहता है। दूसरा हम उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाह रहे थे।

चार घंटे की दुरी पर ही हमने हॉटेल लिया था। छह बज गया था। सत्यार्थ को भूख लग गई थी। हमने एक ब्रेक लिया। डंकिन डोनट्स में रुके। उसको फीड कराने के साथ-साथ हमने भी कॉफी , हास्ब्रॉउन लिया। दूसरी कुर्सी पर एक अधेड़ उम्र की महिला अकेली बैठीं थी। हमने नोटिस किया की वो हर आने वाले को पकड़ कर बातें करने लगती थी।  हमे भी पकड़ लिया। इंडिया में कहाँ से हो -दिल्ली से  ? मैंने कहा नहीं ,बिहार से। उन्होंने  बिहार नहीं सुना था ,पर कलकत्ता मालूम था। मालूम होने की वजह मदर टेरेसा थी।लग रहा था ,काफी दिनों बाद लोग मिल रहे थे उनको ,बात करने के लिए । वो बीच -बीच में मीर की तारीफ किये जा रही थी। जैसे ही मीर की फीडिंग पूरी हुई ,हमलोग निकल पड़े। हमलोग उनसे विदा ले कर सामान समेट ही रहे थे कि ,उन्होंने एक और फॅमिली को पकड़ लिया। मुझे लगता है ,उनकी यही छुट्टीयाँ बिताने का अंदाज होगा।

हमलोग अपने पड़ाव पर रात के नव साढ़े नव बजे पहुँचे। स्टेंडर्ड स्टे अमेरिका हॉटेल लिया था। किचेन था तो मस्त अदरख वाली चाय बनाई। घर से आलू के पराठे और आलू मटर की सब्जी ले गई थे। वही खाया और चाय पी । टीवी देखते हुए मीर  को फीडिंग कराई और सो गए।

Thursday, 25 May 2017

टीन ऐज मॉम !!!

ऐसे क्यों देख रही हो मुझे ? हाँ ,जो गोद में बच्चा अभी उठाया ,वो मेरा ही है। तुम भी तो माँ हो ,मुझे कैसे नहीं पहचान पा रही ? बीलिंग काउंटर की लाइन में लगे हम दोनों आँखों से बातें कर रहे थे। कभी तुम नजरे बचा कर मुझे देखती तो ,कभी मैं तुम्हें ।यहाँ दूसरों को घूरना असभ्यता जो है । वैसे कद काठी में हम दोनों बराबर ही होंगे। रँग का थोड़ा फर्क है बस। तुमने तो मुझे आसानी से इंडियन समझ लिया होगा। या हो सकता है मैक्सिकन भी समझा हो। इंडियन ,मैक्सिकन लड़कियाँ थोड़ी मिलती -जुलती जो है। पर मैंने तुम्हे सिर्फ अफ्रीकन या अमेरिकन अफ्रीकन समझा। बराबर की लाइन में तुम स्ट्रॉलर ले कर खड़ी हो। स्ट्रोलर में जो बच्चा है वो तो तुमसे थोड़ा अलग है। उसकी आंखे चाइनीज लोगों की तरह छोटी है। रंग भी थोड़ा साँवला है। पहली नज़र में मुझे लगा ही नहीं ये तुम्हारा बच्चा है। मैंने अपने मीर को गोद मे लिए तुम्हे जानने की कोशिश कर रही हूँ। तुमने और तुम्हारे बच्चे ने शायद मेरे मन की बात जान ली। वो थोड़ा रोया। तुमने  बच्चे को गोद में उठा लिया और इब्राहिम माय बेबी कह कर किस करने लगी। जिस तरह तुम उसे लाड़ कर रही थी। वो एक माँ ही कर सकती है।शनिवार का दिन है।भीड़ बहुत है ,इसलिए  बीलिंग  की लाइन भी  धीरे -धीरे आगे बढ़ रही थी। चलो हमलोग के पास समय है ,,एक दूसरे को देखने का। स्माइल करने का। पर ना तो तुमने बात की ना मैंने।

अरे रुको ,कही तुम्हे ये तो नहीं लगा  कि ,मैं भी टीन ऐज मॉम हूँ। बहन मैं अपने चंद सफ़ेद बालों की कसम खा कर कहती हूँ -मैं सिर्फ माँ हूँ। अब तुम हँस मत देना कि ,कसम खाई भी तो सफ़ेद बाल की। बाल सफ़ेद करवाना तो एक फैशन है यहाँ।

खैर तुम उम्र के जिस पड़ाव पर हो ,वो मैं पार कर चुकी हूँ। वो बात अलग है ,साल दर साल मैं और ख़ूबसूरत हो रही हूँ। मन से भी और तन से भी। ख़ुद पर ज़्यादा ना इठलाते हुए ,मैं तुम्हे फिर से देखती हूँ। तुम जो कपड़े ली हो ,उसे देख रही हो। सोच रही हूँ -कौन -कौन होगा तुम्हारे साथ ? कैसे हिम्मत आई होगी तुममे इस उम्र में बच्चे को सँभालने की ? भले शरीर से तुम माँ दिख रही हो पर क्या तुम्हारा मन भी माँ की तरह मज़बूत हुआ होगा ? सोच रही थी की ,आवाज़ आई -नेक्स्ट प्लीज़  और मैं आगे बढ़ गई। तुम पीछे छूट गई।

अमेरिका में टीन प्रेग्नेंसी बहुत ज़्यादा है।कुछ  कारण ,अशिक्षा ,गरीबी ,बच्चों का अकेले होना। तो कुछ सेक्सुअल हरासमेंट और टीन ऐज में मैच्योर दिखने की बीमारी है। दूसरा यहाँ अबॉरशन रेट बहुत कम है। वैसे सरकार इन बच्चों की मदद तो करती है ,पर ज्यादातर लड़कियां अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती है। जबकि स्कूल में डे केयर भी बना होता है ,इनके बच्चों के लिए। सरकार की तरफ से इन्हे कुछ काइंड ऑफ़ पेंशन जैसा मिलता है। जिससे ये आपने बच्चे की परवरिश कर सके।पर इसके लिए कुछ माप दंड होते है।


Tuesday, 23 May 2017

कुत्तों की भी कम मौज नहीं यहाँ !!!

बहुत दिनों बाद मौसम अच्छा हुआ था। अच्छा इन द सेन्स जैकेट ,कोट का बोझ उतार फेकने का मौसम। लोग रंग- बिरँगे शॉट्स ,वन पीस ,स्कर्ट आदि में घूम रहें थे। हमलोग भी मीर के साथ डाउनटाउन के बीच बने पार्क में घूमने निकल पड़े। पार्क के सामने ही ,सड़क के दोनों तरफ रेस्टोरेंट है।लोग बाहर लगी टेबल कुर्सियों पर बैठ कर खा -पी रहे है। यहां अमूमन लोग शाम के सात से आठ बजे के बीच डिनर कर लेते है ,वीकडेज़ में। हमलोग शाम की चाय पीकर निकले थे। शतेश बोले साढ़े आठ हो गए है तपस्या। इधर ही खा कर घर चलते है। आईडिया तो अच्छा था ,पर मीर के भी फीडिंग का समय हो रहा था। मैंने मना किया और घर की तरफ चल पड़े। अपार्टमेंट के लिफ्ट के बाहर एक लड़की कुत्ते के साथ खाड़ी थी। उसका कुत्ता इतना बड़ा था कि ,हमलोग थोड़ा डर गए अचानक सामने देख कर। हमें इट्स ओके बोल कर ,मैडम ने अपने कुत्ते की बड़ाई की -ही इज अ फ्रेंडली डॉग। कुत्ता भी अपनी बड़ाई पर पूंछ हिलाने लगा। मैंने लड़की का दिल रखने के लिए कुत्ते का नाम पूछ लिया। लड़की खुश होकर बोली - जोज़ो।

 दूसरे दिन भी मौसम अच्छा था। शतेश ऑफिस से आते ही बोले -तपस्या ,आज समुंदर के किनारे वॉक पर चलते है। हमारे यहाँ से बाई ड्राइव ,पांच से सात मिनट की दुरी पर ही बीच है। शतेश ने फटाफट चाय बनाई। तबतक मैं मीर को तैयार  कर खुद भी कपडे चेंज करने चली गई। मुश्किल ये हुई ,आफ्टर डिलीवरी मेरे कोई शॉर्ट्स मुझे फिट नहीं आ रहे थे। इधर चाय की कप टेबल पर विराजमान हो गई थी। शतेश बोले -अरे यार चाय ठंढी हो जाएगी। कोई स्कर्ट पहन लो ,इतने तो है तुम्हारे पास।अब  स्कर्ट कौन आयरन करे। मैं उन्हें अनसुना कर ,एक काला शॉट्स खुद में फँसाया। चाय ख़त्म कर बीच के किनारे पहुँचे। बीच के स्टार्टिंग में ही दो बड़े पार्क है। जिसमे एक साइड कुछ लोग  फुटबॉल  खेल रहे थे  तो दूसरी तरफ बेसबॉल। कुछ फॅमिली उसी में डिस्क थ्रो खेल रही थी। हमलोग आगे बढ़ते हुए पार्किंग तक पहुंचे।
अच्छी खासी भीड़ थी। लोग गाड़ी के डिक्की (ट्रंक ) में खाने -पीने के सामान सजा रखे थे। पार्किंग में ही खाना -पीना शुरू था। कुछ लड़के गाड़ी का म्यूजिक लाऊड करके झुण्ड में बियर और सिगरेट का मजा ले रहे थे। कुछ लोग समुंदर के किनारे बने ट्रेल पर टहल रहे थे। तो कुछ अपने बच्चों के साथ पानी और बालू से खेल रहे थे। यहाँ  एक छोटा सा बोड वाक भी है। बोड वाक पर बैठने के लिए बीच में बेंच लगे हुए है। आप चाहे तो बैठ कर समुंदर को घंटों  निहार सकते है। 
एक बेंच पर एक बूढ़ी औरत बैठ कर बड़ी तल्लीनता से कुछ बुन रही थी। शायद अपने नाती -पोते का स्वेटर बना रही हो। उधर से मेरी नज़र हटी तो सामने देखा ,दो कप्पल कायकी (कश्ती खे ) कर रहे थे ।लड़का आगे -आगे लड़की एक कुत्ते के साथ पीछे -पीछे। कुत्ता भी निर्भीक खड़ा था ।वो भी मौसम और समुन्द्र का मजा ले रहा था ।मुझे बहुत अच्छा लगा देख कर । झट से एक तस्वीर ले ली ।पर दुरी की वजह से साफ़ नहीं आ पाई। मौसम इतना अच्छा था की आने का तो मन नहीं कर रहा था ,पर 8 :45 हो गए थे। हमलोगों ने घर का रास्ता लिया।आते हुए हमें एक लड़का गाड़ी के डिक्की पर चिपका हुआ दिखा। दूसरा लड़का ,गाड़ी फ़ास्ट ,स्लो चला रहा था। म्यूजिक कम ज्यादा कर रहा था। साथ में चिल्ला कर गाये जा रहा था। शायद नशे में थे। वैसे ऐसा यहाँ पहली बार देखा मैंने। पुलिस देखती तो फाइन हो सकती थी।खैर तस्वीरों का मजा लीजिये। 

हाँ मैंने उस बूढ़ी महिला की भी एक तस्वीर ली।बिना बताये ली ,इसलिए सामने से नहीं लिया।

Sunday, 21 May 2017

ठंढे आँसू !!!

सा रे गा मा पा लिटिल चैम्पस देख रही थी। आज मदर्स -डे स्पेशल शो था। माँ के ऊपर बने बेहतरीन गीत बच्चे गा रहे थे।वैसे तो सब अच्छा गाते है ,पर मुझे श्रेयान बहुत पसंद है। एक तो वो अच्छा गाता है ,दूसरा हमने मेरे सत्यार्थ यानि मीर मस्ताना का एक नाम" श्रेयान " भी सेलेक्ट किया था। पर आज रिया बिस्वास  (प्रतियोगी ) ने इमोशनल कर दिया। आज कुछ ऐसा हुआ ,जिससे मेरा दिल तो भरा ही ,आत्मा भी भींग गई।

हुआ यूँ ,मीर मस्ताना को गोद में लेकर मैं ये प्रोग्राम देख रही थी। मीर भी मेरे गले के चेन से खेलने में व्यस्त था। प्रोग्राम में  रिया ने ,तू कितनी अच्छी है ,गाना शुरू किया और मेरी आँखों से आँसू बरसने लगे। नाक ने भी रोना शुरू कर दिया। मुझे ऐसा देख ,शतेश हमेशा की तरह मेरे आँसू पोंछते हुए बोले -अरे -अरे ,बस तपस्या बस । पर मेरे आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। बरसते जा रहे थे। शतेश टिशू पेपर लाने कीचेन में गए। इधर मेरा मीर ये सब देख रहा था। पता नहीं उसे क्या महसूस हुआ ?  वो भी मेरी तरफ देख कर रोने लगा। आम तौर पर वो जोर -जोर से रोता है। पर ईस बार उसकी रुलाई अलग थी। कुछ मेरी तरह ही रो रहा था। म्यूट मोड़ में। अपने होठ को उल्टा करके। उसकी आँखे आँसुओं से भरी थी।चेहरे के भाव ऐसे ,मानों उसको कितनी तकलीफ़ हुई हो। मैंने मेरे मीर को ऐसे कभी नहीं देखा था। उसे तुरंत अपने  सीने से चिपका लिया। हम दोनों की धड़कनें एक सामान काँप रहे थे। मानों मेरी भावनाएँ मेरा मीर समझ रहा था। मेरे सीने से लगते ही वो चुप हो गया। पर उसके भरे ऑंखों के दो -चार बून्द ठंढे आँसू ,मेरे बाजू पर गिरे पड़े। फिर तो मेरे ठंढे आँसुओं की बरसात एक बार फिर चल पड़ी। सच में आज समझ आया ,माँ और बच्चों के तार कैसे दिल से जुड़े होते है। "सच में मेरी माँ  ,तुम ठीक ही गाती हो  "माई रे माई तोर मनवा जइसे गंगा के पनिया हो राम " इन्ही आँसुओं पर  एक दिलचस्प वाक्या याद आ रहा है।

मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछा था -तुम्हे मालूम है तपस्या ,आँसू कितने तरह के होते है ? उसका सवाल सुनकर मैं हँस पड़ी थी। बोली -आँसू का एक ही प्रकार होता है -गीला। उसने कहा हाँ ये ठीक है तपस्या ,पर आँसू दो तरह के होते है। एक ठंढे आँसू और दूसरा गरम। मैंने पूछा कैसे ? उसने कहा -जब आप  प्रेम में रोते हैं ,तो उस समय ठंढे आँसू बहते है। वहीँ जब आप क्रोध में रोते हैं ,तो गरम आँसू गिरते हैं। कितना सच कहा था उसने। सच में आज आँसू ठंढे ही थे। वैसे तो मुझे मीर के आँसू बिल्कुल नहीं पसंद। पर आज इन्हे देख कर लगा -मेरा नन्हा मीर मुझसे कितना प्यार करता है। आज के इसके आँसू मुझे हमेशा याद रहेंगें। इन्हें संभाल तो नहीं पाई मैं ,पर इन्हें अपने आँखों में जरूर छुपा लिया है। इस पल को मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी। मेरे मीर अब तुम कभी मत रोना। तुम्हारी माई ने तुम्हारे सारे आँसू अपनी आँखों में छिपा लिए है।