सुनो, अब मैं जाऊँ सोने ... नींद आ रही है।
इतनी जल्दी ? अभी तो ध्रुव तारा भी नही निकला....ना ही चाँद बादलों के आँचल में सोने गया। और फिर मैं भी तो जाग रहा हूँ।
तुम्हारी बात और है। मैं ठहरी कल्पनाओं के झूले पर झूलने वाली। जागते-जागते ये कल्पनाएँ झूठी सी लगती है। और तुम्हें तो मालूम है.....
हाँ बाबा मालूम है तुम्हें झूठ पसंद नही पर ये भी तो सच है कि नींद में आती हुई कल्पनाएँ भी तो झूठ हीं है।
यहीं तो है बाबू, झूठ पसंद नही पर प्यारे झूठ और ख़्वाबों से कब इनकार है मुझे।
तुम्हें समझना सच में पहेली है मेरे लिए.....
अब प्यारा झूठ क्या होता है ? और तुमने झूठ पर भी ख़्वाब देख डाले हा-हा-हा.....
हो गया तुम्हारा हाँ ? तो सुनो, प्यार झूठ वो जो तुम कहते हो कि, सोती हुई मैं नींद की बेटी सी लगती हूँ।
प्यारा झूठ वो, जब तुम कहते हो कि, तुम्हारे चेहरे के फ़्रीकलस अच्छे लगते हैं मुझे। प्यारा झूठ वो जब तुम कहते हो कि वाह “मालिनी राजुरकर” जी क्या गा रही है। ऐसे तमाम वो बातें जो हमने एक दूसरे में बदल लिया, चाहे वो मन से हो आत्मा से हो या शरीर से वो सब एक ख़ूबसूरत झूठ हीं तो है। ठीक उसी तरह जैसे मेरी जाँ... मुझे जाँ ना कहो मेरी जाँ मेरी जाँ......... जान सदा रहती है कहाँ.....
चुप क्यों हो गई। पूरा करो ना इसे।
ना, मुझे नींद आ रही है फिर कभी। ओह, ऐसा भी क्या गुनगुना हीं दो, मेरी जाँ....
अच्छा तो लो सुनो,
लाला ला ला ..हम्म हम्म ह ह .....मेरी जाँ ला-ला....हूँहूँ....
होंठ झुके जब होंठों पर..साँस उलझी हो साँसों में ....
दो जुड़वाँ होंठों की, बात कहो आँखों से
मेरी जाँ ला ..लाला हूँहूँ......
अब क्या आज्ञा है सोने जाने की रात के डेढ़ बज गए हैं। या आज भी ध्रुव तारा देखना हीं होगा हा-हा-हा....
क्या हीं कहूँ तुम्हें मैं नींद की बेटी...
अच्छा सो जाओ पर सोने पहले एक और गीत।
उफ़्फ़ ! अब नही गाऊँगी। अरे, तुम्हें कौन कह रहा है गाने को ? रुको एक मिनट।
हे भगवान ! तो इस भारी रात में तुम हुंकार लगाओगे हा-हा-हा.... माफ़ करो मैं जाग हीं जाती हूँ।
हो गया अब तुम्हारा तो लिए मेरी तरफ़ से ये ख़ूबसूरत गीत का लिंक आपके लिए। और हाँ डरिए नही इस बार आप मेरी पसंद पर जाने क्या कर बैठे....
अच्छा तो ये बात है ? फिर पेश किया जाए..
लिंक भेजा है..
हाँ मिला। तो साथ सुने ?
ठीक है चलो, स्टार्ट......
स्टार्ट।
जाग दिल-ए-दीवाना रुत जागी वस्ल-ए-यार की
बसी हुई ज़ुल्फ में आयी है सबा प्यार की
जाग दिल-ए-दीवाना......
ओह .... तुमने तो सच में नींद उड़ा दी। देखो तो कैसे रफ़ी साहब अंधेरी रात में हौले- हौले प्रेम को जगा रहें है। इतने साधना से जागना कि उसकी पुकार सिर्फ़ धीरे से दिल तक पहुँचे और दुनिया सोती रह जाए। कैसे कोई गा कर ज़ुल्फ़ से प्यार पहुँचा सकता है। क्या हीं कहूँ मैं तुम्हें... काश अभी इस वक़्त रफ़ी मेरे सामने होते तो मैं उनका गला चूम लेती।
और मैं होता तो....
तो क्या कुछ नही हा-हा-हा....
हाय रे निर्मोही, रफ़ी को भी चूमा तो गले पर। क्या प्रेम है तुम्हारा मान गया....
किसी के प्राणवायु के द्वार को चूमना उसके आत्मा तक पहुँचने का रास्ता है बाबू। इसे सिर्फ गला ना समझो। एक द्वार है मन का आत्मा का ज्ञान का और जीवन का। यहाँ एक चुम्बन की गाँठ सारी मन्नते पूरा कर देंगी जनाब.....
अब सो जाए... गुड नाइट....
आहम्म....
जाग दिल -ए-दीवाना........